शादी निपट चुकी थी और टैंट वाले , कैटरिंग वाले , मिठाई वाले सभी अपनी - अपनी पेमैंट के लिए वर्मा जी को घेरे हुए थे । वर्मा जी यथा शक्ति सभी को संतुष्ट कर भुगतान (पेमेंट) करते जा रहे थे ।
अंदर जनाने से बार - बार बुलावा आ रहा था कि बिदाई की कुछ रस्मों के लिए श्रीमती जी को उनकी जरूरत थी और बिटिया भी एक बार उनसे अच्छे से मिल लेना चाहती थी । उनका हृदय भी अपनी प्यारी बेटी से होने वाले वियोग को स्मरण करके व्यथित हो रहा था पर वो फिर भी मुस्कुराहट का आवरण सजाए सभी कार्य निपटा रहे थे ।
लगभग सभी की पेमेंट चुकता कर वो घर के अंदर जाने के लिए जैसे ही मुड़े कि अचानक जनवासे में से समधीजी निकल के
सामने आ गए और पूरी बत्तीसी फैला कर बोले "हुजूर हमारी पेमेंट कब तक करेंगे ? " " हमारी पेमेंट भी निपटा दें ताकि बिदाई निर्विध्न संपन्न हो ।"
नई-नई रिश्तेदारी की बेशर्मी को नज़रअंदाज कर वर्मा जी ने फौरन घर के भीतर से एक बड़ा बैग लाकर समधीजी के हाथ में पकड़ाया और हाथ जोड़कर कहा " पूरे पचास लाख हैं ।" समधीजी हँस कर बोले "अरे हमें पता है हुजूर , हिसाब - किताब के आप बहुत पक्के हैं ।"
"हमें भरोसा है ।" "आप बस अब बिदा की तैयारी करें ।" और वर्मा जी इस आखिरी पेमेंट को निपटा निश्चिंत हो बेटी से मिलने घर के अंदर चल पड़े ।
सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें