बुधवार, 22 जुलाई 2020

यादगार आयोजन :मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में शनिवार 22 जुलाई 2017 को नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में ‘सम्मान समारोह एवं पावस-राग’ का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के तत्वावधान में शनिवार 22 जुलाई 2017 को नवीन नगर स्थित ‘हरसिंगार’ भवन में नवगीतकार माहेश्वर तिवारी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में ‘सम्मान समारोह एवं पावस-राग’ के रूप में मनाया गया जिसमें देहरादून से पधारे सुविख्यात साहित्यकार एवं चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘कविकुम्भ’ के यशस्वी संपादक श्री जयप्रकाश त्रिपाठी एवं कवयित्री श्रीमति रंजीता सिंह के मुख्य आतिथ्य में लखनऊ से पधारे वरिष्ठ नवगीतकार मधुकर अष्ठाना को प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, अंगवस्त्र, सम्मान राशि व श्रीफल नारियल भेंटकर ‘‘माहेश्वर तिवारी नवगीत सृजन-सम्मान’’ से सम्मानित किया गया।

     कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी द्वारा लिखित एवं संगीतवद्ध सरस्वती वंदना- ‘शारदे माँ शारदे माँ, ज्ञान का वरदान दे माँ/ज्योति की सरिता बहा दे, नवसृजन का दान दे माँ’ की सुमधुर संगीतमय प्रस्तुति से हुआ। तत्पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित स्थानीय एवं अतिथि साहित्यकारों ने माहेश्वर तिवारी के रचनाकर्म की 6 दशक लम्बी स्वर्णिम यात्रा पूर्ण होने पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से चर्चा करते हुए बधाई दी। साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ के संयोजक  योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने कार्यक्रम के संदर्भ में अपने वक्तव्य में कहा कि-‘मुरादाबाद के साहित्यिक पर्याय श्रद्धेय दादा तिवारी जी की सृजन-यात्रा के साठ वर्ष पूर्ण होना एक बड़ी उपलब्धि है, इसी परिप्रेक्ष्य में गतवर्ष भी वरिष्ठ रचनाकार डॉ0 राजेन्द्र गौतम(नई दिल्ली), श्री यश मालवीय (इलाहाबाद), जयकृष्ण राय तुषार(इलाहाबाद), हरिपाल त्यागी(नई दिल्ली) एवं  ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’(मुरादाबाद) को सम्मानित किया गया था। इस वर्ष लखनऊ निवासी नवगीत के बड़े हस्ताक्षर मधुकर अष्ठाना को उनके दीर्घ एवं उल्लेखनीय सृजन के लिए सम्मानित किया जा रहा है।’

इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि साहित्यकारों एवं स्थानीय साहित्यकारों द्वारा चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘कविकुंभ’ के जुलाई, 2017 अंक का भव्य लोकार्पण किया गया। पत्रिका की संपादक रंजीता सिंह ने इस अवसर पर पत्रिका के संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि ‘कविकुंभ पत्रिका अपनी तरह की अलग साहित्यिक पत्रिका है जिसमें समसामयिक साहित्यिक संदर्भों पर प्रतिष्ठित साहित्यकारों से गंभीर विमर्श भी है और स्थापित व नवोदित रचनाकारों की महत्वपूर्ण कविताएं भी हैं। कविकुंभ पत्रिका आज के समय में एक आवश्यक साहित्यिक पत्रिका है।’

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र-‘पावस-राग’ में सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बालसुन्दरी तिवारी द्वारा अपनी संगीत की छात्राओं-  संस्कृति, कशिश, साक्षी, उर्वशी, प्रीति, राशि, यश, लकी एवं तबला वादक श्री राधेश्याम की संगत में कीर्तिशेष शास्त्रीय गायिका किशोरी अमोनकर के वर्षागीत ‘ओ ! बदरा’ की प्रभावशाली प्रस्तुति के साथ-साथ माहेश्वर तिवारी जी के नवगीतों को भी संगीतवद्ध कर प्रस्तुत किया गया-

‘डबडबाई है नदी की आँख

बादल आ गए

मन हुआ जाता अँधेरा पाँख

बादल आ गए’

..........

‘बादल मेरे साथ चले हैं

परछाई जैसे

सारा का सारा जग लगता

अँगनाई जैसे’

इसके पश्चात कार्यक्रम के तृतीय सत्र में वर्षा ऋतु पर केन्द्रित काव्य-पाठ का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित कवियों ने समसामयिक संदर्भों के साथ-साथ वर्षा ऋतु के विभिन्न पहलुओं के चित्र भी अपनी-अपनी कविताओं में उकेरे। इस अवसर पर काव्य-पाठ करते हुए अतिथि रचनाकार लखनऊ से पधारे नवगीतकार श्री मधुकर अष्ठाना ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

‘जल रहे हम यहाँ वर्तिका की तरह

चाहतें हो गईं द्वारिका की तरह

धार में आँसुओं की बही बाँसुरी

हम तड़पते रहे राधिका की तरह’

देहरादून (उत्तराखण्ड) से पधारे  जयप्रकाश त्रिपाठी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘आज सारे लोग जाने क्यों पराए लग रहे हैं

एक चेहरे पर कई चेहरे लगाए लग रहे हैं

बेबसी में क्या किसी से रोशनी की भीख माँगें

सब यहाँ बदनाम रात के साए लग रहे हैं’

देहरादून (उत्तराखण्ड) से ही पधारीं कवयित्री रंजीता सिंह ने अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की-

‘ज़िन्दगानी की कड़ी धूप में चलकर देखो

हाँ, ग़ज़ल और निखर जाएगी जलकर देखो

सख़्त हालात में तप जाओगे कुंदन की तरह

वक़्त की आँच पे कुछ और पिघलकर देखो’

काशीपुर (उत्तराखंड) से पधारी कवयित्री डॉ. ऋचा पाठक ने काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए कहा-

‘ईश्वर मुझसे हार गया

मैंने अपनी ज़िम्मेदारी

इतनी उम्र निभायी सारी

अब जब उसकी बारी आई

फौरन पलटी मार गया’

सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने नवगीत प्रस्तुत किया-

‘खिड़की, शायद तुमने

रात खुली रहने दी

चुपके से सिरहाने तक

बादल आ गए’

सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘सूरज पहले खुद तपता है

फिर धरती खूब तपाता है

तब जाकर के कोई बादल

ठंडक-सी लेकर आता है’

वरिष्ठ शायर डॉ. कृष्ण कुमार ‘नाज़’ ने ग़ज़ल पेश करते हुए कहा-

‘न मैं तुमको समझ पाया, न तुम मुझको समझ पाए

अधूरे ख़्वाब लेकर हम बहुत आगे निकल आए

जिसे सीने पे रखकर लोग सबकुछ भूल जाते हैं

वो पत्थर कौन-सा है, कोई हमको भी ये बतलाए


वरिष्ठ कवयित्री श्रीमति विशाखा तिवारी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-


‘मेघ पल


सावनी बौछारों के साथ


जब मैं मिली पहली बार


भींग गई भीतर तक’


वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजीव सक्सेना ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-


‘टूटी हैं पतवारें


दूर हैं किनारे’


अब किस पर भरोसा करें


नदी पर या नाव पर


ज़िन्दगी है दाँव पर’


नवगीतकार श्री योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने गीत प्रस्तुत किया-


‘बारिश के परदे पर पल-पल


दृश्य बदलते हैं


कभी फिसलना, कभी संभलना


और कभी गिरना


पर कुछ को अच्छा लगता है


बन जाना हिरना


बूँदें छूने को बच्चे भी


खूब मचलते हैं’


वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय ‘अनुपम’ ने मुक्तक प्रस्तुत किया-


‘जो सुखद है वह सदा सुखकर नहीं होता


कर्म हरपल भाग्य का सहचर नहीं होता


प्रश्न सबका है, नहीं उत्तर किसी पर भी


चाहते हैं जो वही अक्सर नहीं होता’


वरिष्ठ शायर डॉ. स्वदेश भटनागर ने ग़ज़ल पेश की-


‘ख़ुद से ख़ुद पूछ तू पता अपना,


दूर तक ख़ुद में लापता हो जा


हो गया जिस्म तर्जुमा गुल का,


ख़ुशबुओं का तू तर्जुमा हो जा’

कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘न जिसमें प्यार हो माँ का उसे आँचल नहीं कहते

नहीं जो याद में बहता उसे काजल नहीं कहते

गरजते हैं बिना बरसे मगर जो लौट जाते हैं

जिया की प्यास भड़काए उसे बादल नहीं कहते’

वरिष्ठ साहित्यकार श्री वीरेन्द्र सिंह ‘ब्रजवासी’ ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘गैया को मैया कहने से

कुछ सम्मान नहीं होगा

जब तक उसके खान-पान पर

सबका ध्यान नहीं होगा’

वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक विश्नोई ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘भारतवासी की अपनी इक पहचान है

अपनी सेना पर हमें अभिमान है

मत छेड़ो उड़ जाओगे

हर धड़कन तूफान है’

साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘फिर कहीं गोली चली, फिर कहीं लगी आग

सैकड़ों घरों के आज बुझने लगे चिराग

शासन से जवाब माँगती पीड़ित जनता

खोलो अपनी बंद आँखें, मत गाओ राग’

वरिष्ठ गीतकार आनंद कुमार ‘गौरव ने काव्यपाठ प्रस्तुत किया-

‘काश ऐसी कोई पहल कर दे

गीत कर दे मुझे ग़ज़ल कर दे

ज़िन्दगी से लगाव कुछ तो बने

नफ़रतें प्यार में बदल कर दे’

इसके साथ ही सर्वश्री धीरेन्द्र प्रताप सिंह, समीर तिवारी, डॉ. मीना कौल, माधुरी सिंह आदि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय ‘अनुपम’ ने की तथा संचालन संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने किया। आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।



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