बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- अंतर्द्वंद्व


      महेश अनपढ़ होते हुए भी अपनी इंसानियतऔर काम के प्रति सजग और ईमानदार था। शायद इसी वजह से पढ़े लिखे लोग भी उसे आदर से नमस्ते करते थे। वह ऑटो चला कर भी अच्छी कमाई कर रहा था।
बिटिया  का विवाह करने के लिए महेश को चार लाख रुपए चाहिए थे। किन्तु उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे होगी इसकी व्यवस्था?
आज ही काम पर जाने से पहले पेपर में महेश ने पढ़ा - "भागता फिरता इसी शहर गाजियाबाद में छुपा प्रख्यात गुंडा 'आकाश दुबे' जिसकी खबर देने वाले को 4 लाख रुपए का इनाम  मिलेगा...।"
देर रात किसी ने महेश की ऑटो को सुनसान रास्ते पर आवाज़ देकर रोका और किसी जगह तक ले जाने को कहा।
महेश ने कहा, "साहब वहां तक 100 रुपए लगेंगे...काफी सुनसान रास्ता है।"
उस आदमी ने कहा - "200 रुपए ले ले, पर जल्दी चल...।"
रास्ते में थोड़ी रोशनी में उस आदमी की शक्ल पर जैसे ही महेश की नज़र पड़ी  उसकी शक्ल सुबह के अखबार वाले उस गुंडे आकाश दुबे से मिलती हुई लगी...अब महेश के मन में चार लाख घूमने लगा-
"पुलिस को बता दूंगा, इसके उतरते ही। भगवान ने मेरी समस्या सरल कर दी" वह सोच रहा था तभी उसकी नज़र ऑटो में उसके  3 साल के बेटे द्वारा लगाए स्टीकर पर गई जिसपर लिखा था..."हर ग्राहक भगवान का रूप है"
बस जरूरत और आत्मा के अंतर्द्वंद्व में आत्मा फिर से महेश पर हावी हो गई...और उसने इस गुंडे को भी अपना भगवान का एक रूप समझा
लेकिन अगले ही पल उसके विवेक ने आवाज दी, "ईनाम के लिए ना सही लेकिन मानवता के लिए समाज के इस दुश्मन को कानून के हवाले करना भी उसका फ़र्ज़ है। समाज के दुश्मनों का सफाया भी तो भगवान का ही काम है।"
और वह जेब से मोबाइल निकाल कर नम्बर
मिलाने लगा..।


प्रवीण राही
मुरादाबाद

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