बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ नीयत

                                                                                      नावेद मियां जबसे जलसे में से आये थे। अपने माँ- बाप के प्रति उनमें खास बदलाव दिखाई देने लगा था। अपनी बीवी आसिया से वह कह रहे थे -"देखो आसिया, मेरे पीछे भी मेरे माँ- बाप को किसी तरह की परेशानी नही होनी चाहिये। उनकी हर बात का ख्याल रखना क्योंकि, वालिदैन (माँ -बाप) की खिदमत  से ही हमें जन्नत मिलेगी। मौलाना साहब जलसे में कह रहे थे कि -"अगर किसी ने माँ- बाप का दिल दुखाया तो वह जन्नत की खुशबू भी नही सूंघ सकता "।
नावेद मियां यूं तो पहले से ही माँ- बाप के फरमाबरदार थे लेकिन जलसे से आने के बाद  माँ- बाप काऔर अधिक ख्याल रखने लगे थे । जुमेरात की शाम नावेद मियां के यहां जलसे वाले मौलाना साहब की दावत थी।दावत के बाद मौलाना साहब कमरे में आराम फरमा रहे थे। नावेद मियां भी उनके सामने बैठे हुए थे।  गुफ्तगू शुरू हुई तो फिर वालिदैन के हक़ तक जा पहुँची नावेद मियां बड़े फख्र से मौलाना साहब को बताने लगे कि वह किस तरह अपने माँ- बाप का ख्याल रखते है उन्होंने मौलाना साहब से पूछा कि-" क्या वह अपने माँ बाप का हक़ अदा कर रहे है?"मौलाना ने जवाब दिया -"आप अपने वालिदैन की खिदमत कर अच्छा काम कर रहे है ,खुदा आपको इसका सिला (बदला)देगा लेकिन जहाँ तक हक़ अदा करने की बात है आप उनका हक अदा नही कर सकते"। 
"क्यों?"नावेद मियां ने हैरत से पूछा।मौलाना साहब फिर बोले-"नावेद मियां, अच्छाई- बुराई, अज़ाब- सवाब(  पाप -पुण्य) सब नियत पर होता है। खुदा बन्दे की नियत से ही उसके अमल (कृत्य)का बदला देता है। आप यह सोचकर अपने माँ- बाप की खिदमत कर रहे हैं कि आपको जन्नत में जाना है। लेकिन जब आप नन्हें से बच्चें थे तब आपके माँ- बाप ने आपकी खिदमत जन्नत (स्वर्ग)के लालच या दोज़ख (नरक)के ख़ौफ से नही की थी  बल्कि वह आपको बड़ा होता परवान चढ़ता हुआ देखकर खुश होते थे उनकी नीयत में कोई लोभ, लालच नही था। जबकि लोग अपने बूढ़े माँ- बाप की खिदमत जन्नत के लालच या दोजख में जाने के ख़ौफ से यह सोचकर करते है कि यह चंद सालों   के  ही तो मेहमान है।" बताईये," माँ- बाप का हक़ कौन?कैसे, अदा कर सकता है। माँ- बाप  की नीयत और औलाद की नीयत  में कितना फर्क है। " मौलाना का जवाब सुनकर नावेद मियां ने निदामत से सर झुका लिया और उनकी आंखें गीली हो गईं सोचने लगे, 'वाक़ई हम लोग माँ - बाप का हक़ अदा नही कर सकते।'  लेकिन  अगले ही पल यह सोचकर उनके चेहरे पर संतोष के भाव आ गये की हम वालिदैन की खिदमत तो कर ही सकते हैं।'

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

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