"अब चलो भी शुभि ..! बाज़ार चलने में देर हो रही है"शुभम ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए घर के बाहर से , अपनी पत्नी शुभि को आवाज़ लगायी .
"आ गयीं बस...!". कहते हुए शुभि अपना दुपट्टा संभालते हुए मेन गेट से बाहर निकली और गाड़ी में बैठ गयी.रक्षा बंधन आने में अभी पूरे दस दिन थे, मगर शुभि चाहती थी कि सभी तैयारियां समय रहते पूरी कर ली जाएँ.अत: वह आज राखी खरीदने शुभम के साथ बाज़ार जा रही थी. राखी की दुकान पर पहुँच कर तीनों भाइयों और भतीजों के लिए राखी खरीदने के बाद, वह भाभियों के लिए लेडीज़ राखियाँ पसंद करने लगीं, मोतियों की लड़ी से सजी लटकन वाली लेडीज़ राखियां उसे बहुत प्यारी लगीं, उसने दुकानदार से कहा कि "भैया..! ये वाली "दो....राखियाँ दे दीजिए..... !" मगर ....दो ..शब्द जैसे उसके गले मे अटक गया......!
कुछ समय पहले तक शुभि के मायके में सब कुछ ठीक -ठाक था मगर अचानक छोटे भैया राहुल की गृहस्थी में उस वक़्त भूचाल आ गया ,जब उसकी पत्नी रंजना ने छोटी -छोटी बातों पर झगड़ा करना शुरू कर दिया, और एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि वह रूठकर अपने मायके जा बैठी.तब प्रारंभ में सबको यही लगा कि पति- पत्नी का झगड़ा है ,आपस में ही सुलझा लेंगे, मगर धीरे- धीरे जब उसे गये पंद्रह दिन हो गये तब सबको स्थिति की गंभीरता का अनुमान लगने लगा.वह अपने साथ अपने पांच साल के बेटे अंश को भी ले गयी थी. घर के सब लोगों ने रंजना को मनाने की बहुत कोशिश भी , कई फोन भी किए, उसके माता- पिता से भी बात की और छोटे भैया ने गलती न होते हुए भी उससे माफी माँगी, मगर वह अपने अहम् के कारण आने को तैयार न थी,छोटे भैया तो जैसे बिलकुल ही टूट गये थे, वह अपने कमरे तक सीमित होकर रह गये थे. माँ का स्वर्गवास तो पहले ही हो चुका था, एक ही मकान में रहते हुए भी तीनों भाइयों के चूल्हे अलग-अलग थे, पिताजी बड़े भैया के साथ रहते थे.अत: छोटे भैया कभी होटल पर या कभी खुद कच्चा -पक्का बनाकर खाना खा लेते थे,इसी प्रकार धीरे -धीरे तीन महीने बीत चले थे.
यह सब सोचकर राखी की दुकान पर पर खड़ी शुभि की आंखें गीलीं और मन भारी हो चला था. उसने खुद को संयत करते हुए, दुकानदार से कहा, सुनो भैया, ये वाली लेडीज़ राखियाँ दो नहीं...तीन दे दीजिए ...! "
"मगर शुभि तीन ...!".. शुभम ने कुछ कहना चाहा तो शुभि ने अपनी पलकों को हौले से झपकाते हुए उसे चुप रहने का संकेत किया.दुकान से निकलकर उसने शुभम से पोस्ट आफिस चलने को कहा, वहांँ जाकर उसने एक चिट्ठी लिखकर , राखियों के साथ भाभी के मायके के पते पर पोस्ट कर दीं
रक्षा बंधन का पावन दिन भी आ पहुंचा , शुभि अपने मायके मिठाइयाँ और राखियाँ लेकर पहुँच चुकी थी, दोनों बड़े भाइयों और भाभियों को राखी बांधने के बाद, छोटे भैया की कलाई पर राखी बांधने ही वाली थी कि.....तभी डोरबेल बज उठी,
बड़ी भाभी ने गेट खोला तो सबके आश्चर्य की सीमा न रही. दरवाजे पर छोटी भाभी रंजना भतीजे के साथ खड़ी थी.रंजना के एक हाथ में अटैची और दूसरे में चिट्ठी थी .अंदर आते ही रंजना, शुभि से लिपटकर रोने लगी, शुभि की आंखों से भी गंगा- यमुना बह चली थी.घर के सब लोग आश्चर्य में थे कि यह चमत्कार कैसे हुआ ?इस दौरान वह चिट्ठी रंजना के हाथ से छूटकर नीचे गिर पड़ी, जिसे उठाकर राहुल ने मन ही मन एक साँस में पढ़ डाला, चिट्ठी में लिखा था
प्रिय भाभी,
बहुत दिन हुए ....!अब नाराजगी छोड़कर अपने घर आ जाओ! भैया की किसी भी गलती की मैं माफी मांगती हूँ....माँ तो इस दुनिया में नहीं है ,मगर मैंने हमेशा आप में अपनी माँ को ही देखा है, आप के बिना मेरे भैया अधूरे हैं और भैया के बिना मैं.... ! और मैं इस अधूरेपन के साथ रक्षा बंधन के इस पावन त्योहार को नहीं मना सकती,आपको इस राखी की सौगंध...!वापस आ जाओ भाभी ..... !मैं राह देखूंगी...
आपकी
शुभि
पत्र पढ़कर ,छोटे भैया राहुल की आंखों से खुशी के आंँसू बह चले थे ..आज उन्हें अपनी इस छोटी बहन में माँ का अक्स दिख रहा था. उसकी लायी राखी के कच्चे धागों ने उसके बिखरे हुए घर को रक्षा कवच के अटूट बंधन में जो बांँध दिया था.
शुभि ने हौले से रंजना को अलग करके आँसू पोछकर, मुस्कुराते हुए कहा "आओ भाभी.. पहले राखी बंधवा लो, शुभ मुहूर्त बीता जा रहा है..! "
✍️ मीनाक्षी ठाकुर,
मिलन विहार,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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