शनिवार, 9 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से आज शनिवार 9 मई 2020 को मातृ दिवस की पूर्व संध्या पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। "मां" को समर्पित इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता यश भारती माहेश्वर तिवारी जी ने की तथा संचालन राजीव प्रखर ने किया। गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों यश भारती माहेश्वर तिवारी जी, डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, डॉ मीना नकवी, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ पूनम बंसल, जिया जमीर, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ल, अखिलेश वर्मा, मनोज मनु, डॉ अर्चना गुप्ता, अंकित गुप्ता अंक, राजीव प्रखर , हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका मासूम, मयंक शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर और डॉ ममता सिंह द्वारा प्रस्तुत रचनाएं------



रोटियां बनाती है माँ
बेटों के लिए कुछ नए सपने
आँच में पकाती है माँ

सपने जो सूरज हैं
कल की आज़ादी हैं
सपने जो खुशियों के
बोल हैं, मुनादी हैं
चूल्हे के पास बैठकर घंटों
उनको दुलराती है माँ

सपने जो वंशज हैं
सुलगते पसीने के
तौर-तरीके सिखलाती
उसको जीने के
आँखों से धुँए को ढकेलती
सपनों को गाती है माँ

माँ के सपने आकर
बेटों की आँखों में
हरापन जगाते हैं
मुरझाई शाखों में
सपनों को पाल-पोसकर
अपनी झुर्रियाँ घटाती है माँ

✍️ माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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मां सुख का नादानुनाद है
मां परमेश्वर का प्रसाद है

वह शुचिता का शंखनाद है
शुभ संकल्पित साधुवाद है
करुणा कृपा दया से दीपित
मां परमेश्वर का प्रसाद है

प्रीति सुपावन निर्विवाद है
शुभता का भावानुवाद है
महाकाव्य है वह जीवन का
मां परमेश्वर का प्रसाद है

अमृत का अविकल्प स्वाद है
ममता का मधुमय निनाद है
अनहद है जिसकी लोरी में
मां परमेश्वर का प्रसाद है

✍️ डॉ अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9761302577
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एक
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पिता पर
कविता लिखना
सहज नहीं है
दुर्लभ  बहुत  है ,
भले ही
पिता को जीने
और पिता होने का
अनुभव बहुत है ।
मां कृपा से
जब हुए कुछ शब्द
पिता को कहने में ,
बड़ी विवशताएं
दीखीं उस क्षण
पिता सा  रहने में ।
फिर भी हुई
कविता पिता पर
तो मां ,
मन ही मन मुस्काई ,
बोली-
' बहुत सुन्दर,
बहुत ही अच्छी है
ऐसी एक कविता
मुझ पर भी             
लिख दे मेरे कन्हाई ।'
मैं बोला -
' मां ! सुन , समझ ले
मुझ बेटे ने
जब - जब ,तुझ पर
लिखना चाहा
बस लाचार दिखा है ,
मैं उस पर
क्या लिक्खूंगा  मां
जिसने
मुझको संपूर्ण लिखा है।।
       
 --------
    दो
  ====
किस दुनिया में पहुंची मां ।
प्यारी  -  प्यारी    मेरी मां ।।
पड़ी  दूध  में  रहती   थी ,
सदा  बताशे    जैसी  मां ।।
उपवन सब   बेकार लगे ,
जब फूलों सी खिलती मां।।
लाल देख कर जेठ तपा ,
आंसू - आंसू   बरसी मां ।।
मेरी  भूल , दिखावे   को ,
बादल जैसी  तड़की मां ।।
लगी सदा थी खिचड़ी में,
देसी  घी  के  जैसी   मां ।।
मैंने भी कविता लिक्खी ,
लिखवाने  वाली भी मां ।।

  ✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001 
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एक गीत का अंश 

माँ..!!
तुझे सलाम

दुख सह कर भी सुख देती है जो अपनी संतान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

काँटा मुझ को लग जाने से पीड़ा माँ को होती है।
मुझ को सूखा बिस्तर दे कर ख़ुद गीले में सोती है।
देव रिषि तक नत मस्तक रहते हैं जिस के मान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

जाग के रातों को लिखती है मेरे भाल पे उज्यारा।
जिस को सारे जग में लगता केवल रूप मेरा प्यारा।
अपनी जान से प्यारा समझा जिस ने मेरी जान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

मीठी झिड़की दे कर, जो मुख मेरा देखा करती है।
भाव मेरे चेहरे के पढ़ कर, मन ही मन फ़िर डरती है।
दुलरा कर, बहला कर पाला जिस ने मुझ नादान को।
माँ के रूप में पाया मैने भगवन के वरदान को।।
    
✍️डा. मीना नक़वी
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प्यार सभी का स्वार्थ निहित है,
मां का प्यार अपरिमित होता।

मां का बस चलता तो चन्दा,
नभ से धरती पर ले आती।
अनगिन तारागण वह अपने,
सुत की झंगुली में टकवाती।

     पाने को ममता माता की, 
     ईश्वर भी लालायित होता ।।

सुत की पीड़ा आभासित कर,
व्यकुल हो जाता मां का मन।
व्याकुल बालक की माता का,
अन्तस् करने लगता क्रन्दन।

   हर पल-क्षण सुख पहुंचाने को ,
   माँ का मन उत्साहित होता।।

निज माँ का मान बढ़ाने को ,
बंध गए ओखली से कृष्णा।
मैया-मैया कहते-कहते ,
कान्हा की थकी नहीं रसना।

   निकष परम शुचिता-ममता का,
   माँ से सदा प्रमाणित होता।।

प्यार सभी का स्वार्थनिहित है,
माँ का प्यार अपरमित होता।

✍️डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद244001
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       जिसने  मेरा  अंकुर   पाला
      नौ माह तक  मुझे  संभाला
      धरती पर  लाकर  माता  ने
      जीवन रसको मुख में डाला
      मैं प्यारी  माँ  के  चरणों  में
      बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

      दुविधाओं  से  मुझे  बचाया
      सुविधाओं  का  ढेर  लगाया
      मेरी   नींदों    को   सहलाने
      माँ  ने   गीत  सलोना  गाया
      मैं न्यारी  माँ  के  चरणों  में
      बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

      सब पर ही  ममता बरसाती
      संतानों  पर   जान   लुटाती
      लिंग  भेद  करने  वालों  पर
      नहीं ज़रा भी रहम  दिखाती
      मैं सुखकारी  माँ  चरणों  में
      बारम्बार   नमन   करता  हूँ।

       तेरे    आशीषों    से   माता
       जीवनका हर पल मुस्काया
       प्रथम गुरू बनकर  माँ  तूने
       भाषाओं  का  ज्ञान  कराया
       मैं हितकारी  माँ  चरणों  में
       बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

       तेरी   मुस्कानों   पर  माता
       सकल  देव जाते बलिहारी
       तेरी  गोदी   में   आने   को
       बन जाते  बालक अवतारी
        मैं  जगतारी माँ  चरणों में
        बारम्बार  नमन  करता हूँ।
         
             ✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                  मुरादाबाद/उ,प्र,
                  मोबाइल फोन 9719275453
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       चरणों में तेरे मां, यह सिर हमेशा झुका रहे ।
प्रभु देना ऐसा वर, आशीष मां का सदा रहे।
करूं न कभी तिरस्कार, न करूं कभी अपमान।
करूं दिन रात सेवा, यह भाव मन में भरा रहे।

   ✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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माँ का होना मतलब
दुनियाभर का होना है

तकलीफ़ें सहकर भी
सारे फ़र्ज़ निभाती है
उफ़ तक करती नहीं
हमेशा ही मुस्काती है
उसका मकसद घर-आँगन में
खुशबू बोना है

अँधियारों में से उजलेपन
को ही चुनती है
हर पल आने वाले कल के
सपने बुनती है
बच्चों का जीवन ही
उसका असली सोना है

जीवन की संध्या में
उसको कष्ट न कोई हो
ध्यान रहे उसकी अभिलाषा
नष्ट न कोई हो
माँ को खोना मतलब
दुनियाभर को खोना है

✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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जीवन के तपते मरुथल में माँ गंगा की धार है 
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर माँ गीता का सार है 

थके कदम जब भी राहों में सदा मिले उसका सम्बल 
सपने भी मंज़िल पर जाते सर पर हो माँ का आँचल 
जागी आँखों की लोरी माँ थपकी और दुलार है 

संस्कार है देने वाली बच्चों की खातिर जीती 
त्याग और ममता की मूरत बाँट ख़ुशी आंसू पीती 
सारे तीरथ इसमें बसते ईश रूप साकार है 

सूर्य बनी माथे की बिंदिया पायल करे मधुर छन छन 
पल्लू में चाबी का गुच्छा चूड़ी करती है खन  खन 
उसकी खुशबू हर कोने में माँ घर का श्रृंगार है 

          ✍️  डॉ पूनम बंसल 
                 मुरादाबाद 244001
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घुटनों  की  पीड़ा  में   जाग  के   सोने   वाली  मां
इंसूलिन   की   गोली   से  खुश   होने   वाली  मां
सिलवटी  हाथों  से  कपड़ों  को  धोने   वाली  मां
पापा  की  इक  डांट  से  घुट  कर  रोने  वाली मां
बच्चों  से  छिप-छिप  कर  रोना  कैसा  होता   है
मां  हो  तुम  और  मां   का  होना  ऐसा  होता  है

पापा   की    इंटेलीजेंसी   तुम    पर    भारी    है
लेकिन  तुमने   प्रेम  की  गंगा   घर  में  उतारी  है
बांधना  घर  को  इक  धागे  में  कितना  भारी  है
इसमें   तुम्हारी   सिर्फ़ तुम्हारी   ही   हुशियारी  है
तुमको    है   मालूम    पिरोना   कैसा    होता   है
मां  हो  तुम  और  मां   का  होना  ऐसा  होता  है

दकियानूसी  कहकर  बिटिया  तुम  पर  हंसती है
'तुमको नहीं मालूम' की फबती तुम पर कसती है
'सीधी औरत'  की  उपमा  भी  तुम को  डसती है
और  तुम्हारी  इस  घर  में  ही  दुनिया  बसती  है
छत   दीवारें    कोना  -  कोना   कैसा   होता   है
मां  हो  तुम  और  मां  का   होना  ऐसा  होता  है

छोटी  सी  तनख़्वाह  में  कैसे करने  हैं सब काम
कभी नहीं  मिलता है  तुमको  मेहनत  का इना'म
और  नहीं  होता  है  जग  में  कभी तुम्हारा  नाम
धरती  मां  के  जैसे  तुम  भी  करती नहीं आराम
तुमको  क्या  मालूम  कि  सोना  कैसा   होता  है
मां  हो  तुम  और   मां   का  होना  ऐसा  होता है

✍️जिया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
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दूर  रंजो  अलम  और  सदमात  हैं,
माँ है तो ख़ुशनुमा घर के हालात हैं

दुख ही दुख वो उठाती है सबके लिए,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।

कोई मुश्किल न होगी सफ़र में मुझे,
माँ के जब तक दुआ में उठे हाथ हैं।

सब फ़क़त माँ के दिल को दुखाते रहे,
यह न सोचा कि उसके भी  जज़्बात हैं।

लौट भी  आ  तू  अब  लाल परदेस से,
माँ के दहलीज़ पर नैन दिन रात हैं।

क्यों न महफ़ूज़ मैं हर  बला से रहूँ,
"मेरी  माँ  की  दुआएँ  मेरे साथ हैं।"

              ✍️ओंकार सिंह विवेक
                      रामपुर
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दोहे:

छप्पन व्यंजन भी मुझे, लगते हैं बेस्वाद।
माँ, जब तेरे हाथ की, रोटी आती याद।।

संकट में जब भी घिरा, आया मुश्किल दौर।
माँ के आँचल के सिवा, मिला न कोई ठौर।।
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गीत :
लगता है तुम यहीं कहीं हो, छिपी हमारे पास।
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

तुमने ही जन्म दिया मुझको, जब आँख खुली तुमको पाया
पहला स्पर्श तुम्हारा था, तुमसे ही संरक्षण पाया
तेरे आँचल का माँ अब भी, होता है आभास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

जीवन का पहला पाठ मुझे, तुमने ही तो बतलाया था
ठोकर खाना गिरना उठना, उठकर चलना सिखलाया
था
तेरी उँगली हरदम रहती, थी मेरे ही पास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

खुद आधी रोटी खाती थी, हमको भरपेट खिलाती थी
घर के खर्चों से बचा बचा, सबको कपड़े सिलवाती थी
मेरे वजूद में दिखता है माँ,  तेरा ही विश्वास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

अब तो अम्मा तुम बस मेरे, सपनों में ही आती हो
बस यादों में ही आकर तुम,  मुझको बड़ा रुलाती हो
काश स्वप्न सच्चे हो सकते, रहे ह्दय मे आस
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

मुझसे ज्यादा बहू तुम्हारी, याद तुम्हें अब करती है
तुम जैसा ही प्यार आज, अपनी बहुओं को देती है
पदचिन्हों पर चले तुम्हारे, बन बैठी है सास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

✍️श्री कृष्ण शुक्ल
 मुरादाबाद 244001
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ज़िंदगी है माँ सभी की और ये संसार माँ
प्यार है दुनिया में ग़र तो प्यार का आधार माँ ।

चक्की चूल्हा भाईयों ने कर लिया अपना अलग
पर उसी चक्की में गेहूँ सी पिसी हर बार माँ ।

माँ ने ही परिवार की बगिया सजाई इस तरह
फूल है बच्चों की ख़ातिर दुश्मनों को खार माँ ।

जब भी मैं होता परेशां हाथ सर पर फेरती
जान लेती हाल दिल का देख के इक बार माँ ।

सब बिखर जाएँ न ..चाचा ताऊ भाई औ'र बहन
जोड़कर रक्खे जो सबको ऐसा है किरदार माँ ।

✍️अखिलेश वर्मा
  चन्द्र भवन 
  एम आई जी - 26
  रामगंगा विहार द्वितीय (विस्तार)
   मुरादाबाद-244001
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मां का दामन खजाना दुआ का,
माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,
क़र्ज़  इस का   चुका ना   सकेंगे,
जिंदगी  भी  फ़ना  करके  सारी,,

बात  कोई  ज़रा  आ पड़े  तो,
ढाल बन जाए औलाद की वो,
जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,
बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,

फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,
माँ खुदाई  पे   पड़  जाए  भारी,,
              माँ का दामन खजाना..

 साया  होते  हुए सर पे माँ  का,
 जो नहीं जानते माँ की खिदमत,
 जानिए  उनसे  रूठी   हुई   है,
 साथ रहते हुए उनकी किस्मत,

 देखने  में   लगे  ना   भले  ही,
 बेसुकूँ  उम्र   रहते   हैं   सारी,,
            माँ का दामन खजाना...

सब्र कितना दिया माँ को रब ने,
काश  होती  ख़बर  आदमी को,
जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,
माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,

अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,
जैसे  पहले   कभी   हों   गुजारी,,
              माँ का दामन खजाना..

अपनी ममतामयी माँ के  सदके,
आओ एक शाम अर्पित करें हम,
जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,
उनको यह शाम अर्पित करें हम,,

यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,
जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,
माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,

   ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मोबाइल फोन नम्बर 6397093523
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पढ़ लेती जो दिल के अंदरखाने है
बिना कहे माँ हाल हमारा जाने है

कभी नहीं छुप सकता है माँ से कुछ भी
बच्चों का हर हाव भाव पहचाने है

मीठी मीठी नींद सुलाती बच्चों को
मधुर सुनाती माँ लोरी से गाने है

बच्चों के दुख में रोती सुख में हँसती
उनको ही माँ अपनी दुनिया माने है

नहीं देखती कष्ट कभी अपने तन के
करके रहती जो माँ मन में ठाने है

रखती नहीं हिसाब कभी माँ ममता का
सुनती रहती पर बच्चों के ताने है

बच्चों के जीवन से बीन ‘अर्चना’ गम
बोती रहती माँ खुशियों के दाने है

 ✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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चेहरे पर मुस्कान भले पीड़ा से छलनी मन
माँ ये सब कैसे करती हो

अपनी इच्छाओं का कुआँ रिक्तता से पाटा
ख़ुद रहकर निचुड़ी-सी बदली हमको जल बाँटा
सारे घर ने सदा तुम्हारा किया सिर्फ़ दोहन
तुम लेकिन घर को मरती हो

दुख जब टकराए घर से, मुँह की खाकर लौटे
चौखट पर  ज्यों टाँगे  आशीषों   के   नज़रौटे
कुशल चितेरे का हो जैसे तुमने सीखा फ़न
हर सू नए रंग भरती हो

कहो न लेकिन दर्द तुम्हें भी होता तो होगा
बाहर से हँसता दिखता दिल रोता तो होगा
सब छोड़ें जब कठिन वक़्त में आशा का दामन
कैसे तुम धीरज धरती हो

  ✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
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पहले तेरी वंदना, फिर आगे हरिनाम।
अम्मा तुझमें ही दिखे, मुझको तीरथ-धाम।।

घर में सुख-समृद्धि की, बहुत बड़ी पहचान।
माँ के मुख पर खिल रही,  सुन्दर सी मुस्कान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।

फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।
मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माँ की याद।

✍️ राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
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मक्खन,पंख,रुई-सा कोमल,
है माँ का एहसास।
आक्सीजन वायु में जैसे,
रिश्तों में वह खास।

दो रोटी के चक्कर बाँटे,
सबको मजबूरी,
यों रहते सब आस पास में,
फिर भी है दूरी।

मीलों भी माँ रहे दूर पर,
हरदम दिल के पास।
मक्खन,पंख...

मुस्कानों का पाउडर सूखा
लेता सोख नमी,
करते दावा हम हँस हंँसकर,
कोई नहीं कमी,

माँ ढूँढ लाती पर कैसे
कोने छुपी भड़ास।
मक्खन,पंख......

बच्चों के दिल रहती चाहत,
हमजोली हो माँ।
हर कोई डांटे उसको कहकर,
तुम भोली हो माँ,

पर मुश्किल में वही बचाती
उसके नुस्खे खास।
मक्खन,पंख....

नन्हें पौधे उसने सींचे
दे के अपना रक्त।
कोमलांगी चट्टान बन गयी,
बीता मुश्किल वक्त।

देखा सख्त जड़ों के बल पर
पल्लव में उल्लास।
मक्खन, पंख......

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद  244001
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हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है
माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है

चूम लेती है वह  जिस वक़्त मेरे माथे को
हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है

माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें
दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है

माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा
माँ विधाता को भी अवतार नया देती है

वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का
हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है

 ✍️ मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद 244001
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एक सुखद एहसास हो तुम।
हर सम्बन्ध में ख़ास हो तुम।।

जीवन घोर निराशा तम में।
चमकीली सी आस हो तुम।।

संघर्षों के कंटक पथ पर।
मखमल दूब की घास हो तुम।।

तुमने दी जो इस काया की।
धड़कन हो और श्वास हो तुम।।

तुम हो तो दुख दूर रहेंगे।
वो अद्भुत विश्वास हो तुम।।

कहाँ ढूंढने जाऊं भगवन।
माँ, शिवधाम कैलास हो तुम।।

 ✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
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मर चुकी है माँ!
स्तब्ध खड़ी हूँ मैं।
सूनी हैं आँखें,जिनमें अश्रु तैयार हैं,
पर गिरते नहीं धरा पर!

मानो कह रहें हों
उठ जाओ माँ!
उठो न ..!
देखो मैं आ गयीं..
"वे"भी आये हैं अबकी बार
साथ में..।

बाबू जी बैठे हैं
एक कोने में..
निःशब्द,मौन...!
क्यों नहीं बोलते ?
बाबू जी..!!!

सुनसान हो गया
घर का आँगन।
पायल अब बजती नहीं,
माँ की चूड़ियाँ भी अब खनकती नहीं।
सुनसान पड़ा माँ का कक्ष।
अचार,बड़ियों,पापड़ के डिब्बे
अब नहीं दिखते।

मायका तो माँ से ही होता है न कदाचित..?
अचानक भाभी ने पूछा,"जीजी!
चाय बनाऊँ क्या ?"
माँ तो कभी नहीं पूछती थी!!
अश्रु धरा पर गिर पड़े।
लगता है ...माँ चली गयी है .!!.
मुझे छोड़कर......सचमुच चली गयी है।


 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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सारी दुनिया में नहीं, कोई मात समान।
बिगड़े काम सँवार दे, वह है बड़ी महान ।।

हर पल करती काम है, दिन हो चाहे रात।
सहती सब चुप चाप है, मौन रखे जज़्बात॥

माँ के चरणों में मिलें, सारे तीरथ धाम ।
इसकी सेवा मात्र से ,बनते बिगड़े काम॥

बच्चों की रक्षार्थ जो, करती व्रत उपवास।
वरदानों से कम नहीं , उस माँ का मृदु हास।।

जीवन तपती धूप है ,माँ शीतल जल धार।
उसकी लोरी में छिपा ,सारे जग का प्यार॥

माँ तुम बिन सूना लगे, मुझको यह संसार।
तुमसे बढ़ कर कौन है, जो दे  इतना प्यार।।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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            :::::::::::::: प्रस्तुति :::::::::::::::::::

            डॉ मनोज रस्तोगी
            8, जीलाल स्ट्रीट
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
            मोबाइल फोन नंबर 9456687822


मुरादाबाद के साहित्यकार शिव नारायण भटनागर साकी का गीत-----यह गीत लिया गया है लगभग 53 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' से । यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में उन्हीं के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने



             ::::::::::::: प्रस्तुति :::::::::::::::

             डॉ मनोज रस्तोगी
             8, जीलाल स्ट्रीट
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश , भारत
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शुक्रवार, 8 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की रचना --------लॉकडाउन के इस टाइम में कैसा अचरज कर डाला। कोरोना से पीड़ित रोगी पी सकता है मधु प्याला।



मधुशाला खुलने के कारण देख देख गड़बड़झाला
मचल रही है आज लेखनी करने को कागज काला।
देख रही है जैसा जग को वैसा ही यह लिखती है। तत्पर है फिर से लिखने को,सरस सुहावना मधुशाला।

लॉकडाउन के इस टाइम में कैसा अचरज कर डाला।
कोरोना से पीड़ित रोगी  पी सकता है मधु प्याला।
उसको तो वैसे भी मरना, पर संतोष  रहेगा यह ।
मरने से पहले मैं  फिर से ,देख सका था मधुशाला।

सुधा शहद मकरंद मुलैठी, माखन मिश्री मधु बाला।
छंद राग ऋतुराज दूध घृत, यह थी अर्थों की माला ।
इतने सारे अर्थ भूल  कर, एक अर्थ बस याद रहा
उस अनर्थ को आज सार्थक, फिर से करती मधुशाला।

एक आबकारी विभाग ही, सरकारी इनकम वाला ।आ जाती है आब आप  ही, खुले खजाने का ताला ।
एक हाथ है मद्य- विरोधी  और एक है विस्तारक  ।
इससे   दुगुनी और चौगुनी खुल जाती हैं मधुशाला।

✍️ शिव अवतार रस्तोगी 'सरस'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

  

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार विपिन शर्मा के मुक्तक


🎤✍️ विपिन कुमार शर्मा
 सीआरपीएफ गेट 3, ज्वालानगर
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719046900
9458830001

मुरादाबाद के साहित्यकार मंसूर उस्मानी की कृति 'अमानत' की डॉ कृष्ण कुमार 'नाज' द्वारा की गई समीक्षा---- मुहब्बतों का मुकम्मल दस्तावेज़ है अमानत

    मंसूर भाई ऐसे शायर हैं, जिनकी पहुंच सिर्फ़ मुशायरों तक नहीं, बल्कि कवि-सम्मलेनों तक भी है, हिंदी के कार्यक्रमों में भी वो बड़े सम्मान के साथ आमंत्रित किए जाते हैं। इसका एकमात्र कारण यही है कि भाषाओं के प्रति उन्होंने कभी दुराग्रहपूर्ण रवैया इखि़्तयार नहीं किया। सहजता और सरलता के साथ जिस भाषा का भी शब्द शेर कहते वक़्त उनके ज़ह्न में आया, प्रयोग कर लिया। वो चाहे हिंदी का हो, उर्दू का हो, अंग्रेज़ी का हो या लोकभाषा का। और फिर, हिंदी और उर्दू में धाार्मिकता की दूरबीन लगाकर अंतर तलाशने वाले लोग एक दिन ख़ुद ही पस्त होकर धराशायी हो जाएंगे। आखि़र कोई फ़र्क़ है भी कहां हिंदी और उर्दू में। हिंदी अगर दिल है, तो उर्दू उसकी धड़कन; हिंदी अगर शरीर है तो उर्दू उसकी आत्मा, हिंदी अगर आंख है तो उर्दू उसकी रोशनी। एक-दूसरे के बग़ैर दोनों का अस्तित्व बचा पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। साहित्यिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस रचनाकार ने हिंदू या मुसलमान बनकर साहित्य सृजन किया, वह अतीत की गर्त में खो गया और जिन्होंने इंसान बनकर मानवमात्र के कल्याण के लिए सार्वभौमिक साहित्य रचा, उनकी आवाज़, उनके विचार सदियों बाद आज भी ज़िंदा हैं और हमारी आने वाली नस्लें उन आवाज़ों को, उन विचारों को सदियों तक महफ़ूज़ रखेंगी।
    हालांकि, यह सामाजिक विडंबना ही है कि यहां प्यार चोरी-छिपे करना पड़ता है, सबसे नज़रें बचाकर; जबकि नफ़रत खुलेआम की जा सकती है, उस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसके लिए न किसी से नज़र बचानी है, न किसी से छिपना है। लेकिन, यह भी वास्तविकता है कि मुहब्बत करने वाले मुहब्बत कर रहे हैं। समाज को अम्न और शांति का संदेश दे रहे हैं, भले ही सामाजिक अव्यवस्थाएं उन्हें सूली पर क्यों न लटका दें, लेकिन सूली पर लटकने वाली आवाज़ चीख़-चीख़कर कहेगी कि उसने कोई जुर्म नहीं किया, कोई पाप नहीं किया। उस आवाज़ का साथ देने के लिए हज़ारों आवाज़ें नारों का रूप ले लेंगी। वह घायल आवाज़ ज़ालिमों के मुंह पर यह कहकर तमाचा मारेगी-

    तुमने दुनिया को अदावत के तरीक़े बांटे
    हमने दुनिया में लुटाई है ग़ज़ल की ख़ुशबू

    उसको हर दौर ने ऐज़ाज़ दिया है ‘मंसूर’
    जिसने लफ़्ज़ों में छुपाई है ग़ज़ल की ख़ुशबू

मंसूर भाई ने कभी समझौतावादी शायरी नहीं की। उन्होंने समाज में रहते हुए जो भी देखा, उसी का शब्दों के माध्यम से चित्रण किया। उनकी शायरी मात्र उनका अपना चिंतन नहीं, हर उस फटे हाल, तंगदस्त और अव्यवस्थाओं से दुखी आदमी की बात है, जो अपने से चंद सीढ़ियां ऊँचे आदमी से गिड़गिड़ाकर अपने कर्तव्यों की दुहाई देते हुए रहम की भीख मांग रहा है। उन्होंने इंसानियत से ख़ाली धर्म को मात्र दिखावा क़रार दिया है। उनके चंद ख़ूबसूरत अशआर प्रस्तुत हैं, जो मानवमात्र को संदेश देते हुए नज़र आते हैं-
    कांधों पे सब ख़ुदा को उठाए फिरे मगर
    बंदों का एहतराम किसी ने नहीं किया

    उसी से खाता हूं अक्सर फ़रेब मंज़िल का
    मैं जिसके पांव से कांटा निकाल देता हूं

    अब ऐसे ख़्वाब में नींदे ख़राब मत कीजे
    जो सारे शह्र को पागल बनाए देता है
    समझो कि ज़िंदगी की वहीं शाम हो गई
    किरदार बेचने का जहां भी सवाल आय

    ग़र्क़ हो जाती है जब नींद में सारी दुनिया
    जाग उठते हैं अदीबों के क़लम रात गए

    इतना धुंधला गए हैं आईने
    अपना चेह्रा नज़र नहीं आता

    वो दरख़्त आज कहां है जो कहा करता था
    मेरे साये में भी कुछ देर ठहरते जाओ

    मंसूर साहब ने अपने प्रिय की ख़ूबसूरती का बयान बड़े ख़ूबसूरत तरीक़े से किया है। एक शेर प्रस्तुत है-
 
            कैसा हसीन अक्स तुम्हारी हंसी का था
    साया कहीं पे धूप, कहीं चांदनी का था

    मंसूर भाई से मेरा परिचय क़रीब दो दशक पुराना है। यह उनकी मुहब्बतों का ही नतीजा है कि इस अंतराल में मैं उनके क़रीब से क़रीबतर होता गया। दोस्तों के बीच बैठकर गपशप करना, बात-बात पर चुटकुले सुनाकर सबको हंसाना और उनकी हंसी में बेबाकियत के साथ शरीक होना उनकी पहचान में शामिल है। वह स्थान चाहे उनके घर का ख़ूबसूरत ड्राइंगरूम हो या दफ़्तर का छोटा-सा तंग कमरा। लेकिन, मैंने अक्सर ये भी महसूस किया है कि उनके पुर-सुकून, मुस्कुराते चेह्रे के पीछे एक टूटा-फूटा वजूद, एक ठहरा हुआ ग़म का दरिया और दबा हुआ दर्द का एक तूफ़ान ज़रूर छिपा हुआ है, जो कभी पहलू बदलता है तो समय की चादर पर कुछ अशआर बिखर जाते हैं। ये दुनिया जिसकी एक झलक ही देख पाती है, बस।
    देशभर में अपनी उत्कृष्ट शायरी के ज़रिये धूम मचाने वाले और मुरादाबादी साहित्यिक गरिमा को और मज़बूत, और सुंदर बनाने वाले मंसूर भाई ने अनेक देशों की साहित्यिक यात्राएं की हैं और मुरादाबाद के साथ ही हिंदुस्तान का नाम रोशन किया है।
    ‘अमानत’ मंसूर साहब की पांचवीं किताब है। इससे पहले उनकी चार किताबें ‘मैंने कहा’, ‘जुस्तजू’, ‘ग़ज़ल की ख़ूशबू’ और ‘कशमकश’ ग़ज़ल के पाठकों में बहुत चर्चित हुई हैं। 140 पृष्ठीय इस पुस्तक में 89 ग़ज़लें, 26 क़तआत, 10 दोहे शामिल हैं। इसके अलावा 126 शेर ऐसे हैं जिन्हें मुतफ़र्रिक अशआर की श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है। पुस्तक के आरंभ में सर्वश्री धर्मपाल गुप्त ‘शलभ’, पद्मश्री बेकल उत्साही, प्रो. मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद, पद्मभूषण गोपालदास ‘नीरज’, प्रो. वसीम बरेलवी, ज़ुबैर रिज़वी, डा. राहत इंदौरी, मुनव्वर राना, डा. उर्मिलेश, डा. कुंअर बेचैन, कृष्णकुमार ‘नाज़’, नित्यानंद तुषार और दीक्षित दनकौरी जैसे विद्वानों और साहित्यकारों की संक्षिप्त टिप्पणियां हैं, जिनमें मंसूर साहब के कृतित्व और व्यक्तित्व का उल्लेख किया गया है।


**कृति : अमानत
**रचनाकार : मंसूर उस्मानी
**प्रथम संस्करण : 2010
**प्रकाशक : वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली 110002
**मूल्य: 95₹
**समीक्षक : डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’
           सी-130, हिमगिरी कालोनी, कांठ रोड                       मुरादाबाद 244001
                  उत्तर प्रदेश, भारत

                       

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी ------ अनुचित शर्त


"क्या कह रही हो मम्मी आप अजय के घरवाले चाहते है कि मैं कौमार्य परीक्षण कराऊं.........." अंकिता भर्राती आवाज में बोली।
अंकिता की माँ मीना ने समझाते हुए कहा "करा ले न बिटिया क्या जाता है इसमें तेरा। देख हम तो जानते ही हैं कि तू पवित्र है पर अजय के घरवालों का भी तो विश्वास करना आवश्यक है।"
अंकिता ने मां की ओर उम्मीदभरी नजरों से देखते हुए पूछा "क्या अजय भी.........?"
 मां ने उत्तर दिया "हाँ बिटिया, अजय भी यही चाहता है।"
अंकिता ने अगला प्रश्न किया "लेकिन हर संभव जगह से तो उन्होंने मेरी इन्क्वायरी निकलवाई ही ली, चाहें आफिस हो या घर या पीजी, फिर भी विश्वास नहीं हुआ।"
तभी अंकिता के पिताजी आनंद कमरे में प्रवेश करते हुए बोले "बिटिया मुझे भी बुरा लगा सुनकर और मेरा मन किया कि मैं उन्हें रिश्ते से ही मना कर दूं परंतु यदि अगला और उसके अगला रिश्ता भी यह शर्त रखेंगे तो......?"
मीना बोली "बिटिया यह समाज ही ऐसा है जहां सती सी सीता को भी न जाने कितनी ही परीक्षायें देनी पड़ी थी जबतक वो पृथ्वी की गोद में न समा गईं। तू तो फिर भी बस एक मानव है.......कहते कहते मीना दुखी हो उठी।"
अंकिता ने उत्तर दिया "ठीक है मम्मी पापा मैं तैयार हूं।"
कौमार्य परीक्षण का परिणाम आशानुसार सही आया। धूमधाम से अंकिता और अजय का विवाह भी हो गया। परंतु अब अंकिता को नौकरी जारी रखने की आज्ञा नहीं थी।
विवाह के फोटोज़ देखते हुए अजय अपनी महिला मित्रों का इन्ट्रोडक्शन बता रहा था। तब अंकिता ने भी अपने महिला एवं पुरुष सहकर्मियों का इन्ट्रोडक्शन कराया तो अजय क्रोध से लाल होता बोला "बड़े शहर में अकेले रहकर नौकरी करती थी, घर से अलग पीजी में रहती थी, ऑफिस में न जाने कितने ही पुरुष सहकर्मी थे और कहती हो तुम पवित्र हो। वो तो मैंने शादी कर ली वरना तुम जैसी आवारा लङकी से कौन शादी करता।"
और अब अंकिता को अपनी हर छोटी बड़ी गलती पर यह ताना अवश्य ही सुनने को मिलता था।
एक वर्ष पश्चात अजय की छोटी बहन अनीता के रिश्ते की बात शुरू हो गई। वह दिल्ली शहर में रहकर नौकरी करती थी। जिसके साथ वो लिव-इन रिलेशन में पाँच वर्षों से थी उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
एक बहुत अच्छे एवं सम्भ्रान्त घर के लङके वालों ने उसे पसन्द कर लिया परन्तु कौमार्य परीक्षण की शर्त रख दी गई थी। सभी जानते थे कि अनीता तो इस परीक्षण में अवश्य ही फेल हो जाएगी अतः उन्होंने इस परीक्षण को
अत्याचारपूर्ण अनुचित शर्त की संज्ञा दे दी।
अजय बोला "मेरी बहन कोई सीता नहीं है जो उसे बार-बार परीक्षाओं से गुजरना पड़े। हमें उस पर पूरा विश्वास है और आपकी यह शर्त हमें बिल्कुल मंजूर नहीं है। आप रहने दीजिए मैं अपनी बहन के लिए दूसरा और अच्छा वर ढूंंढ लूंगा।"
वह दृष्टांत समक्ष घटते देखकर अंकिता सोच रही थी कि क्या यह वही अजय है जिसने स्वयं उसके लिए कौमार्य परीक्षण की शर्त रखी थी।


✍️  इला सागर रस्तोगी
 मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नंबर -- 7417925477

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा -------- दहलीज


     70 वर्षीय गोबिंद राम को अपनी दादी की बातें याद आ रहीं थीं। उसकी दादी ने एक रोज़  उससे कहा था,'' बेटा अगर जीवन में कुछ बनना है तो अपने आदर्श, संस्कृति को कभी मत छोड़ना और अच्छे आचरण के साथ साथ कभी भी घर की चौखट (दहलीज़ ) को मत लांघना इससे मर्यादाएं बनी रहती हैं।गोविंद पुरानी यादों में खोया हुआ सोच रहा था कि प्रभु की बड़ी कृपा है जो दादी की सीख। काम आई परिवार में आदर्शों के साथ साथ एकता भी बनी हुई है।घर में सब उसकी इज्ज़त करते हैं ।बात मानते हैं।आज मैं देख रहा हूँ कि आदर्श, आचरण और मर्यादाएं तो जैसे रही ही नहीं और साथ ही यह भी देख रहा हूँ कि आजकल मकानों में चौखट ( दहलीज़ ) नाम की कोई चीज ही नहीं है।उसे लांघने की बात तो,,,,,,,,, हाँ अब कारण समझ आता है कि आचरण, मर्यादाएं कहाँ,,,,,,,,, तभी मैं सोचूँ ,,,,,,,,,,कि,'''बाबू जी बाबू जी चाय  पी लो नहीं तो ठंडी हो जायेगी यह कहकर बहू ने गोविंद का ध्यान भंग कर दिया।''

  ✍️ अशोक विश्नोई
डी,12 अवन्तिका कॉलोनी
मुरादाबाद 244001
मो० 9411809222

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा ----- भोला



शहर की गरीब बस्ती में इंस्पेक्टर रियाज़ की ड्यूटी अपनी टीम के साथ लगी हुई थी।पूरी मौहल्ले में सड़क पर कोई इंसान लाक डाउन के कारण दूर तक नज़र नहीं आ रहा था।इंसपेक्टर साहब एक मकान की आड़ में छाया ढूँढते हुऐ खड़े हो गये। तभी,उनके पाँव के पास  किसी घर की छत से अचानक एक मुड़ा तुड़ा  कागज़  का गोला आकर पड़ा। थोड़ी दूर खड़े सिपाही रतनलाल ने तुरंत फुर्ती से उसे उठाया। " यह क्या है रतनलाल ?"
"कुछ लिखा है सर जी इसमें..!"
"क्या लिखा है ?पढ़ो..!"
"जी सर ।"रतनलाल ज़ोर से पढ़ने लगा।उस कागज़ में कुछ यों लिखा था...
"पुलिस अंकल,
 नमस्ते,
मैं कक्षा छह में सरकारी स्कूल में पढ़ता हूँ।हमारे घर में दो दिन से रोटी नहीं पकी है।मेरी माँ दूसरे घरों में काम करने जाती है।अब कोरोना के  डर के मारे नहीं जा पा रही है।  वैसे  माँ से अब उठा भी नहीं जा रहा है,कह रही है चक्कर आ रहे हैं। बापू दिल्ली सहर में काम करने गया है ।कोई बता रहा था कि उसे वहीं पकड़ लिया होगा।कुछ दिन पहले कोई अंकल लोग हमें आटा चावल और कुछ सामान दे गये थे।सबको मिला था।मगर अब तो वो भी खत्म हो गया है...।मैने बहुत दिन से मंजन भी नहीं किया सर जी...बालों में तेल भी नहीं डला.....गैस भी खत्म हो गयी है....।

माँ कहती है  कि जिसे कोरोना हो रहा है, उसे अस्पताल में फल और खाना भी मिल रहा है। दूध और अंडा भी.......!सर जी ,हमें  भी बाहर जाकर कोरोना होने दो ना....!खाना तो मिलेगा ना फिर? बहुत भूख लगी है सर जी...!हमें डाक्टर साहब  तो बचा  ही लेगें न..!
      अंतिम पंक्ति पढ़ते पढ़ते रतनलाल का गला रुंध गया था।
इंस्पेक्टर रियाज़ ने कागज़ रतनलाल के हाथ से ले लिया।कागज़ में  शायद नीचे उस बच्चे ने  अपना नाम लिखा था .. "भोला.".
इंस्पेक्टर साहब ने बस्ती के मकानों की ओर मुँह उठाकर देखा तो  कलेजा मुँह को आ गया।..... " या ख़ुदा रहम कर !"  इंसपेक्टर रियाज़ के मुँह से निकल पड़ा।लगभग हर टूटे फूटे मकान की छत और खिड़कियों पर मासूम बच्चों के निस्तेज  चेहरे  सूनी आँखों से सड़कों को ताकते नज़र आ रहे थे।जिनके बेतरतीब सूखे बाल,अंदर को धंसी हुई आँखे,पीले पड़ चुके  ज़र्द चेहरे, गालों के उभार की दिखायी देती हुई हड्डियाँ...!उफ्फ....!" शायद   अनुमान नहीं लगा  पा रहे थे कि "इनमें कौन सा "भोला"है..?जिसने यह परचा फेंका है।"


 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा -------- सम्मान


‌मै कार्यालय से घर लौट रहा था। रास्ते में सामान्य से अधिक भीड़ थी।बीच रास्ते में मुझे स्कूटर रोकना पड़ा,क्योंकि ट्रैफिक जाम था।गाड़ियों की लंबी कतार लगी हुई थी।पता चला - सेठ राम प्रसाद जी ,जो तीन बड़ी फैक्टरियों के मालिक है ,का आज सम्मान समारोह है।उन्होंने पिछले दिनों,जब देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ ने तबाही मचाई हुए थी,प्रधान मंत्री राहत कोष में दस लाख रुपए का दान किया था।प्रदेश के कैबिनेट मंत्री,मुख्य मंत्री की और से उनका सम्मान करने शहर आए हुए है।                                           मेरा ध्यान अचानक अपने सब्जी वाले श्यामू पर चला गया।श्यामू हमारी गली के मोड़ पर सब्जी का ठेला लगाता है।उसके परिवार में,चार बच्चों सहित आठ सदस्य है।पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी पर है।पूरे दिन मेहनत करके बड़ी मुश्किल से वो 300-400 रुपए कमा पाता है।पिछले दिनों जब बाढ़ का प्रकोप चल रहा था,वो मेरे पास कुछ रूपए लेकर आया था।  - बाबूजी ये रुपए आप प्रधानमंत्री कोष में भिजवा दीजिए।
मैंने गिने,वो दस हजार रूपए थे। मैंने उसकी ओर विस्मय से देखा।      इतने सारे रूपए ,इतने रुपए तुम्हारे पास कहां से आए है ,पिछले दिनों तो तुम लड़के की पढ़ाई के लिए बहुत परेशान थे ।
हां बाबूजी, ये उसकी पढ़ाई के लिए ही जोड़ रहा हू,लेकिन इस समय बाढ़ से कितने लोग बेघर हो गए है,उनकी मदद करना जरूरी है,पढ़ाई का बाद में देख लेंगे। 
मेरे बहुत समझाने पर भी जब वो नहीं माना,मैंने उसके रुपए प्रधान मंत्री कोष में जमा करा दिए थे।
                                                                         थोड़ी देर में ट्रैफिक खुल गया।मैंने रास्ते से फूलों का एक बुके खरीदा और स्कूटर श्यामू के घर की और मोड़ दिया।

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड,मुरादाबाद-244001
मोबाइल फोन नंबर -9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----- राजनीति


​"सुन री भूरी आज पड़ोस के घर की लाली ने बछड़े को जन्म दिया है "जुगाली कर रही भूरी  गाय से काली गाय ने कहा l
​तो वह मुस्करा दी उसकी मुस्कराहट में व्यंग था जिसे काली गाय सह न सकी और सींग से झुरीयाते हुए बोली ...
​"क्यों हंस रही है फीकी हँसी ?"
​"और नहीं तो क्या करूँ ...कितनी अभागन है न लाली कि उसने बछड़े को जन्म दिया , अगर बछिया देती तो कम से कम जब तक दूध देती तब तक ज़ी तो लेती मगर .....?"
​"मगर क्या ?"
​"इसका बच्चा तो ज्यादा ज़ी भी नहीं पाएगा ...खेती में इस्की जरूरत नहीं ...दूध यह देता देगा नहीं फिर ...फिर इंसान इसको फ्री में थोड़े ही खिलाएंगे l"
​"हाँ इसके बछड़े पर तो हमारे जैसी राजनीति भी नहीं होगी l"कहकर दोनों जुगाली करने लगीं l


​ ✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद  244001
​मोबाइल फोन नंबर --- 9410246421




मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा -----मां की सीख



 जो बात लॉकडाउन के पहले दिन थी ,वह 40 दिन बीतते -बीतते गायब होने लगी। पहले दिन जब 21 दिन के लिए सारा कामधंधा बंद करके घर पर रहने की नौबत आई तो सुधीर को लगा कि यह  कठिन तो है लेकिन असंभव नहीं ।
     घर पर पर्याप्त रुपए थे और उनसे 21 दिन का खर्च चल सकता था । लेकिन फिर जब 21 दिन के बाद 19 दिन और बढ़े, तब माथे पर चिंता की लकीरें तैरने लगीं। 40 दिन के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई।
    सुधीर अपने घर में अकेला कमाने वाला है । पत्नी है , दो छोटे बच्चे हैं और विधवा माँ है । माँ ने तो पहले दिन ही कहा था " सुधीर मुझे तो टेलीविजन देखने के बाद यह लंबी लड़ाई जान पड़ती है । कम से कम 3 महीने के लिए तैयारी करके चलो ।"
     लेकिन सुधीर ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया । हाँ, इतना जरूर हुआ कि घर के अंदर ही सारे सदस्य बंद रहे और अति आवश्यक कार्य के लिए सुधीर घर से निकल कर नुक्कड़ तक जाता था । दूध ब्रेड आदि ले आता था ।
      सुधीर ने आज  घर पर बचे हुए रुपयों को गिनना शुरू किया । रुपयों की मात्रा में बहुत कमी आ गई थी । पत्नी और माँ भी रुपए गिनते समय पास आकर खड़ी हो गई थीं। सुधीर ने बुझे हुए स्वर में कहा "अब रुपए पहले से बहुत कम रह गए हैं ।"
    माँ ने कहा "बेटा ! बैठकर खाते - खाते तो राजाओं के खजाने भी खाली हो जाते हैं। भयंकर विपत्ति का समय है । बहुत ज्यादा सोच समझकर समय बिताना पड़ेगा । फिर तुम्हारा तो काम ही ऐसा है कि पता नहीं कितने समय के बाद चलना शुरू हो और कब चार पैसों की आमदनी हो ? "
           सुधीर ने चेहरे को मुरझा कर जब लटकाया तो एक बार फिर माँ ने कहा "बेटा ! हिम्मत मत हारना । यह दिन भी नहीं रहेंगे। बस थोड़ा दाँत से पकड़कर पैसे को खर्च करना और सावधानी बरतते हुए साहस बनाए रखना ।"
     सुधीर ने उत्साह और आशा के साथ सिर उठाकर माँ की तरफ देखा और उसके चेहरे पर चमक आ गई । सचमुच माँ कितनी समझदार हैं।

✍️  रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी ----- कोरोना वारियर


अनिका का आज स्कूल मेंं मन नहींं लग रहा था। उसे अपनी तबियत ठीक नहींं लग रही थी जैसे जैसे स्कूल का टाइम पूरा हुआ तो पापा को बाहर खड़ा देखकर दौड़ते लगा दी ।
घर पहुँच कर उसने सबसे पहले अपना मास्क उतारा और फिर बाशवेशिन पर हाथों को साबुन से धोने लगी लेकिन उसका सिर इतना भारी हो रहा था कि नहाने और खाना खाने का तो मन ही नही कर रहा था लेकिन मम्मी के आगे उसकी एक न चली मनमार  कर सब किया और सोने चली गई।
बिस्तर पर लेटते ही उसे लगा कि उसका सर फट जायेगा उसके कान और नाक बहुत गरम हो रहै थे आंखों से पानी निकल रहा था, उसने कानोंं को हाथ लगाया तो लगा जैसे करेंट लग गया उसके आगे बड़ी बड़ी दो आकृति आकर खडी़ हो गई " खबरदार जो हाथ लगाया मुझे परेशान हो चुका हूँ मै तुम सबकी फरमाइश पूरी करते करते " अभी उसकी बात पूरी भी नही हुई थी कि एक मिमियाती आवाज आई" तुम्हींं अकेले नहींं हो हम भी तुम्हारा बराबर का साथ दे रहै हैंं लेकिन उसकी पतली आवाज दबा दी गई " क्या साथ दे रहे हो बस जरा सा सहारा लगा दिया बाकी पूरा का पूरा  बोझ मुझे ही ढोना पड़ता है सारे दिन। किसी पल चैन नही जब देखो तब मेरा ही काम चाहे पढना हो चाहे मनोरंजन करना हो चाहे बाहर जाना होऔर अब तो एक और नया काम जब देखो तब अपने ऊपर डोरियां चढाये रहो दर्द होता है मुझे भी सबकुछ मेरे ही ऊपर बस बहुत हो गया मै कल से हड़ताल कर दूंगा" । तभी एक नई आवाज आई " भैया तुम मत हड़ताल करना देखो तुम तो कोरोना वारियर हो आजकल तुम्हारे बिना हम सब अनाथ हो जायेंगे तुम ही तो हम सब की रक्षा करते हो माना कि आजकल तुम्हे काम ज्यादा करना पड़ता है लेकिन क्या करे समय ही ऐसा है मुझे देखो घंटो मोबाइल और कम्प्यूटर के आगे बैठे बैठे पसीना निकलने लगता दुखन होती है लेकिन क्या करे अगर हम साथ नही देगे तो अनिका का क्या होगा " तभी लम्बी लम्बी पतली आकृतियों ने आकर बोलना शुरू किया हमसे पूछो पूरे दिन हम साबुन और पानी के साथ लड़ाई करते है फिर ऊपर से तौलिया महाराज की रगड़ भी सहते है लेकिन हम हड़ताल नहीं कर सकते अगर हम मेसे किसी एक ने भी हड़ताल करदी तो हमारा सबका अस्तित्व ही खतम हो जायगा " ।  चारो तरफ शोर मचने लगा तरह तरह की आकृतियों ने अनिका को घेर लिया हमें आराम चाहिए नही तो हम हड़ताल कर देंगे...... शोर जब अधिक होने लगा तो एक मीठी सी आवाज आई " अरे मेरे प्यारे बच्चों तुम सब की इस समय अनिका को जरूरत है और इस समय हम हड़ताल नही कर सकते हमसब को मिलकर काम करना है तभी हम प्यारी अनिका को सुरक्षित रख पायेंगे। मै तुम्हारी माँ हूँ जैसा आदेश दूंगी करना पडेगा..इस सब शोर के बीच अनिका घबरा कर उठ गई वो पसीने से नहा गई थी उसने आंख खोल कर देखा सिर पर मां का हाथ था वो पूछने लगी क्या हुआ बेटा तब से कहे जा रही ह   हड़ताल ....हडताल
 बहुत देर सै तुम पता नहीं क्या क्या बोल रही हो तबीयत ठीक है तुम्हारी " अनिका ने देखा और फिर सब कुछ समझ मे आ गया, आज उसके सारे अंग उससे अपनी अपनी व्यथा सुना रहे थे  और उसे सब कुछ समझ मे आ गया कि किसने क्या क्या बोला । वह धीरे से मुस्कराई और बोली कुछ नहीं मम्मी मुझे अबसे अपने कोरोना वारियर्स का ध्यान रखना पडेगा अगर इन्होंने हड़ताल कर दी तो क्या होगा अब से मै ज्यादा देर  लेपटॉप और मोबाइल पर नही काम करुंगी और बाहर भी ज्यादा नहीं जाऊंगी बस स्कूल टाइम मे और भी बहुत सारी बातें ध्यान रखूंगी । माँ अब भी नही समझ पाई बस प्यार से चूम कर दूध लेने चली गयी । अनिका ने मां के जाते ही कमरा बंद किया और आयने के सामने खडे होकर अपनी आंखो कानो नाक और हाथों को प्यार से बहलाया और शीशे को सेल्यूट करके बोली " बाह मेरे कोरोना वारियर्स तुम्हारी भी ड्यूटी बढ गई है तुम्हारे बिना हमारी सुरक्षा कैसे हो सकती है आज से मै तुम्हारा पूरा ध्यान रखूंगी तुमने मेरे सपने मै आकर मेरी आंखे खोल दी है।

कोरोना.... समाज....... डाक्टर.... पुलिस..... सफाई कर्मी...... लाकडाउन....... हड़ताल.......????????
   
 ✍️  मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कंपाउंड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412840699,  9045031789

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी------बिखरे सपने

     

     सोनू आज गांव भर में सुबह से ही चहकता फिर रहा था घूम घूमकर दोस्तोंं  को बता रहा था कि आज उसके चाचा आ रहे हैंं वह भी उनके साथ मुंबई जायेगा अब वह वहींं रहेगा । उसके चाचा बहुत बड़े आदमी हैंं। उनके पास गाड़ी बंगला सब कुछ है।
  12 साल का किशोर सोनू  नये नये सपने बुनता हुआ बाहर से गांव आने वाले रास्ते पर टकटकी लगाये हुए था कि कब उसके चाचा की कार गांव आयेगी ,उधर उसकी माँ सुबह से ही सोनू के मुंबई जाने को लेकर उदास थी । सोनू के पापा मंगन उसे तसल्ली दे रहे थे कि चंदन के साथ जाने से सोनू का भविष्य उज्ज्वल होगा फिर चंदन उसका सगा चाचा है ,कोई गैर थोड़े ही है और फिर चंदन मुंबई जाकर बहुत बड़ा आदमी बन गया है । बड़ी मुश्किल से उसने सोनू की माँ ममता को इस बात के लिये राजी किया था कि वह सोनू को चंदन के साथ भेज देगी         शाम के पांच बजे चमचमाती हुई एक कार गांव में घुसी तो सबमेंं शोर हो गया देखो पलटन का बेटा चंदन मुम्बई से गांव आया है । बीस बरस बाद वह गांव लौटा था। बड़ा आदमी बनकर उसके पीछे ही उसकी माँ सुखिया व बाप पलटन इस दुनिया से चल बसे थे। चंदन उनकी अर्थी को कान्धा देने तक नहींं आ पाया था।  बीस साल बाद गाँव  आये छोटे भाई चंदन से लिपटकर मंगन की आंखों से आंसुओंं का सैलाब उमड़ पड़ा । गांव वालों ने तसल्ली देकर उसे चंदन से अलग किया । थोड़ी देर में सब कुछ सामान्य होने पर चंदन गांव वालों के सामने अपनी तरक्की और शानो शौकत के किस्से बयान कर रहा था जिसे सुनकर मंगन और सोनू का सीना भी गर्व से चौड़ा हुआ जा रहा था ।
     गांव वालों के जाने के बाद चंदन ने भाई भाभी से सोनू को मोबाइल फोन पर हुई बातचीत के अनुसार साथ ले जाने पर चर्चा शुरू की ।उसने उन्हें यकीन दिलाया कि सोनू को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाएगा ।चाचा की बातेंं सुनकर सोनू भी भविष्य के सपने बुनकर खुशी से फूला नहींं समा रहा था । रातभर वह सुबह के इंतजार में बिस्तर पर करवटें बदलता रहा । सुबह नाश्ते के बाद मुम्बई जाने के लिये चंदन के साथ सोनू जब कार में बैठा तो माँ बाबा के साथ गांव के संगी साथी भी उसे विदा करने आये । सबने उसे शुभकामनाएं दी तो उसने भी कार के शीशे से हाथ बाहर निकाल कर सबका अभिवादन किया ।कार फर्राटा भरती हुई मुम्बई की ओर चली जा रही थी और कार में बैठा हुआ सोनू सुनहरे सपनो में खोया हुआ था। दस घण्टे बाद कार ने मुम्बई में चंदन के बंगले में प्रवेश किया तो वहाँ की भव्यता देख खुशी व हैरत से सोनू की आंखे फटी की फटी रह गई  तभी एक अधनंगी टांगो वाली खूबसूरत महिला दो छोटे बच्चो के साथ सामने आई । चंदन ने हैलो डार्लिंग कहकर उसकी ओर देखा। सोनू समझ गया कि यह उसकी चाची हैंं । उसने नमस्ते कहते हुए पैर छूने के लिए उनकी ओर हाथ बढ़ाये, तो ठीक है .... ठीक है, कहते हुए वह महिला पीछे हट गई । रात होने वाली थी चंदन ने खाने के बाद सोनू को दरी और चादर देते हुए कहा कि तुम यहींं हमारे कमरे के बाहर बरामदे में सो जाना। सोनू चादर बिछाकर लेट गया और अंदर कमरे में चंदन पत्नी व  बच्चोंं को  लेकर चला गया। सोनू अब भी भविष्य के सपने बुन रहा था। नींद उसकी आँखों से कोसोंं दूर थी तभी उसे अंदर कमरे से खुसर पुसर की आवाज सुनाई दी। उसने उनकी ओर ध्यान लगाया। चाचा चाची आपस मेंं बात कर रहे थे। कौतूहल पूर्वक उसने उनकी बातों की ओर कान लगा दिये। चंदन की पत्नी उससे कह रही थी आखिर तुम अपने भतीजे को ले ही आये । अगले ही पल चंदन का जवाब सुनकर सोनू को जैसे जोर का करंट लगा ।चंदन पत्नी से कह रहा था - हाँ डार्लिग,  नौकर आजकल मिलते ही कहांं है और फिर अनजान होते हैंं ।हम अपने बच्चोंं को उनपर कैसे छोड़ सकते हैंं । सोनू तो मेरा भतीजा है फिर यह भागकर जायेगा भी कहांं .... कहकर दोनों ठहाका लगाने लगे और सोनू ने यहां आने के जो सपने बुने थे वह एक एक कर बिखरने लगे।

   ✍️कमाल जैदी" वफ़ा"
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा मुरादाबाद
सिरसी(सम्भल)
मोबाइल फोन नंबर 9456031926

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------- लॉक डाउन


"अजीब बात है आखिर कब खत्म होगा ये लॉकडाउन" झुंझलाते हुए गरिमा बोली।। "आज चालीस दिन हो गये हैंं। लोगो की लापरवाही से मरीज रोज सामने आ रहे हैं। सभी को परेशानी है मगर क्या करेंं।जीवन बचाना है तो घर ही रहना है "ईश्वर जाने आगे क्या होना है" बड़बड़ाती हुई कमरे का सामान व्यवस्थित कर बाहर आयी।
सासूमां आँगन मे बैठी पापड़ बना रही थींं। एकबार को गुस्सा आया कि रोज नया काम लेकर बैठ जाती हैं फिर सोचा बच्चे भी तो पापड़ पसंद करते हैंं,चलो कुछ देर हाथ बंटाती हूँ।वरना तो सुबह शाम ड्यूटी के बाद औपचारिकता होती है।
वह पटरा लेकर सासूमां के पास बैठ गयीं।"मै कुछ करुंं मां।"
हाँ 'ले पेडे़ बना दे।"
पेडे़ बनाते हुए बोली,"आपको लॉकडाउन मेंं कोई परेशानी नहीं होती मां।
वह मुस्कुरा कर बोली,"ये तुम्हारे लिए होगा लॉकडाउन हमारी तो दिनचर्या है।तुम 40दिन के लॉकडाउन से परेशान हो।हमने तो पूरी जिंदगी लॉकडाउन मे ही काटी है"।
"मतलब" गरिमा बोली
मतलब कुछ नहीं बेटा।6वर्ष कीआयु मे पिता की मृत्यु के बाद दादाजी के घर मे लॉकडाउन लगा।10वर्ष के बाद 16साल की आयु मेंं बिना पूछे शादी कर दी गयीं।ससुराल मे तुम्हारे बाबूजी 6भाई थे।पांच जेठानिया सासूमां के होते द्वार तक जानेकी अनुमति नहीं थी।ससुराल का मुख्य दरवाजा कई साल तक पार नहीं किया।जेठानियों के  जाने के बाद  भी उसे घर से बाहर निकलने की अनुमति नहींं थी।जानती हो पहली बार गुडि़़या के स्कूल जाना पडा वो भीतब जब तुम्हारे बाबूजी शहर मेंं नही थे।उनकी अनुमति के बाद।मुझे रास्ता कहाँ पता था गुडिया के पीछे पीछे चली थी।आजतक भी तूमने देखा होगा इनके या मुन्ना के साथ ही जाती हूँ।मंदिर तक पड़ोस की भाभीजी के साथ ही भेजते है।इसलिए ये चंद दिनों का लॉकडाउन से क्या फर्क होगा।ये आजीवन का लॉकडाउन है"।
सासु माँ के लॉकडाउन की नयी परिभाषा सुनकर वह हतप्रभ रह गयी।।
 ✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन 9412235680

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ---- रिश्ते


"हलो अमन। बेटा, तू, बहू और बच्चे कैसे हैं ? इस बार तो दीपावली पर तुम लोग आ जाओ। बहुत दिन हो गए, मेरा तुम सभी को देखने का बहुत मन है"।
विदेश में बस चुके अपने इकलौते बेटे से फ़ोन पर बात करते हुए वृद्ध माला कातर स्वर में बोली।

"ओफ़्फ़ो अम्मा ! तुम्हें कितनी बार समझाया है कि यहाँ विदेश में नौकरी से छुट्टी मिलना आसान नहीं है। अरे, आने के लिए दुनियां भर के इंतज़ाम करने पड़ेंगे। तुम्हें पता भी है आने में कितना खर्चा होता है। अभी नहीं, बाद में देखेंगे जब फुर्सत होगी", अमन ने बुरी तरह झल्लाते हुए माला से कहा।

"खैर, अब यह बताओ तुम्हारा खर्चा तो ठीक प्रकार से चल रहा है ना ?" बौखलाहट भरे स्वर में  अमन ने पूछा।

"हाँ बेटा, पैसे की जो भी परेशानी थी,  दूर हो गई है क्योंकि तेरे स्वर्गीय पिता जी के फंड व पेंशन का जो पैसा रुका हुआ था, वह मिल गया है। आज ही उसके सारे क़ाग़ज़ मिले हैं। बस, तुम लोग आ जाते तो बहुत अच्छा लगता", कहते-कहते माला की आँखें नम होने लगी थीं।

"अरे वाह अम्मा। यह तो बहुत खुशी की बात है कि पापा का रुका हुआ सारा पैसा अब तुम्हें मिल गया है। अरे तुम बिल्कुल  चिंता मत करो। हम अगली ही फ्लाइट से तुम्हारे पास पहुँच रहे हैं", कहते-कहते अमन ने उधर से फ़ोन काट दिया था।

अपने स्वर्गीय पति की पेंशन व फंड के क़ाग़ज़ थामे माला के हाथ अब काँपने लगे थे।

✍️ राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविंद कुमार शर्मा आनन्द की लघुकथा ----- महामारी एक साजिश


वक्त जैसे थम सा गया था। पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था। एक महामारी, एक साज़िश…! हाँ दोस्तों साज़िश!  इसलिए क्योंकि बहुत से सबूत उसी ओर संकेत करते हैं।
जिस जगह से इसका जन्म हुआ, या कहूँ जहाँ से इस महामारी की शुरुआत हुई थी। हर परिवार, हर व्यक्ति, हर मोहल्ला, हर गली और वो सभी सड़कें जो कभी लोगों से खचाखच भरी रहती थीं,  जिनमें लोगों का शोरगुल होता था। वह सब आज सन्नाटों की गोद में कहीं खो गया था। वो सन्नाटा जाने क्या कहता था, ये कोई समझ नहीं पा रहा था। उसको भी बस यही समझ आ रहा था कि इन सुनसान रास्तों से एक मौत की अदृश्य शक्ति अपना तांडव करते हुए गुजर रही है, और जो भी उसके रास्ते में आयेगा, वो सीधे परलोक जाने की सीढ़ियों पर अपना पहला कदम रखेगा।
 ऐसी ही भयावह संकट की घड़ी में ईश्वर ने उसकी भी परीक्षा लेने की ठान ली। या यूँ कहूँ आज से उसकी भी उस मौत के अदृश्य राक्षस से जीवन और मृत्यु की एक जंग शुरू हो चुकी थी।
आज 19 दिन बाद उसको घर से निकलना पड़ा क्योंकि उसके पिता एक गंभीर बीमारी से ग्रसित हो गए थे। कहीं  कोई व्यवस्था नहीं, कोई साधन नहीं, वह बहुत ही परेशान, निराश और क्रोधित हो रहा था। आखिर देश में, ये सब क्या हो रहा है?
जैसे-तैसे वह और उसका छोटा भाई दोनों अपने पिता को अस्पताल लेकर पहुँचे, जहाँ से डॉक्टरों ने उन्हें दूसरे अस्पताल में भर्ती करने को कहा।
 इतना सुनते ही वह अब ज्यादा डर चुका था, क्योंकि इस वक्त देश के जैसे हालात थे, उसमें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल और ऊपर से उस भयंकर महामारी का प्रकोप! सोचकर ही मन दहल जाता था। इस भयंकर परिस्थिति में। उसको सोच समझकर बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय लेना था और उसने निर्णय ले लिया, क्योंकि उसके पास कोई और रास्ता भी न था।
अगर वह दूसरे अस्पताल नहीं जाता है तो भी उसके पिता की जान को खतरा है और जाता है तब भी खतरा है।
आखिरकार वह अपने मन को मजबूत करके अपने पिता के लिए उस क्रूर, अदृश्य, राक्षस से जंग लड़ने को तैयार हो गया।
दिन बीत रहे थे परन्तु एक चिंता की लकीर उसके माथे से हटने का नाम नहीं ले रही थी। एक तरफ उसके पिता अपनी बीमारी से जंग लड़ रहे थे तो इधर वह इस महामारी से बचने को। आज 20वां दिन हो गया। वह अपने पिता को बीमारी से ठीक कराकर घर ले आया है और वह भी उस महामारी से जंग जीत कर अपने घर आ गया।
उसका विश्वास जीत गया, उसकी सावधानियां उसकी रक्षा-कवच बनीं।

  ✍️ अरविन्द कुमार शर्मा 'आनंद'*
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 8979216691

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----बात एक रात की..

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   मेरठ से चलते हुए ही बस में बहुत कम सवारियां थीं सकोती को जाने वाली मेरठ से यह आखरी बस थी ....सकोती आते आते बस पूरी तरह खाली हो गई अब शेष बचीं तीन सवारियां एक को लेने बस स्टैंड पर गाड़ी आई थी .....अजय ने कन्डक्टर से कहा,, सलावा पहुंचने के लिए अब क्या सवारी मिलेगी भैया ,,....रात के 12:00 बजे थे कंडक्टर रमेश ने कहा ,,यह बस यहीं तक थी रात को सलाबा कोई भी सवारी नहीं जाती ,,जनवरी की वह रात ....कड़ाके की ठंड में अजय की सांसेंऔर सर्द हो  रही थीं ....दिल बैठा जा रहा था अब क्या होगा वह रात में अब कहां जायेगा ..... उसने बहुत बड़ी गलती कर दी थी नई जगह कभी भी देर से नहीं चलना चाहिए...
अब रात में वह क्या करे ...धीरे धीरे कंडक्टर भी अपनी मोटरसाइकिल की ओर बढने लगा दूर दूर तक वहां कोई और दिखाई नहीं दे रहा था.... अजय ने तेजी से बढ़ कर लिफ्ट मांगी रमेश ने कहा,, मेरा गांव सलावे से 30 किलोमीटर दूर है और विपरीत दिशा में है इसलिए मेरे साथ जाना तुम्हारा ठीक नहीं होगा मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता ,,...परंतु अजय के पास कोई विकल्प नहीं था उसने दोबारा रमेश से विनय के भाव से कहा कि ,,भैया मुझे अपने साथ ही ले चलो ..,,...,,ठीक है चलो ,,रमेश ने कहा आधे घंटे के बाद वह दोनों रमेश के गांव में थे अजय ठंड से सिकुड़ रहा था अजनबी गांव... अजनबी लोग... अनेकानेक आशंकाएं... मन बहुत परेशान था परंतु रमेश ने  उसे बाहर ही बैठक में रुकने को कहा अंदर बैठक में एक चारपाई पड़ी थी अजय उसी पर बैठ गया थोड़ी देर बाद रमेश अपने मुख्य घर से गद्दा लिहाफ तकिया लाया और विस्तार बिछा दिया ।
          अजय की जान में जान आई ठंड से कांपते हुए वह लिहाफ में घुस गया परंतु बड़े जोर की भूख लगी थी उसने कुछ भी नहीं खाया था ..बाहर खड़े हैंडपंप से जाकर थोड़ा  पानी पिया और बिस्तर में लेट गया थोड़ी ही देर में रमेश बुलानेआया ,,खाना तैयार है चलो खाना खा लो ,,संकोच करते हुए अजय ने कहा ,,भूख नहीं है ,,परंतु रमेश ने कहा ,,चलो भाई  खाना खा लो.,,.. रमेश की पत्नी ने कहा ,,भैया !इसे अपना ही घर समझो और मुझे अपनी बहन आराम से खाना खाओ सुबह अपनी बहन के घर चले ही जाओगे ,,।
मक्के की रोटियां पानी के हाथ की चूल्हे की बनीऔर चने का साग मक्खन के साथ  ....खाना  बड़ा ही  स्वादिष्ट था ।
    लौटकर वह चौपाल पर अपने बिस्तर में सो गया ****अभी 2 ही बज रहे होंगे रमेश ने उसे उठा दिया और कहा ,,भाई !पास के गांव में मेरी ससुराल है मेरी सास की अचानक बहुत तबीयत खराब हो गई है मुझे वहां जाना है तुम आराम से सोओ थोड़ा घर का ख्याल रखना हमें अभी जाना होगा ,,वह पति पत्नी मोटरसाइकिल पर बैठकर चले गए **** अब नींद कहां आने वाली थी आधे घंटे बाद आहट हुई ....उसने बिस्तर से बाहर निकल कर रमेश के घर की ओर झांका चार-पांच लोग हाथों में बंदूकें लिए ताला तोड़ रहे थे अजय बुरी तरह डर गया  उसे समझते देर नहीं लगी चोर थे वे सब ताला तोड़कर रमेश के मकान में घुस गयेऔर उन्होंने दरवाजा धीरे से बंद कर लिया
 ....पता नहीं उस समय अजय के अंदर कहां से इतना साहस आ गया कि उसने दौड़कर दरवाजे की कुंडी बाहर से लगादी और उसमें एक सरिया डाल दिया ...और.. बाहर निकलकर ..बचाओ !बचाओ !! की आवाज लगाने लगा ...मिनटों में ही गांव के बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गए ...शोर मच गया उसने बताया अंदर चोर हैं कुछ गांव वाले हथियार लेकर भी आ गये .... परंतु किसी ने दरवाजा नहीं खोला ***थोड़ी देर बाद ....
पास की चौकी से पुलिस वालों को लोग ले आए... पुलिस ने कई हवाई फायर किए उसके बाद दरवाजा खोला ...थोड़ी देर में: बंदूकें चलने लगीं .. कुछ ही देर में पुलिस ने सभी चोरों को अरेस्ट कर लिया ..सारा लूटा हुआ सामान रखवा लिया..... अब सुबह हो चुकी थी... रमेश को भी पास के गांव से बुला लिया गया था ..रमेश की रिश्तेदारी में एक शादी भी होने वाली थी इसके सारे जेवर खरीद पर रमेश के घर में रखे हुए थे और ₹50000 भी था जो पुलिस ने चोरों से बरामद कर लिया था ... पति-पत्नी दोनों सन्न रह गये सब देख सुन कर ...।
     रमेश से अजय ने कहा  ,,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! मुझे रात को आश्रय दिया! आपका बहुत बड़ा एहसान है मुझे अब सलावे का रास्ता बता दें  ,,****रमेश ने कहा ,,तुम्हें मै छोड़ कर आऊंगा ...एहसान मैंने नहीं तुमने किया हम पर ....तुमने तो मेरा घर ही बचा लिया ,,...फिर वह अजय को उसकी बहन के घर सलावा छोड़ कर आयाऔर अजय की बहन के घर वालों को सारा किस्सा सुनाया और कहा कि भगवान ने ही इन्हें मेरे साथ भेजा था नहीं तो आज मेरा सब कुछ लुट जाता !
        अजय को जब भी वह मंजर याद आता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं ... वह रात उसके दिमाग में घूम जाती है ....

  ✍️अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर8218825541

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघु कथा------मुक्ति



सुंदरी नाम था उसका। उम्र लगभग चौदह साल थी।जैसा नाम था, वैसा ही रंग-रूप। जो देखे, देखता ही रह जाए। घर में दो लोग थे, सुन्दरी और उसकी बूढ़ी दादी। दोनों ही एक दूसरे का सहारा थीं ।
यह दादी-पोती की ज़िन्दगी का बहुत मनहूस दिन था। घर में चारों ओर लोगों की भीड़ खड़ी थी। सुन्दरी की खून से लथपथ, क्षत-विक्षत लाश घर के आँगन में पड़ी थी। उसके साथ बलात्कार किया गया था।
उसकी लाश देखकर, दादी रोते हुये , बड़बडा़ये जा रही थी, "दुनिया में बेटी बनकर पैदा होना पाप हो गया है ।अगर बेटी गरीब की हो और सुन्दर हो तो यह तो और भी बड़ा महा-पाप है।
"सुन्दरी !अच्छा हुआ तू मर गयी।माँ बाप तो पहले ही न थे छोरी तेरे, मैं भी कोई अमरबेल खाकर तो न आयी थी, आखिर मैं भी कबतक संग रहकर देखभाल करती। "
दादी का बड़बडा़ना लगातार जारी था इसके अलावा वो बेचारी, गरीब, लाचार बुढ़िया और कर भी क्या सकती थी,
     "बलात्कार के बाद जिन्दा रहती तो रोज एक मौत मरती तू बच्ची। भला हुआ जो हमेशा के लिए सो गयी। भगवान ने अपने पास बुलाकर मोक्ष दे दिया, इन राक्षसों के संसार से,नहीं तो पता नहीं कितनी बार और मरना, तड़पना,पड़ता। कसूरवार न होते हुये भी सवालों के कटघरे में खड़ा होना पड़ता।
नित्य बलात्कार होता, कभी अदालत में , कभी लोगों की गन्दी नजरों से। तेरी चिन्ता में,  मैं न जी पा रही थी और न, ही मर पा रही थी। अब चैन से मर तो पाऊँगी । आज दादी तेरी परवरिश से मुक्त हो गयी।"
इतना कहकर दादी सुन्दरी के ऊपर ही लुढ़क गयी। हमेशा के लिए मोक्ष मिल गया दादी और पोती को इस पापी संसार से।
वहीं भीड़ में खडा़ वो वहशी दरिन्दा मन ही मन मुस्करा रहा था, धीरे से बड़बडा़या "चलो बुढ़िया भी निपट गयी अब मुझे थाने का मुँह नहीं देखना पड़ेगा"  अकस्मात वहाँ खडे़ थानेदार की नजर बुढिया की मुट्ठी में बंद एक कागज पर पडी़ ,उसे निकाल कर पढा़ तो उस पर बलात्कारी का नाम अंकित था, जो कि काफी करीबी था।उसको फौरन गिरफ्तार कर लिया गया । वो दोनों तो मुक्त हो गयीं,किन्तु ऊपरवाले के न्याय की लाठी ऐसी चली कि दोषी बंदी हो गया।
रागिनी गर्ग
रामपुर (उ.प्र)

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ------ सीख


सुनो बेटा ......आपकी मम्मी आप को घर पर बुला  रही हैं ...जल्दी से मेरे मिनी मेट्रो में बैठ जाओ .... ट्यूशन से पढ़कर आती हुई साक्षी को रोककर ऑटो वाले ने कहा.... साक्षी ने ऑटो वाले की आवाज को अनसुना करते हुए तेज कदमों के साथ वह अपने घर की तरफ बढ़ती रही ....... साक्षी कक्षा चार में पढ़ने वाली छात्रा थी जो कि घर के ही पास ट्यूशन पढ़ने के लिए शाम को 4:00 बजे जाती थी और 6:00 बजे घर लौटती थी ...परन्तु आज रास्ता में आतें समय उसे कुछ अंधेरा हो गया. .. जिसके कारण वह तेज -तेज कदमों से घर की तरफ जा रही थी ..... अचानक ऑटो वाले की आवाज  को सुनकर साक्षी को अपनी मम्मी के कहें शब्द याद आनें लगे....उसकी मम्मी प्रतिदिन स्कूल जानें से पहले एक सबक सिखाती थी जिसमें लड़कियाँ स्वयं अपनी रक्षा  कर सकें  और किसी भी  घटना का शिकार होने से  बच सकें। उन्होने सुबह ही अखबार में आई किसी घटना को पढ़ते हुए कहा कि बेटा कभी भी किसी अनजान पर विश्वास मत करना और यदि कोई आपसे कहे कि आपके मम्मी -पापा आपको बुला रहे हैं तो कभी भी उनके साथ बैठकर कहीं मत जाना .....क्योंकि यदि हमें तुम्हें बुलाना होगा तो हम खुद तुम्हें लेने आ जाएंगे ।  किसी अन्य को लेने के लिए नहीं भेजेंगे...   अपनी मम्मी के कहें शब्द साक्षी के दिमाग मे घूमने लगे  और वह तेज -तेज  कदमों से घर की तरफ बढ़ती रही.... और हांफते हुए  घर पहुंची ।साक्षी को हांफते हुए  देख कर  उसकी मम्मी ने घबरा गयी और सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा   बेटा ....क्या ...हुआ ... साक्षी ने   हांफते हुए  सारी बात अपनी मम्मी को बताई .....उसकी मम्मी सारी बात  सुनकर स्तब्ध रह गयी और ईश्वर को मन ही मन धन्यवाद दिया कि आज उसकी दी हुई  सीख के कारण उसकी बच्ची सुरक्षित उसके पास है।और साक्षी को अपने गले से लगा लिया।

 ✍️  स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद 244001
Mobile-9456222230