जो बात लॉकडाउन के पहले दिन थी ,वह 40 दिन बीतते -बीतते गायब होने लगी। पहले दिन जब 21 दिन के लिए सारा कामधंधा बंद करके घर पर रहने की नौबत आई तो सुधीर को लगा कि यह कठिन तो है लेकिन असंभव नहीं ।
घर पर पर्याप्त रुपए थे और उनसे 21 दिन का खर्च चल सकता था । लेकिन फिर जब 21 दिन के बाद 19 दिन और बढ़े, तब माथे पर चिंता की लकीरें तैरने लगीं। 40 दिन के बाद भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई।
सुधीर अपने घर में अकेला कमाने वाला है । पत्नी है , दो छोटे बच्चे हैं और विधवा माँ है । माँ ने तो पहले दिन ही कहा था " सुधीर मुझे तो टेलीविजन देखने के बाद यह लंबी लड़ाई जान पड़ती है । कम से कम 3 महीने के लिए तैयारी करके चलो ।"
लेकिन सुधीर ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया । हाँ, इतना जरूर हुआ कि घर के अंदर ही सारे सदस्य बंद रहे और अति आवश्यक कार्य के लिए सुधीर घर से निकल कर नुक्कड़ तक जाता था । दूध ब्रेड आदि ले आता था ।
सुधीर ने आज घर पर बचे हुए रुपयों को गिनना शुरू किया । रुपयों की मात्रा में बहुत कमी आ गई थी । पत्नी और माँ भी रुपए गिनते समय पास आकर खड़ी हो गई थीं। सुधीर ने बुझे हुए स्वर में कहा "अब रुपए पहले से बहुत कम रह गए हैं ।"
माँ ने कहा "बेटा ! बैठकर खाते - खाते तो राजाओं के खजाने भी खाली हो जाते हैं। भयंकर विपत्ति का समय है । बहुत ज्यादा सोच समझकर समय बिताना पड़ेगा । फिर तुम्हारा तो काम ही ऐसा है कि पता नहीं कितने समय के बाद चलना शुरू हो और कब चार पैसों की आमदनी हो ? "
सुधीर ने चेहरे को मुरझा कर जब लटकाया तो एक बार फिर माँ ने कहा "बेटा ! हिम्मत मत हारना । यह दिन भी नहीं रहेंगे। बस थोड़ा दाँत से पकड़कर पैसे को खर्च करना और सावधानी बरतते हुए साहस बनाए रखना ।"
सुधीर ने उत्साह और आशा के साथ सिर उठाकर माँ की तरफ देखा और उसके चेहरे पर चमक आ गई । सचमुच माँ कितनी समझदार हैं।
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
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