गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----बात एक रात की..

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   मेरठ से चलते हुए ही बस में बहुत कम सवारियां थीं सकोती को जाने वाली मेरठ से यह आखरी बस थी ....सकोती आते आते बस पूरी तरह खाली हो गई अब शेष बचीं तीन सवारियां एक को लेने बस स्टैंड पर गाड़ी आई थी .....अजय ने कन्डक्टर से कहा,, सलावा पहुंचने के लिए अब क्या सवारी मिलेगी भैया ,,....रात के 12:00 बजे थे कंडक्टर रमेश ने कहा ,,यह बस यहीं तक थी रात को सलाबा कोई भी सवारी नहीं जाती ,,जनवरी की वह रात ....कड़ाके की ठंड में अजय की सांसेंऔर सर्द हो  रही थीं ....दिल बैठा जा रहा था अब क्या होगा वह रात में अब कहां जायेगा ..... उसने बहुत बड़ी गलती कर दी थी नई जगह कभी भी देर से नहीं चलना चाहिए...
अब रात में वह क्या करे ...धीरे धीरे कंडक्टर भी अपनी मोटरसाइकिल की ओर बढने लगा दूर दूर तक वहां कोई और दिखाई नहीं दे रहा था.... अजय ने तेजी से बढ़ कर लिफ्ट मांगी रमेश ने कहा,, मेरा गांव सलावे से 30 किलोमीटर दूर है और विपरीत दिशा में है इसलिए मेरे साथ जाना तुम्हारा ठीक नहीं होगा मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता ,,...परंतु अजय के पास कोई विकल्प नहीं था उसने दोबारा रमेश से विनय के भाव से कहा कि ,,भैया मुझे अपने साथ ही ले चलो ..,,...,,ठीक है चलो ,,रमेश ने कहा आधे घंटे के बाद वह दोनों रमेश के गांव में थे अजय ठंड से सिकुड़ रहा था अजनबी गांव... अजनबी लोग... अनेकानेक आशंकाएं... मन बहुत परेशान था परंतु रमेश ने  उसे बाहर ही बैठक में रुकने को कहा अंदर बैठक में एक चारपाई पड़ी थी अजय उसी पर बैठ गया थोड़ी देर बाद रमेश अपने मुख्य घर से गद्दा लिहाफ तकिया लाया और विस्तार बिछा दिया ।
          अजय की जान में जान आई ठंड से कांपते हुए वह लिहाफ में घुस गया परंतु बड़े जोर की भूख लगी थी उसने कुछ भी नहीं खाया था ..बाहर खड़े हैंडपंप से जाकर थोड़ा  पानी पिया और बिस्तर में लेट गया थोड़ी ही देर में रमेश बुलानेआया ,,खाना तैयार है चलो खाना खा लो ,,संकोच करते हुए अजय ने कहा ,,भूख नहीं है ,,परंतु रमेश ने कहा ,,चलो भाई  खाना खा लो.,,.. रमेश की पत्नी ने कहा ,,भैया !इसे अपना ही घर समझो और मुझे अपनी बहन आराम से खाना खाओ सुबह अपनी बहन के घर चले ही जाओगे ,,।
मक्के की रोटियां पानी के हाथ की चूल्हे की बनीऔर चने का साग मक्खन के साथ  ....खाना  बड़ा ही  स्वादिष्ट था ।
    लौटकर वह चौपाल पर अपने बिस्तर में सो गया ****अभी 2 ही बज रहे होंगे रमेश ने उसे उठा दिया और कहा ,,भाई !पास के गांव में मेरी ससुराल है मेरी सास की अचानक बहुत तबीयत खराब हो गई है मुझे वहां जाना है तुम आराम से सोओ थोड़ा घर का ख्याल रखना हमें अभी जाना होगा ,,वह पति पत्नी मोटरसाइकिल पर बैठकर चले गए **** अब नींद कहां आने वाली थी आधे घंटे बाद आहट हुई ....उसने बिस्तर से बाहर निकल कर रमेश के घर की ओर झांका चार-पांच लोग हाथों में बंदूकें लिए ताला तोड़ रहे थे अजय बुरी तरह डर गया  उसे समझते देर नहीं लगी चोर थे वे सब ताला तोड़कर रमेश के मकान में घुस गयेऔर उन्होंने दरवाजा धीरे से बंद कर लिया
 ....पता नहीं उस समय अजय के अंदर कहां से इतना साहस आ गया कि उसने दौड़कर दरवाजे की कुंडी बाहर से लगादी और उसमें एक सरिया डाल दिया ...और.. बाहर निकलकर ..बचाओ !बचाओ !! की आवाज लगाने लगा ...मिनटों में ही गांव के बहुत सारे लोग इकट्ठे हो गए ...शोर मच गया उसने बताया अंदर चोर हैं कुछ गांव वाले हथियार लेकर भी आ गये .... परंतु किसी ने दरवाजा नहीं खोला ***थोड़ी देर बाद ....
पास की चौकी से पुलिस वालों को लोग ले आए... पुलिस ने कई हवाई फायर किए उसके बाद दरवाजा खोला ...थोड़ी देर में: बंदूकें चलने लगीं .. कुछ ही देर में पुलिस ने सभी चोरों को अरेस्ट कर लिया ..सारा लूटा हुआ सामान रखवा लिया..... अब सुबह हो चुकी थी... रमेश को भी पास के गांव से बुला लिया गया था ..रमेश की रिश्तेदारी में एक शादी भी होने वाली थी इसके सारे जेवर खरीद पर रमेश के घर में रखे हुए थे और ₹50000 भी था जो पुलिस ने चोरों से बरामद कर लिया था ... पति-पत्नी दोनों सन्न रह गये सब देख सुन कर ...।
     रमेश से अजय ने कहा  ,,आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! मुझे रात को आश्रय दिया! आपका बहुत बड़ा एहसान है मुझे अब सलावे का रास्ता बता दें  ,,****रमेश ने कहा ,,तुम्हें मै छोड़ कर आऊंगा ...एहसान मैंने नहीं तुमने किया हम पर ....तुमने तो मेरा घर ही बचा लिया ,,...फिर वह अजय को उसकी बहन के घर सलावा छोड़ कर आयाऔर अजय की बहन के घर वालों को सारा किस्सा सुनाया और कहा कि भगवान ने ही इन्हें मेरे साथ भेजा था नहीं तो आज मेरा सब कुछ लुट जाता !
        अजय को जब भी वह मंजर याद आता है तो उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं ... वह रात उसके दिमाग में घूम जाती है ....

  ✍️अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर8218825541

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