70 वर्षीय गोबिंद राम को अपनी दादी की बातें याद आ रहीं थीं। उसकी दादी ने एक रोज़ उससे कहा था,'' बेटा अगर जीवन में कुछ बनना है तो अपने आदर्श, संस्कृति को कभी मत छोड़ना और अच्छे आचरण के साथ साथ कभी भी घर की चौखट (दहलीज़ ) को मत लांघना इससे मर्यादाएं बनी रहती हैं।गोविंद पुरानी यादों में खोया हुआ सोच रहा था कि प्रभु की बड़ी कृपा है जो दादी की सीख। काम आई परिवार में आदर्शों के साथ साथ एकता भी बनी हुई है।घर में सब उसकी इज्ज़त करते हैं ।बात मानते हैं।आज मैं देख रहा हूँ कि आदर्श, आचरण और मर्यादाएं तो जैसे रही ही नहीं और साथ ही यह भी देख रहा हूँ कि आजकल मकानों में चौखट ( दहलीज़ ) नाम की कोई चीज ही नहीं है।उसे लांघने की बात तो,,,,,,,,, हाँ अब कारण समझ आता है कि आचरण, मर्यादाएं कहाँ,,,,,,,,, तभी मैं सोचूँ ,,,,,,,,,,कि,'''बाबू जी बाबू जी चाय पी लो नहीं तो ठंडी हो जायेगी यह कहकर बहू ने गोविंद का ध्यान भंग कर दिया।''
✍️ अशोक विश्नोई
डी,12 अवन्तिका कॉलोनी
मुरादाबाद 244001
मो० 9411809222
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें