रविवार, 17 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था कला भारती के तत्वावधान में रविवार 17 जुलाई 2022 को वाट्स एप काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी की अध्यक्षता अशोक विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि डॉ. प्रेमवती उपाध्याय और विशिष्ट अतिथि - बाबा संजीव आकांक्षी रहे। संचालन राजीव प्रखर ने किया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की रचनाएं .....


भारतीय,भावुक नागरिक ने

नव- निर्वाचित नेता
को बधाई
देने का विचार बनाया,
उसने फोन घुमाया ,
नेता जी बोले
कौन है भाई
नागरिक ने उत्तर
दिये बिना ही
पश्न किया,
आप कहाँ से बोल रहे हैं
श्री मान
नेता जी
जो अभी तक
अभिमान के आवरण से
मुक्त नहीं हो पाये थे,
झुँझलाकर बोले,
जहन्नुम से-
नागरिक ने उत्तर दिया
मैं भी, यहीं सोच रहा था
कि
तुम जैसा नीच, कमीन, बेईमान
स्वर्ग में तो जा ही नहीं सकता ।।

✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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गुरु  तत्व यदि नहीं होता,
तो मानव शिक्षित न होता।
बिना सींग का बिना पूँछ का
यह चौपाया पशु ही होता।

दिव्य गुणों की देकर दीक्षा,
किया समुन्नति भाग्य मनुज का।
अंधकार से इसे उबारा,
दिखा दिया है पथ प्रकाश का।।

परम् पूज्य गुरुवर चरणों मे ,
नमनकोटिशः बार हमारा।
एक नहीं शत शत जन्मों से,
गुरुवर से सम्बन्ध हमारा ।।

गुरु चरणों मे शीश नवाऊँ,
नित वंदन कर आशीष पाऊं।
भारत भूमि  और गुरुवर जी,
हर जीवन में  तुमको पाऊँ ।।

✍️ डॉ प्रेमवती 
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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वो हर चोट, तकलीफ की नुमाईश कर रहे हैं।
फ़ेसबुकिया अपनों की आजमाइश कर रहे हैं।।
दिखाने वाले अंगूठा चलाते हैं हरफों पे अब,
झूठे खुद, सच्चे दोस्तों की ख्वाहिश कर रहे हैं।।

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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काश पुनः वापस आ जाये
स्वर्णिम वही अतीत

कभी अपरिचित से रस्ते में
राम-राम करना
और चचा-ताऊ कह मन में
अपनापन भरना
ज़िन्दा थी जो रग-रग में, फिर
बहे पुरानी प्रीत

मुखिया से ही हर घर की
पहचान बनी होना
उलट गया अब जैसे कोई
सपनों का दोना
पुनः दर्ज़ हो घर के नंबर पर
नामों की जीत

वही मुहल्लेदारी, बतियाना
मिलना-जुलना
एक दूसरे से आपस में
हर सुख-दुख खुलना
जीवित हों फिर से जीवन के
वो संबंध पुनीत

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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और सुनो!
आज मैं कोई बड़ी बात नही करूंगा।
बड़ी बातें अक्सर समझ में नही आती,
या यूं कहो,
जो बात समझ में नहीं आती,
वोह बड़ी हो जाती हैं।
और सच यह भी है,
बड़ी बड़ी बात करने से,
आदमी बड़ा बन जाता है।
जंजालों में फंस जाता है
कोई भी समझदार आदमी,
फंसना कब चाहता है।
इसलिए मैं आज कोई भी,
बड़ी बात नहीं करूंगा।
छोटी-छोटी बात करूंगा।
क्योंकि छोटी छोटी बात और,
छोटे लोग बहुत सरल होते हैं।
लोगों को भा जाते हैं।
अनुकूल होते हैं,सहने में,
ओढ़ने में,बिछाने में,
समझने में  समझाने में,
जब चाहो बैठा लो तन की पायत में,
जब चाहो लगा लो मन के सिरहाने में,
और सुनो!
आज मैं कोई बड़ी बात नही करूंगा,
छोटी-छोटी बात करूंगा।
तुमने जिन्दगी को,
एक छंद बना डाला है,
स्वछंद को बंध में ढाला है।
सही बात मानो,पहचानो,जानो,
भावनाओ के नाक कानों को,
मात्राओं की किलों से मत छेदो।
सरलताओं के कोमल अंग मत भेदो।
भावनाएं रक्त रंजित हो जाती है।
तड़प जाती हैं,अधमरी हो जाती है।
छंद मुहजोर  हो जाते है,
कविताऐं मर जाती हैं।
सोने के पिंजरे में,
कैद चिड़ियों की तरह।
और एक बात सुनो,
बंधन में मत बंधो,
बंधन,बंधन होता है।
सोने की जंजीर का,
लोहे के पिंजरे का,
कि माथे के चंदन का
बंधन, बंधन होता है
वंदन का,अभिनंदन का।
यदि बंधन के बिना,
तुम्हारी रोटी नहीं पचती,
तो बात तो बहुत घटिया है।
बाथ रूम में रखी जैसी लुटिया है।
हर किसी को बांध लो,अपने बंधन में,
मत बंधो कभी किसी के बंधन में।
गुलाम होना कोई अच्छी बात है!
बेमतलब गुलामों के बंधन में।
छूट जाओ इन सारे बंधनों से,
मुक्त हो जाओ,
वंदन से,चंदन से,अभिनंदन से,
फिर सारी खुशियाँ,
तुम्हारे चारो ओर नाचेंगी,
बन जाओगे तुम  तपे कुंदन से।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम

कुरकवली, सम्भल

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जाना है एक दिन काल के गाल में
जीते जी  न  मरेंगे  किसी  हाल में।

बस गए जब घरौंदे खुशी से सभी
ऐसा खंजर चलाया फली डाल में।

उड़ न पाया  परिंदा  वो  नादान था
काट डाले  शिकारी ने पर जाल में।

लाल  रंग  से रंगी है  चुनर मात की
भर गया  दर्द ही दर्द  इस काल  में।

कैसे होगा अमन चैन शाम ओ सहर
बढ़ रही तलखियाँ अनकही चाल में।

एक मुद्दत से हम-हम निवाला हुए
छेद  करने  चले क्यों  उसी थाल में।

किसने  सोच था यूँ  गै़र  हो  जाएँगे
नज़रें बदली  हुई हैं  किसी चाल में।

सच है कड़वा  मगर  कंठ में थामना
शिव ही हो जाओगे चाँद है भाल में।

✍️ शशि त्यागी
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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रिश्तों की कसौटी पर उतरो तो कभी जानें ।
महफिल में कभी अपना समझो तो कभी जानें।।
मेरे घर के आंगन में घनघोर अंधेरा है ।
बादल से निकलकर तुम चमको तो कभी जानें ।।
है धूप कयामत सी प्यासी है जमीं मेरी।
घनघोर घटा बनकर बरसो तो कभी जानें ।।
हम अपनी मोहब्बत के अंजाम से वाकिफ हैं ।
मौसम के इशारे को समझो तो कभी जानें ।।
पलकों पे बिठा लेंगे तुम्हें दिल में बसा लेंगे।
तुम अपने तकब्बुर से निकलो तो कभी जानें।।
तुम्हें अपना बनाने की ख्वाहिश है मुजाहिद को।
तुम ग़म के समंदर से निकलो तो कभी जानें।।

✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे ,
मियाँ बुज़ुर्गों की ये भी सलाह याद रहे ,,

अगर हो  ग़ैर  से तक़रार  बात दीग़र है,
मगर हो भाई से तो बस निबाह याद रहे,,

करें जो नेकियाँ उनको भुला भी सकते हैं,
मगर  गुनाह  से  तौबा  गुनाह  याद  रहे,,

नवाज़ता  है  वही  मत  गुमान  में  डूबो,
वही कर देगा कभी  भी  तबाह  याद  रहे,,

रहम पसन्द  बनो  ये  पसन्द  है  उसको,
मुआफ़ियों में है रब  की  पनाह  याद  रहे,,

हमेशा दिल में 'मनु' तक़वा ए ख़ुदा रखिये,
कभी बिगड़ने  न  देगा  ये  राह  याद  रहे,,
        
✍️ मनोज वर्मा मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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अरे चीं-चीं यहाॅं आकर, पुनः हमको जगा देना।
निराशा दूर अन्तस से, सभी के फिर भगा देना।
चला है काटने को जो, भवन का मोकला सूना,
उसी में नीड़ अपना तुम, मनोहारी लगा देना।
(मोकला = पुराने घरों की दीवारों में बनाई जाने वाले खिड़कीनुमा छेद।
नीड़ = घोंसला)
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कुछ दोहे

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर  देख ले, तू कितना बलवीर।।

कहें कलाई चूमकर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

आकर मेरी नाव में, हे जग के  करतार।
मुझको भी अब ले चलो, भवसागर से पार।।

छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम।
मुझे दबाकर काॅंख में, जपती जा हरिनाम।।

मायूसी से क्या भला, हमें कभी कुछ काम।
अपनी तो मुस्कान है, आप सभी के नाम।।

पंछी तू परदेस में, हो कितना ही शाद।
मेरी छत-दीवार को, रखना फिर भी याद।।
(शाद = प्रसन्न)

निद्रा रानी आप से, अपनी यह फ़रियाद।
हमें दिखाओ अब नहीं, झगड़े और फ़साद।।

✍️राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हे बादल यह विनती सुन लो!
अब तो आने का दिन चुन लो

संकट मे प्यासी धरती है
व्याकुल हो आग्रह करती है
प्यासे पंछी का भान रहे
हर हलधर का भी मान रहे
चातक के प्राणों के दाता
कब सिवा तुम्हारे कुछ भाता!
कैसे हो खेती  धानों की
वसुधा के नव -परिधानों की?
माटी के सूखे ढेलों पर
जल  की जलधारा  ही बुन लो
हे बादल यह विनती सुन लो!
अब तो आने का दिन चुन लो

दादुर पपिहा सब मौन हुए
भभके- भभके सब भौन हुए
घन घोर घटा बन छा जाओ
जग का संताप मिटा जाओ
कब नील गगन से आओगे
बूँदों की सरगम गाओगे?
मत बनो हठी तुम हे जलधर!
  बरसो- बरसो  बस हठ तजकर
तुम परे हटाकर निष्ठुरता
कोमल कलियों का मन गुन लो
हे बादल यह विनती सुन लो
अब तो आने का दिन चुन लो

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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सूरत प्राची से जब झांके , धरती पर मुस्काता कौन ।
खग समूह में पर फैलाये , कलरव गीत सुनाता कौन ।

धीर गंभीर नील नीरमय, रहा धरा के चरण पखार ,
उमंग लहरें मौन सिन्धु में ,बोलो सखे जगाता कौन ।

पावस की रिमझिम में हँसते, हरियाली से रंगे पात ,
सूखी शाखों को जीवन दे , राहें हरी सजाता कौन ।

ताल तलैया नदियाँ नहरें , कूप सरोवर पोखर झील ,
मस्त झूमती जल निधियों में, हिलोर भला उठाता कौन ।

घर आँगन में खेले बेटी , रखती सबका ही है मान ,
सर्वोच्च शिखर तक जाने के , सपने उसे दिखाता कौन ।

✍️ डाॅ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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गुरु ज्ञान माणिक्य सम,
वचन बड़े अनमोल।
सबके मन की जीत को,
भाषा उनकी बोल।।

दर-दर भटका मैं फिरा,
कभी न पाया मान।
गुरुदेव का नेह मिला ,
जग में है पहचान।।

गंगा सम गुरुज्ञान है,
जो डूबे सो पाए।
पापों की छाया मिटे,
तन ऊजल हो जाए।।

राम नाम की लीख पर,
चल नर होय निहाल।
सुमिरन हो गुरुनाम का ,
दमके तन-मन-भाल।।

गुरुकृपा जब भी मिले,
जागे ज्ञान विवेक।
जान मान पहचान लो,
दोनों रूप हैं एक।।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत

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रूप मन में तुम्हारा बसाने लगे
मीत, हम प्रीत के गीत गाने लगे।

गेसुओं की महक, पायलों की झनक,
चैन चोरी करे चूड़ियों की चमक।
दिल हमारा रहा अब हमारा नहीं,
एक पल बिन तुम्हारे गवारा नहीं।
साँस की आँच को तुम बढ़ाने लगे।
मीत हम प्रीत के....

मृगनयन, केश काली घटाएं घनी,
है तुम्हीं से मिले चाँद को चाँदनी।
सूर्य की तुम गगन से उतरती किरन,
गंध से ही तुम्हारी महकता चमन।
तुम मिलीं हाथ जैसे ख़ज़ाने लगे।
मीत हम प्रीत के....

तुम हृदय में बँधीं सब गिरह खोल दो,                       बोल दो प्रेम रस में पगे बोल दो।
तोड़ दो अब अधर की हरिक वर्जना,
चैन आए कि मन है बहुत अनमना।
एक सच बस तुम्हीं, सब फ़साने लगे।
मीत हम प्रीत के...

✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश भारत

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नशा एक बार जो कर लो,तो आदत फिर नही जाती।
छुपाकर ही करो चाहे मगर लत फिर नही जाती।
के अपने हाथ ही खुद आप अपना कर रहे नुकसान,
बला बरबादियो की  ये मुसीबत फिर नही जाती।।

✍️ इन्दु रानी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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मुरादाबाद पहचान  हमारी
दाल मुरादाबादी  पत्तल से
झाड़-फूस में नागफ़नी हम
वृक्षों  में   हम   पीपल   से
शेरों के लिए शेर  हुए  हम
हिरनों के लिए हैं चीतल से
सोने का दिल रखते हैं हम
बेशक व्यवसायी पीतल के

✍️ दुष्यन्त बाबा
पुलिस लाइन
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश , भारत

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मेरे विरोधी ही,
मेरे अच्छे “मित्र” हैं..
और मुझसे सच्चा प्यार करते हैं,
जब अपने साथ छोड़ जाते हैं
जब अपने हमसे रूठ जाते हैं
उस समय की वेदना में,
शान्त जीव चेतना में
हंसकर अपने होने का इजहार करते हैं
मेरे विरोधी ही मेरे अपने हैं
और मुझे सदैव याद करते हैं

जब हार होती है,
और मैं टूट जाता हूँ
अकेला तन्हा, अपनी “किस्मत’ से रूठ जाता हूँ
तब मेरे विरोधी मुझे चिढ़ाते हैं
तब मेरे विरोधी मुझे उकसाते हैं
और मेरे बिखरे हुए
“अरमान” को पुनः जगाते हैं
मेरे विरोधी ही मेरी प्रेरणा हैं
और मुझ पर पक्का एतबार करते हैं 

“अपनों” का आना, सिर्फ हवा का झोंका है..
“चिता” पर छोड़ आते समय
कितनों ने रोका है,
जो मेरे सुख में कम
और दुःख में ज्यादा याद करते हैं..
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरी हर पल बात करते हैं
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरे शरीर में , तेज रक्त प्रवाह कर
आसीम शक्ति का संचार करते हैं

✍️ प्रशान्त मिश्र
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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जीवन एक संग्राम है
जिसमें चलना अविराम है
अबोध तू बालक नही
वृद्ध सा कन्धा तेरा झुका नही
जीवन एक संग्राम है
जिसमे चलना अविराम है।।1।।
माना आयी है तुझपे जवानी
कर ना देना होके मदहोश
खून को पानी
माना है कि चार दिन की जिंदगानी
और उसमें भी बस दो दिन की जवानी
अपने ही हाथो स्वाहा न कर तू अपनी कहानी
देश और समाज पर न्योछावर हो छोड़ जा तू
इतिहास के पन्नो पर अपनी स्वर्णिम निशानी
क्योंकि तुझे मालूम है
जीवन एक संग्राम है
जिसमे चलना अविराम है।

✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत


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