मेरे घर के बाहर सावन है ।
मेरे मन के अंदर सावन है ।।
उस नील गगन पर सावन है ।
इस धरा पै छाया सावन है ।।
कुछ प्रसन्न मेरा चित्त है ।
कुछ आनंदित मेरा मन है ।।
है आंखों से नदिया जारी ।
मेरी आंखों में भी सावन है ।।
रिमझिम रिमझिम सी बूंदे हैं ।
मनमोहक है मनभावन है ।।
है अमृत बारिश का पानी ।
ये पानी बहुत ही पावन है ।।
हर ओर है हरियाली छाई ।
पौधों पर छाया यौवन है ।।
फूलों ने खुशबू छोड़ी है ।
हर ओर सुगंधित उपवन है ।।
लेकिन यह मेरा दुश्मन है ।
मुझे मां की याद दिलाता है ।
मेरा माज़ी याद दिलाता है ।।
बचपन की याद दिलाता है ।
वह कच्चे घर सच्चे रिश्ते ।
छप्पर की याद दिलाता है ।।
वह घर गिरने की आवाजें ।
उस शोर की याद दिलाता है ।।
कोई हिंदू था ना मुस्लिम था ।
उस दौर की याद दिलाता है।।
सब हाथ मदद को उठते थे ।
सारे दुख मिल कर सहते थे ।।
ना कोई किसी का दुश्मन था ।
ऐसे मिलजुल कर रहते थे ।।
यह सावन बहुत ही ज़ालिम है।
मुझे यौवन याद दिलाता है ।।
जब गांव की गोरी पनघट पर ।
पानी लेने को जाती थी ।।
हम घंटों तकते रहते थे ।
एक आस में जीते रहते थे ।।
मन में कोई विद्वेष नहीं ।
अब स्मृति कुछ शेष नहीं ।
मुझ में भी कोई अवशेष नहीं ।।
मैं तो बस एक सूखा तिनका हूं ।
क्या जानू कब उड़ जाऊंगा ।
कब पवन उड़ा ले जाएगी ।।
कब सबसे जुदा हो जाऊंगा ।
कब मिट्टी में मिल जाऊंगा ।।
लेकिन निश्चिंत मेरा मन है ।
जब जब भी सावन आएगा ।
तुम्हें मेरी याद दिलाएगा ।।
मैं याद बहुत फिर आऊंगा ।
मैं आंखों में बस जाऊंगा ।।
सावन में बहुत रुलाऊंगा ।
जीना मुश्किल कर जाऊंगा ।।
है आज मुजाहिद का वादा ।
अपने पद चिन्ह बनाऊंगा ।।
✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
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