शनिवार, 23 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी की रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर शुक्रवार 22 जुलाई 2022 को साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से पावस-गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन ---------

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' के तत्वावधान में नवीन नगर स्थित 'हरसिंगार' भवन में सुप्रसिद्ध साहित्यकार माहेश्वर तिवारी की रचनाधर्मिता के सात दशक पूर्ण होने के अवसर पर पावस-गोष्ठी, संगीत संध्या एवं सम्मान समारोह का आयोजन  किया गया जिसमें नई दिल्ली निवासी वरिष्ठ साहित्यकार विजय किशोर मानव एवं ओम निश्चल को अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मानपत्र, श्रीफल तथा सम्मान राशि भेंटकर "माहेश्वर तिवारी साहित्य सृजन सम्मान" से सम्मानित किया गया। । मुख्य अतिथि विख्यात व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी रहे। कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।  

कार्यक्रम का शुभारंभ सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा  बालसुंदरी तिवारी एवं उनकी संगीत छात्राओं लिपिका, कशिश भारद्वाज, संस्कृति, प्राप्ति, सिमरन, आदया एवं तबला वादक राधेश्याम द्वारा प्रस्तुत संगीतबद्ध सरस्वती वंदना से हुआ। इसके पश्चात उनके द्वारा सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्री माहेश्वर तिवारी के गीतों की संगीतमय प्रस्तुति हुई- 

बादल मेरे साथ चले हैं परछाई जैसे

सारा का सारा घर लगता अंगनाई जैसे। 

और- 

डबडबाई है नदी की आँख

बादल आ गए हैं

मन हुआ जाता अँधेरा पाख

बादल आ गए हैं।

 पावस गोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.  डॉ. आर.सी.शुक्ल ने सुनाया-

 न संभावित करुणा के सम्मुख अपना शीश झुकाऊंँ

मन कहता है आज तुम्हारे आंँगन में रुक जाऊँ। 

यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने गीत पढ़ा- 

धूप गुनगुनाते हैं पेड़़

हिल-मिलकर गाते हैं पेड़़

देख रहे हैं

मौसम का आना-जाना

पत्ता-पत्ता बनकर आँख

दिन का पीला पड़कर मुरझाना

रीती है एक-एक शाख

रातों में आसमान से

जाने क्या-क्या

बतियाते हैं पेड़़

सम्मानित कवि ओम निश्चल ने सुनाया- 

बारिश की तरह आओ

बूंदों की तरह गाओ

मन की वसुंधरा पर

तुम आके बरस जाओ

अतिथि कवि विजय किशोर मानव ने सुनाया-

 यहां उदासी

बारहमासी

घर आई है

धूप ज़रा सी

रोना हंसना

दांव सियासी

छुअन किसी की

लगे दवा सी

वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया- 

वेदना ,संवेदना में दें बदल

चित्त चिंतन चेतना में दें बदल

आचरण में ज्ञान गीता का मिले

कर्म को आराधना में दें बदल

 कवयित्री विशाखा तिवारी रचना प्रस्तुत की-

आज व्याकुल धरती ने

पुकारा बादलों को

मेरी शिराओं की तरह

बहती नदियाँ जलहीन पड़ी हैं

कवि वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी ने गीत सुनाया- 

मुँह पर गिरकर बून्दों ने बतलाया है

देखो कैसे सावन घिरकर आया है

बौछारों से तन-मन ठंडा करने को

डाल-डाल झूलों का मौसम आया है

वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने सुनाया- 

सच को सच बतलाने वाले पहले भी थे अब भी हैं

तम में दीप जलाने वाले पहले भी थे अब भी हैं

प्रेम और सद्भाव की बातें सब को रास नहीं आती

घर घर आग लगाने वाले पहले भी थे अब भी हैं। 

कवि समीर तिवारी ने सुनाया -

बदल गया है गगन सारा,सितारों ने कहा

बदल गया है चमन हमसे बहारो ने कहा

वैसे मुर्दे है वही सिर्फ अर्थियां बदली

फ़क़ीर ने पास में आकर इशारों से कहा

कवि डॉ.मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की- 

कंक्रीट के जंगल में,

 गुम हो गई हरियाली है

आसमान में भी अब, 

नहीं छाती बदरी काली है

कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने पावस दोहे प्रस्तुत किये-

तन-मन दोनों के मिटे, सभी ताप-संताप

धरती ने जबसे सुना, बूँदों का आलाप

पिछले सारे भूलकर, कष्ट और अवसाद

पत्ता-पत्ता कर रहा, बूँदों का अनुवाद

राजीव 'प्रखर' ने दोहे प्रस्तुत किए- 

झूलों पर अठखेलियां, होठों से मृदुगान

ऐसा सावन हो गया, कब का अन्तर्धान

प्यारी कजरी-भोजली, और मधुर बौछार

तीनों मिलकर कर रहीं, सावन का श्रृंगार

 ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की- 

पिंजरे से क़ैदियों को रिहा कर रहे हैं हम

क्या जाने किसका क़र्ज़ अदा कर रहे हैं हम

कुछ टहनियों पे ताज़ा समर आने वाले हैं

यादों के इक शजर को हरा कर रहे हैं हम

 काशीपुर से कवयित्री ऋचा पाठक ने सुनाया- 

साथ नहीं हो कहीं आज तुम

फिर क्यूँ हर पल हम मुस्काये

हर आहट पर बिजली कौंधी

लगा यही बस अब तुम आये। 

 कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने सुनाया- 

खिलखिलाती धूप सा है हास तुम्हारा

कुशल अहेरी अद्भुत है यह पाश तुम्हारा।

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने गीत सुनाया- 

अधरों पर मचली है पीड़ा

करने मन की बात

रोपा तो था सुख का पौधा

 हमने घर के द्वारे

सावन भादों सूखे निकले

 बरसे बस अंगारे

कवि दुष्यंत बाबा ने सुनाया ----

तोड़ा उसने मेघ से नाता और बूंद धरा पर आयी

मां सी ममता मिली उसे जब आकर नदी समाई

बहती सरिता देखी तो हृदय सागर का भी फूटा

पुनर्मिलन सुख देता है यदि बेबस हो कोई छूटा

कवि प्रत्यक्ष देव त्यागी ने कहा ----

ये रूप जो तेरा,

लगे तुझे है खजाना,

ये किसी का नहीं है,

उम्र संग है ये जाना,

इसी को तू रख ले,

बढ़ा ले खजाना,

जब मुट्ठी खुलेगी,

रह कुछ नहीं जाना।

विख्यात कवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी , डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, डॉ. उन्मेष सिन्हा, माधुरी सिंह, डी पी सिंह एवं  उमाकांत गुप्त भी कार्यक्रम में शामिल रहे। संयोजक आशा तिवारी एवं समीर तिवारी द्वारा  आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई।
































































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