गुरुवार, 15 सितंबर 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य .... लाइसेंस का नवीनीकरण

         


कार्यालय में प्रवेश करके मैंने बाबू के हाथ में दस रुपए पकड़ाए और कहा " दस वर्ष के लिए मेरे लाइसेंस का नवीनीकरण कर दो।"

     बाबू ने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह से आया हूँ। बोला "आपको नहीं पता, अब सारा काम ऑनलाइन हो रहा है। नवीनीकरण शुल्क भी ऑनलाइन ही जमा होगा और साथ ही यह भी सुन लीजिए अब दस वर्ष का नवीनीकरण नहीं होगा। प्रत्येक वर्ष नवीनीकरण हुआ करेगा । अतः आपको केवल एक रुपया ऑनलाइन जमा कराना होगा ।"

        मैं अवाक रह गया । बोला "भाई साहब ! यह ऑनलाइन की पद्धति रुपया जमा करने के मामले में कब से शुरु हो गई ? पहले हम अच्छे - भले आते थे ,आपके हाथ में दस साल के दस रुपए पकड़ा देते थे । आप रसीद काट देते थे ..."

     बाबू ने बीच में ही बात काटी । बोला" वित्तीय मामलों में पूरी पारदर्शिता रखी जा रही है। इसी दृष्टि से सरकारी पैसा ऑनलाइन जमा होगा । बाकी चीजें मेज पर ऊपर - नीचे चलती रहेंगी । "

      मैंने कहा "चलो ठीक है ! ऑनलाइन ही जमा कर देंगे लेकिन दस साल का क्यों नहीं ?  हर साल क्यों ? "

          बाबू ने अपनी बत्तीसी निकाली और मुस्कुराते हुए कहा "हमारे घर की पुताई क्या दस साल बाद हुआ करेगी ? वह तो हर साल होनी चाहिए ? अब हम "आत्मनिर्भर" बनना चाहते हैं ।"

         मैंने कहा " आत्मनिर्भर से तुम्हारा क्या तात्पर्य है ? "

           वह बोला "अब जब प्रतिवर्ष आप का नवीनीकरण होगा , तब हमारा खर्चा- पानी हर साल निकलता रहेगा और हम सरकारी वेतन पर निर्भर न होकर आप से प्राप्त चाय-पानी के खर्चे से अपना गुजर-बसर करते रहेंगे ।"

       मैंने कहा "तुमने तो आत्मनिर्भरता की परिभाषा ही बदल दी । हम लोग कितने परेशान होते हैं ,क्या तुमने कभी सोचा ?"

         बाबू गुस्से में बोला "बहस मत करो। सरकारी दफ्तर आप लोगों की परेशानियों को सुलझाने के लिए ही तो है । अगर परेशानी नहीं होगी तो फिर हम उनका समाधान कैसे करेंगे और आपसे मेज पर बैठकर किसी निष्कर्ष पर कैसे पहुँचेंगे ?"

         मैंने कहा "अब मुझे क्या करना है?"

                 वह बोला "सबसे पहले तो आप ऑनलाइन पैसा जमा करिए ताकि नवीनीकरण आवेदन - पत्र आपके द्वारा भरा जा सके।"

      मैं भी गुस्सा गया । मैंने कहा "आप का दफ्तर दूसरी मंजिल पर है । मुझे दो जीने चढ़ने पड़ रहे हैं । मेरे घुटने बदलने का ऑपरेशन आठ महीने पहले हुआ था । जीना चढ़ना कठिन है ।"

     इस बार फिर बाबू का तेवर गर्म था । बोला "आप तो केवल दो जीने चढ़ने को ऐसे समझ रहे हैं ,जैसे स्वर्ग तक जाना और आना पड़ रहा हो । अरे ! सरकारी दफ्तर अनेक स्थानों पर तीसरी मंजिल पर हैं। वहाँ आप से ज्यादा बूढ़े और बीमार लोग जैसे-तैसे चलकर जाते हैं ।आप तो फिर भी हट्टे-कट्टे हैं । चलने में आपको क्या परेशानी है ? जीना चढ़ना तो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है । सरकार को धन्यवाद कहिए कि उसने आपको जीना चढ़ने की व्यवस्था करने के लिए दूसरे और तीसरे या चौथे तल पर सरकारी दफ्तर बना रखे हैं।"

            मैंने बहस करना उचित नहीं समझा और ऑनलाइन प्रक्रिया के द्वारा एक वर्ष का एक रुपया जमा कराने के लिए ऑटो में बैठ कर किसी कंप्यूटर केंद्र पर जाना उचित समझा। एक रुपया जमा करने में कितने पापड़ बेलने पड़े ,यह तो मैं ही जानता हूँ। अंततः रसीद लेकर सरकारी दफ्तर के नवीनीकरण कार्यालय में पहुंचा । उनको अपने पत्राजात  दिए तथा ऑनलाइन जमा करने की रसीद थमाई। कहा" अब नवीनीकरण कर दीजिए ।"

       इस बार दफ्तर पर बाबू की कुर्सी खाली थी , जो कि मैं जल्दबाजी में देख नहीं पाया था । एक दूसरे सज्जन जो थोड़ा बगल में कुर्सी डालकर बैठे हुए थे, कहने लगे "आप हमसे क्यों ऐसी बातें कर रहे हैं ? हम क्या आपको बाबू नजर आते हैं ? बाबू हमारे मित्र थे । वह चले गए हैं ।अब तो आपको कल या परसों मिलेंगे ।" मैंने उन सज्जन से क्षमा माँगी कि मैं आपको पहचान नहीं पाया क्योंकि दरअसल मैं बाबू से दस वर्ष बाद मिला हूँ। वह सज्जन बोले "इसीलिए तो सरकार ने हर वर्ष के नवीनीकरण की पद्धति निकाली है ताकि आप बाबू से मिलते - जुलते रहें और उसको पहचान जाएँ तथा किसी अन्य व्यक्ति को बाबू समझने की गलती कभी न करें।"

        खैर ,मरता क्या न करता । मैं ऑटो में बैठ कर फिर घर आया। शहर के एक छोर पर हमारा घर था तथा दूसरे छोर पर नवीनीकरण कार्यालय था। चालीस रुपए ऑटोवाला जाने के एक तरफ के लेता था तथा चालीस रुपए दूसरी तरफ के लेता था। इस तरह शुल्क का एक रुपया जमा करने के चक्कर में मेरे अस्सी रुपए बर्बाद हो गए । अगली तारीख पड़ गई।

         हम अगले दिन फिर पहुँचे । बाबू बैठे हुए थे । हम प्रसन्न हो गए। हमने कहा "लीजिए ! हमारे नवीनीकरण से संबंधित सारे पत्राजात आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं । अब नवीनीकरण सर्टिफिकेट हमें दे दीजिए।"

      बाबू ने हमें आश्चर्य से देखा और कहा "आप तो जब भी आते हैं ,बुलेट ट्रेन की रफ्तार से आते हैं । जबकि आपको पता है कि यह सरकारी कार्यालय है । यहाँ पैसेंजर के अतिरिक्त और कोई गाड़ी नहीं चलती। थोड़ा हल्के बात करिए । फाइल छोड़ जाइए। आपके कागजों का अध्ययन करके हम आपको सूचित कर देंगे ।"

         मैंने कहा "इसमें अध्ययन में रखा क्या है ? मेरा नाम है, पता है, दुकान का व्यवसाय है। नवीनीकरण में दिक्कत क्या है ?"

     वह बोले "जो भी दिक्कत है ,सब आपको बता दी जाएगी । आप हफ्ता -दस दिन बाद आकर मिल लीजिए।"

       मजबूर होकर मुझे घर लौटना पड़ा। बैरंग वापस आते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था । मगर बहस करने का मतलब था, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाना और इसके लिए भारतीय दंड संहिता की अनेक धाराएँ मेरा इंतजार कर रही थीं। अतः मैं शांतिपूर्वक अपने घर आ गया ।

      दस दिन बाद मैं फिर नवीनीकरण कार्यालय में बाबू के पास उपस्थित हुआ। अब हमारी जान - पहचान काफी बढ़ने लगी थी।

   वह मुझे देख कर मुस्कुराया बोला "आप आ गए ?"

    मैंने कहा "मुझे तो आना ही था"

         वह बोला "आपके कागजों में बड़ी भारी कमी है। आपने कहीं भी अपने जिले का नाम नहीं लिखा । इन्हें दोबारा से मेरे सामने प्रस्तुत कीजिए ताकि जब भी मैं कागज खोलूँ, तब आपका जिला मेरी समझ में आ जाए।"

     मैंने कहा "आप केवल हमारे जिले का ही कार्यालय का काम सँभालते हैं । अतः जिला नहीं लिखा है तो कौन सा आसमान टूट पड़ा !  लाइए , मैं अपने हाथ से जिला लिख देता हूँ।"

       बाबू ने मेरा हाथ  पकड़ लिया, बोला  "साहब ! कैसी बातें कर रहे हैं ? टाइप किए हुए कागज में भला हाथ से कोई जिला लिख सकता है ? आप दोबारा टाइप कर के आइए। फिर से अपने हस्ताक्षर करिए और फिर मेरे पास जिला लिखवा कर कागज प्रस्तुत करें।"

           मैंने भी भन्नाकर कहा" ठीक है ,अब आप जिले को इतना महत्व देते हैं ,तब यह काम भी पूरा कर लिया जाएगा । कब आऊँ? "

        वह बोला "अभी दो-तीन दिन तो मैं व्यस्त रहूँगा ,उसके बाद आप किसी भी दिन आ जाइए।"

       मैंने कागजों को दोबारा टाइप करवाया उसमें जिला लिखवाया और अगले सप्ताह नवीनीकरण कार्यालय जाने के लिए ऑटो पकड़ा । संयोगवश ऑटो वाला पुराना था। देखते ही बोला"नवीनीकरण दफ्तर जाना है?"

      मैंने कहा "तुम्हें कैसे पता ?"

           वह बोला "हमने धूप में बाल सफेद नहीं किए । दुनिया देखी है । जो वहाँ एक बार चला गया ,समझ लीजिए दस-बारह बार  जाता है ,तब जाकर लाइसेंस का नवीनीकरण होता है ।"

     मैं उससे क्या कहता ? मैंने कहा "चलो "।दफ्तर में गए । मगर बाबू नहीं था। एक दूसरे सज्जन ने बताया "बाबू आजकल कम आ रहे हैं । आप दोपहर को साढ़े तीन बजे के करीब एक चक्कर लगा लीजिए । शायद मिल जाएँ।" 

           मैंने मूड बिगाड़ कर कहा " यहीं पर कोई होटल का कमरा किराए पर मिल जाए तो मैं यहीं पर रहना शुरू कर दूँ। बार बार क्या घर आऊँ- जाऊँ।"

             वह सज्जन मेरे जवाब को सुनकर क्रोधित हुए । कहने लगे "क्या सरकारी बाबू को और कोई काम नहीं होता ?" सज्जन के तेवर गर्म थे । मजबूर होकर मुझे फिर घर वापस लौटना पड़ा ।

      इसी तरह से बार- बार आने- जाने में छह महीने लग गए। मैं जाता था ,दफ्तर में बाबू से अपने कार्य के बारे में जानकारी लेता था , उसकी आपत्तियों का निराकरण करता था और फिर नए कागज बनाकर उसके पास पहुँचाता था । 

          एक दिन बाबू बोला "आपके कार्यों में  मुख्य आपत्ति  यह पाई गई है  कि आपने निर्धारित प्रपत्र पर  अपना विवरण जमा नहीं किया है  । बाकी चीजें तो सही हैं लेकिन प्रपत्र तो निर्धारित ही होना चाहिए  ।"

           मैंने कहा "निर्धारित प्रपत्र क्या होता है  ? कृपया मुझे  उपलब्ध करा दीजिए ? "

          वह बोला " यह तो छह नंबर वाले बाबू जी की दराज में रखे रहते हैं  । वह फिलहाल छुट्टी पर हैं। आप उनसे मिलकर निर्धारित प्रपत्र ले लीजिए और जमा कर दीजिए । आप का नवीनीकरण हो जाएगा ।" 

         मैंने कई चक्कर काटकर मेज नंबर छह के बाबू को तलाश किया, उससे निर्धारित प्रपत्र मुँहमाँगे दाम पर अपने कब्जे में लिए , लिखा, भरा और संबंधित बाबू को उसके हाथ में देकर आया । पूछा "अब तो नवीनीकरण सर्टिफिकेट दे दो भैया ! "

        उत्तर में वही ढाक के तीन पात रहे। नवीनीकरण नहीं हो कर दिया । उसके बाद से दसियों  बार नवीनीकरण कार्यालय गया लेकिन हर बार यही जवाब मिलता है -" आपके कागजों की उच्च स्तरीय जाँच की जा रही है तथा आपत्तियाँ भेज दी जाएँगी।"

          स्टेटस-रिपोर्ट यह है कि धीरे-धीरे एक साल बीतने लगा है । एक वर्षीय नवीनीकरण शुल्क का एक रुपया सरकार के खाते में मेरे द्वारा जमा हो चुका है । मेरे सैकड़ों रुपए आने- जाने तथा दफ्तर के चक्कर काटने में बर्बाद हो गए हैं । न जाने कितने कार्य-दिवस मैं खर्च कर चुका हूँ। दो जीने उतरते -चढ़ते  अब  जीने की इच्छा ही समाप्त हो चुकी है । अभी तक नवीनीकरण नहीं हुआ ।

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा 

 रामपुर

 उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 9997615451

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