मंगलवार, 6 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार के ग़जल संग्रह ' आओ! खुशी तलाश करें ' की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा......रश्मियाँ बिखेरतीं आशावादी ग़जलें

ग़ज़ल शब्द सुनते ही कानों में मिठास घुल जाती है और लगता है हम किसी  मनोरम स्थान पर झरने के नज़दीक एकांत में बैठकर प्रकृति की मधुर स्वर लहरियों में कहीं खो से गये हैं.ग़ज़ल  का हर शेर स्वयं में एक पूर्ण कविता, एक कहानी लिये होता है. इसी क्रम में   महानगर मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार जी का  ग़जल संग्रह ' आओ! खुशी तलाश करें 'मुरादाबाद की ग़ज़ल यात्रा में एक संगीत का दरिया बनकर प्रवाहित हुआ है.

आपके ग़ज़ल संग्रह   का शीर्षक ही 'आओ! खुशी तलाश करें ' जीवन से भरपूर  व आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए पाठकों के  समक्ष  प्रस्तुत हुआ है.आपकी  ग़ज़लों ने परंपरागत शैली से हटकर मानव मन की पीड़ा को स्पर्श करते हुए, उस पीड़ा को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया है.   वस्तुतः आपके ग़ज़ल संग्रह की प्रथम ग़ज़ल  ही   सूर्य की प्रथम किरण की भाँति सकारात्मकता का सवेरा लिए  अवसादों के अँधियारों को धूल चटाने में सक्षम  प्रतीत होती है .  संग्रह   का शीर्षक ही 'आओ! खुशी तलाश करें ' जीवन से भरपूर  व आशावादी दृष्टिकोण लिए हुए पाठकों के  समक्ष  प्रस्तुत हुआ है.आपकी  ग़ज़लों ने परंपरागत शैली से हटकर मानव मन की पीड़ा को स्पर्श करते हुए, उस पीड़ा को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास किया है.   वस्तुतः आपके ग़ज़ल संग्रह की प्रथम ग़ज़ल  ही   सूर्य की प्रथम किरण की भाँति सकारात्मकता का सवेरा लिए  अवसादों के अँधियारों को धूल चटाने में सक्षम  प्रतीत होती है . चंद शेर देखिएगा.. 

" ग़मों के बीच से आओ खुशी तलाश करें

अँधेरे चीर के हम रोशनी तलाश करें

खुशी को अपनी लुटाकर खुशी तलाश करें

सभी के साथ में हम ज़िन्दगी तलाश करें"

एक अन्य ग़ज़ल के चंद शेर प्रस्तुत हैं

 "मैं गीत में वो सुखद भावनाएँ भर जाऊँ

कि छंद छंद में बनकर खुशी उतर जाऊँ

हटा सकूँ मैं रास्तों से सभी काँटों को

हर एक राह पे फूलों सा मैं बिखर जाऊँ"

आप के सहज, सरल और निश्चल हृदय की परिक्रमा करती एक अन्य ग़जल नि:संदेह  उच्च विचारों की गरिमा के परिधान पहने सामाजिक हितों व संस्कृति के चरण पखारती प्रतीत होती है.इस ग़ज़ल के चंद शेर मतले सहित बेहद शानदार बन पड़े हैं. यथा.

 "अरूण को सवेरे नमन कर रहा हूँ

मैं उन्नत स्वयं अपना तन कर रहा हूँ

लिखूँ मैं सदा जन हितों की ही बातें

विचारों का मैं संकलन कर रहा हूँ"

आपने अपनी ग़ज़लों को शिल्प के  कठोर बंधन में बांधकर भी मन के भावों के तन पर लेशमात्र भी खरोंच  नहीं आने दी है. आपकी कलम के अनुभवी दृष्टिकोण ने इंसानी स्वभाव का बहुत सधा हुआ मूल्यांकन भी किया है.और तंज भी किया है. आपकी ग़ज़लों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपने इस संग्रह में हिंदी के शुद्ध शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है . उर्दू के शब्दों के जबरन प्रयोग को आपने दरकिनार किया है.यह हिंदी  साहित्य के लिए एक सुखद  प्रयोग है  साथ ही नैतिकता के जिस शिखर को आपकी ग़ज़लों ने स्पर्श किया है वह विरले ही देखने को मिलता है. इस क्रम में कुछ शेर प्रस्तुत हैं

"सुख तो औरों को मिला लेकिन श्रमिक को वेदना

जबकि उसके श्रम  से सुख के पुष्प विकसित हो गए"


"किया है उसने किसी खल का अनुसरण मित्रों

कि जिससे बिगड़ा है उसका भी आचरण मित्रों"


  "बुरे समय में अगर किसी के जो भी साथ निभायेगा

खुशियाँ उसके पाँव छुएंगी वो हरदम मुस्काएगा.

कष्ट पड़े चाहे जितने भी मलिन नहीं साधु होगा

जैसे जैसे स्वर्ण तपेगा  और निखरता जायेगा"


"काम आए जो दूसरों के सदा

वो ही बड़े महान होते हैं

बढ़ती जाती है ज़िम्मेदारी भी

जबकि बच्चे जवान होते हैं"


"काम बन जाते हैं बिगड़े भी सरल व्यवहार से

मान जाते हैं बड़े रूठे हुए मनुहार से"

संघर्ष और मुश्किलों में भी सदैव मुस्कुराती आपकी गज़लें आज के आभासी युग में पाठकों के लिए और भी अधिक प्रेरणास्रोत बन जाती हैं, आपकी ग़ज़लों में महबूब की बेवफाई का रोना धोना नहीं है और न ही फालतू के शिकवा शिकायत हैं वरन्  प्रेम के सकारात्मक पहलू ही आपकी ग़जलों के आभूषण बने हैं.आपकी ग़ज़लें देश की फिक्र करती हैं तो आम आदमी की पीड़ा के साथ ही  महबूब से भी गुफ्तगू करती हैं. रुमानियत और खुरदरे धरातल दोनो का ख़याल  रखते  आपके अशआर अद्भुत हैं  एक बानगी देखिए.. 

"मिल जाए उनका प्यार तो खुशियाँ मिलें सभी

उनके करम के सामने टिकते हैं ग़म कहाँ"

और . . . 

"साथ तुम्हारे होने भर से

मंगल है मेरे जीवन में

मन में कसक रह गयी अबकी

भीग न पाए इस सावन में"

यथार्थ के धरातल पर उगे आम आदमी की पीड़ा के स्वर भी आपकी ग़ज़लों में बखूबी दिखते हैं.. 

"दिल लरजते  हैं सभी, महंगाई की रफ़्तार देख

होश खो देते हैं कितने आजकल बाज़ार देख"


"बैचेन किया है सबको रोज़ी के सवालों ने

तूफान उठाया है रोटी के निवालों ने"


"इस दौर में ये कौन सा कानून चल गया

जो रोजगार को भी यहाँ के निगल गया

पानी को पी के जिसके बुझाते थे प्यास सब

नाले में गंदगी के वो दरिया बदल गया"

आतंकवाद  पर भी आपकी कलम खूब चली है.. 

"नफरत को मुहब्बत मे बदलने नहीं देते

है कौन जो दुनिया को संभलने नहीं देते"

आपके भीतर का देश प्रेमी अपने अशआरके ज़रिए नौजवानों के हृदय में देश भक्ति की अलख  जगाने में भी सफल रहा है.. 

"जिसको वतन से प्यार है, अहले वतन से प्यार है

मेरी नज़र में दोस्तों! काबिले ऐतबार है"

"ज़ात, मज़हब, धर्म के झगड़े मिटाने के लिए

आओ सोचें बीच की दीवार ढाने के लिए "

 कहा जाता है कि आइना अपनी तरफ से कब बोलता है, इसी  क्रम में  सौम्यता और सादगी से परिपूर्ण और सबका हित चाहती आपकी ग़ज़लें देश, दुनिया, राजनीति, आम जनता और महबूब के मन के भावों को ही  परावर्तित करती प्रतीत होती है. समर्पण की भावना को लेकर प्रारंभ हुई आपके  इस ग़जल संग्रह की यात्रा  ,स्वर कोकिला कीर्ति शेष लता मंगेशकर जी को शब्दाजंलि पर आकर समाप्त होते हुए अपने साथ अनेक भावों को समेटकर पाठकों के हृदय के तट स्थल छोड़ देती है,अंत में आपको ग़ज़ल संग्रह की बधाई प्रेषित करते हुए, आपके ही एक शेर से अपनी बात समाप्त करती हूँ.

"दर्द की सबके लिए दिल में चुभन ज़िंदा रहे

मुझमें सबके दुख मिटाने की लगन ज़िंदा रहे."


कृति : आओ! खुशी तलाश करें (ग़ज़ल संग्रह)

रचनाकार : ओंकार सिंह 'ओंकार'

प्रकाशन : गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद

प्रकाशन वर्ष : 2022

मूल्य : 250₹

समीक्षक : मीनाक्षी ठाकुर

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

6 टिप्‍पणियां:

  1. श्रीमती मीनाक्षी ठाकुर जी ने बड़ी मन से पूरी पुस्तक " आओ ख़ुशी तलाश करें" पढ़कर, गहन चिंतन के बाद समीक्षा लिखी,। मैं हृदय की गहराइयों से उनका आभार व्यक्त करता हूं।
    ओंकार सिंह 'ओंकार' मुरादाबाद

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  2. सुंदर समीक्षा का हार्दिक स्वागत व अभिनंदन।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-09-2022) को   "गुरुओं का सम्मान"    (चर्चा अंक-4545)  पर भी होगी।
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    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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