शनिवार, 17 सितंबर 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता..... धर्म क्या है


मीडिया में प्रतिदिन

धर्म को लेकर बहस

और मारपीट के

दृश्य आ रहे थे

सब अपने धर्म को

दूसरे के धर्म से

बेहतर बता रहे थे

हमने सोचा

अपने सीमित ज्ञान को 

बढ़ाते हैं

धर्म के ठेकेदारों के

पास जाकर

धर्म वास्तव में क्या है

पता लगाते हैं


पहले एक पुजारी के पास गए

उसने बताया धर्म होता है

सुबह शाम पूजा आरती,

घंटा बजाना

कभी कभी उपवास रखना

और पंडितों को खाना खिलाना


मौलवी ने बताया

दिन में पांच बार नमाज पढ़ना

रमजान में रोजा रखना

काफिरों का नाश करना

कुछ ऐसी है

हमारे धर्म की परिकल्पना


पादरी बोले

चर्च में फादर के सामने

अपनी गलतियां स्वीकारना

कैंडल जलाना

बस धर्म यही है

प्रेयर और दुआ में हाथ उठाना


ग्रंथी ने कहा धर्म है

गुरुद्वारे में मत्था टेकना

लंगर छकना

निस्वार्थ भाव से

सबकी सेवा करना


हमें सबकी बातों ने 

उलझा दिया

हमने कुछ आम

लोगों से पता किया

जवान ने कहा

मातृभूमि की सेवा से बड़ा

कोई कर्म नहीं है

देश के लिए मिटने से बड़ा

कोई धर्म नही है


किसान बोला

जाड़ा गर्मी बरसात

चाहें कैसे हो हालात

खेती है हमारा

एकमात्र सहारा

खेतों में काम करना ही

धर्म है हमारा


नेता का जवाब था

कुर्सी ही हमारा धर्म है

हम अपने धर्म का

बेशर्मी से

पालन करते हैं

इस पर टिके रहने को

खुद तक की नजर में

बार बार गिरते हैं


व्यापारी ने समझाया

हम करते हैं व्यापार

व्यापार में पैसा कमाना

एकमात्र धर्म है होता

इसके लिए चाहें

झूठ बोलना पड़े

या किसी को देना पड़े धोखा


अध्यापक ने बताया

हमारा धर्म है

पढ़ना और पढ़ाना

डॉक्टर के हिसाब से

धर्म का मतलब था

मरतो को बचाना

जोकर के लिए धर्म था

रोतों को हंसाना

श्रवण जैसे पुत्र ने कहा

धर्म होता हैं

माता पिता की सेवा में

अपना समय बिताना


सबकी अपनी परिभाषा

सबका अपना तर्क था

लेकिन ध्यान से देखने पर

इनमे कोई ना फर्क था

जिसका जो भी विचार था

उसके मूल में

उसका स्वार्थ और रोजगार था


मेरे विचार से

भगवान ने अपने स्वरूप से

सबको सजाया है

वो परमात्मा है

उसने हमें आत्मा बनाया है

हमने

भौतिकता की अंधी दौड़ में

उस पर अहंकार

और प्रति अहंकार का

मुल्लम्मा चढ़ा दिया है

मानवता ही

हम सब मानवों का धर्म है

इस तथ्य को भुला दिया है

अगर हम सब

मानव बनकर रहेंगे

मानवता को अपना धर्म कहेंगे

सबके दिलों से

प्यार के झरने बहेंगे


मैने कविता सुना कर

अपना कवि धर्म 

निभा दिया है

एक अच्छे श्रोता का धर्म

तुम भी निभाओ

कुछ और नहीं

कर सकते हो

तालियां ही बजाओ ।


✍️ डॉ.पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या बात है... बहुत सुंदर व्यंग्य... बधाइयां बहुत बहुत।
    ---डा.अशोक रस्तोगी गाजियाबाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत बधाई और अनंत हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय डॉ पुनीत जी। आपका जवाब नहीं।

      हटाएं