रविवार, 18 अक्तूबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद महानगर के तत्वावधान में रविवार 18 अक्टूबर 2020 को मातृ शक्ति विषय पर संस्कार भारती साहित्य समागम का आयोजन किया गया । बाबा संजीव आकांक्षी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस कार्यक्रम में साहित्यकारों अशोक विश्नोई, योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद चौधरी, राजीव प्रखर, डॉ रीता सिंह, इशांत शर्मा ईशु, नृपेन्द्र शर्मा सागर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इंदु रानी और ठाकुर अमित कुमार सिंह की काव्य रचनाएं ------



          माँ अष्ठ भुजा धारी,
          करें शेरों की सवारी ।
          श्रद्धा भक्ति और विश्वास
          मेरी यही अरदास ।
          बाकी सब बेकार,
          करो माँ इसे स्वीकार।
          दुनियां तुम पर बलिहारी,
          माँ अष्ठ---------------।
          करे मेहर की जो छाया,
          कुंदन बन जाती काया।
          भागे दूर सभी अंधियारा,
          फैले चारों ओर उजियारा।
          संकट कट जायें सब भारी,
          माँ अष्ठ-----------------।
          संसार की तुम चालक,
          भक्तों की तुम पालक ।
          जो भी तुम को पुकारे ,
          होते उसके वारे न्यारे ।
          होती जब कृपा तुम्हारी,
          माँ अष्ठ------------------।
                             
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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किसको चिंता, किस हालत में
कैसी है अब माँ

सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गईं फर्ज पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन कागज का
वैसी है अब माँ

नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ

फर्ज निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ

✍️योगेंद्र वर्मा व्योम, मुरादाबाद
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लोरियां मुझको सुनाएगी तो नींद आएगी ।
मां तू सीने से लगाएगी तो नींद आएगी ।।
अपने हाथों में छुपा कर के मेरे चेहरे को ।
अपने पहलू में सुलाएगी तो नींद आएगी ।।
फिरसे परियों की कहानी भी सुनाना तू मुझे ।
मुझको चंदा तू दिखाएगी तो नींद आएगी ।।
मुझको बरसों से मयस्सर नहीं कोई चैनो सुकूं ।
अपने दामन में छुपाएगी तो नींद आएगी ।।
तेरी आवाज़ को सुनने को मैं तरसूं कब तक ।
जब कोई गीत सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
मैंने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है ।
ख्वाब आंखों में सजाएगी तो नींद आएगी ।।
मैं हूं अनजान तू नाराज़ है आखिर क्यों कर ।
जब सज़ा कोई सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
कैसे भूलेगा मुजाहिद वो मोहब्बत का सफ़र ।
फिर से सब याद दिलाएगी तो नींद आएगी ।

✍️ मुजाहिद चौधरी , हसनपुर अमरोहा
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हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
बरसों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगाई तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।
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दोहे
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सीपी बोली बूंद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

इधर धरा पर हो रहा, बेटी का अपमान।
उधर गगन में गूंजता, माता का गुणगान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से,  अम्मा मेरे पास।।

✍️- राजीव  'प्रखर',मुरादाबाद
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भव्या अभव्या भाव्या भवानी
भवमोचिनी हो तुम्हीं भाविनी ,
चितिः चिता और चित्तरूपा
सर्वास्त्रधारिणी सत् - स्वरूपा ।

काली कराली कौमारी कुमारी
क्रिया क्रूरा कात्यायनी कैशोरी ,
बुद्धिदा बहुला ब्राह्मी बहुलप्रेमा
अनेकशस्त्रहस्ता अमेयविक्रमा ।

युवती यतिः प्रौढ़ा अप्रौढ़ा
आद्या अनन्ता अनेकवर्णा ,
सती साध्वी सत्या सावित्री
मनः मातंगी मधुकैटभहन्त्री ।

सर्वविद्या सुता सर्वदानवघातिनी
महाबला तुम अनेकास्त्रधारिणी ,
पाटलावती पटांबरपरिधाना
सर्वशास्त्रमयी सर्ववाहनवाहना ।

तुम्हीं कालरात्रि तपस्विनी नारायणी
रूप अनेक हैं तुम्हारे जगतारिणी ,
ध्यान तुम्हारा हम करें कल्याणी
सदा पार लगाना हे दुखहारिणी ।

✍️डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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घर से जब भी निकलता हूँ तुम्हे ही याद करता हूँ,

सभी मुश्किल राहों को मैं आसान करता हूँ,

तुम्ही चाहत तुम्ही हिम्मत तुम्ही हो जिंदगी मेरी,

तुम्हे ही याद करता हूँ तुम्हारी बात करता हूँ,

✍️इशांत शर्मा ईशु, मुरादाबाद
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हाँ मैं एक औरत हूँ जो हमेशा औरों में ही रत हूँ।
सारे संसार का अस्तित्व मुझसे है ।
लेकिन मैं खुद के अस्तित्व से ही विरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं बेटी हूँ ,बहन हूँ  ,पत्नी हूँ  मैं माँ हूँ।
मैं सृस्टि कर्ता हूँ जन्मदात्री हूँ।
मैं हमेशा प्यार, वात्सल्य एवं ममता लुटाती हूँ।
हाँ मैं एक औरत हूँ।

मेरे बिना कल्पना भी नहीं इस संसार की।
मैं ही धुरी हूँ हर तरह के प्यार की।
मै त्याग और बलिदान की मूरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं औरों में रत हूँ सबके लिए जीती हूँ।
अपने हर आँसू को अमृत मानकर पीती हूँ।
कभी पिता का मान,
कभी पति का अभिमान।
कभी बेटे के सुख में निहित हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

क्या कोई समझ पायेगा औरत होने का सही अर्थ।
क्यों कर लेती है वह निज जीवन को व्यर्थ।
क्यों सदा वह बस औरों में रत है।
क्योंकि वह एक माँ हैं,
हाँ हाँ वह एक औरत है।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा
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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।

✍️आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
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मैं मानू नौराते उस दिन,
जब नारी उत्पीड़न रुक जा।
करू मैं दीप प्रज्जवलित दिलसे,
जब दुष्टों का सर झुक जा।।

क्या ठोकू मैं ताल भजन की,
जब मैया मूँदें आँखे पड़ी।
करू भजन मैं उस दिन जब,
चीखों से सबका मन दुख जा।
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है बेटी अनमोल पर जो मोल न तुम समझोगे,

खो दोगे फिर मान घर की बरकत भी खो दोगे।

चूनर रख कर माथ रखती लाज सदा पगड़ी की,

जो न पूजो तुम पाँव तो लक्ष्मी भी धो दोगे।।

✍️इंदु, अमरोहा
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मानवता की सृजन जननी,
तुझ को मेरा नमन है ।
महिमा तेरी जनम-जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

संस्कृति की ध्वजवाहक हो,
सृजन की पतवार हो,
परिवार का आधार हो,
मानव जीवन का सार हो ।।

स्नेह,प्रेम,साहस की मूरत,
वात्सल्य,ममता की सूरत,
महिमा तेरी जनम जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

✍🏻अमित कुमार सिंह
7C/61, बुद्धिविहार फेज 2
मुरादाबाद 244001
मोबाइल-9412523624

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार इन्द्र देव भारती की कविता ----वो अकेली लड़की ! वो अकेली निर्भया ! वो अकेली दामिनी !


सूरज जल रहा था !
अंबर दहक रहा था !!
धरती धधक रही थी !!!
बस्ती में - 
सन्नाटों की गूंज थी ।
बाशिंदे घरों में कैद थे ।
कभी 
कोई खिड़की
अपनी आँखें खोल लेती,
तो तुरंत ही - 
बंद कर लेती थी ।
हाँ ! कभी 
कोई दरवाजा भी 
पलकें झपका लेता था ।
गली हो या सड़क,
वीरानगी की -
चहल-पहल थी ।
ऐसे सूनेपन की भीड़ में,
एक अकेली लड़की
या एक अकेली निर्भया,
या एक अकेली दामिनी,
बदहवासी ओढ़े,
''मिल्खासिंह'' बनी
भाग रही थी !
भाग रही थी  !!
भाग रही थी   !!!
और -
उसके पीछे भाग रहे थे-
कुछ इंसानी भेड़िए ।
इक्का-दुक्का 
आँखे देख भी लेतीं, 
तो तुरंतअंधी बन जातीं ।
इक्का-दुक्का कान भागती हुयी
लड़की/निर्भया/दामिनी
की "बचाओ - बचाओ"
सुन भी लेते तो -
तुरंत बहरे बन जाते ।
सड़क पर -
चलते-फिरते तमाम मुर्दे
पीछे भागने  वालों को
पकड़ने दौड़ते जरूर,
मगर उनके 
दुःशासन मन
कबके लंगड़े हो चुके थे ।
भागते हुये पीछे छूटी 
पक्की सड़क,
खड़ी फसलों के - 
बीच से गुजरती हुयी,
कच्चे रास्ते में, 
और फिर बटिया में,
बदल कर -
कब घने जंगल में
जा पहुंची ?
पता ही नहीं चला ।
सामने जंगली भेड़िये ?
पीछे इंसानी भेड़िये ?
उस अकेली लड़की ने,
उस अकेली निर्भया ने,
उस अकेली दामिनी ने -
निर्णय लेने में 
कतई भी देर नहीं की ।
वो खेल गयी -
प्राणों  का  दांव,
इज्ज़त के नाम पर,
और कूद गयी 
जंगली भेड़ियों के बीच ।
इज्जत की 
बेदाग़ चादर पर 
बिखरा उसका हाड़-मास
दूर खड़े हांफते
इंसानी भेड़ियों पर
अट्टहास कर रहा था ।

✍️ इन्द्रदेव भारती
 "भरतीयम"
ए / 3, आदर्श नगर
नजीबाबाद- 246 763, जनपद बिजनौर,उ.प्र.
मोबाइल फोन नम्बर   99 27 40 11 11
indradevbharti5@gmail.com


शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ----माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है, मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है


माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है।

मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है।


जग के सम्बंधों ने, यह मन झुलसाया है।

पर तेरी ममता ने तो, मरहम ही लगाया है।

माँ! तेरा यह आँचल,जगती से न्यारा है।

मतलब की दुनिया में......................


यह मन मेरा दुखिया, माँ! इत-उत डोले है।

तेरी राहें तक-तक कर, ये नैना बोले हैं।

माँ! तेरा यह दर्शन,सबसे ही प्यारा है।

मतलब की दुनिया में.......................


जीवन में सुख-दुख तो, दिन-रैन से आते हैं।

पर माँ  तेरे सम्बल, मुझे पार लगाते हैं।

माँ! मेरा यह जीवन, तूने  संँवारा है।

मतलब की दुनिया में......................


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज 

बहजोई.( सम्भल) पिन 244410

मो. 9548812618

ईमेल-

deepakchirag.goswami@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना ----जगदम्बे का सज गया, घर घर में दरबार


जगदम्बे का सज गया, घर घर में दरबार । 

भक्ति भाव से शक्ति की, करिए जय जयकार ।।

आश्विन शुक्ला प्रतिपदा, शुभ तिथि दिन शनिवार।

शैलसुता मंगल करें, बाँटें सबमें प्यार ।।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल संत की रचना ----- मैया के द्वार चलो मैया के द्वार चलो, करने श्रंगार चलो लेके फूल हार चलो


मैया के द्वार चलो मैया के द्वार चलो 

करने श्रंगार चलो लेके फूल हार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

ऊंचे पहाड़ों पे मैया का बासा है, 

दर्शन के मैया की मन को अभिलाषा है 

मैया बुलाती है जय कारा मार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

सिंह की सवारी है वर मुद्रा धारी है 

लाल लाल चूनर में माँ की छवि न्यारी है 

मैया की ऐसी छवि तुम भी निहार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

मैया निराली है अष्ट भुजा बाली है 

कभी मात चंडी है कभी मात काली है 

मैया के रूपों को करते नमस्कार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

मैया ही नैना है मैया ही ज्वाला है 

मैया का वैष्णव रूप निराला है 

माँ की सब पीठों का करने दीदार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

चंड मुंड संहारे मधु कैटभ भी मारे 

माँ उसके दुख तारे आता जो माँ द्वारे 

तुम भी अब कष्टों से होने उद्धार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

✍️ सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त,रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला का मुक्तक ---सुख हो या दुख हो हर पल मां का ध्यान लगाता हूं

 


सुख हो या दुख हो हर पल मां का ध्यान लगाता हूं !

निर्मम समय के साज़ पर बस यही गुनगुनाता हूं !!

कोई खाये व्यापार की या सरकार की कमाई !

मुझे तो फक्र है मैं अपनी माँ का दिया खाता हूं !!

✍️अनुराग रोहिला, कटघर, मुरादाबाद 244001 मोबाइल फोन नम्बर 9837312131

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की रचना --माँ अष्ठ भुजा धारी,करें शेरों की सवारी ....



         माँ अष्ठ भुजा धारी,

          करें शेरों की सवारी ।

          श्रद्धा भक्ति और विश्वास

          मेरी यही अरदास ।

          बाकी सब बेकार,

          करो माँ इसे स्वीकार।

          दुनियां तुम पर बलिहारी,

          माँ अष्ठ भुजा धारी ।

          करे मेहर की जो छाया,

          कुंदन बन जाती काया।

          भागे दूर सभी अंधियारा,

          फैले चारों ओर उजियारा।

          संकट कट जायें सब भारी,

          माँ अष्ठ भुजा धारी ।

          संसार की तुम चालक,

          भक्तों की तुम पालक ।

          जो भी तुम को पुकारे ,

          होते उसके वारे न्यारे ।

          होती जब कृपा तुम्हारी,

          माँ अष्ठ भुजा धारी ।             

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद 244001

                       

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ---- आयी अश्वों पर सवार मैया ओढ़ चुनरी .....





 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की रचना ---- आज घर मां हमारे आई है ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ ज्ञानप्रकाश सोती की कविता ---गांधी जयंती । यह प्रकाशित हुई थी 56 वर्ष पूर्व हिन्दी साहित्य निकेतन सम्भल द्वारा प्रकाशित कृति तीर और तरंग में ....




::::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

लगभग 35 वर्ष पूर्व लिखा एक पत्र। यह पत्र 30 दिसंबर1985 को लिखा था मुरादाबाद के साहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी जी ने ।



 

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ''राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" की ओर से 14 अक्टूबर 2020 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की मासिक काव्य गोष्ठी 14 अक्टूबर 2020 को जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में संपन्न हुई । अध्यक्षता  योगेंद्र पाल विश्नोई  ने की। मुख्य अतिथि  रघुराज सिंह निश्चल  तथा विशिष्ट अतिथि केपी सरल  थे। सरस्वती वंदना रश्मि प्रभाकर ने प्रस्तुत की तथा मंच संचालन अशोक विद्रोही ने किया। 

 गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा-

जन्म मृत्यु आकर सिरहाने खड़ी

किन्तु जीवन का संघर्ष जारी रहेगा


रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने पढ़ा-

पंचशील के रथ से पहले, तुमने हाथ मिलाया।

विश्वास घात कर तुमने , अपने उर पर तीर चलाया।। 


अशोक विद्रोही  ने ओजपूर्ण कविता पढ़ी-

हम तेरे वीर जियाले मां, आगे ही बढ़ते जायेंगे।

एक रोज परम पद पर, माता तुझको बैठायेंगे ।।


रश्मि प्रभाकर ने कहा-

आंखों में उमड़े सपनों की, 

            जब हृदय तंत्र से ठनती है ।

तब जाकर निर्भीक लेखनी

              से एक कविता बनती है।।


वरिष्ठ कवि रघुराज सिंह निश्चल का कहना था -–

कहां तक चुप रहूं, कुछ भी न बोलूं।

 असत सत को निगलता जा रहा है।।


प्रशांत मिश्र ने कहा-

नैनो के नीर से जख्मों का

 दर्द कम नहीं होता।


केपी सरल ने पढ़ा-

नीड़ छोड़ शावक उड़े ,सभी मोह विसराय

काया  त्यागे जीव जो ,वापस कभी न आय।।


अरविंद कुमार शर्मा आनंद की ग़ज़ल थी----

जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।

सात ग़म के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

अंत में  योगेंद्र पाल विश्नोई ने आभार अभिव्यक्त किया। 











::::::::::प्रस्तुति::::::

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी) सुभाष राहत बरेलवी की लघुकथा ----बदलते रिश्ते

   


 जुम्मन की पूरी ज़िंदगी कोठे पर कट गयी थी, वहीँ पैदा हुआ। कौन बाप मालूम नहीं, न कोई साथी रहा, न कोई  बना पाया, बस कोठे पर सारंगी बजाते बजाते उम्र के  59 वर्ष के पड़ाव पर पहुँच गया।  रंजना को अभी आये कुछ माह ही हुए थे, वह सूंदर तो थी ही, मगर उसके स्वर में जैसे माँ सरस्वती का वास था । संगीत की विधिवत शिक्षा न होने पर भी  वह अभूतपूर्व आवाज़ की धनी थी। ऊपर से जुम्मन की सारंगी के स्वर के साथ मिलकर ऐसा लगता था पूरा कोठा संगीत में झूम रहा हो। रंजना हमेशा ग़मज़दा गज़ले ही सुनाती थी और लोग वाह्ह वाह्ह करते हुए रुपए पैसे की बौछार करते जाते। एक गुरुवार को कोठे पर कोहराम मचा था कि 59 साल का बुड्ढा लड़की को भगा ले गया। चारों  तरफ खोज़ जारी रही लेकिन उन्हें ज़मीन निगल गयी या पाताल, पता न लगा । कुछ माह बाद रेडियो से 'आपकी आवाज' नामक  कार्यक्रम में कोई अपने मधुर स्वर में गा रहा था ~~~~अगर दिलवर की रुस्वाई हमें मंजूर हो जाये............. तभी कोठे पर सभी ने कहा ..........अरे ये तो.. ......रंजना की आवाज लग रही है ..........................और ..........दूसरी तरफ़

शायद............बदनाम हुआ रिश्ता................ पवित्र रिश्ता बन चुका था.................

✍️ सुभाष रावत , बरेली

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा-----आँखें

   


 बहुत दिनों से प्रसाद सर गार्ड ऑफ ऑनर देने के लिए कैडेट्स को प्रैक्टिस करा रहे थे।संध्या बेस्ट कैडेट्स में से थी।उसकी ड्रिल काबिले तारीफ थी, लेकिन पता नहीं क्यों,प्रसाद सर खुश नहीं थे।सुबह से कई बार प्रैक्टिस करा चुके थे।हर बार अगेन कहकर फिर से मार्च कराते।पता नहीं अचानक क्या हुआ वह गुस्से में आगे बढ़े और उन्होंने संध्या के कन्धों को दोनों हाथों से पकड़ कर झिंझोड़ा,"सी इन माई आइज।देखो मेरी आँखों में।सीधे, सामने आँखों में।आखिर क्या परेशानी है तुम्हें?"

    संध्या की आँखे और भी झुक गयी,वह कोशिश करके भी उन्हें नहीं उठा पायी।प्रसाद सर थोड़ा संयत हुए और गहरी साँस भर कर बोले, "बेटा.... तुम्हारा ड्रिल इतना अच्छा है।पर कॉन्फिडेंस क्यों लेक है?तुम सामने आँख उठाकर मार्च क्यों नहीं करती हो?"

 लेकिन संध्या के कानों में तो उसके दादा जी की आवाज गूंँज रही थी,"आँखें नीची रखा कर छोरी।किसी दिन चिमटे से निकाल दूँगा"

✍️हेमा तिवारी भट्ट,मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी(जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---------- गर्मी

 


"बेगम, फाजला अब बड़ी हो गई है. उससे कहो कि घर मे भी दुपटटा ओढे रहा करे। क्योंकि घर मे कोई न कोई आता रहता है।"

"ठीक है जी" कहते हुए शाकिर मियां की बेगम ने सर पर पड़ा दुपट्टा ठीक करते हुए स्वीकृति में सर हिलाया।

बराबर के कमरे में खड़ी 13 साल की फाजला माँ बाप की बातें सुन रही थी लाइट  चले जाने पर वह कमरे से बाहर आई तो " उफ बड़ी गर्मी है।" कहते हुए शाकिर मियां अपना कुर्ता  उतारकर  खूंटी पर टांग रहे थे थोड़ी ही देर में गर्मी बढ़ी तो उन्होंने अपना तहमद भी उतारकर अलग रख दिया अब वह अंडर वियर और बनियान में लेटे हाथ से पंखा झल रहे थे जबकि भीषण गर्मी में फाजला की  अम्मी सर से दुपटटा ओढे हुए घर के काम काज निपटाने में लगी हुई थी फाजला कभी बाप की ओर देखती तो कभी अम्मी की ओर देखकर अपने आप से सवाल कर रही थी  "क्या मर्दो को ही गर्मी लगती है ?"


कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी( सम्भल)

 मोबाइल फोन नम्बर --- 9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---पत्थर


एक व्यक्ति पत्थर से टकरा कर गिर पड़ा बहुत चोट आई, तभी पत्थर बोला पता है हम यहाँ क्यों पड़े रहते हैं, वह इसलिए कि कोई हमसे टकराये और गिरे ।अब देखना यह है कि टकराकर कितने लोग सम्हलते हैं।जो नहीं सम्हलता वह टकराता रहेगा और गिरता रहेगा । जीवन का भी यही मूल मंत्र है । जो सम्हल गया बेड़ा पार जो नहीं सम्हलता वह गिरता रहेगा चोट खाता रहेगा । हम तो कल भी यहाँ पड़े थे आज भी यहीं पड़े हैं।

हाँ सम्हलने वालों की गिनती अवश्य करते रहते हैं -------!!

✍️ अशोक विश्नोई,मुरादाबाद

                         

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ------अवसर


रमेश ने साझा कविता संग्रह में प्रकाशित अपनी दो रचनाएँ बहुत गर्व से दिनेश को दिखाईं।कहा " देखो ! देश के प्रतिष्ठित संपादक मंडल ने मेरी दो रचनाओं को मेरे चित्र सहित प्रकाशित किया है । मैं कितना सौभाग्यशाली हूँ।"

       दिनेश ने साझा कविता संग्रह अपने हाथ में लिया। कुछु पृष्ठ पलटे और धीरे से मुस्कुराते हुए कहा "बात पैसों की थी। मेरे पास धन का अभाव था ,अन्यथा संपादक मंडल में भी मेरा नाम छप जाता !"

       रमेश का चेहरा यह सुनकर मुरझा गया, क्योंकि वास्तव में साझा कविता संग्रह में प्रकाशन का आधार पैसा था तथा सचमुच संपादक मंडल में उन लोगों के नाम शामिल किए जाने का प्रस्ताव था ,जो अधिक धनराशि देने के लिए तैयार थे ।

 ✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) 

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----- बदलते भाव

वह गर्दन झुकाए चुपचाप बैठा था कई उसी जैसे किसान आए और अपने अनाज का मोलभाव आडतिए से करके चले गए उनके चेहरों पर बेबसी और आडतिए के चेहरे पर ऎसे भाव थे जैसे कि उनका अनाज सस्ते में खरीद कर एहसान कर रहा हो. 

"अरे बड़े गंदे गेहूं हैं.... इनका तो दो रुपया कम ही लगेगा l" उस आडतिए ने मुट्ठी में गेहूं भरा और मूँह बनाते हुए तंबाकू की पीक मार दी एक तरफ l

"लेकिन बाबूजी देखो न कैसे मोती से गेहूं..... l" उसने अपने गेहूं की तरफ प्रेमभाव से देखते हुए कहा जैसे माता पिता अपनी संतान की तरफ देखती हैं l

"नहीं बेचना क्या? जाओ यहां से समय बर्बाद करने आ गया l" आडतिया डपटते हुए बोलाl

"नहीं बाबूजी बेचना है बेचना है उसकी आँखों में बेटी का विवाह बेटे की स्कूल फीस घर की टूटी छत और उसकी पूरी दुनियाँ घूम गई. 

" और हाँ एक कुंतल पर एक किलो छीज कटेगी... वो तोलने में कम हो जाता है न l"उसने फिर बेशर्मी से कहा l

"लेकिन बाबूजी रहेगा तो आपके पास ही जो कम होगा...!" 

"तू जा यहां से अब.... l" आडतिए ने फिर से झिड़का l

"ठीक है l" कहते हुए उसने अपनी बैलगाड़ी मोड़ दी और उसके पीछे औरों ने भी अब भाव दोनों बदलने वाले थे चेहरों के भी और अनाज के भी l


राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 

(

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा -----दूरदर्शिता


"थोड़ी देर पढ़ लिख लिया कर।सारे दिन खेल कूद मेेें लगा रहता है।पढ़ेगा नहीं तो बड़े होकर घर का काम करना पड़ेगा।"

शकुन्तला ने डांट लगाते हुए अपने छोटे बेटे राहुल से कहा।राहुल ने अपने बड़े भाई विजय,जो कि पढ़ाई पूरी करके तीन साल से नौकरी ढूंढ रहा था,की ओर देखा,फिर मां से बोला "ठीक है,आप मुझे पकोड़े बनाना सिखा दीजिए "

✍️ डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुवनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----नए ज़िलाधिकारी

 


आज रोहित जल्दी कलेक्ट्रेट आ गया ,नए ज़िलाधिकारी के आगमन की तैयारी जो  करनी थी ।रोहित कलेक्ट्रेट में  एक सम्मानित पद पर कार्यरत था ,नए ज़िलाधिकारी के 

आगमन की तैयारी वही कर रहा था ।उसने सुना था कि नए ज़िलाअधिकारी सख़्त है इसलिए वह पूरी कोशिश कर रहा था कि कोई कमी न रह जाए।

सब तैयारी हो गयी थी.........

ज़िलाधिकारी की गाड़ी कलेक्ट्रेट पर आ गयी थी ....

रोहित फूलों का बुके लेकर गाड़ी की ओर दौड़ा ।

‘योर मोस्ट वेलकम सर ’ रोहित ने कहा ।

जैसे ही उसने ज़िलाधिकारी को देखा ,उसे उनका चेहरा जाना पहचाना लगा.....

वह स्मृतियों में खो गया .....रमेश ...क्या ये रमेश है....जो सरकारी स्कूल में पढ़ता था जिसकी माँ हमारे यहाँ काम करने आती थी और जो मेरी कॉन्वेंट स्कूल की पुरानी किताब भी पढ़ने के लिए ले जाता था ......नहींं ,नहींं ....ऐसा नही हो सकता.......

अचानक उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा ,वह चौक गया। ज़िलाधिकारी महोदय.........जी... मैं वही रमेश हूँ ,रोहित जी ...सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला .....आपकी किताब .........

कैसे है आप ,बहुत सालों बाद मुलाक़ात हुई......

रोहित अभी तक पुरानी स्मृतियों में खोया था.........

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा -----पोता बनाम पिता

 


रामनाथ और दमयंती आज दोनों बहुत खुश थे। आज उनका बेटा-बहू विदेश से आये थे। छह माह के पोते को दोनों ने पहली बार देखा था और दोनों पोते पर अपना लाड़ लुटा रहे थे।

पोते को प्यार से गोद में हिलाते हुए रामनाथ अभी उसे पुचकार ही रहे थे कि पोते ने धार छोड़ दी जो उनके चेहरे और कपड़ों को भिगो गयी। अरे रे रे वाह वाह, मजा आ गया, तालियां पीटते हुए सब हँसने लगे। रामनाथ बोले, अरे कुछ नहीं; ये तो प्रसाद है जो दादी बाबा को मिलता ही है।

तभी अंदर के कमरे से पिताजी की आवाज आयी: बेटा जरा मुझे सहारा दे दो, बाथरूम जाना है।

अभी आया पिताजी । लेकिन जब तक पिताजी को वह बाथरुम तक लेकर जाते तब तक उनका पाजामा गीला हो गया था। यह देखते ही रामनाथ झुंझला पड़े: ये क्या पिताजी, थोड़ी देर भी नहीं रुक सकते थे। फिर से पाजामा गीला कर दिया । ऊपर से पूरे कपड़ों में बदबू अलग से भर गयी। 

पिताजी लाचारी से नजरें झुकाये रहे।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल नं• 9456641400

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ----अदिति

 


आज दिसम्बर की बीस तारीख सन् 2014 है को मैं और मेरी पत्नी डा सोनिया आहूजा (बी0ए0एम0एस0) ठिठुरते हुये दिल्ली के आनन्द बिहार बस स्टेण्ड पर एसी बस से उतरे। वहां हमने जस्ट डायल कम्पनी के माध्यम से पता किया कि आनन्द बिहार बस स्टैण्ड के निकट मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की कौन सी शाखा है। जस्ट डायल कम्पनी से हमें यह पता चला कि प्रीत बिहार में यहां से सबसे निकट मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा है। हमने बिना समय गवांये फौरन वहां के लिये आटो किया व जल्द ही कोचिग की ब्रांच पहुंच गये।

असल में मैं और मेरी पत्नी  मेरे बीमार चाचा जी की मिजाज पुर्शी के लिये दिल्ली आये थे, साथ ही हमारे जहन में अपनी बेटी अदिती अहूजा के लिये भविष्य में अच्छी कोचिंग, जोकि उसे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सहायक हो सके, का भी पता करने का था। ज्यादातर अपने मित्रगणों से सलाह के पश्चात मैं और मेरी पत्नि इस नतीजे पर पहुंचे कि यह इंस्टीट्यूट मेडिकल कोचिंग के लिये बेहतर विकल्प है।

हम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की प्रीत विहार की शाखा में पंहुचकर वहां के अधिकारी से मिले तब हमें उन्होंने यह बताया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग वह दसवीं क्लास के बाद करवाते हैं तथा दसवीं क्लास के दौरान वह एक स्कालरशिप परीक्षा का आयोजन करते हैं, जिसका नाम एन्थे हैं। उन्होंने हमसे सितम्बर माह में सम्पर्क करने को कहा जब अदिती दसवीं में हो तब। यह जानकारी हासिल कर हम लारेंस रोड स्थित अपने चाचा जी के आवास पर उनका हाल जानने पहुंच गये। इस बात को करीब एक वर्ष बीतने को था अदिती दसवीं में आ चुकी थी। हमें मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की एन्थे परीक्षा की बात ध्यान थी। परीक्षा का फार्म कैसे प्राप्त हो, यह बड़ी समस्या थी, तब हमारी बहन आरती डोगरा पत्नि श्री राजेश डोगरा निवासी चण्डीगढ़ ने वहां स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा से ऐन्थे का फार्म प्राप्त किया व स्पीड पोस्ट से हमें भेज दिया। अब ऐन्थे का फार्म भर कर हमें जमा करना था इसके लिये हमने कोचिंग इंस्टीट्यूट की मुख्य शाखा में फोन पर जानकारी हासिल की तो पता चला कि फार्म आप किसी भी मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा में जमा करवा सकते हैं। हमारे निकटतम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा मेरठ में थी अतः हमने फार्म मेरठ स्थित अपने मौसेरे भाई श्री राजेश अरोरा जी को स्पीड पोस्ट कर दिया, श्री अरोरा जी ने स्वंय कोचिंग इंस्टीट्यूट के ऑफिस जाकर ऐन्थे का फार्म जमा किया।

दिसम्बर 2015 में ऐन्थे की परीक्षा हुई जिसका परीक्षा केन्द्र मेरठ ही था, मैं और मेरे मौसेरे भाई श्री राजेश जी अदिती को लेकर परीक्षा केन्द्र पहुंचे व 3 घण्टे परीक्षा के दौरान वही बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगे। परीक्षा के उपरान्त अदिती ने बताया कि परीक्षा अच्छी हुई है। तत्पश्चात मैं और अदिती बिलारी बापस आ गये व अदिती अपनी दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गई।

जनवरी 10 या 15 2016 की बात थी मैं मोबाइल में नेट चला रहा था दिमाग में आया चलो अदिती ने जो एन्थे की परीक्षा दी थी उसे जांच लेते हैं कि परीक्षा फल कब आयेगा। मैंने मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की साइट चैक करी तो पता चला कि एन्थे का परीक्षाफल तो आ चुका है, मैं फौरन भागा-भागा अपने कमरे में आया व अदिती का प्रवेश पत्र निकाल कर उसका रोल नम्बर देखा व फिर दोबारा से मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की बेवसाइट चेक करी तो एन्थे का रिजल्ट मेरे सामने था, मैं पैनी नजरों से अदिती का रोल नम्बर ढूढ रहा था, मैंने पहले 50% , 60% , 70% , 80% स्कालरशिप कॉलमों में अदिती का रोल नं0 देखा परन्तु मुझे उसका  रोल नम्बर कही नहीं मिला। काफी खोजबीन करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि रोल नं0 डालकर भी सीधा परीक्षाफल प्राप्त किया जा सकता है। मैंने अदिती का रोल नम्बर इन्स्टीट्यूट की साइट में डाला तो उसका परीक्षाफल देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। अदिती को 100% स्कालरशिप मिला था व उसकी ऑल इण्डिया रैक ढेड लाख बच्चों में से 121रैंक  थी। इन्स्टीट्यूट में 100% स्कालरशिप का अर्थ करीब 3.50 लाख रूपये की छूट थी। घर में खुशी का माहौल था जैसे हमने आधा मैदान मार लिया  था। मैने मेडिकल कोचिंग के मुख्य शाखा दिल्ली में फोन कर अदिती का परीक्षाफल कन्फर्म किया तब उन्होंने मुझे बताया कि अदिती को 100% स्कालरशिप मिला है व अदिती को इस्टीट्यूट में एक रूपया भी नहीं देना है । बल्कि वह 11वी व 12वी में  दो वर्षों तक अदिती को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग करवायेगा। इसके साथ ही उन्होनें हमें पूरे भारत वर्ष में कोचिंग की किसी भी शाखा में फ्री (निशुल्क) कोचिंग का ऑफर दिया। मैंने उनसे सोचने के लिये कुछ वक्त मांगा कि कोचिंग कहा करवानी है, उन्होंने हमें 15-20 दिनों का वक्त दिया और कहा आप हमें सोच समझकर बता दें8। घर के सभी लोग अदिती के स्कूल से घर लौटने का इंतजार करने लगे ताकि उसे उसकी उपलब्धी से अवगत करा सके। अदिती के स्कूल से आते ही दादा, दादी, मम्मी, भाई पार्थ सबने उसे गले से लगा लिया व 100%  स्कालरशिप व पूरे भारत में कहीं भी मेडिकल कोचिंग की बात बताई। अदिती ने अपने चिर परिचित  अंदाज में कह दिया पापा वह पहले 10 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी करेगी, 

 परीक्षा के बाद ही मेडिकल कोचिंग का सोचेगी। अब घर में मंथन शुरू हुआ कि अदिती कोचिंग कहा करेगी। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि अदिती 10th डी०पी०एस०, मुरादाबाद से कर रही थी व हमारा 12वी भी वहीं से कराने का इरादा था। पता यह चला कि कोचिंग का समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक है, तो अदिती अपनी 11/12वी की पढ़ाई कैसे करेगी। कुछ मित्रो ने सलाह दी कि डमी एडमीशन कराकर कोचिंग करा सकते हैं। किन्तु इसके लिये मन नहीं माना। अपनी दुविधा मैंने इन्स्टीट्यूट की मुख्य शाखा दिल्ली में फोन करके बताई कि हमारा परिवार अदिती को दिल्ली की साउथ एक्स शाखा में कोचिंग कराना चाहता है, किन्तु डी0पी0एस0 मुरादाबाद में भी एडमीशन बरकरार रखकर 11°/12 वी करवाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव होगा। हमारी दुविधा को इंस्टीट्यूट वालो ने समझा व हमें यह सलाह दी कि वह वीकेन्ड  क्लास भी कोचिंग कराते है। उन्होने हमसे कहा कि आप डी0पी0एस0 मुरादाबाद में 11वी प्रवेश करा के सोमवार से शुक्रवार तक अदिती को पढ़ाकर शनिवार व रविवार को वीकेंड क्लासेस साउथ एक्स, दिल्ली शाखा में ज्वाइन करा सकते हैं। साथ ही उन्होनें यह भी कहा यह काम मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं है। मुझे उनकी वीकेंड क्लास वाली बात पसन्द आई व परिवार, मित्रों, अदिती को यकीन दिलाकर कि यही हमारे लिये सही है ,मैंने  जनवरी 2016 के अन्तिम सप्ताह स्वंय जाकर इन्स्टीट्यूट की साउथ एक्स शाखा में अदिती का रजिस्ट्रेशन करा दिया। उन्होनें हमें मार्च 2016 की अन्तिम सप्ताह से वीकेंड क्लास शुरू होने की बात कहीं व समय से आने का निर्देश दिया।

मार्च 2016 से अन्तिम सप्ताह में अदिती की वीकेंड क्लासेस शुरू हो गई, मैं और अदिती प्रत्येक शुक्रवार शाम 4.30 बजे बिलारी से बस से निकलते 5.15 पर कोहिनूर चौराहा, मुरादाबाद पहुंचकर 5.30 बजे एसी0 बस दिल्ली जाने वाली पकड़ लेते थे, एसी0 बस ठीक रात्री 9 बजे कौशम्बी (दिल्ली) बस स्डेण्ड पहुंच जाती थी, वहां से साउथ एक्स, दिल्ली का आटो पकड़कर आर0के0 लौज पंहुच जाते थे। शनिवार सुबह 8 बजे अदिती कोचिंग क्लास चली जाती थी और मैं सुबह 9.30 बजे तैयार होकर चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस सर्जीकल मार्केट चला जाता था। दोपहर 2.30 बजे अदिती की क्लास छूटती थी मैं भी 2.30 बजे तक सर्जिकल मार्केट से लौट आ जाता था। इसके बाद हम फोन पर बंगाली स्वीट को आडर देकर खाना मंगवाकर खाते थे। शाम 4.30 बजे तक आराम कर अदिती अपनी पढ़ाई में लग जाती , मैं भी कुछ किताब पड़ने या लिखने में लग जाता। रात्री 9.30 बजे मैं मैकडोनाल्ड से अदिती के लिये बर्गर आदि लाकर देता व कुछ हल्का फुल्का खुद खाकर 10 बजे तक सो जाता था। अदिती 12 या 1 बजे तक पढ़ती  रहती थी। व रविवार सुबह 8 बजे उठकर कोचिंग क्लास चली जाती। रविवार के दिन में सुबह 11 बजे तक तैयार होकर कमरा खाली कर देता था व सारा सामान आर0के0 लौज के रिस्पशन पर रखकर, सर्जिकल सामान की सप्लाई के लिये निकट के मार्केट जैसे, कोटला, लाजपतनगर, आईएनए आदि चला जाता था। करीब 2.15 बजे दोपहर तक मार्केट से वापस आकर लौज से सारा सामान उठाकर मैं इस्टीट्यूट के बाहर अदिती के आने का इंतजार करता व ठीक दोपहर 2.30 बजे जब उसकी छुट्टी होती तो हम आटो से कौशम्बी बस स्टेण्ड आ जाते, वहां हम 3.30 या 4 बजे शाम वाली एसी बस से मुरादाबाद आ जाते, फिर मुरादाबाद से बिलारी की बस पकड़ कर रात्रि करीब 9 या 10 बजे तक बिलारी पहुंचते थे। ऐसा रूटीन था हमारा शुक्रवार से रविवार के मध्य और ऐसा रूटीन अप्रेल 2016 से सितम्बर 2016 तक लगातार चला। हमारे कई मित्र जब इस रूटीन को सुनते तो ताजुब्ब करते थे और कहते थे कि आपने बहुत मुश्किल राह चुन ली है, मगर मुझे गीता की उस श्लोक का स्मरण था जिसका अर्थ है "कर्म कर फल की चिन्ता मत कर" सितम्बर 2016 तक हम हर सप्ताह दिल्ली आते रहे व अदिती की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। इस्टीट्यूट में होने वाले टेस्टों में अदिती अच्छा प्रदर्शन कर रही थी यह देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ती रही।

अचानक एक दिन सितम्बर 2016 के अन्तिम सप्ताह की बात है, अदिती घर में एक कमरे में लाइट बंद करके बैठी हुई थी। मैंने लाइट खोली तो देखा अदिती रो रही थी, मैंने अपनी पत्निी डा0 सोनिया आहूजा व माता जी को बुलाया व अदिती से रोने का कारण पूछां, अदिती ने रोते हुये कहा-पापा मैं बहुत थक जाती हूं व 11वी की पढ़ाई भी मैं ढंग से नहीं कर पा रही हूं। अदिती की बात सुनकर घर के सभी लोग स्तम्भ रह गये, लेकिन हमें अदिती की भावनओं को भी समझना था अतः हमने अदिती का पक्ष लेते हुये उसे समझाया कि हम सब उसके साथ वह अपनी पढ़ाई सम्बन्धी निर्णय लेने के लिये स्वतन्त्र हैं।इसके बाद सितम्बर 2016 से हमनें दिल्ली कोचिंग  की शाखा में जाना बन्द कर दिया। इधर अदिती भी अपनी 11वी की पढ़ाई में व्यस्त हो गई, दो तीन सप्ताह इस्टीट्यूट न जाने की बजह से हमें वहा से बार-बार फोन आने लगे कि आप क्यों नहीं आ रहे है। अदिती को एक माह लगातार 11वी  की पढ़ाई मुरादाबाद करने के बाद अपनी भूल का अहसास हुआ व एक दिन वो मेरे व सोनिया के पास आकर बोली पापा मैं कोचिंग पुनः शुरू करना चाहती हूं। हमारी खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि अदिती ने स्वंय कोचिंग करने को उसी शक्रवार से कोचिंग शुरू करने को कहा, हमने  उससे पूछा कि पिछले एक माह में जो कोचिंग का नुकसान हुआ है उसे वह किस प्रकार पूरा करेगी। अदिती ने कहा मैं दिल्ली से मुरादाबाद जाने वाली बस में चार घण्टे मोबाइल पर यूट्यूब क्लास ले लेगी व रात को भी देर तक पढ़कर अपने एक माह के नुकसान की भरपाई कर लेगी। हमें अदिती पर पूर्ण विश्वास था और हमने उसकी कोचिंग पुनः चालू करवा दी। उसके बाद चाहे एक दिन के लिये भी क्लास लगी अदिती ने कभी छुट्टी नहीं की।

इस प्रकार हम अक्टूबर 2017 तक प्रत्येक शुक्रवार को दिल्ली आते रहे कभी अदिती की मम्मी व कभी दादी भी समय-समय पर उत्साहवर्धन के लिये उसके साथ दिल्ली आती रही।

अक्टूबर 2017 तक अदिती ने अपनी कोचिंग क्लास मे  कक्षा  11 व 12* का पूरा कोर्स कर लिया उसके बाद मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की यह नियम था कि वह 11th का कोर्स दोबारा शुरू कर देते थे। अदिती ने हमसे कहा कि उसने 11 व 12* का कार्स अच्छे से कर लिया है। फिर 11th का कोर्स दोबारा करने के लिये वीकेंड पर आना जरूरी नहीं "मैं अच्छे से घर पर ही तैयारी कर पाउगीं।" हमने इस बार भी अदिती के निर्णय को प्रथमिकता दी व अक्टूबर 2017 से वीकेंड क्लास में आना बंद कर दिया।

अब अदिती ने घर पर ही तैयारी शुरू कर दी व अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2017 तक पूरी 11वी का कोर्स तैयार कर लिया। इसी बीच अदिती ने हमें बताया कि दिल्ली कोचिंग की भागदौड़ में वह 12th बोर्ड की परीक्षा की इंग्लिश की तैयारी नहीं कर पाई है। अदिती ने पहले यूट्यूब से इग्लिश की क्लास ली पर यूट्यूब में उसे काफी समय लग रहा था और बोर्ड परीक्षा काफी नजदीक थी। तब हमने मुरादाबाद एक अंग्रेजी की अध्यापिका जोकि काफी प्रतिष्ठित स्कूल में कार्यरत हैं उनसे मिलकर अपनी समस्या बताई। अदिती से मिलकर वो काफी प्रभावित हुई व उन्होनें अदिती को अंग्रेजी पढ़ाने का वादा किया। लेकिन उन्होने कहा कि वह कभी-कभी ही पढ़ा सकती है, हमने उनकी सभी शर्ते स्वीकर कर अदिती को वहां ट्यूशन शुरू कर दिया। अंग्रेजी की अध्यापिका ने 5 या 6 बार बुलाकर 3-3 घण्टे पढ़ाकर अंग्रेजी का 12 का कोर्स करा दिया परिणाम स्वरूप अदिती के 12 बोर्ड परीक्षा में पूरे स्कूल में अधिकतम नम्बर आये जो 96.4% थे। इसके अतिरिक्त अदिती ने पूरे जिले में चौथा स्थान प्राप्त किया।

अदिती 12वी की परीक्षा हो चुकी थी और वीकेंड क्लास जिसमें हम पिछले दो वर्षों से जा रहे थे उसकी मुख्य परीक्षा नीट 2018 भी होने वाली थी, चूंकि अदिती ने अक्टूबर 2017 से कोचिंग सेन्टर जाना बंद कर दिया था, अतः हमने परीक्षा के बीच करीब एक माह के समय में अदिती क्रेश कोर्स कर ले ताकि उसने जो भी दो वर्षों में तैयारी की है उसका रिविजन हो जाये। इसके लिये अदिती ने क्रेश कोर्स र्हेतु फिर स्कालरशिप की परीक्षा दी जिसमें उसे 80% स्कालरशिप मिली, हमने बाकी की 20% फीस देकर अदिती का क्रेश कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा दिया।

चूंकि क्रेश कोर्स प्रतिदिन होना था, अतः हमने यह निर्णय लिया कि 12th की बोर्ड परीक्षा के तुरन्त बाद मैं अदिती के साथ दिल्ली में एक माह रहकर क्रेश कोर्स पूर्ण

करवाऊगां। जब क्रेश कोर्स से पूर्व हम दिल्ली पहुंचे तो हमें इन्स्टीट्यूट की शाखा से पता चला कि इस्टीट्यूट की तरफ से जो हमने दो वर्षों तक वीकेन्ड क्लास की थी उस पूरे कोर्स के 12 टेस्ट नीट 2018 से पहले लिये जायेगें। हम फिर दुविधा में फंस गये कि क्रेश कोर्स करे या 12 टेस्ट दें। हमने अदिती से उसकी राय पूछी तो उसने कहा कि हम जो कोर्स करने दिल्ली आये थे, उसे ही पूरा करेगें व उससे सम्बन्धित 12 पेपर देगें। अगर समय बचा तो क्रेश कोर्स के अन्त में मुख्य टेस्ट दे देगें। हमने एक बार अदिती के निर्णय को प्राथमिकता दी व नीट 2018 से पूर्व 12 टेस्ट दिये।

अंत में नीट 2018 के पेपर का दिन भी आ गया, उस पेपर का केन्द्र हमने दिल्ली ही रखा था ताकि अन्तिम समय में हमें इधर-उधर न भागना पड़े। पेपर से ठीक एक दिन पहले अदिती की मम्मी भी दिल्ली पहुंच गई ताकि अदिती का उत्साह वर्धन हो सके। अदिती का पेपर बंसत बिहार स्थित  हरकिशन पब्लिक स्कूल में हुआ पेपर सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक था, मैं और सोनिया बाहर कड़कती धूप में इंतजार करते रहे, ठीक 1 बजे अदिती का पेपर खत्म हुआ बाहर आकर उसने हमसे कहा कि पेपर ठीक हो गया है। हमने ईश्वर का धन्यवाद दिया व चैन की सांस ली। उसके बाद हम आर0के0 लौज पहुंचे व अपना सारा सामान समेटकर बस द्वारा बिलारी की ओर रवाना हो गये व रात्रि 10 बजे तक बिलारी पहुंच गये।

अगले दिन अपने दो वर्षों की थकान मिटाकर सुबह सब तैयार बैठे थे, सभी ने परम पिता परमेश्वर से आर्शीवाद लेने का निर्णय किया व अदिती को लेकर हम मन्दिर पौड़ा खेड़ा पहुंचे व शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ईश्वर से आर्शीवाद प्राप्त किया। मन्दिर से लौटकर मैंने अदिती को नेट से नीट 2018 की उत्तर कुंजी निकाल कर दी व उससे बिल्कुल सटीक नम्बर गिनने को कहा। अदिती ने तुरन्त ही उत्तर कुंजी से नम्बर गिनने शुरू किये व इस निष्कर्ष पर पहुंची थी उसके 581 से 590 नम्बर बीच नीट 2018 में आ जायेगें। यह सुन हमारा पूरा परिवार संतुष्ट हो गया कि अदिती अब डॉक्टर बनने के करीब है बस नीट 2018 के रिजल्ट आना बाकी है। अब वो दिन भी आ चुका था जब नीट 2018 का रिजल्ट आना था, असल में नीट ने पहले 5 जून 2018 रिजल्ट को कहा था, मैंने अनायास ही 4 जून 2018 को इन्स्टीट्यूट की शाखा दिल्ली में फोन कर लिया व पूछा कि नीट का रिजल्ट कब आयेगा, तब उन्होनें मुझे बताया कि

नीट 2018 का परीणाम आज ही आने वाला है। मैंने तुरन्त अदिती को तैयार होकर परम पिता से आर्शीवाद लेने को कहा, तत्पश्चात मैं व अदिती अपने घर के समीप गुल प्रिंटर्स पर रिजल्ट देखने पहुंचे, वहां पता चला कि रिजल्ट आ चुका है ।अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 उन्हें बताया तब उन्होनें जैसे ही अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 कम्प्यूटर में डाला तो रिजल्ट स्क्रीन पर था अदिती के 581 नम्बर आये थे और उसकी ऑल इण्डिया रैंक 2988 थी अब वह डॉक्टर बन चुकी थी। मेरे व अदिती की आंखो से आंसू निरन्तर बह रहे थे, हमारी दो वर्षों की मेहनत सफल हो चुकी थी।  वहां खड़े सभी लोगों ने हमें ढेरो शुभकामनायें दी, हम नीट 2018 के रिजल्ट का प्रिंट आउट लेकर घर आ गये और ये खुश खबरी पूरे परिवार को बता दी। इसके बाद दोपहर एक 1 बजे से रात्रि 10 बजे तक फोन पर व व्यक्तिगत रूप से पूरे बिलारी के हमारे सभी मित्रों ने बधाई दी। पूरे परिवार में सभी हंस खुशी के पल में आंसू भी बहा रहे थे, ये खुशी के आंसू थे क्योंकि यह सफलता 2 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद अर्जित हुई थी।

नीट 2018 के रिजल्ट के बाद काउंसलिंग का दौर शुरू हुआ जो करीब दो माह तक चला जिसमें अदिती को स्टेट काउंसिलिंग के माध्यम से कानपुर मेडिकल कालेज जी0एस0वी0एम0 में दाखिला मिला, चूंकि अदिती की स्टेट रैंक 263 व ऑल इण्डिया रैंक 2988 रही इस कारण अदिती अपनी पंसद का कॉलेज चुनने में भी सफल रही। आज अदिती जी०एस०वी०एम० मेडिकल कालेज, कानपुर में एम0बी0बी0एस की पढ़ाई कर रही है और अपना भविष्य संवारने के लिये प्रयासरत है, मैं उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। लेकिन जंग अभी जारी हैं........

इस प्रेरणा दायक कहानी लिखने का मेरा मकसद कोई सहानूभति लेना नहीं है, मैं बस इतना चाहता हूं कि इसे पढ़कर यदि एक छात्र भी प्रेरित होकर अपना भविष्य संवार पाये तो मेरा प्रयास सफल होगा।

✍️विवेक आहूजा, बिलारी ,जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ------जब आवै संतोष धन

 


धक्का- मुक्की, तू तू-मैं मैं करते लोग एक दूसरे के ऊपर चढ़ने को तैयार तथा किसी भी सूरत से टिकिट पाने की आतुरता ने आदमी का विवेक भी शून्य करके रख दिया था।कभी-कभार तो गाली गलौज के साथ अभद्रता का नग्न प्रफ़र्शन करने से भी नहीं चूक रहे थे।

 तभी एक वृद्ध व्यक्ति ने पास जाकर इसका कारण जानने का प्रयास किया तो पता चला कि उस पिक्चर हॉल में 'जय संतोषी माँ' पिक्चर कल ही लगी है और हर कोई उसके पहले शो का पहला टिकिट पाने की जुगाड़ में लगा है।

          उन महानुभाव ने अपना माथा पीटते हुए कहा ये लोग कितने अज्ञानी हैं ये इतना भी नहीं समझना चाहते कि जिस पिक्चर को देखने के लिए इन्होंने इंसानियत की सारी हदें पार करके अपने संतोष को ही तिलांजलि दे दी है। 

  कम से कम फ़िल्म के टाइटिल को ही गौर से पढ़ लेते।

मैंने तो पूर्वजों को यहीकहते सुना है कि ''जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान''     

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,  मुरादाबाद/उ,प्र,

 मो-  9719275453

   

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा -----मेहंदी


निशा को बचपन से ही बहुत शौक था मेहंदी लगाने का। करवाचौथ, तीज व रक्षाबंधन की दिन सभी उसके आसपास वाले उसे एक-दो दिन पहले से ही मेहंदी लगवाने के लिए तैयार रहते थे।आखिर निशा मेहंदी ही इतनी सुंदर व लाजबाव लगाती थी। सबसे अंत में निशा  अपने मेहंदी लगाती थी पूरे- पूरे हाथ भर कर। एक हफ्ते तक कोई काम नहीं करना चाहती कि कहीं मेहंदी का रंग फीका ना पड़ जाए। आज उसकी तीसरी करवा चौथ है बस यही सोच रही थी कि कमरे में आवाज आई "निशा मेहंदी लगा लो।"निशा की सासू मां ने कहा "जी मां जी रसोई का थोड़ा काम निपटा लूं और रोहन को सुला दो तभी मेहंदी लगाऊंगी। रात के 11:00 बज चुके थे। निशा मन ही मन सोच रही थी‌ अभी तो खाना भी खाना है रोहन भी नहीं सोया, अभी काम भी पड़ा है पता नहीं कब लगा पाऊंगी मेहंदी घर का काम निपटाने और रोहन को सुलाने में 12:30 बज चुके थे। निशा इतना थक कर चूर हो चुकी थी कि उसमें मेहंदी लगाने की हिम्मत भी ना थी पर शगुन तो करना था।अब शरीर जवाब दे चुका था आँखो को नींद अपने आगोश में ले रही थी। निशा ने पानी से मुँह धोया और मेहंदी का कोन देकर बैठ गई और जरा देर सोचा और फिर सुंदर गोल बड़ी सी बिंदिया बनाकर उसके चारों ओर छोटी-छोटी बिंदिया लगा दी। अब निशा उसे ही निहार रही थी जैसे उस से सुंदर मेहंदी उसने आज तक ना लगाई हो यह मेहंदी थी उसकी पारिवारिक जिम्मेदारियों की, यह  मेहंदी थी उसकी व्यस्तता की, यह मेहंदी थी उसकी ओझल होती हुई आशाओं की, यह मेहंदी थी उसके संपूर्ण ग्रहस्थ जीवन की  पर वह खुश है और निहार रही है उस गोल बिंदिया को अपलक क्योंकि यह निशानी है उसके सुहाग की।

✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद,  उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- बोझिल परम्पराएं

 


भाभी मुझे पैसे दे दो मुझे जरुरत आन पड़ी है 

मैंने कल दीदी से भी बोला था आप स्कूल गईं हुईं थीं ,मुझे आज पाँच सौ रुपए दे दो ।मैं थोड़ी झुंझलायी कि यह हमेशा ही यही करती है ,महीना पूरा होने नही देती, बीस तारीख को ही तकाज़ा हाजिर रहता है ।रानी मैंने तुमसे कई बार कहा कि महीना पूरा तो होने दिया करो ।

भाभी मेरा महीना तो बीस को ही होता है ,वहबोली ।

पिछले दिनों जब लाॅकडाउन चल रहा था, मैंने तुम्हे तीन महीने बिना काम के ही पैसे दिए थे या नही ,दिए थे और तुम बीस तारीख का ही रोना लिए रहती हो ।दस दिन तुम उसी में एडजेस्ट कर लो और न जाने कितनी बार तुम लम्बी लम्बी छुट्टियाँ कर लेती हो ,तो ???  मैंने कभी तुम्हारे पैसे काटे ??

काम बाली बाई रानी चुपचाप सुन रही थी ,बोली ,ना भाभी मेरे घर सास की बरसी है उसी के सामान के लिए मुझे चाहिए ।मेहमान आयेंगें ,रिश्तेदार आयेंगें और हमारे यहाँ ननदों को कपड़े लत्ते देकर विदा किया जाता है ।पण्डित जी जीमेंगें ।सामान बगैहरा दिया जायेगा ,बहुत खर्चा है ।

मेरा लहजा कुछ ठंडा पड़ चुका था ।मैं बोली , ऐसे हालात में तुम्हे इतना सब क्यों करना है ? तुम्हारा आदमी इतने दिनों से काम धंधे से छूटा पड़ा था ,तीन -तीन बेटियाँ हैं ,कैसे करोगी यह सब ?

भाभी जी लोकलिहाज को करना ही पड़ेगा । हमारे जेठ तो खत्म हो गए तब से जेठानी तो कुछ खर्चा करती नही और देवर करना नही चाहता , वह तो सास की एक कोठरी हड़पने की चाहत में नाराज़ हुआ बैठा है ,तो बचे हम । हम भी न करेंगें तो बताओ बिरादरी बाले क्या कहेंगें । सासु जी की आत्मा भी हमें ही कोसेगी ।करना तो पड़ेगा ही ।खैर मैं ज्यादा और सुनने के मूड में नही थी ।मैंने उसे पैसे दिए और अपने काम में व्यस्त हो गई ।

मैं इस धार्मिक महाभोज के बारे में सोचने लगी कि बताओ ये गरीब मजदूर वर्ग भी अपने ये रस्मोरिवाज़ दिन रात मेहनत करके , पाई पाई जोड़कर या हो सकता है कि अपने काम से एडवांस ले लेते हों तब भी भरसक निभाना चाहता है ।अपनी इन पुरातन परम्पराओं का बोझ मेरे मन पर भी भारी होने लगा हालांकि हम भी यही सब करते ही आ रहें हैं ।

✍️मनोरमा शर्मा, अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-----मी टू


     "चंदू यह 'मी टू' क्या है?"- -लल्लू ने भोलेपन में मालूम किया ।

     "आजकल टी वी वाले बहुत दिखा रहे हैं ।" -- कहते हुए चंदू ने बताया --"ऐसा कानून जिसमें महिला ने अपने हित के लिए किसी पुरूष से अनैतिक शारीरिक संबंध बना लिये हों और तब अपना मुंँह बंद रखा हो । जिसकी शिकायत पुलिस में कई वर्ष बाद भी की जा सकती हो ।"

   लल्लू ने आश्चर्य से कहा -- "महिला ने तब शिकायत क्यों नहीं की ? जबकि महिलाओं के हित में अनेक कानून हैं। फिर कानून में हर शिकायत की समय सीमा भी तय की हुई है । यह कैसा 'मी टू' ?"

     चंदू हंस दिया -- "यह कानून बड़े लोगों के लिए है ।"

✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर

        




मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----किराएदार

     


शरद की आयु पैतीस साल हो चुकी है।उसका जन्म इसीघर मे हुआ था।बचपन से वह उसेही अपना घर समझता था।मगर जब मालिक मकान आकर किराए का तकादा करता तब उसे समझ आया कि वह किराए दार है ।वह घर उनका नहीं।मामूली से किराए के घर मे वह लगभग 50साल से  दादा के समय से रह रहे थे।मकान मालिक की मृत्यु के बाद उसके बेटो ने जब मकान खाली करने को कहा तो वह साफ मुकर गया।मुकदमा भी किया।दो वर्ष निकल गये।थककर मकान मालिक के बेटो ने समझौता करना उचित समझा। 5लाख मेंं सौदा पट गया।आज वह घर छोडकर जा रहा था। उसने अपना मकान बनाने का इरादा छोड दिया।उसे समझ में आ गया कि किराएदार बने रहने मे ही फायदा है।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा---- -सरकारी अनाज


"नहीं नहीं आपके गेहूं का ये रेट नहीं मिलेगा, आपके गेहूं में बहुत कबाड़ है। आपको 20 परसेंट काट कर रेट मिलेगा", सरकारी तौल पर अधिकारी ने किसान से ऊँची आवाज में कहा।

"लेकिन हुज़ूर इस बोरी में तो वह गेहूं है जो हर महीने राशन कोटे से हमें मिलता है।

पिछले चार महीने से यही गेहूं मिल रहा है राशन में, और इसे घर में सबने खाने  से मना कर दिया; जबकि हम किसानों का अनाज तो तीन तीन बार छान कर भी 10 से 20 परसेंट काट कर रेट दिया जाता है", किसान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ---कर्मों का फल

 


आज सुबह ही मैं अपनी छत पर खड़ी बाहर निहार रही थी ,रात ही तो खूब अच्छी बारिश पड़ी थी ,पार्क के चारो तरफ के पेड़ मानो अपनी हरियाली पर इठला रहे थे जैसे कह रहे हो हमने अपना पुराना कलेवर बदल कर नया कलेवर पहन लिया है दो चार बच्चे पार्क में झूला झूल रहे थे । जब से कोरोना का आतंक लोगो मे बैठा है कम ही लोग बाहर निकलते , न पहले की तरह चहल पहल रहती ,न ही कोई किस्सा गोई ।सब मिलते एक दुसरे का हाल जाना और घरों में अंदर हो जाते तभी मेरी नजर मेघा पर पड़ी ये वो  ही मेघा थी ,जो किसी जमाने मे अपने घर  की रानी हुआ करती थी पढ़ी लिखी देखने में भली लेकिन कर्मों का फल नही तो क्या ,आज दर दर की ठोकरे खाने के लिये मजवूर है ।बच्चों ने घर से बाहर ऐसा निकाला ,कि दोबारा मुड़ कर न देखा।पार्क की एक बैंच पर बैठी वो अकेली झित्रिय के उस पार कुछ ढूंढ़ने का प्रयास कर रही थी लेकिन उसकी सुनी सुखी आँखे उसे धोखा दे रही थी ।मैं खड़ी सोच रही थी ,जब कोरोना काल में इतनी ऐहतियात बरतने के दिशा निर्देश दिए जाते है ,बार बार हाथ धोने मास्क पहनने की हिदायतें दी जाती है ।तो भला इसे ये सब बताने के लिए कौन कहेगा, ये इसे भगबान का सहारा नही तो क्या है ,कि बिना किसी साफ सफाई व सतर्कता के भी ये निश्चत हो अपने कर्मो का फल भोग रही है ।सच ही कहा गया है कर्मो का फल आज नही तो कल भोगना अवश्य पड़ता है

✍️शोभना कौशिक, बुद्धि विहार , मुरादाबाद