बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा -----पोता बनाम पिता

 


रामनाथ और दमयंती आज दोनों बहुत खुश थे। आज उनका बेटा-बहू विदेश से आये थे। छह माह के पोते को दोनों ने पहली बार देखा था और दोनों पोते पर अपना लाड़ लुटा रहे थे।

पोते को प्यार से गोद में हिलाते हुए रामनाथ अभी उसे पुचकार ही रहे थे कि पोते ने धार छोड़ दी जो उनके चेहरे और कपड़ों को भिगो गयी। अरे रे रे वाह वाह, मजा आ गया, तालियां पीटते हुए सब हँसने लगे। रामनाथ बोले, अरे कुछ नहीं; ये तो प्रसाद है जो दादी बाबा को मिलता ही है।

तभी अंदर के कमरे से पिताजी की आवाज आयी: बेटा जरा मुझे सहारा दे दो, बाथरूम जाना है।

अभी आया पिताजी । लेकिन जब तक पिताजी को वह बाथरुम तक लेकर जाते तब तक उनका पाजामा गीला हो गया था। यह देखते ही रामनाथ झुंझला पड़े: ये क्या पिताजी, थोड़ी देर भी नहीं रुक सकते थे। फिर से पाजामा गीला कर दिया । ऊपर से पूरे कपड़ों में बदबू अलग से भर गयी। 

पिताजी लाचारी से नजरें झुकाये रहे।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल नं• 9456641400

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