बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा-----आँखें

   


 बहुत दिनों से प्रसाद सर गार्ड ऑफ ऑनर देने के लिए कैडेट्स को प्रैक्टिस करा रहे थे।संध्या बेस्ट कैडेट्स में से थी।उसकी ड्रिल काबिले तारीफ थी, लेकिन पता नहीं क्यों,प्रसाद सर खुश नहीं थे।सुबह से कई बार प्रैक्टिस करा चुके थे।हर बार अगेन कहकर फिर से मार्च कराते।पता नहीं अचानक क्या हुआ वह गुस्से में आगे बढ़े और उन्होंने संध्या के कन्धों को दोनों हाथों से पकड़ कर झिंझोड़ा,"सी इन माई आइज।देखो मेरी आँखों में।सीधे, सामने आँखों में।आखिर क्या परेशानी है तुम्हें?"

    संध्या की आँखे और भी झुक गयी,वह कोशिश करके भी उन्हें नहीं उठा पायी।प्रसाद सर थोड़ा संयत हुए और गहरी साँस भर कर बोले, "बेटा.... तुम्हारा ड्रिल इतना अच्छा है।पर कॉन्फिडेंस क्यों लेक है?तुम सामने आँख उठाकर मार्च क्यों नहीं करती हो?"

 लेकिन संध्या के कानों में तो उसके दादा जी की आवाज गूंँज रही थी,"आँखें नीची रखा कर छोरी।किसी दिन चिमटे से निकाल दूँगा"

✍️हेमा तिवारी भट्ट,मुरादाबाद

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