जुम्मन की पूरी ज़िंदगी कोठे पर कट गयी थी, वहीँ पैदा हुआ। कौन बाप मालूम नहीं, न कोई साथी रहा, न कोई बना पाया, बस कोठे पर सारंगी बजाते बजाते उम्र के 59 वर्ष के पड़ाव पर पहुँच गया। रंजना को अभी आये कुछ माह ही हुए थे, वह सूंदर तो थी ही, मगर उसके स्वर में जैसे माँ सरस्वती का वास था । संगीत की विधिवत शिक्षा न होने पर भी वह अभूतपूर्व आवाज़ की धनी थी। ऊपर से जुम्मन की सारंगी के स्वर के साथ मिलकर ऐसा लगता था पूरा कोठा संगीत में झूम रहा हो। रंजना हमेशा ग़मज़दा गज़ले ही सुनाती थी और लोग वाह्ह वाह्ह करते हुए रुपए पैसे की बौछार करते जाते। एक गुरुवार को कोठे पर कोहराम मचा था कि 59 साल का बुड्ढा लड़की को भगा ले गया। चारों तरफ खोज़ जारी रही लेकिन उन्हें ज़मीन निगल गयी या पाताल, पता न लगा । कुछ माह बाद रेडियो से 'आपकी आवाज' नामक कार्यक्रम में कोई अपने मधुर स्वर में गा रहा था ~~~~अगर दिलवर की रुस्वाई हमें मंजूर हो जाये............. तभी कोठे पर सभी ने कहा ..........अरे ये तो.. ......रंजना की आवाज लग रही है ..........................और ..........दूसरी तरफ़
शायद............बदनाम हुआ रिश्ता................ पवित्र रिश्ता बन चुका था.................
✍️ सुभाष रावत , बरेली
मेरी लघुकथा प्रकाशित करने हेतु डॉ मनोज रस्तोगी साहब का ह्रदय से आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण लघुकथा,।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीया मधुलिका जी ।
जवाब देंहटाएंडॉ मनोज रस्तोगी
9456687822