बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा -----मेहंदी


निशा को बचपन से ही बहुत शौक था मेहंदी लगाने का। करवाचौथ, तीज व रक्षाबंधन की दिन सभी उसके आसपास वाले उसे एक-दो दिन पहले से ही मेहंदी लगवाने के लिए तैयार रहते थे।आखिर निशा मेहंदी ही इतनी सुंदर व लाजबाव लगाती थी। सबसे अंत में निशा  अपने मेहंदी लगाती थी पूरे- पूरे हाथ भर कर। एक हफ्ते तक कोई काम नहीं करना चाहती कि कहीं मेहंदी का रंग फीका ना पड़ जाए। आज उसकी तीसरी करवा चौथ है बस यही सोच रही थी कि कमरे में आवाज आई "निशा मेहंदी लगा लो।"निशा की सासू मां ने कहा "जी मां जी रसोई का थोड़ा काम निपटा लूं और रोहन को सुला दो तभी मेहंदी लगाऊंगी। रात के 11:00 बज चुके थे। निशा मन ही मन सोच रही थी‌ अभी तो खाना भी खाना है रोहन भी नहीं सोया, अभी काम भी पड़ा है पता नहीं कब लगा पाऊंगी मेहंदी घर का काम निपटाने और रोहन को सुलाने में 12:30 बज चुके थे। निशा इतना थक कर चूर हो चुकी थी कि उसमें मेहंदी लगाने की हिम्मत भी ना थी पर शगुन तो करना था।अब शरीर जवाब दे चुका था आँखो को नींद अपने आगोश में ले रही थी। निशा ने पानी से मुँह धोया और मेहंदी का कोन देकर बैठ गई और जरा देर सोचा और फिर सुंदर गोल बड़ी सी बिंदिया बनाकर उसके चारों ओर छोटी-छोटी बिंदिया लगा दी। अब निशा उसे ही निहार रही थी जैसे उस से सुंदर मेहंदी उसने आज तक ना लगाई हो यह मेहंदी थी उसकी पारिवारिक जिम्मेदारियों की, यह  मेहंदी थी उसकी व्यस्तता की, यह मेहंदी थी उसकी ओझल होती हुई आशाओं की, यह मेहंदी थी उसके संपूर्ण ग्रहस्थ जीवन की  पर वह खुश है और निहार रही है उस गोल बिंदिया को अपलक क्योंकि यह निशानी है उसके सुहाग की।

✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद,  उत्तर प्रदेश

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