शरद की आयु पैतीस साल हो चुकी है।उसका जन्म इसीघर मे हुआ था।बचपन से वह उसेही अपना घर समझता था।मगर जब मालिक मकान आकर किराए का तकादा करता तब उसे समझ आया कि वह किराए दार है ।वह घर उनका नहीं।मामूली से किराए के घर मे वह लगभग 50साल से दादा के समय से रह रहे थे।मकान मालिक की मृत्यु के बाद उसके बेटो ने जब मकान खाली करने को कहा तो वह साफ मुकर गया।मुकदमा भी किया।दो वर्ष निकल गये।थककर मकान मालिक के बेटो ने समझौता करना उचित समझा। 5लाख मेंं सौदा पट गया।आज वह घर छोडकर जा रहा था। उसने अपना मकान बनाने का इरादा छोड दिया।उसे समझ में आ गया कि किराएदार बने रहने मे ही फायदा है।
✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद
वर्तमान समय की बदली हुई परिस्थितियों तथा तदनुनुरूप मानसिकता को दर्शाती हुई शानदार सामाजिक लघुकथा.. बधाई डॉक्टर श्वेता पूठिया जी
जवाब देंहटाएंरवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451
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