मैं,
देख रहा हूँ
उसका कद बड़ा होते हुए
मैं,
देख रहा हूँ-चुपचाप
दूसरों की मज़ाक बनाते हुए
मैं,
देख रहा हूँ
अपने को बड़ा साबित
करते हुए
मैं,
देख रहा हूँ
विनम्रता के साथ
कुटिलता की चौसर
खेलते हुए,
मैं,
देख रहा हूँ
चमचागिरी से उपर उठते हुए
मैं,
देख रहा हूँ
मठाधीशों की चरण रज
माथे पर लगाते हुए,
हाँ मैं,
देख रहा हूँ
गुटबाजी में सबसे आगे
जबकि,
मैनें, देखा था उसे
आयोजनों में मुरझाये
चेहरे के साथ
पीछे की पंक्ति में बैठे हुए
मैनें,देखा था
उसका वजूद जो
उस समय न के समान था
मैनें, देखा है
अपने हितों के लिए
धोखा देते हुए
आज
वो विद्वान है ।
जी हजूरी में महान है ।
वह
बड़ी चालाकी से
मीठे शब्दों की
बहाता है गंगा।
जबकि मैनें देखा है
उसको हम्माम में नँगा।।
✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
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