बुधवार, 29 दिसंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की रचना --यहां भग्न मूर्ति का भाग हूं । यह रचना उन्होंने अपने दिल्ली प्रवास के दौरान लिखी थी । हमें यह रचना उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने ।


मैं शिकारियों से घिरा हुआ, 

मैं थके हिरन सा डरा हुआ,

किसी राजधानी में खो गया,

मुझे क्या हुआ, मुझे क्या हुआ।


वहां लिख रहा था कहानियां,

वहां खोजता था निशानियां,

वहां कर रहा था खुदाइयां,

जहां ज्ञान-धन था दबा हुआ।


हैं पुरावशेष रखे जहां,

मृण्पात्र-शेष रखे जहां,

मुझे उस मकां का पता तो दो,

है बुतों से ही, जो सजा हुआ।


यह नया शहर भी अजीब है,

यहां हर शरीफ़ ग़रीब है,

यहां हर निगाह है अजनबी,

है सभी में ज़हर घुला हुआ।


वहां शब्द-शब्द का अर्थ था,

वहां शब्द-शब्द समर्थ था,

यहां आके सब ही भुला चुका,

वहां पुस्तकों का पढ़ा हुआ।


वहां मूर्ति थी किसी यक्ष की,

वहां यक्षिणी मेरे वक्ष थी,

यहां भग्न मूर्ति का भाग हूं,

ना जुड़ा हुआ, ना ढला हुआ।


वहां तितलियों को सुगंध दी,

वहां ज़िंदगी मेरी छंद थी,

यहां डाल-टूटा गुलाब हूं,

ना झरा हुआ, ना खिला हुआ।


वहां आंचलों ने सजा दिया,

यहां आंधियों ने हिला दिया,

मैं वो बदनसीब चिराग हूं,

ना धरा हुआ, ना जला हुआ।


✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र

::::प्रस्तुति::::::

अतुल मिश्र

सुपुत्र स्मृतिशेष सुरेंद्र मोहन मिश्र

चन्दौसी, जिला सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत


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