मातादीन : (खलासी)
मंगलपांडे : (अंग्रेजी फौज में भारतीय सैनिक)
काली पलटन के दो अन्य सैनिक : इब्राहिम और राम सरन
जेम्स मैथ्यू : अंग्रेज अधिकारी
( अंक 1)
दृश्य एक, समय दोपहर
( मेरठ छावनी परिसर ,मार्च सन् 1857 )
( मातादीन, छावनी में पसीने से तरबतर पानी पीने की दिशा में जा रहा है, तभी रास्ते में मंगल पांडे जिनके हाथ में पानी का लोटा है, उसे मिलते हैं )
मातादीन : राम राम पांडे जी! (गले में पड़े गमछे से पसीना पोंछता हुए)
मंगलपांडे : राम -राम, क्या हालचाल हैं ?
मातादीन : अच्छे है जी, आप बताओ... ?
मंगलपांडे : (अपनी मूंछों को ताव देते हुए) हम भी मज़े में हैं... कल अखाड़े में एक गोरे को पछाड़ा है.. ससुर का नाति बहुत जोस दिखा रहा था... ! !
मातादीन : कभी हम से भी पहलवानी आज़माओ तो जाने कितना जोस है तुम्हारे बाजुओ में ?? ( हंसते हुए, कमीज की आस्तीनों को ऊपर चढ़ाता है)
मंगलपांडे : बस.... !बस! दूर ही रहो हमसे!
मातादीन : (व्यंग्य पूर्वक) अच्छा जी? लो हो गये दूर.(.. कूदकर उल्टा ही एक कदम पीछे हट जाता है) ) चलो हमें बहुत प्यास लगी है... तनिक अपने लोटे से पानी तो पिलवाई दो । (...हंसता है)
मंगलपांडे: (आक्रोशित होते हुए) ऐ !! दूर रह हमसे...!!
हमारा धर्म भ्रष्ट करेगा क्या ?? होश में रह!!
(उनकी यह झड़प सुनकर आसपास खड़े दो भारतीय सिपाही (काली पलटन) , आ जाते हैं।)
इब्राहिम : क्या हुआ मंगल भैया? किस बात पर भड़क रहे हो?
मंगलपांडे : ज़रा इस मातादीन को तो देखो, कह रहा है कि अपने लोटे से पानी पिला दें... इसे..!!. हुंह हमार लोटे को हमारे अलावा कोई छू भी नहीं सकता!!
रामसरन : अरे!!मंगल भैया... छोड़ो भी... !!इस माता दीन को तो यही काम है बस.... फौज में खलासी क्या हुई गवा... खुद को फौज का बड़ा अफसर समझने लगा है...! कहता है मैं जो कहता हूँ, मुंह पर कहता हूँ... !!
मंगलपांडे : फौज में है तो सबका ईमान धर्म भ्रष्ट करेगा क्या? जात पात भी कोई चीज़ है भाई...
(यह सब सुनकर माता दीन का चेहरा गुस्से में लाल पड़ गया)
माता दीन : (उपहास उड़ाने वाले स्वर में, जोर से चीखा) ऐ पंडत!! बड़ा चुटिया धारी ब्राह्मण बना फिरते हो!!! जब बंदूक चलाते समय मुहं से गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस खींचते हो तब तुम्हारा ईमान धर्म कहाँ चला जाता है..... हा हा हा..... शायद पानी पीने.... !!!
मंगलपांडे : (चीखते हुए) माता दीन!!!!!!! ज़बान को लगाम दे, बदतमीज़!! वरना.....!!
माता दीन : (बीच में ही रोकते हुए) वरना...वरना क्या कर लोगे ??? मारोगे मुझे..?(आंखें फाड़ते हुए) अरे मैनै अपनी आंखों से देखा और कानों से सुना है... !! वो जो फैक्ट्री है न कलकत्ते में...!!...ऊ में क्या क्या होता है ... ?? सब जानते हूं...!!गाय और सुअर की चर्बी.... ! !
(माता दीन की बात पूरी होने से पहले ही.. मंगलपांडे बीच में ही चीख पड़़ता है)
मंगलपांडे : (गुस्से से आंखें लाल करते हुए, दांतों को पीसते हुए ) बस कर मूरख....!!अगर ये बात गलत साबित हुई तो... !!तो तेरी खोपड़ी इसी बंदूक से उड़ा दूंगा
माता दीन: (कमर पर दोनो हाथ टिकाकर भवों को चढ़ाते हुए) अच्छा जी...!!और अगर सच हुई तब? तब क्या करोगे पंडत???
मंगलपांडे : (सीना ठोकते हुए)तब !!तब दुनिया देखेगी... एक चुटिया धारी पंडत का अंग्रेज़ों से इंतकाम.... कि एक ब्राह्मण का धर्म भ्रष्ट करने का क्या अंजाम होता है....इतिहास बार बार याद करेगा . इस पंडत को..... !!! सदियां नाम पुकारेंगे मंगल पांडे का...!! सदियां...... (पागलों की तरह बेतहाशा चीखता है)
मातादीन : अगर ऐसी बात है,तो सुन पंडित ध्यान से...!!. जब जब इतिहास तेरा नाम दोहरायेगा... तो उसमें एक नाम और जुड़ेगा....!! और वो होगा..मातादीन का....!! (अपना सीना ठोकता है) तू अगर बारूद का ढेर है तो मैं उस बारूद की चिंगारी बनूंगा...हिंदुस्तान तेरे साथ मातादीन का नाम भी उसी इज्जत से लेगा... जिस इज्जत से तुझे याद करेंगा पंडित!!! फिर तेरा धर्म.. मेरा धर्म.. एक राष्ट्र धर्म बन कर इतिहास में अमर हो जायेगा... और हाँ ( भावुक होता हुए) गाय और सुअर की चर्बी वाली बात गलत निकली तो मातादीन का सर हाज़िर है्..शौक से उड़ा देना! (सिर झुकाता है)
(उसकी यह बात सुनकर मंगलपांडे भावुक हो जाते हैं और आगे बढ़कर मातादीन को गले से लगा लेते हैं, दोनों की आंखों से गंगा-जमुना बह निकलती है)
उनकी यह बातें सुनकर बाकी दो सैनिक भी साथ में नारा लगाते हैं... तेरा धर्म- मेरा धर्म... हम सबका धर्म.. राष्ट्र धर्म.... ( नेपथ्य में विप्लव के स्वर गूंजने लगते हैं.)
दृश्य दो : 8 अप्रैल, 1857, बैरकपुर छावनी,
समय: सुबह दस बजे
(अंग्रेज अधिकारियों की हत्या व बग़ावत फैलाने के ज़ुर्म में मातादीन और मंगलपांडे को फांसी की सजा हो जाती है)
जान मैथ्यू : (उपहास भरे स्वर मेंं) मंगलपांडे कुछ बोलोगे नहीं अब...?
मंगलपांडे: (हंसते हुए गाते हैं) है आरज़ू ये मेरी तेरी ज़मी ही पाऊँ, सातो जनम ही चाहे आना पड़ेगा दोबारा (झुककर हिंद की मिट्टी चूमते हैं.. ) सुनो...जल्लादों !!मातादीन की लगायी चिंगारी से मंगलपांडे नाम की मशाल तुम्हारी हुक़ूमत को जलाकर राख कर देगी.. (भावुक होते हुए) मातादीन अब स्वर्ग में ही मिलेंगे दोस्त... . ( ऊपर आकाश की ओर देखते हुए ज़ोर से नारा लगाते हैं) वंदेमातरम्..... (जल्लाद के हाथ से फांसी का फंदा लेकर खुद अपने गले में डाल लेते हैं..)
(नेपथ्य में विप्लव का बिगुल और भी तेजी से बज उठता है)
जय हिंद..... जय हिंद...जय हिंद
( नाटक 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है)
✍️ मीनाक्षी ठाकुर,
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
जयहिन्द वंदे मातरम् ।बहुत सुन्दर ।भावपूर्ण ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ।
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