बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी----- नहीं...नहीं....नहीं....


वह जब घर आती तो उसका चेहरा देखकर उसका भी दिल खिल उठता, जिस दिन वह नही आती उस दिन वह भी बुझा बुझा सा रहता ।वह आती तो उसकी ओर देखकर मुस्कराती उससे बातें करती उसे भी उससे बातें करना अच्छा लगता था। पिछले कई माह से यह सिलसिला चल रहा था ।दोनों में एक दूसरे के प्रति हमदर्दी थी । हर बात में दोनों एक दूसरे के समर्थक होते दोनों की पसंद न पसन्द भी मिलती जुलती थी । अरमान काफी दिन से अजीब कशमकश में था कि किस तरह शगुफ्ता से अपने प्यार का इज़हार करे और उसका जवाब ले । अरमान को उम्मीद थी कि शगुफ्ता की उसके प्रति जो हमदर्दी और लगाव है उसे देखते हुए वह अपने मकसद में कामयाब होगा ।
      बुधवार को  घर के सब लोग  अदनान चाचा के बेटे की सालगिरह में गये हुए थे । वो तबियत ठीक न होने का बहाना करके घर मे रुक गया था । शाम के पांच बजे वह घर मे बैचेनी से टहल रहा था । बार बार उसकी निगाह दरवाजे की ओर जाती और मायूस होकर लौट आती । उसके  दिल दिमाग  में विचारों की उथल पुथल चल रही थी लेकिन आज उसने पक्का इरादा कर लिया था कि शगुफ्ता से अपने सवाल का जवाब लेकर ही रहेगा कुछ ही देर बाद घर की बैल बजी उसने दौड़कर दरवाजा खोला । दरवाजे से हसती खिलखिलाती शगुफ्ता अंदर आई लेकिन घर मे सन्नाटा देखकर उसने अरमान पर सवालों की झड़ी लगा दी । रुखसाना कहाँ है, अंकल आंटी कहाँ है, अरमान ने हँसते हुए उसे बताया कि सब लोग अदनान चाचा के यहाँ सालगिरह में गये हुए है । सुनकर शगुफ्ता जाने लगी तो अरमान ने हाथ पकड़कर उसे रोक लिया बोला तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है । जरा बैठो, शगुफ्ता रुक गई सोफे पर बैठते हुए बोली कहिये क्या बात है ।अरमान ने हिम्मत करके बोलना शुरू किया शगुफ्ता मै तुमसे बहुत प्यार करता हूं तुमसे शादी करना चाहता हूं क्या तुम मुझसे शादी करोगी । सुनते ही शगुफ्ता का चेहरा जर्द पड़ गया अगले ही पल वह दोनों कानो पर हाथ रखकर जोर से चिल्लाई  'नहीं' 'नहीं' 'नहीं' । शगुफ्ता का जवाब सुनकर अरमान पर जैसे बिजली सी गिर गई हो लेकिन उसने अपने को संभालते हुए याचना के अंदाज़ में कहा -- शगुफ्ता मै तुम्हे बहुत चाहता हूं । तुम्हारे बिना जी नही सकूंगा प्लीज़ मान जाओ ।आखिर मुझमे क्या कमी है। अब शगुफ्ता के बोलने की बारी थी उसका जवाब सुनकर अरमान के पास कोई और सवाल करने  की हिम्मत नही थी शगुफ्ता रोते हुए कह रही थी मै भी आपसे बहुत प्यार करती हूं भाईजान आप मेरी सहेली रुखसाना के सगे भाई है लेकिन मै भी आपको सगे भाई से बढ़कर मानती हूं  इसीलिये आपसे हस बोल लेती हूं लेकिन मुझे क्या पता था कि ज्यादातर मर्द एक जैसे होते है किसी से हसने बोलने का मतलब वह कुछ और लगा लेते है क्या प्यार भाई या दोस्त से नही किया जाता एक एक्सीडेंट में मेरे एकलौते भाई नुरुल की मौत हो गई थी लेकिन रुखसाना से मुलाकात के बात जब आप मिले तो मुझे  लगा कि भाई के रूप में मुझे नुरुल मिल गया मुझे क्या पता था कि मेरे हसने बोलने से आपके दिमाग मे कुछ और चल रहा है शगुफ्ता की बात सुनकर निदामत से अरमान की आंखों से आंसू बह निकले दोनों हाथों से मुंह छिपाकर अरमान शगुफ्ता से कह रहा था शगुफ्ता बहन मुझे माफ़ करदो वाकई मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई है मैने तुम्हे गलत समझा प्यारी बहन आज से मेरे लिये तुम वैसी ही हो जैसी मेरी बहन रुखसाना ।

✍️  कमाल ज़ैदी ' वफ़ा'
 सिरसी (सम्भल)
9456031926

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें