"देखो जी, मेरी बात कान खोलकर सुन लो. बाबूजी को हम अपने साथ ही रखेंगे. आखिर इतने वर्षो से सचिन ही तो बाबूजी की पेंशन ले रहा है. बाबूजी की पेंशन पर आखिर हमारा भी तो हक़ है।" राजेश की पत्नी आशु ने पति के कान भरते हुए कहा।
"ठीक है बाबा,मै बाबूजी से कहकर देखता हूं .वह माताजी से अलग रहना भी तो नही चाहते और तुम कहती हो कि माताजी को सचिन के पास ही रहने दो ।" राजेश ने आशु की बात का जवाब देते हुए कहा .
अगले दिन राजेश ने माताजी और बाबूजी से कहा कि वह बाबूजी को अब अपने साथ लेकर जाना चाहता है. कुछ वर्ष वह उसी के पास रहेंगे. वह उनका शहर में अच्छे से इलाज भी करा देगा. थोड़ा न नुकर के बाद आखिर बाबूजी राजेश के साथ जाने को तैयार हो ही गये।
राजेश उन्हें अपने साथ शहर ले आया हर माह वो ए टी एम के जरिये बाबूजी की पेंशन बैंक से ले आता था. बाबूजी का चंद माह में ही वहाँ से दिल उचाट होने लगा उन्हें फिर से अपना कस्बा याद आने लगा. वहाँ सब एक दूसरे से घुले मिले थे. यहाँ सब अनजान थे. कोई नमस्ते करना तो दूर नमस्ते का जवाब देना भी गवारा नही करता था। बाबूजी यहाँ पहले से और अधिक बीमार रहने लगे. और एक रात हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई. घर मे कोहराम मच गया. आशु बाबूजी से ज्यादा यह सोचकर रो रही थी कि हर माह बाबूजी की पेंशन के अब चालीस हजार कहा से आएंगे. बाबूजी की मौत को सुनकर माताजी और सचिन भी परिवार सहित राजेश के यहां आये और अंतिम संस्कार के बाद वापस अपने कस्बे लौट गये बाबूजी की पेंशन अब माताजी को मिलने लगी थी उधर माताजी के मायके में उनका छोटा भाई अमेरिका में जा बसा और जाते जाते उसने गांव का घर व ज़मीन अपनी बहन यानी माताजी के नाम कर दी। यह सुनकर आशु व राजेश पछता रहे थे कि काश वह बाबूजी के साथ माताजी को भी अपने साथ ले आते।
✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी (संभल), मोबाइल फोन नम्बर 9456031926
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