बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफा की कहानी --- महँगा बकरा


          ईदुलजुहा का त्योहार आने में अब चंद दिन बचे थे. कई दिन से  अखबारों में ऐसी  खबरें आ रही थी कि बरेली में बिका दो लाख का बकरा, शकील कुरेशी ने खरीदा एक लाख 60 हजार का कटरा , कुर्बानी के जानवरों के दाम बढ़े, बरबरा और  सफेद बकरों की डिमांड अधिक आदि- आदि खबरे रोज़ अखबारों की सुर्खियां बन रही थी। टी वी चैनलों पर भी इस टाइप की खबरे प्रमुखता से दिखाई जा रही थी।
   मोहल्ले के बच्चों में भी बकरों को लेकर प्रतिस्पर्धाये हो रही थींं। कोई कहता - ' मेरा बकरा सबसे तगड़ा है।'तो कोई कहता-'मेरा बकरा सबसे ऊंचा है।' तो कोई अपना बकरा महँगा होने की बात कहकर गर्व से अपना सीना फुलाता लेकिन यह सब बातें सुन सुनकर जाहिदा बेगम घुली जा रही थी गरीब जाहिदा ने अब से दो साल पहले अपने अब्बू  से बकरी का एक बच्चा लिया था  कि इसे पाल पोसकर बड़ा करेगी और साल दो साल बाद बकरीद पर अच्छे पैसों में बेचेगी  मगर अब बकरे को देख- देखकर  उसकी उम्मीद नाउम्मीदी में बदलने लगी थी। अपनी गरीबी के कारण वह बकरे की अच्छी तरह खिलाई- पिलाई नही कर सकी थी। जिससे उसका बकरा भी उसकी तरह हड्डियों का ढांचा नज़र आता था उसे यही चिन्ता खाये जा रही थी कि आखिर हड्डियों के इस ढांचे जैसे बकरे के कौन अच्छे पैसे देगा और अगर बकरा अच्छे पैसों का नही बिका तो वह बीमारी से जूझ रहे आदिल के अब्बू का इलाज कैसे कराएगी? एक साल  से अदा न कर सकी मकान का किराया कैसे अदा करेगी और आदिल  के स्कूल की फीस कैसे देगी  सब सोच सोचकर उसका कलेजा मुँह को आ रहा था।
      बुझे मन से उसने बकरे की रस्सी खोलकर आदिल को थमाते हुए कहा कि बेटा पड़ोस के गुलशन मियां साप्ताहिक पैठ बाज़ार जा रहे है तुम भी उनके साथ चले जाओ यह बकरीद से पहले का आखरी बाज़ार है जो भी पैसे मिले आज  इसे बेच ही आना क्योंकि आगे इसे पालने की हमारी हैसियत नही है बाज़ार में चारा बहुत महंगा है हम इसके लिये चारा कहाँ से ला पाएंगे? कहते हुए उसकी आंखें आंसुओ से गीली हो गई  गुलशन मियां के साथ आदिल बकरा लेकर पैठ बाजार पहुच गया।
          बाजार में एक से एक सजे धजे और मोटे ताजे बकरे नजर आ रहे थे ग्राहकों की भी भारी भीड़  थी जो कुर्बानी के लिये महंगे से महंगे दामों पर मोटे और लंबे चौड़े और ऊंचे बकरे खरीद रहे थे लेकिन उसके दुबले पतले बकरे की ओर तो लोग सिर्फ निगाह डालकर आगे निकल जाते कोई दाम तक नही पूछ रहा था। जैसे- जैसे समय बीत रहा था बाजार भी खाली होता जा रहा था आदिल का दिल बैठा जा रहा था कि बिना बकरा बेचे वह घर जाएगा तो माँ कितना दुखी होगी गुलशन मियां भी उससे घर चलने को कहने लगे थे लेकिन वह 'अंकल कुछ देर और, कुछ देर और' कहकर रोके हुए था तभी उसके पास सफेद शेरवानी पहने उसी के मोहल्ले के शिराज़ साहब आकर रुके और उसके हाथों पर नोटो की गड्डी थमाते हुए उससे बकरा उनके सुपुर्द करने को कहने लगे। हैरत से आदिल की आंखे फ़टी की फटी रह गयी उसे यकीन नही हो रहा था कि उसके दुबले पतले बकरे के कोई इतने अच्छे पैसे दे सकता है वह खुश होता हुआ घर आ गया बकरे के इतने अच्छे दाम देखकर  जाहिदा के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी उसने दोनों हाथ आसमान की ओर  उठाकर खुदा का शुक्र अदा किया।
      उधर शिराज साहब बकरा लेकर घर पहुँचे तो बकरा देखकर सब घर वालो के मुंह बन गए सायमा बोली-' पापा आप यह कितना दुबला बकरा लाये है?' अमन का कहना था -'यह तो हड्डियों का ढांचा है।' अब बारी अमन की अम्मी की थी कहने लगी-' शायद तुम्हारे पापा को किसी ने फ्री में दे दिया होगा या हजार पांच सौ में ले आये होंगे यह तो त्यौहार पर भी कंजूसी करते है.  तभी तो बकरे के दाम भी नही बता रहे' चारो तरफ से ताने तिशने सुनने के बाद शिराज साहब से रहा नही गया चीखकर बोले-' हाँ मैं कंजूस हूं! तभी  तो यह बकरा दस हजार में खरीदकर लाया हूं।' ' दस हजार का ?।'सब के मुंह से एक साथ निकला  'दो हजार का बकरा दस हजार में?' सबने हैरतजदा होते हुए पूछा शिराज साहब ने फिर बोलना शुरू किया -'हाँ दस हजार में, जानते हो क्यों?इसलिये की यह बकरा अपने ही मोहल्ले की उन जाहिदा बेगम का है जिनके शौहर काफी दिनों से बीमार है। जाहिदा बेगम खुद्दार है वह किसी गैर से मदद मांगना अपनी शान के खिलाफ समझती है बकरीद पर अल्लाह की राह में कुर्बानी दी जाती है लेकिन कुर्बानी का मतलब दिखावा नही है, अल्लाह सबकी नियत से वाकिफ है। वह सब जानता है.  सिर्फ बकरा ज़िब्ह करके उसका गोश्त खा लेना या अपने यार दोस्तो रिश्तेदारों में बांट देना ही सच्ची कुर्बानी नही है, बल्कि भूखे- प्यासों, गरीब- मोहताजों की मदद करना उनके चेहरे पर खुशी लाना ही अल्लाह की राह में सच्ची कुर्बानी है. हम इस बकरे से भी कुर्बानी अदा कर सकते है और ज्यादा पैसे में खरीदकर मैने कोई दिखावा नही किया है. बल्कि एक जरूरतमंद की इस तरह से मदद की है।' शिराज साहब की बातें सब घर वाले दम बख़ुद होकर सुन रहे थे उनकी बातें सुनकर सभी के सीने शिराज साहब को प्यार भरी नजरों से देखकर चौड़े हो रहे थे।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी , सम्भल
 9456031926

1 टिप्पणी: