शनिवार, 11 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------ सुकून की तलाश

   
                                                                    शाहिना, "मैं तुम्हारी रोज रोज की चख चख से तंग आ गया हूं। मै तुम्हे कितनी बार बता चुका हूं। कि मै बाहर नही जाऊंगा। अपने देश मे ही रहूंगा। फिर हमारा यहां भी अच्छे से गुजारा हो ही रहा है। खुदा ने हमे सब कुछ तो दिया है। अपना मकान है दोनों वक़्त चैन से खाना मिल रहा है।  हमारे अपने सब यहीं है। यह हमारा वतन है हम यहां से कही बाहर नही जाएंगे"। दानिश की बात खत्म हुई तो शाहिना ने फिर कहना शुरू कर दिया -"देखिये जी, यहां रहकर आपने अभी तक क्या कर लिया। अभी तक मकान पर प्लास्टर तक नही करा पाये। यहां दस हजार की मास्टरी में क्या कर लेंगे। फिर अपनी रूबी भी अब दस साल की हो गई है। आठ साल बाद उसकी भी शादी करनी है। पड़ोस की सफिया को देखिये बेटी की कैसी धूमधाम से शादी की है इतना दान दहेज दिया है। कि अभी तक मोहल्ले में चर्चा है। हर बाराती को भी पांच- पांच हजार के गिफ्ट दिए है ।उनकी पूरी फैमिली दस साल से अमेरिका में है। अगर आप भी कनाडा चले गये होते तो हमारे पास भी आज सब कुछ होता। मेरे भाई तो आपको बुला ही रहे थे अपने मोहल्ले की कितनी फैमलिया विदेश में है। कोई इंग्लैंड कोई दुबई कोई जर्मनी तो कोई फ्रांस में है सबके कैसे ठाट- बाट है साल दो साल में जब भी कोई फैमिली यहां आती है तो उनके ठाट- बाट के सामने मैं शर्मिंदगी महसूस करती हूं। कितनी कीमती और आधुनिक ड्रेस पहने होती है उनकी बीवियां और सोने से तो वह लधी हुई होती है । देखिये, मै अपने चचेरे भाई से बात करती हूं वह आपको अमेरिका का वीजा भेज देगा। आप इस बार अपने स्कूल के मैनेजर से साफ कह दीजिये की इस सेशन के बाद आप उनके यहां नही जाएंगे वो किसी और का इन्तज़ाम कर लें"। शाहिना की बाते सुनकर दानिश को उलझन होने के साथ गुस्सा भी आ रहा था। लेकिन वह घर को जहन्नुम नही बनने देना चाहता था इसी लिये सब सहन कर रहा था। लेकिन बार बार अपना फैसला शालीनता के साथ सुना देता था कि - "वो अपने मुल्क से बाहर नही जायेगा"। दानिश और शाहिना की बाते चल ही रही थीं कि डोर बैल बजी एक बारगी तो दोनों ने सुनकर अनसुना कर दिया लेकिन जब दो तीन बार बैल बजी तो दानिश गुस्से से कौन है भई! कहता हुआ पहुँच गया दरवाजे पर सूटबूट पहने आंखों पर कीमती चश्मा चढ़ाये अमेरिकन अटैची हाथों में लिये एक व्यक्ति खड़ा था ।दानिश ने हैरत से उसे देखा तो वह व्यक्ति बोल पड़ा- "अरे दानिश!  मुझे नही पहचाना? मैं, तेरा बचपन का दोस्त आबिद। अबे, हम दोनों साथ साथ पढ़ते थे। साथ साथ खेलते थे। बागों में कैसी मस्ती करते थे। लड़कियों को इम्प्रेस करने के लिये कैसे- कैसे हतकण्डे अपनाते थे।"  अबे आबिद? तू, कहते हुए दानिश ने उसे खुशी से गले लगा लिया। 'चल अंदर आ' कहते हुए वह उसे घर के अंदर ले आया शाहिना दोनों को हैरत से देख रही थी उसे हैरतजदा देखकर दानिश ने कहा- "शाहिना, यह मेरा बचपन का दोस्त आबिद है ।हम दोनों बरेली में साथ साथ पढ़ते थे। बाद में इसके मामा ने इसे इंग्लैंड बुला लिया और मै पापा के रिटायरमेंट के बाद यहां रामपुर आ गया।" आओ आबिद, थक गये होंगे फ्रेश हो लो। शाहिना, 'तुम फटाफट चाय बनाओ' आबिद फ्रेश होकर आया तो सबने साथ बैठकर चाय पी दानिश ने शाहिना से उसका परिचय कराते हुए कहा कि - "यह मेरी बीवी है शाहिना और यह मेरी बेटी रूबी और यह मेरा बेटा मूनिस"।  आबिद ने एक निगाह शाहिना पर डाली और उसकी खूबसूरती को देखता ही रह गया दानिश ने उससे मजाक करते हुए टोका "अबे नियत खराब मत करना मेरी एक ही बीवी है" आबिद ने हाऊ स्वीट! कहते हुए दानिश की ओर देखते हुए कहा- "यार तू बड़ा नसीब वर है कि तेरी इतनी खूबसूरत बीवी और बच्चे है"। शाहिना ने शरमाकर नज़रे नीची कर ली "अब तू बता तेरी बीवी कैसी है, कितने बच्चे है।" दानिश ने आबिद से पूछा आबिद ने गहरी सांस लेते हुए कहना शुरू किया - "यार, विदेश जाकर मैंने पैसा जरूर कमाया मगर फैमिली का सुकून मुझे नही मिला।  मामा ने मेरी शादी लखनऊ की एक फैमिली की लड़की  रेहाना से कराई थी पाश्चातय सभ्यता में ढली रेहाना शादी के बाद से ही मुझसे बात- बात पर झगड़ा करती मेरी कोई बात नही मानती थी। नाईट क्लबो में जाना उसका रोज का शगल बन गया था एक साल में ही उसने मुझे छोड़कर एक जर्मन से शादी करली। मैने दूसरी शादी सुरैय्या से की उससे मेरे एक बेटी हुई लुबना  मैं पैसा कमाने और बीवी की फरमाइशें पूरी करने में लगा रहा। लुबना की तरफ ध्यान ही नही दे पाया और उसने एक अंग्रेज से शादी कर ली मैंने सुरैय्या को इसका दोष दिया तो वह भी मुझसे लड़कर चली गई लुबना ने भी मुझे दकियानूसी सोच का बताते हुए मुझसे सम्बन्ध तोड़ लिया। मै कई वर्षों से वहाँ अकेला रह रहा था अकेला पन मुझे जब बहुत खलने लगा तो मै 'सुकून की तलाश' में अपने वतन लौट आया यहां लोगो मे प्यार है। अपनापन है। वहाँ जैसी खुदगर्ज़ी नही है। यहां मेरे बीवी बच्चे न सही रिश्तेदार तो है सच है यार, अपना देश अपना होता है यहां की मिट्टी की खुशबू में भी अपनेपन का एहसास होता है। तू बहुत खुशनसीब है यार, तेरी प्यारी सी फैमिली है।  काश! मुझे पहले यह बात समझ मे आ जाती की जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नही होता।  तो आज मेरी भी फैमिली होती और मै भी सुकून की जिंदगी जी रहा होता।"  शाहिना हैरत से  आबिद की बातें सुन रही थी और उसके जाने के बाद शाहिना दानिश के कंधे पर सर रखे कह रही थी -'दानिश, तुम्हारे दोस्त ने मेरी आँखें खोल दी है। अब मै कभी तुमसे बाहर जाने को नही कहूंगी। हम यही रहकर अच्छे से अपने बच्चो की परवरिश करेंगे।'  दानिश ने प्यार से शाहिना के सर पर हाथ फेरा तो निदामत से उसकी आँखों से आंसू बह निकले।

कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी( सम्भल)
9456031926

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