उन मनचलों का रोज़ का दस्तूर था कि शाम को सैर पर निकलते, तो आती जाती लड़कियों व महिलाओं पर फब्तियां कसते और खुश होते। जुमेरात को भी वो रोजाना की तरह सिगरेट के कश लगाते हुए फब्तियां कस रहे थे। तभी सामने से कुछ लड़कियां काले बुर्के पहने आती दिखाई दी। अपनी आदत के मुताबिक तीनो मनचलों ने उन पर फब्तियां कसनी शुरू कर दी। कोई उन्हें पास आने की दावत दे रहा था। तो कोई चेहरा दिखाने की गुज़ारिश कर रहा था। तो कोई आहें भर रहा था। लेकिन यह क्या! वह बुर्कापोश लड़कियां तो उन्हीं की तरफ आने लगी। तीनो मनचले खुश होने लगे । लड़कियों ने जब उनके पास आकर नक़ाबे उल्टी तो मनचलों के चेहरे फ़क़ पड़ गये । यह तो उनकी ही बहनें थीं जो दरगाह पर मन्नत मांगकर वापस घर जा रही थीं।
कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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