शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा -----नया चश्मा


पिद्धान जी तुमने तो कही थी कि अगर हम तुमको वोट दें तो हमारे घर नयो पखानो बन जायेगो ।"वह नीचे बैठा गिड़गिड़ा रहा था ।

"हां भई हां कही थी हमने जे बात मगर अबे पैसा कहां आयो है सरकार से जो तुम्हारी जरूरतें ऐक दिन में पूरी कर दें ...सरकारी काम है दद्दा टेम लगेगो टेम ।"नवनियुक्त प्रधानजी ने मूंह से बीड़ी का धुआं निकालते हुए कहा ।

वह अब खामोश होकर उल्टे पांव जाने लगा ।

"का करें नैकौ चैन से न रहन देत हैं जे सब मूरख ।"पिद्धान जी ने अपने नए नवेले काले चश्मे को पौंचते हुए कहा ।

और पहली ही किश्त में आई बुलेट पर बैठकर फुर्र हो गए अब इस नए चश्मा से गांव की समस्याएं  दिखाई देने बंद जो हो चुकी थीं ,जो पहले नंगी आंखों से साफ दिखाई दे रहीं थीं लेकिन सिर्फ वोट लेने से पहले तक ।

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश


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