आज भोर से ही मन बड़ा घबरा रहा था राजेश्वरी का पति की असमय मौत और इकलौते बेटे की बीमारी की दुख रूपी कडी धूप ने उसके सीधे -साधे जीवन का रंग -रूप ही बदल कर रख दिया था ।
घर में पति द्वारा एकत्रित जो जमा पूंजी थी वह धीरे -धीरे घर के खर्च और बेटे की बीमारी पर खर्च हो गयी ।इसलिये उसने खुद को मानसिक रूप से घर से बाहर निकलने के लिये खुद को मजबूत किया परंतु यक्ष प्रश्न उसके सामने आ खड़ा हुआ कि वह करेगी क्या पढी-लिखी तो वह थी नहीं इसलिये घर-घर झाडू -पौछा ,बर्तन साफ़ करने का काम चुन लिया ।
जिन्दगी की वास्तविकता से सामना हुआ उसका ,जिन घरों में वह कामकरती सभी तरह के अच्छे -बुरे लोग मिलते लेकिन वह ज्यादा ध्यान नहीं देती ,अपना काम इस तरह से करती कि कोई उसके काम में मीन-मेख न निकाले फिर भी कामवालिओं को नीचा दिखाना शायद मालिक अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं ।
लेकिन उस दिन तो हद ही हो गयी ,एक घर जिसकी मालकिन बैंक में जॉव करती थीं ,उनके बैंक जाने के बाद ज्यौं ही वह काम करने उसके घर गयी ,अचानक बर्तन साफ़ करते हुए उनके शरीफ़ पति ने उसका हाथ पकड़ लिया ।वह स्तब्ध रह गयी ।
''अरे यह का कर रहे हैं साहब ?''राजेश्वरी गिड़गिड़ाई
''अब ज्यादा नाटक मत कर शरीफ़ होने का मैं जानता हूँ तुम जैसी औरतो को ।''उस नीच आदमी ने नीचता से कहा।
''छोडो मेरा हाथ ।''कहते हुए राजेश्वरी ने करछली हाथ में लेकर बिजली की भांति कडकते हुए बोली ।
''तुम खुद को बहुत ऊँचा समझते हो चंद नोट के टुकडे इकट्ठे करके समझते हो कि हम जैसे गरीब लोग तुम्हारी बपौती हो गये खबरदार !जो मुझे छूने की कोशिश की ।''और आगे बढते उस दुष्ट पर अपने हाथ में ली हुई करछली से भरपूर प्रहार किया तो वह कायर पीछे हट गया ।
आज राजेश्वरी ने अपनी चरित्र और आबरू रूपी संपत्ति को लुटने से बचा लिया ।
✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद
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