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गुरुवार, 11 जून 2020
बुधवार, 10 जून 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ----- डायन
गांव की रीत के अनुसार उस गांव से बाहर झोपड़ी बनाकर रहती ।न कोई व्यक्ति उससे मिलता नबात करता।वो जिधर से गुजरती लोग डरकर रास्ता छोड देते।
दस साल गुजर गये उसकी शक्ल सच मे डरावनी हो गयी।रातो को घुमती ,गीत गाती,हँसती।एकदिन वह रात को रेल लाइन के किनारे चल रही थी,देखा कुछ लोग पटरी उखाड़ रहे थे।वह चिल्ला ई,"कौन है वहाँ?"उसकी आवाज सुनते ही" ,डायन आयी"कहकर सब भागे।उसने देखा पटरियां काफी उखडी है।दूर से रेल की आवाज़ सुनाई दे रही थी।उसकी समझ मे कुछ नहीं आयी उसने अपनी साडी उतारी और दोनों हाथ उठाकर पटरियों पर दौडी,"रोको गाडी रोको आगे पटरी टुटी है"ड्राइवर ने देखा गाड़ी की गति कम की मगर तब तक डायन के ऊपर रेल निकल गयीं।एक बहुत बडी दुर्घटना उसने टाल दी।अगले दिन रेल के बडे अफसर वहां पहुचे और डायन की तारीफ की ,बोले "उसके परिवार से कोई हो तो सामने आये हम उसे ईनाम के पांच हजार रुपए देना चाहते है"उसके कारण हजारों लोगो की जान बची वरना अनर्थ हो जाता।"
अजब सिंह आगे आया बोला,"मैउसका पति हूँ और ये उसका बेटा"।अधिकारी नेउसकी पीठ थपथपाई और ईनाम का लिफाफा दिया।।
✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----- सत्संग
चंदो की चाची मंद गति से अपने घर की ओर जा रही थी।उनके चेहरे पर संतोष और पछतावे के मिले जुले भाव थे।घर के पास पहुंची तो देखा - गीता की मां अपनी गाय को पानी पिला रही थी ।उसने पूछा - ए चाची, कहां से आ रही हो,
अरे,तुझे नहीं पता,बहुत पहुंचे हुए गुरु जी आए हुए है,प्रेम बाग़ में उनका सत्संग चल रहा है ।आज वही चली गई थी।बहुत अच्छी व्यवस्था है।इतना बड़ा पंडाल आज तक गांव में नहीं लगा।देसी घी की पूरी सब्जी भी मिल रही है,साथ में गरम गरम हलवा भी।पूरी सब्जी तो बहुत ही बढ़िया है।मैंने तो आज 6 पूरी खा ली। परशाद तो जितना मिल जाए उतना कम है।
गुरु जी ने क्या बताया -- गीता की मां ने पूछा
अरे,वो कहां सुन पाई।पूरी सब्जी की लाइन बहुत लंबी थी,2 घंटे लग गए, मैं वहीं से चली आई।वैसे इतनी भीड़ जा रही है, तो अच्छा ही बता रहे होंगे।
मै कल फिर जाऊंगी,आज हलवा ख़तम हो गया था,और तू तो जाने ही है,हलवा मुझे कितना अच्छा लगता है।
तुम भी मेरे साथ चलना,घर गृहस्थी के काम तो चलते ही रहेंगे,थोड़ा धरम का लाभ भी उठाना चाहिए।
पूरी और हलवे की तारीफ सुन,गीता की मां के मुंह में भी पानी आने लगा था।दोनों ने मिलकर जयकारा लगाया -- गुरु जी की जय हो।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------- दरकती नींव
'' हाँ ! हाँ ! ! मगर करेगा क्या ?''
'' तुम दो तो सही ।''
अगले दिन पवन कक्षा में सबसे आगे बैठा था और मुर्गा भी नहीं बना ।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
मोबाइल -9411809222
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------हाय ! बापू जी!!
पूरी कहानी उसकी दिल और आंखों में चल रही थी...
... दरवाजे पर खट.. खट ..की आवाज से बाप बेटा दोनों की आंखें खुल गईं.. रात का 1:00 बजा था.. मकान मालिक ने दरवाजा खोलने पर बताया "बसें आ कर लग गईं हैं ! निकलना है तो जल्दी करो बॉर्डर से यूपी तक के लिए बसें तुम्हें लें जाएंगी, रात 11:00 बजे से एनाउंसमेंट हो रहा था ,,जो लोग जाना चाहें आनंद विहार के लिए बस से जा सकते हैं,, ... "सभी लोग बस में बैठ चुके हैं "..."आप लोग ही रह गए हो!".... फिर क्या था ताबड़तोड़ जल्दी से जो सामान बांध सकते थे बांधा.. कुल मिलाकर एक सूटकेस और एक गठरी से कम समान हो ही नहीं रहा था बाकी सारा सामान फोल्डिंग कॉट कुर्सियां मेज किचन के वर्तन आदि सामान वैसे ही छोड़ कर जाना पड़ा ...जल्दी जाकर बस में भीड़ में खड़े हुए...कुछ ही देर में बस ने आनंद विहार बस स्टॉप पर छोड़ दिया.. वहां का नज़ारा देख कर सियाराम के होश उड़ गए हज़ारों की भीड़ जमा थी कंधे से कंधे टकरा रहे थे... परंतु जाने के लिए कोई भी साधन नहीं था अब समझ में आ रहा था,, दिल्ली सरकार ने बाहर वालों से पीछा छुड़ाने के लिए छल किया था.... दुर्भाग्य पर सियाराम को रोना आ रहा था ...ये सियासत भी बड़ी निर्दयी है चुनाव के समय वोट बनवाया गया खूब ख्याल रखा गया अब मुसीबत के समय रात में सोते से उठा कर घर से बाहर निकाल दिया ........
.. दिल्ली की सारी बसें उन्हें आनंद बिहार छोड़कर वापस और लोगों को लेने के लिए चली गयीं थीं ... धीरे-धीरे सुबह के 5:00 बज गए प्यास से व्याकुल राकेश ने कहा "पापा चलते समय हम पानी की बोतल लाना ही भूल गए ,अब यहां कहीं भी पानी नज़र नहीं आ रहा"... लोगों का जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था...दूरी बनाने की तो बात ही छोड़िए.... एक दूसरे यात्री से मांग कर राकेश को पानी पिलाया ....बहुत देर इंतजार करने के उपरान्त खड़े -खड़े थकान होने लगी थी .. उफ़! भगवान ने ये महामारी भेज दी!...हम गरीब कहां जाएं! कुछ देर के बाद लोगों ने बताया कि मजबूर हो कर योगी जी यूपी से बसें भेज रहे हैं....कुछ देर बाद बॉर्डर पर बसें लगीं... सब लोग गाजीपुर बॉर्डर की ओर दौड़ने लगे... हलचल सी मच गई वहां जाकर देखा तो बस से ...जाने बालों का हुजूम लगा था अफरा तफरी मच गई स्थान पाने के लिए एक एक बार में 10-10 आदमी दरवाजे पर अन्दर घुसने के लिए जूझ रहे थे ..कई लोग खिड़कियों से अंदर प्रवेश कर रहे थे सामान की कौन कहे सामान को रखने को जगह नहीं थी ...तिल रखने की भी जगह नहीं थी मिनटों में बस पूरी भर गई जैसे तैसे सियाराम ने अंदर प्रवेश किया तो राकेश छूट गया सियाराम चिल्लाने लगा ,राकेश ! अरे बेटा राकेश !! कहां है रे ! ....राकेश नीचे था
सियाराम ने उसे खिड़की के रास्ते जैसे तैसे बस में लिया...दस -ग्यारह साल का राकेश वदन छिलने से कराह रहा था सियाराम ने बेटे को कलेजे से लगा लिया । परंतु यह क्या 30 किलोमीटर चलकर बस को रोक दिया गया ....यह एक स्कूल था... जहां सबके रुकने की व्यवस्था की गई थी ! ... स्कूल में भूख से व्याकुल.... 1:30 बज गया था .... खाने की सूचना दी गई.. थोड़ी देर बाद सभी लोग भूखे भेड़ियों की तरह खिचड़ी के पैकेटों पर टूट पड़े सियाराम के हाथ एक पैकेट लगा उसी को दोनों बाप बेटे ने पेट में डाला ...आगे का हाल न पूछो बार-बार चेकिंग होती रही जिन लोगों को इंफेक्शन था उनको अलग किया जा रहा था ....बाप बेटे दोनों बिछड़ गए सियाराम की आंखों से आंसू टप टप बह रहे थे के... बेटे राकेश को कहां से कोरोना हो गया... लगातार तो मेरे साथ ही रहा है शायद जिसने पानी दिया था उसे ही कोरोना रहा होगा ....खैर जैसे तैसे 14 दिन काटे ... राकेश कोरोना निगेटिंव हो गया ...अब आगे जाने के लिए शोर मचना शुरु हो गया बस चलने के लिए लगी परंतु सियाराम को उसमें जगह न मिल सकी.. बस चली गई अन्त में सियाराम ने निश्चय किया दोनों पैदल ही चलते हैं और कोई रास्ता नहीं है ...और दोनों पैदल ही चल दिए जो समान पास में था वह भी संभाले नहीं संभल रहा था सियाराम ने कहा पोटली को छोड़ो एक पिट्ठू बैग निकाला और जितना सामान आ सका आवश्यक पिट्ठू बैग में भरा एक सूटकेस, एक पिट्ठू बैग ... राकेश ने पिट्ठू बैग संभाला और सियाराम ने सूटकेस सिर पर धरा और चल दिए 20 25 किलोमीटर चलकर ही तबीयत हलकान होने लगी ....रात भी हो गई थी एक नल के पास मंदिर पर दोनों में शरण ली.... जैसे तैसे रात गुजारी अच्छा हुआ सुबह को कुछ भले मानस खाना देने आए दोनों ने खाना खा लिया ....कुछ पूरियां सियाराम ने रास्ते के लिए रख लीं... अब कहां मिलेगा? मिलेगा भी या नहीं! कुछ पता नहीं... 7-8 दिन चलकर मुगलसराय पहुंचे...लगने लगा बिहार आने वाला है ....अपना घर .. कहा ज़्यादा पैसे के लालच में घर छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था अपना घर अपना ही होता है ... दानापुर आने वाला है परंतु दूरी तो बहुत थी 2 दिन का और रास्ता है ... रास्ते में कुछ मिलता खा लेते और पानी पी लेते थे दोनों के पांव में छाले थे और राकेश की हालत बहुत खराब थी थकान से चूर चूर ११ साल का बच्चा ..... हजारों किलोमीटर की यात्रा आखिर जैसे तैसे पटना पहुंचे .परंतु यहां पर भी चैकिंग हो रही थी कमाल की बात थी राकेश तो कोरोना निगेटिव हो चुका था परंतु सियाराम को बहुत तेज बुखार था उसे पटना में ही हॉस्पिटल में एडमिट कर दिया गया .... उसने. बेटे राकेश को पड़ोसी के साथ कर दिया जैसे ही वह घर पहुंचा मां बहनों का बुरा हाल था बच्चे को आराम करने को कहा... अस्पताल जाने की तैयारी करने लगे .... दिल्ली से चलते समय सियाराम की रिपोर्ट कोरोना नेगेटिव थी परंतु रास्ते में उसकी तबीयत बिगड़ गई घर वालों को उससे मिलने नहीं दिया गया ....हर दिन उसकी तबीयत और ज्यादा खराब होती गयी और ...एक दिन ऐसा आया कि खबर मिली कि सियाराम का इंतकाल हो गया .....घर में कोहराम मच गया कि किसी तरह बॉडी मिल जाए परंतु हॉस्पिटल वालों ने मना कर दिया .. पटना में ही सीएनजी भट्ठी में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया .... घर वालों को उसका चेहरा तक देखने को नहीं मिला ..... कोरोना वायरस का खतरा जो था पूरी बॉडी को प्लास्टिक से सील किया गया था 2 दिन बाद सियाराम की अस्थि अवशेष लेकर एक व्यक्ति सियाराम के घर पहुंचा.....
घर में कोहराम मच गया रोते-रोते राकेश का कलेजा फटा जा रहा था मां और तीनों बहने बिलाप कर कर के रो रहीं थीं *****हाय ! बापू!! हाय बापूजी! की चीत्कार सभी को भावुक कर रुला देती थी.....
अस्थि अवशेष एक कलश में रखकर गंगा जी में प्रवाहित करने हेतु यही 3 प्राणी थे जो प्रवाहित करके लौट रहे थे
सियाराम की कच्ची गृहस्थी थी तीन बेटियां शादी को... 11साल का राकेश .... न जाने प्रभु इनका क्या होगा? इन अनाथों का...... दुनिया में कौन है?....
✍️ अशोक विद्रोही
8218825541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी ------- पिता की परवरिश
"मिस्टर मुकेश आपका बेटा अंश सभी बच्चों से लड़ता है उन्हें बुरी तरह से मारता पीटता है। यह देखिए इस बच्चे के हाथ में कितनी चोट आई है...." मैडम इशिता ने घायल बच्चे का हाथ दिखाते हुए कहा।
मुकेश ने बच्चे के चोट देखते हुए कहा "वाकई में मैडम घाव तो गहरा है लेकिन विश्वास कीजिए अंश जानबूझकर कभी ऐसा नहीं करेगा। अवश्य ही किसी बात पर दोनों बच्चों में झगड़ा हुआ होगा वरना अंश ऐसे किसी को कभी भी चोट नहीं पहुंचा सकता ।"
मैडम ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया "जब आपसे अपना बच्चा संभाला नहीं जाता तो आप इसे हॉस्टल में क्यों नहीं छोड़ देते। वहां रहेगा तो कम से कम कुछ तो सीखेगा। केवल पढ़ाई में अव्वल अंक लाना ही सबकुछ नहीं होता डिसिपिलीन भी अत्यधिक आवश्यक है। आपसे अपना बच्चा नहीं संभाला जा रहा और आप दूसरे बच्चों पर झगड़ा करने का आरोप लगा रहे हैं। बिना माँ के पलने वाले बच्चे ऐसे ही होते है उनमें न भावनाएं होती हैं व न ही संस्कार। "
मुकेश ने मैडम की आखों से आंखें मिलाकर कहा "मैडम मेरा बच्चा मेरे लिए मेरा जीवन है, मैं इसे बोर्डिग स्कूल कभी नहीं भेजूंगा। इसकी माँ के जाने के बाद मैंने ढेरों रिश्ते आने पर भी दोबारा शादी नहीं करी क्योंकि मैं इसे कभी दुखी नहीं देख सकता। मैने इसकी परवरिश स्वयं की है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि बिना किसी कारण के मेरा अंश किसी को चोट नहीं पहुंचा सकता।
और आप यह देखिए अंश के गले में नाखून के जो निशान हैं क्या मैं आपसे उसका कारण जान सकता हूं?"
इस बात पर मैडम थोड़ा घबरा गई।
तभी मेज पर रखा फोन रिंग किया। दूसरी तरफ से प्रिंसिपल ऑफिस से चपरासी बोल रहा था। उसने इशिता मैडम, मुकेश एवं दोनों बच्चों को ऑफिस में बुलाया। सभी प्रिंसिपल ऑफिस में पहुंचे।
प्रिंसिपल मिस्टर द्विवेदी ने मैडम इशिता से कहा "आपके और मिस्टर मुकेश के मध्य हुआ वार्तालाप मैने कैमरे पर सुना तथा मुझे बहुत दुख हुआ कि आपने पेरेंट से इतने रुखे तरीके से बात करी यह सरासर डिसिपिलीन के खिलाफ है।"
मिस्टर मुकेश से क्षमायाचना करते हुए प्रिंसिपल सर ने कहा "मैं अपने स्टाफ के इस रुखे रवैये के लिए आपसे क्षमा याचना करता हूं। मैं समझ सकता हूं कि कोई भी बच्चा बिना कारण कभी कुछ गलत नहीं करता। और अंश तो हमारे स्कूल का सबसे होनहार एवं समझदार स्टूडेंट है मुझे लगता है कि हमें अंश से ही इस घटना का कारण पूछना चाहिए।"
जब प्रिंसिपल ने अंश से इस घटना का कारण पूछा तो पहले वह घबरा गया लेकिन फिर हिम्मत करके उत्तर दिया "आक्रोश और उसके दोस्तों ने मिलकर मुझे बोला कि मैं और मेरे पापा बहुत बुरे हैं इसीलिए मेरी मम्मी हमसे परेशान होकर हमें छोड़कर चली गई। मैंने कहा भी कि नहीं, मेरे पापा बहुत अच्छे है, मम्मी को बहुत सारे काम थे वो इसीलिए गईं। इतना कहते ही सभी ने मुझे घेर लिया और बोला कि मेरी मम्मी भगौड़ी है और मेरे पापा राक्षस हैं। मैंने मना भी किया कि न बोलें तो आक्रोश ने मेरा गला दबाया। मैं चिल्लाया तो बाकी सब बच्चे भाग गए। लेकिन आक्रोश रुका नहीं इसीलिए मैंने खुद को छुडाने के लिए उसे धक्का दिया और वो पीछे खड़ी मोटरबाइक से टकरा गया। बाइक उसपे गिर गई और उसका साइलेन्सर बहुत गर्म था । जब आक्रोश को चोट लगी और वो जोरों से रोने लगा तो मैं दौड़कर टीचर को बुला लाया।"
अंश की आखों से आंसुओं की धारा बह निकली और वो पापा से बोला "पापा मैंने कुछ नहीं किया मैंने किसी को चोट नहीं पहुंचाई। पापा मम्मी से कह दो न कि वापस आ जाए देखो सब मुझे कितना परेशान करते हैं। पापा मेरी चोट नहीं दिखी मैम को और उन्होंने मुझे पूरी क्लास के सामने डांटा और बहुत बहुत बुरा बोला किसी ने भी आक्रोश से कुछ नहीं कहा, किसी ने मेरी चोट पर दवाई भी नहीं लगाई बहुत दर्द हो रहा है पापा आक्रोश ने बहुत जोर से नाखून मारे हैं। पापा देखो कितना खून बह रहा है। पापा मम्मी को बुला लाओ न अगर वो साथ होती तो कोई ऐसा नहीं बोलता। पापा मैं इतना ही बुरा हूँ कि मम्मी मुझे छोड़कर चली गई। उनसे कह दो कि वापस आ जाए मैं कभी उन्हें परेशान नहीं करूंगा।"
अंश की बात सुनते सुनते ऑफिस में उपस्थित सभी लोगों की आंखें आंसुओं से भर गई। प्रिंसिपल सर ने इशिता मैडम की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा। मैडम की आँखें तो खुद अपनी इस भारी भूल पर शर्म से झुक चुकी थी।
प्रिंसिपल सर ने दराज से फर्स्ट एड बॉक्स निकालकर अंश के चोट की मरहमपट्टी करते हुए कहा "नहीं बेटा तुम बहुत अच्छे और समझदार। और एक बात बताओ जब तुम्हारा दिल इतना अच्छा है और तुम्हारे पास इतने अच्छे पापा है तो तुम मम्मी को क्यों याद करते हो? तुम इतने प्यारे हो कि तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें छोड़कर जाकर बहुत बड़ी गलती की है। लेकिन तुम अपने सर को प्रॉमिस करो कि हमेशा ऐसे ही अच्छे बच्चे बनकर रहोगे, बहुत अच्छे नंबर भी लाओगे और लड़ाई भी नहीं करोगे।"
अंश ने उत्तर दिया "लेकिन सर मैं तो यह प्रॉमिस पहले ही पापा से कर चुका हूं कि मैं कभी भी लड़ाई नहीं करूंगा और हमेशा अच्छा बच्चा बन कर रहूंगा। आप कह रहे हो तो आपसे भी कर देता हूं।"
प्रिंसिपल सर ने अंश की पीठ थपथपाते हुए कहा "वेरी गुड बेटा तुम बहुत समझदार हो........." और उसे एक बड़ी सी चॉकलेट दी।
प्रिंसिपल सर ने मुकेश से टीचर के बेरुखी बर्ताव के लिए फिर से माफी मांगी और आश्वासन दिया आगे से ऐसा नहीं होगा। साथ ही हिम्मत बढ़ाते हुए यह भी कहा "आपका बच्चा पढ़ाई में बहुत अच्छा है साथ ही व्यवहारकुशल एवं समझदार भी है। आपने अपने बच्चे में बहुत अच्छे संस्कार गढ़े हैं। यह अवश्य ही एक दिन आपका नाम रोशन करेगा।"
प्रिंसिपल सर के मुंह से आश्वासनभरे शब्द सुन मुकेश को गर्व महसूस हुआ। उसके मन में ये विचार पनपने शुरू हो गए थे कि उसकी पत्नी मीना ने उसे तलाक दे अपने दोस्त अविनाश से पुर्नविवाह किया इसमें भी शायद उसी की गलती होगी। शायद उसी ने अपनी पत्नी का ध्यान ढ़ग से नही रखा होगा तभी वो अपने दूसरे बच्चे का अबारशन करा, ढ़ाई साल के अंश को और उसे दोनों को ही अकेला छोड़ गई। लेकिन अंश के द्वारा अपना पक्ष रखने तथा प्रिंसिपल सर द्वारा प्रशंसा एवं हौसलाअफजाई से उसे महसूस हुआ कि वो गलत नही है, जो वास्तविक रूप से गलत थी वो केवल मीना थी।
✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा -------- रोटी
कुसुम और उनके पति मयंक का मानना है कि उनके जीवन में समृद्धि और शांति तब से ज्यादा शुरू हुई जब से उन्होंने रात में एक रोटी गली के कुत्ते को खिलाना शुरू किया । गली के उस कुत्ते का नाम उन्होंने टोनी रख दिया था।टोनी भी उनकी आवाज़ पहचानता था। कुसुम- मयंक के रोटी रखते ही और आवाज़ लगाते ही टोनी भागकर आता और रोटी उठा ले जाता। यह सिलसिला पिछले कई महीने से निरंतर चल रहा था ।
एक रात कुसुम-मयंक के आवाज लगाने पर जब काफी देर तक टोनी नहीं आया तो उन्होंने रोटी गेट के बाहर रख दी और गेट बंद करके चले गए । उनके अंदर जाते ही उन्हें भौं भौं की आवाज सुनाई दी । वे समझ गए कि टोनी आ गया है ।
अब यह रोज की बात हो गई। वह रोटी गेट के बाहर रखकर टोनी को आवाज़ लगाते और गेट बंद करके चले जाते । उनके जाते ही भौं भौं की आवाज आती । रोज की तरह आज भी रात को जब वह रोटी रख रहे थे , तो एक सज्जन ने उन्हें आवाज़ लगाई और पास आकर कहा- मैं आपके सामने रहता हूं। आप अब रोटी यहां मत रखा कीजिये । आप की रोटी खाने वाला लड़का अब नहीं रहा....... कल रात आपकी रखी रोटी लेकर जैसे ही वह झूमता हुआ सड़क पार कर रहा था वैसे ही तेजी से आते एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी और उसने दमतोड़ दिया। यह सुनकर हतप्रभ मयंक और कुसुम उसका मुंह देखने लगे । मयंक ने कहा - भाई साहब ,हम तो रोटी टोनी के लिए रखते थे । सज्जन ने कहा- टोनी तो दस दिन पहले ही ऐक्सिडेंट में मर चुका है। कुसुम बोली -पर भाई साहब , कुत्ते की आवाज........!! उन सज्जन ने कहा- कोई बड़ी बात नहीं बहन,पेट क्या नहीं कराता,कला या तो जरूरत से या शौक से उपजती है ....और .....यह तो बात रोटी की थी.....
✍️ प्रवीण राही
एनसी 102,रेलवे कॉलोनी
मुरादाबाद, यूपी
मो. (8860213526,8800206869)
मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल की लघु कथा--------- काश
लाकडाउन में खूब नयी डिशेज बनाई गई घर में। रोज कुछ नया व्यंजन और नया स्वाद। दाल, रोटी, सब्जी,चावल के अलावा कभी और कुछ न बनाने वाली बहू से,सास ने पूछ ही लिया- " "यह रोज नई-नई डिश, बनाना कैसे सीख गयी?"
"मोबाइल पर,यूट्यूब पर सब कुछ है सीखने के लिए,मां जी।" बहू ने बताया।
सारे दिन टीवी सीरियल देखते रहने वाली सास ने कहा,-" काश हमारे समय में यह मोबाइल होता।"
✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर
मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की कहानी-----इफ्तार
बाबूजी, पाँच बजने वाले हैं, ये फोल्डर ऐसे ही रख देता हूँ, कल काम पूरा कर दूँगा, मुनव्वर ने रामबाबू से कहा।
अरे ऐसा कैसे, ये तो पहले ही तय हो गया था कि काम आज ही निपटाना है, चाहे सात बजें या आठ, रामबाबू जो एक दफ्तर में स्टोर कीपर थे बोले, तुम्हें तो बता दिया था कि ये खुला हुआ रिकार्ड स्टोर में नहीं रखा जा सकता। ये काम तो आज ही पूरा करना होगा, तुम तो पहले से विभाग का काम करते रहे हो, तुम्हें तो पता है ये रिकार्ड बिना बाइंडिंग के नहीं रखा जायेगा।
अरे बाबूजी, आजकल रोज़े चल रहे हैं, सोच रहा था घर जाकर रोजा़ इफ्तारूँगा। उसके बाद दोबारा आने की हिम्मत नहीं होती। मुनव्वर बोला।
अरे, इतनी सी बात है, मैं तो ऊपर ही रहता हूँ, रोज़ा ऊपर इफ्तार कर लेना। ऊपर सब सामान है। रामबाबू बोले।
अरे नहीं साहब, ऐसा करता हूँ, थोड़ी देर यहीं पास में दुकान पर इफ्तार लेता हूँ, फिर आकर काम निपटा दूँगा। सात बजे तक सब निपट जायेगा।
लेकिन चाय तो तुम मेरे साथ ही पीना, रामबाबू बोले।
पंद्रह बीस मिनट में ही मुनव्वर रोज़ा इफ्तार करके आ गया, और जल्दी जल्दी काम निपटाने लगा। पौने सात तक सारा काम निपट गया। हाथ मुँह धोने के बाद वह बोला: अच्छा साहब, चलता हूँ।
अरे भाई, ऐसे कैसे , हमने तो अभी तुम्हारे इंतजार में चाय भी नहीं पी है, आओ, ऊपर चलो, चाय पीकर जाना। दोनों ऊपर कमरे में गये। कमरा साफ सुथरा था। रामबाबू वहाँ अकेले ही रहते थे। थोड़ी देर में ही वो चाय बना लाये। साथ में कुछ बिस्कुट, कुछ नमकीन, केले, और एक प्लेट में कुछ खजूर ले आये। आ जाओ भाई, चाय नाश्ता कर लो।
खजूर देखकर मुनव्वर बोला साहब, ये तो आप बहुत बढ़िया चीज लाये। खजूर तो हमारे यहाँ बहुत अच्छे माने जाते हैं, हफ्तार में कुछ और न हो तो हम खजूर से ही रोज़ा इफ्तार कर लेते हैं।
अरे भाई, तभी तो मैं कह रहा था, हमारे साथ ही इफ्तार लो।
तुम तो संकोच में नहीं आये।
अरे भैया रोज़ा हो या व्रत हो, ऊपरवाले की इबादत में अपने शरीर को पवित्र करने के लिये करे जाते हैं। अब इबादत तो इबादत ही है। चाहे हम करें या आप। इबादत के तरीक़े अलग हो सकते हैं, लेकिन भावना तो एक ही है। ऊपरवाला सभी की भावनाओं से खुश होता है, और सभी को उसका पुण्य देता है। जब उसके यहाँ कोई भेदभाव नहीं है, तो उसके बंदों में क्यों हो।
रामबाबू बोलते गये।
अरे साहब, आज तो आपने हमारी भी आँखें खोल दीं, मुनव्वर बोला: वाकई सभी अल्लाह के बंदे हैं तो आपस में भेद कैसा।
और वह रामबाबू को नमस्कार करके अपने घर की ओर चल दिया। चलते चलते वह रामबाबू जी के विषय में सोच रहा था, कितने अच्छे विचार हैं साहब के। न कोई अहंकार, न कोई धार्मिक विद्वेष, सरल इतने कि खुद ही चाय बना लाये, और सभी धर्मों का आदर करने की बात ने तो उसका दिल छू लिया। काश; सभी लोगों के विचार ऐसे ही होते तो दुनिया में इतने दंगे फसाद न होते, यही सोचते सोचते वह कब घर पहुँच गया पता ही न चला।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG - 69
रामगंगा विहार
मुरादाबाद, उ.प्र.
मोबाइल नं. 9456641400.
मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----- .'अतृप्त मन'
''जल्दी आओ बच्चो।"हरिसिहं ने अपने पोते रिशू और अवन्तिका को जोर से आवाज लगाई खुद गेट के बाहर बडी सी चमचमाती गाडी मे बैठे हुए थे।
''अभी आये दादा जी ।" दोनो बच्चे एक साथ अन्दर से चिल्लाये ।
आज पूरा परिवार गाँव जा रहा है ।बच्चों के विद्यालय बंद हो गये थे इसलिये सब अपने गाँव जाने के लिये बहुत ही उत्सुक थे ।
"लीजिये आ गए दादाजी ।"
"अरे तुम्हारी मम्मी नही आई बेटा अभी -?"हरि सिंह ने दोनो से पूँछा।
''पापा भी नही आये दादू अभी ।"अवन्तिका ने शरारत करते हुए कहा ।
''हाँ जब तक तेरी माँ नही आयेगी तब तक वो कैसे आ जायेगा ?''दादा जी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
''जल्दी आओ बच्चो।"हरिसिहं ने अपने पोते रिशू और अवन्तिका को जोर से आवाज लगाई खुद गेट के बाहर बडी सी चमचमाती गाडी मे बैठे हुए थे।
''अभी आये दादा जी ।" दोनो बच्चे एक साथ अन्दर से चिल्लाये ।
आज पूरा परिवार गाँव जा रहा है ।बच्चों के विद्यालय बंद हो गये थे इसलिये सब अपने गाँव जाने के लिये बहुत ही उत्सुक थे ।
"लीजिये आ गए दादाजी ।"
"अरे तुम्हारी मम्मी नही आई बेटा अभी -?"हरि सिंह ने दोनो से पूँछा।
''पापा भी नही आये दादू अभी ।"अवन्तिका ने शरारत करते हुए कहा ।
''हाँ जब तक तेरी माँ नही आयेगी तब तक वो कैसे आ जायेगा ?''दादा जी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
''हम आ गये पापा जी ।"हरि सिंह के बहू और बेटे दोनो गेट से बाहर निकलते हुए बोले ।
''दादा जी दादी जी भी ऐसे ही देर लगाती थीं क्या तैयार होने मै ?''इस बार रिशू बोला ।
''नही बेटा वो तो सुबह ही तैयार होकर बैठ जाती थी '।"हरी सिंह ने चहकते हुए कहा।
सब गाड़ी में बैठ गए और हरि सिंह
यादों में खो गए ।
हरी सिंह को गाँव छोडे 45 साल हो गये ।जब बचपन मे वो गाँव मे रहते थे तो हमेशा शहरी ज़िंदगी के ही सपने देखते थे ।
शहर आकर खूब पैसा कमाया बेटा भी खूब पढ -लिखकर अचछी जॉब मे चला गया शादी हो गयी ,परिवार पूरा हो गया ,परंतु मन त्रप्त नही हुआ ।
शहर आकर गाँव की बहुत याद सताती रही ,हमेशा गाँव की हरियाली , वहाँ के पक्षी ,निस्वारत लोग याद आते रहे!अब जब भी मौका मिलता है ,तभी गाँव चले जाते हैं ।
मानव मन भी बडा अजीब होता है ,हमारे पास जो नही होता हम उसकी कल्पना करते रहते हैं और उसे पाने के लिये पागल हो जाते हैं ,और जब वो वस्तु मिल जाती है तो पुरानी दुनियाँ की याद आने लगती है ।
''दादा जी गाँव आ गया ''!रिशू खुशी से उछला ।
''हाँ बेटा ।''हरी सिंह ने धीरे से आह भरते हुए
कहा ।
तभी गाँव के बहुत सारे बच्चों ने गाडी को आकर घेर लिया कोई ,हरि सिंह भांप गये .
बच्चों की अभिलाषा .कोई गाडी को छू रहा था तो कोई दूर से ही बड़ी मासूमियत से देख रहा था .एक बच्चा दुसरे से कह रहा था की वह भी शहर जाकर खूब पैसे कमायेगा और फिर एक बड़ी सी गाडी खरीदेगा .
हरिसिंह ने अपने बहु बेटों और पोते पोतियों को घर जाने को कहा और उन बच्चों को गाडी में बैठकर घुमाने ले गए .बच्चे बहुत खुश हो रहे थे उनको खुश देखकर हरिसिंह को भी अपना बचपन याद आ गया जब उनके सपने भी गाँव छोड़कर शहर जाकर खूब सारे रूपये कमाने का ही था .मगर आज गाँव उन्हें अपनी तरफ खींच लाता है .
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश
मुरादाबाद के साहित्यकार विभांशु दुबे विदीप्त की लघुकथा -------अपराधी कौन
✍️विभांशु दुबे 'विदीप्त"
गोविंद नगर, मुरादाबाद
मंगलवार, 9 जून 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की गजल-----जाने हम गांव की तारीख़ किधर भूल गए! याद सब कुछ है मगर अपना ही घर भूल गए!!
जाने हम गांव की तारीख़ किधर भूल गए!
याद सब कुछ है मगर अपना ही घर भूल गए!!
इस क़दर लोग अँधेरों के तरफ़दार हुए ,
ऐसा लगता है उजालों का सफ़र भूल गये !
मुश्किलों को न गिना वोटों की गिनती कर ली,
नज़्र वोटिंग के हुए कितनों के सर भूल गये !
टूट जाते हैं ज़रा बात में रिश्ते ऐसे ,
जैसे अब लोग मुहब्बत का हुनर भूल गये !
मैने हर तौर मुहब्बत में उजाले देखे ,
और तुम मेरे उजालों का नगर भूल गये !
एक हो जाएं तो दुनिया को बदल सकते हैं ,
हम तो ख़ुद अपनी ही ताक़त का असर भूल गये!
हों जो फलदार, घनी छांव लिए खुशबू भी,
लोग राहों पे लगाना वो शजर भूल गये !
रूप की धूप ढली सांझ की बेला आई ,
कितना रंगीं था वफाओं का सफ़र भूल गये ,
तुमने जो राह ज़माने को दिखाई 'ओंकार' ,
याद रखनी थी तुम्हें , ख़ुद ही मगर भूल गये!
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुध्दि विहार,मझोला,
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का गीत -------- तुमसे मिलने की चाहत हुई है
🎤✍️ रश्मि प्रभाकर
10/184 फेज़ 2, बुद्धि विहार, आवास विकास, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
फोन नं. 9897548736
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष विद्या वारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र की जयंती पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" की ओर से आयोजित कार्यक्रम में डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रस्तुत सामग्री पर साहित्यिक चर्चा
वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 7 व 8 जून 2020 को विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र की जयंती पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत सामग्री पटल पर प्रस्तुुुत
की । इसपर समूह के सदस्यों ने चर्चा की। चर्चा दो दिन चली।
डॉ मनोज रस्तोगी ने बताया कि विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र द्वारा की गई रामायण की भाषा टीका पूरे देश में प्रसिद्ध है। उनको सुप्रसिद्ध नाटककार, कवि, व्याख्याता, अनुवादक, टीकाकार, धर्मोपदेशक, इतिहासकार के रूप में भी जाना जाता है। इनके पूर्वज पटना के निवासी थे जो बाद में मुरादाबाद में आकर बस गए थे। पिताजी का नाम पंडित सुखानंद मिश्र था।
उनकी शिक्षा दीक्षा के बारे में डॉ मनोज रस्तोगी ने जानकारी दी कि इन्होंने घर पर ही पंडित भवानी दत्त शास्त्री जी से संस्कृत पढ़नी प्रारंभ कर दी। कुछ वर्षों में ही वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान हो गए। संस्कृत भाषा के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेजी, फ़ारसी, गुजराती और बांग्ला भाषा में भी अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली।
साहित्य के प्रति उनका प्रेम अनुकरणीय था। जहां कहीं नया ग्रंथ प्रकाशित होता था उसको वह अवश्य मंगा कर पढ़ते थे। चाहे वह संस्कृत में हो, चाहे हिंदी में हो, चाहे उर्दू में हो, चाहे बांग्ला में हो और चाहे अंग्रेज़ी में या गुजराती भाषा में ही क्यों न हो। सन् 1882 में यहां बल्लभ मुहल्ले में स्थापित संस्कृत पाठशाला में वह भाषा और व्याकरण के अध्यापक थे। इस पाठशाला के बंद हो जाने के बाद सन् 1888 में उन्होंने किसरौल मुहल्ले में स्थित कामेश्वर मंदिर में कामेश्वर पाठशाला स्थापित की और अंत तक उसके प्रधानाध्यापक बने रहे। इस पाठशाला में यह विद्यार्थियों को काव्य, व्याकरण और न्याय पढ़ाया करते थे। इस पाठशाला के विद्यार्थी काशी की परीक्षाएं भी दिया करते थे। पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र ने यहां सनातन धर्म सभा की भी स्थापना की थी। वह धर्मोपदेश के लिए पूरे देश में जाते थे। सन् 1901 में उन्हें टिहरी नरेश ने बुलाकर सम्मानित किया था। भारत धर्म महामंडल ने उन्हें विद्यावारिधि और महोपदेशक उपाधियों से सम्मानित किया था। विभिन्न रियासतों के राजाओं द्वारा उन्हें स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया था। पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र सनातन धर्म के प्रबल समर्थक थे। उन्हें विशेष ख्याति उस समय मिली जब उन्होंने महर्षि दयानंद सरस्वती रचित ग्रंथ "सत्यार्थ प्रकाश" का खंडन करते हुए "दयानंद तिमिर भास्कर" की रचना की। लगभग 425 पृष्ठ का यह ग्रंथ सन् 1890 में लिखा गया था। विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र ने न केवल अनेक संस्कृत ग्रंथों की भाषा टीका करके उन्हें सरल और बोधगम्य बनाया अपितु अनेक मौलिक ग्रंथों की रचना कर हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान दिया। तुलसीकृत रामायण के अतिरिक्त वाल्मीकी रामायण, शिव पुराण, विष्णु पुराण, शुक्ल यजुर्वेद, श्रीमद्भागवत, निर्णय सिंधु, लघु कौमुदी, भाषा कौमुदी, मनुस्मृति, बिहारी सतसई समेत शताधिक ग्रंथों की भाषा टीकाएं लिखकर हिंदी का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने सीता वनवास नाटक भी लिखा । इसके अतिरिक्त उन्होंने महाकवि कालिदास के प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' और भट्ट नारायण के संस्कृत नाटक 'वेणी संहार' का अनुवाद किया।सन 1916 में उनका देहावसान हो गया।
डॉ रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत इस सामग्री पर चर्चा करते हुए प्रख्यात नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "बहुत बचपन की याद है, पंडित जी द्वारा लिखी रामायण की टीका का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस बंबई से हुआ था और उसके पचास से अधिक संस्करण प्रकाशित हुए। हमारे घर में उसका नित्य पाठ होता था"।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम जी ने कहा कि "मुरादाबाद प्राचीन काल में साहित्य का केन्द्र था आज भी है। पंडित जी द्वारा प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों को अपने हाथ से लिखना, उन्हें बम्बई भेजना छपाना और प्रसारित करना यह कार्य आज तक कोई दूसरा साहित्यकार न कर सका और न कभी कर सकेगा"।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "सभी से इतनी जानकरियां पाकर जो लाभ हुआ वह अनमोल संपदा है और आने वाली पीढ़ियों के काम की है"।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मीना नकवी ने कहा कि डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत सामग्री अद्भुत है
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा "हम मुरादाबाद की महान साहित्यिक विरासत पर गर्व कर सकते हैं। यह विरासत वर्तमान साहित्यकारों के पथ प्रदर्शन का कार्य करेगी"।
समीक्षक डॉ मौहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि पटल पर डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत ज्वाला प्रसाद मिश्र जी से संबंधित साहित्य को पढ़कर यह एहसास हुआ के मुरादाबाद के इतने गौरवमय इतिहास को हमारी आज की पीढ़ी तक पहुंचना बहुत जरूरी है"।
युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि "प्रताप नारायण मिश्र जी का लेख पंडित जी के साहित्य की गुणवत्ता की सनद है"।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "यह ऐसी अनमोल जानकारी है जो वर्तमान के साथ-साथ आगामी पीढ़ी का भी बहुत मार्गदर्शन करेगी"।
कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि "पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्र जी का कृतित्व उस काल के साहित्यिक जगत में उनके और मुरादाबाद के महत्व को दर्शाने में सक्षम है"। मनोज कुमार मनु ने उनकी कृति कामरत्न की चर्चा की ।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि "पंडित ज्वाला प्रसाद जी द्वारा रचित सीता वनवास नाटक के संवाद अत्यंत रोचक व दृश्यों में जान डालने वाले हैं"। ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "पंडित जी के साहित्य पर हमारे बड़े आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने आलोचना की है जो निश्चित रूप से बड़ा साहित्य होने की दलील है"। उन्होंने पंडित ज्वाला प्रसाद जी पर महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करने के लिये डॉ मनोज रस्तोगी और चर्चा में भाग लेने के लिये सभी का आभार व्यक्त किया ।
✍️ -ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225
सोमवार, 8 जून 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार अग्रवाल के दो मुक्तक
जो स्वप्न देखा था, आओ उसकी एक तस्वीर बना लें,
ज़िन्दगी मे न सही, कागज़ पे कुछ लकीर बना लें,
जो दौलत के पीछे हैं, वह दिल की बात क्या सुनेंगे,
जिन्दा रहने के लिए, अपना दोस्त एक फ़कीर बना लें।
सपन नहीं जिनकी निंदिया मे, उन नैनो का सोना भी क्या
आँसू निकले,दिल न रोया, उन आँखों का रोना भी क्या
खुद मंज़िल पे जा पहुँचे और, औरों को न राह दिखाई,
प्रीत नही जिनके अंतर मे, उन लोगों का होना भी क्या।
✍️आमोद कुमार अग्रवाल
सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर 9868210248
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब हुसैन अमरोही की रचना ----- प्रवासी मजदूरों की व्यथा
चाहत वो मन में ले कर, ऐसे मचल पड़े।
करते भी क्या बेचारे, पैदल ही चल पड़े।।
मंज़िल थी कोसों दूर,ये सोचा नहीं मगर।
लादे वज़न वो सारा,घर को निकल पड़े।।
सोचा था घर पे जाकर, रहेंगे सुकून से।
घाव थे उनके गहरे, लथपथ थे ख़ून से।।
हिम्मत थी उनमें ऐसी,तारीफ क्या करूं।
हारी थी सारी मुश्किलें, उनके जुनून से।।
कइयों के ऐसे ख्वाब, दिल में ही रह गए।
तड़पे थे भूखे प्यासे, वो फिर भी सह गए।।
पटरी पे कोई सोया, कोई यूं ही चल बसा।
वो तो चले गए,पर अनेक सवाल कह गए।।
पहुंचे थे कोसों दूर वो, हंसी ख़्वाब सजाने।
मेहनत की रोजी से, घर अपना वो चलाने।।
सोचा नहीं था एक दिन, ऐसा भी आएगा।
खड़ी है मौत राहों में, इस सफर के बहाने।।
हालात पे उनके, किसी ने ना तरस खाया।
मुझे तो हालात पे उनके, बस रोना आया।।
झेलकर ढ़ेरों दुख,घर पहुंचे भी तो मरग़ूब।
ताने अब प्रवासी मजदूर, कोरोना लाया।।
✍️मरगूब हुसैन अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा
मोबाइल--9412587622
मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी का गीत ------------दूर दूर सब रहना भैया दिल से दूर न होना
दूर दूर सब रहना भैया दिल से दूर न होना
तुम शक्ति के महापुँज हो यह विश्वास न खोना
अन्जाने यह आई बिमारी दीख रही है लाशें
जाने क्या होने वाला है सबकी अटकी सांसें
आज वक़्त के तेवर देखो समझ नहीं कुछ आता
देख मौत का नाच ये नंगा मन सबका घबराता
बन्द पड़े हैं सब मंदिर मस्जिद जाने क्या है होना
दूर दूर सब रहना भैया---------------
महाशक्ति जो कहलाते थे रुके न उनके आंसू
बना कोरोना हाय वायरस मानव रक्त पिपासु
घर घर लाशें दीख रही हैं मिले न उनको कंधा
जाने आगे क्या होगा अब हुआ चोपट सब धंधा
दुनिया विस्मित होकर देखे ऐसा रूप घिनौना
दूर दूर सब रहना भैया--------------
इतना ध्यान रखो तुम प्यारे तुमको ही है लड़ना
मन से भय त्याग कर प्यारे तुमको आगे बढ़ना
स्वच्छ रहो और सादा भोजन नित्य योग अपनाओ
अपनी प्रतिरोधक क्षमता जो सोई उसे जगाओ
जीत तुम्हारी होगी निश्चित प्यारे तनिक डरोना
दूर दूर सब रहना भैया---------------
विश्व बन्धुत्व का महामंत्र तुम मन से इसको जपना
मानवता के द्वार पर को नहीं पराया अपना
ऊपर वाला चीख रहा है अब तो आँखे खोलो
तुम से बढकर नहीं कोई भी ख़ुद को जरा टटोलो
निश्चित फिर से निखरेगा दुनिया का रूप सलोना
दूर दूर सब रहना भैया--------------
इसको पैदा करने वाला मानवता का दुश्मन
उसका सर्वनाश होना है जिसने छीना जीवन
तुम देवों के वंशज ठहरे तनिक नहीं घबराना
फिर से महकेगा यह निश्चित मानव धर्म सुहाना
तुम पर यारा कभी चले न कोई जादू टोना
दूर दूर सब रहना भैया-------------
✍️ फक्कड़ मुरादाबादी
(9410238638)
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम, मुरादाबाद द्वारा रविवार 7 जून 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में यूट्यूब पर एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन 7 जून 2020 को किया गया। यह काव्य-गोष्ठी डिजिटल एन्टरटेनर यूट्यूब चैनल पर लाइव प्रीमियर की गई।
कार्यक्रम का शुभारंभ राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि डॉ. मीना कौल तथा विशिष्ट अतिथि श्रीमती सरिता लाल रहीं। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने किया।
कार्यक्रम में उपस्थित रचनाकारों ने निम्न प्रकार अभिव्यक्ति की -
1. अरविंद कुमार शर्मा आनंद -
कुछ दिये टिमटिमाते रहे रातभर।
जुगनुओं की तरह से वो आए नज़र।।
रौशनी खो गयी है सियह रात में।
और वीरान है हर नगर, हर डगर।।
2. आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ-
गांधीवादी दर्शन के अब गीत नहीं भाते है जी,
रंग दे बसंती चोले वाले गीत हमे आते है जी,
बहुत समय तक गांधीवादी दर्शन पर चल देखा है,
सहन शक्ति की भी कोई होती सीमा रेखा है
3. मोहित शर्मा -
मैं ख्वाबों का महकता घर रहा हूं।
औे फूलों से किनारा कर रहा हूं।।
कहां वो रंग है ऐ जान तुझमें।
तेरी तस्वीर में जो भर रहा हूं।।
4. राशिद मुरादाबादी-
फिसलोगे अगर तो तुम्हें उठायेगा नहीं कोई,
डूबोगे अगर तो तुम्हें बचायेगा नहीं कोई,
दुनिया तो है तमाशबीनों का अड्डा राशिद,
देखकर मुसीबत में तुम्हें मज़ा पायेगा हर कोई,
5. नृपेंद्र शर्मा-
आ पास आजा हम प्यार कर लें,
प्यार में सारी हद पार कर लें।
जीवन है दरिया हम इसकी धारें,
बहते रहें हम प्यार के सहारे।
6. हेमा तिवारी भट्ट-
स्वप्न आँखों में बुझे हैं,ले दिया जला दे कोई।
स्वार्थ के कटु आँकड़ें हैं,आगणक मिटा दे कोई।
थी कभी जो डाल धानी,सूखकर हुई है भूरी,
बादलों में रंग गाढ़ा,आज फिर चढ़ा दें कोई।
7. इंदु रानी-
लगे कही पे तो हो गई कोई कमी मुझको
दिखे है आज हर इक आँख मे नमी मुझको
हुए जो हाल बुरे आज बद से बदत्तर हैं
दिखे हर आस अपने दर्द मे दबी मुझको
8. मोनिका मासूम-
हमने सीखा है मुश्किल हालातों में कुछ होना
बंद करो यह बात बात पर कोरोना का रोना
लो संकल्प, करो सहयोग धरो धर्य और संयम
जीतेंगे हम एक दिन हमसे हारेगा कोरोना
9. राजीव प्रखर
जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी क़ाग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।
तम के बदले हृदय में, भरने को उल्लास।
दीपक में ढल जल उठे, माटी-तेल-कपास।।
10. श्रीकृष्ण शुक्ल-
जिन दरख्तों को गिराना चाहती हैं आँधियाँ।।
कुछ परिन्दों ने बना रक्खे हैं उनमें आशियाँ।
कल यहाँ पर खेत थे बस और कुछ पगडंडियाँ।
अब यहाँ पर दूर तक हैं आशियाँ ही आशियाँ।।
11. डॉ अर्चना गुप्ता-
तू भूल मेरी कर क्षमा, खुशियों भरा संसार दे
माँ शारदे माँ शारदे,नादान हूँ पर प्यार दे
मैं राह सच्ची पर चलूँ, देना सदा ये ज्ञान माँ
इंसान बस कहला सकूँ देना यही पहचान माँ
माँ शारदे माँ शारदे सद्भाव का व्यवहार दे
12. जितेन्द्र कुमार जौली-
एक बार एक टीचर ने खा लिया बच्चे का खाना।
और बच्चे से कहा कि अपनी मम्मी को मत बताना।।
बच्चा बोला आपका बताया मुझे समझ आ गया।
मम्मी से कह दूँगा मेरी रोटी कुत्ता खा गया।।
13. मनोज मनु-
वृक्षों की रक्षा करें ,नैतिकता यह आज।
हरे भरे हो वृक्ष तो ,फूले फले समाज।।
सुनो वृक्ष भी चाहते, प्यार भरा एहसास।
इनमें भी जीवन भरा ,यह भी लेते श्वास।।
14.डॉ मनोज रस्तोगी-
महकी आकाश में ,
चांदनी की गंध
अधरों की देहरी
लांघ आये छंद
गंगा जल से छलके
नेह के पिटारे
15. योगेंद्र वर्मा व्योम-
आज सुबह फिर लिखा भूख ने
ख़त रोटी के नाम
एक महामारी ने आकर
सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का
कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से
पल-पल है संग्राम
16. विकास मुरादाबादी-
वक्त को गंवाने की,आदत हमने छोड़ी है !
बहुत हैं तमन्नाएं , जिन्दगानी थोड़ी है !!
17. सरिता लाल -
बदहवासी सी हर शिकस्त
कई महायुद्धों सी वो परस्त
हर तरफ पसरती ये लाचारी
मुंह ही खोल बैठी ये महामारी
ये प्रलंयकारी सी सारी यातनाएं
मुंह छुपाने लगीं सारी संवेदनाएं
सब कुछ देखकर भी सोचती हूं
कभी हौंसलें कम तो न करूंगी
बस मैं हरदम ही धीर धरूंगी ।।
18. डॉ मीना कौल-
रख दिया सन्मार्ग पर वो कदम मत हटाना,
शूल मिलें राह पर उन्हें प्यार से हटाना।
आपदा की सोच के तू धर्म नहीं भुलाना
आपदा को भी तुझे है साधना बनाना।
19. रामदत्त द्विवेदी-
माना कि व्यवसायी हम हैं धन अर्जन ही ध्येय है।
पर जिस धन में स्वार्थ भरा हो कलुषित है वह हेय है।।
इस काव्य गोष्ठी को पूरा सुनने के लिए कृपया क्लिक कीजिए
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रविवार, 7 जून 2020
वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है ।रविवार 31 मई 2020 को आयोजित 204 वें आयोजन में 26 साहित्यकारों ने अपनी हस्तलिपि में रचनाएं प्रस्तुत की । आयोजन में शामिल साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी, मुजाहिद चौधरी, विपिन कुमार शर्मा, डॉ पुनीत कुमार, रवि प्रकाश ,अशोक विश्नोई, प्रीति चौधरी, वहाज उल हक काशिफ, संतोष कुमार शुक्ला, मीनाक्षी ठाकुर ,अनुराग रोहिला ,श्री कृष्ण शुक्ल, मनोज कुमार मनु, इंदु रानी, कमाल जैदी वफ़ा, रामकिशोर वर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, कंचन लता पांडेय, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, प्रवीण राही, त्यागी अशोक कृष्णम , डॉ श्वेता पूठिया,जितेंद्र कमल आनन्द, नृपेंद्र शर्मा सागर और डॉ मनोज रस्तोगी की हस्तलिपि में रचनाएं
शनिवार, 6 जून 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार राहुल शर्मा की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा आनलाइन साहित्यिक चर्चा -----
*(1)*
यकीं लाज़िम है रिश्तों में वफादारी ज़रूरी है
मगर ए दिल मोहब्बत में भी खुद्दारी ज़रूरी है
मियाँ सादाबयानी झूठ सी है दौरे-हाज़िर में
भले सच बोलिए लेकिन अदाक़ारी ज़रूरी है
हमेशा आलिमों से ही नहीं मिलते सबक सारे
कभी कुछ ज़ाहिलों से भी मग़ज़मारी ज़रूरी है
परायों का भी दुनिया साथ देती है भलाई में
अगर अपना ग़लत भी हो तरफ़दारी ज़रूरी है
सियासत के घने जंगल में ज़िंदा रहना है तो फिर
तआल्लुक लोमड़ी से गिद्ध से यारी ज़रूरी है
जहां केवल समर्पण ही समर्पण हो वहाँ "राहुल"
न चालाकी मुनासिब है न हुशियारी ज़रूरी है
*(2)*
हम दोनों में से क्या मद हैं
सचमुच हैं या फिर शायद हैं
हमसे मत इतराया कीजे
रजधानी जी हम सरहद हैं
पनपो तो इनसे दूर रहो
पौधों संभलो ये बरगद हैं
दोनों की तुलना बेमानी
तुम ऊंचाई हो वो क़द हैं
ये लोकतंत्र का हासिल है
छोटे हैं लोग बडे़ पद हैं
किस दुनिया के दस्तूर हैं ये
हम लोगों पर क्यूँ आयद हैं
*(3)*
भेजा है क्या सवाल छुपाकर जबाब में
पैवस्त है महीन सा कांटा गुलाब में
इस ज़िंदगी ने मूल भी वापस नहीं किया
हमने तो सूद जोड़ रखा था हिसाब में
पाया जो ठोकरों से वही ठीक था सबक
आया न काम कुछ जो लिखा था किताब में
नाकामियां, उदासियां, तन्हाई, ज़िल्लतें
क्या क्या मिलाके पी गए हम भी शराब में
जीवन की भागदौड़ ने छोड़ा कहाँ है वक़्त
आराम से मिलेंगे कभी आओ ख्वाब में
*(4)*
कुछ अंधेरा हैं कुछ उजास हैं हम
दोस्त कड़वी सी एक मिठास हैं हम
दर्द को दिल में दी शरण हमने
आंसुओं का नया विकास हैं हम
बस हमें टूटने नहीं देना
कितनी आंखों की एक आस हैं हम
सौंपना मत हमें बदन अपना
चिथड़ा चिथड़ा हुए लिबास हैं हम
एक पर्दा तो कायनात उठा
हैं हकीक़त कि फिर क़यास हैं हम
जाने कब किसके रूबरू निकलें
दिल के भीतर दबी भड़ास हैं हम
प्यास जिसने बुझाई है सबकी
अनबुझी उस नदी की प्यास हैं हम
*(5)*
वो लोग और थे कि गिरे और संभल गए
हम ख्वाहिशों की भीड़ के नीचे कुचल गए
खाली थी मेरी जेब परेशान तो मैं था
ये क्या हुआ कि आपके तेवर बदल गए
सूरज को एहतियात बरतने की राय दो
कुछ लोग सुब्ह ओस की बूंदों से जल गए
वो झूठ थे कि जिनको रटाना पड़ा तमाम
सच हैं कि अपनेआप ज़ुबां से निकल गए
जब ये लगा कि वक़्त मेरी मुट्ठियों में है
लम्हे तमाम रेत के जैसे फिसल गए
दुनिया तेरे निज़ाम की गफलत अजीब है
खोटे तमाम सिक्के सरेआम चल गए
हासिल नहीं है शायरी पैदायशी हमें
आँसू हमारे शेरों की सूरत में ढल गए
*(6)*
अपने बारे में कुछ इस तरह बताती है मुझे
एक सबक ज़िंदगी हर रोज सिखाती है मुझे
ख्वाब होते तो निगाहों में संजो लेता मै
तुम हक़ीक़त हो यही बात डराती है मुझे
एक अनजान डगर खींच रही है मुझको
कोई खामोश सदा पास बुलाती है मुझे
मै किसी हुक्म की तामील समझता हूँ उसे
वो किसी फ़र्ज़ के मानिंद निभाती है मुझे
एक दो वार तेरे और भी सह सकता हूँ
जान बाकी है अभी साँस भी आती है मुझे
*(7)*
ख़ुद को ही ढूंढने में कहीं मुब्तला हैं हम
यारो हमें तलाश करो गुमशुदा हैं हम
मौका मिला तो हाथ से जाने नहीं दिया
कितना गुरूर था कि बड़े पारसा हैं हम
सर चढ़ के बोलती हैं हमारी अलामतें
दूरी बनाए रखिए जुनूं हैं नशा हैं हम
सारी सजाएँ काट लीं अब फैसला तो दे
सचमुच कसूरवार हैं या बेख़ता हैं हम
मानो तो ठीक और न मानो है तब भी ठीक
हुक्मे अमल नहीं हैं फकत मशविरा हैं हम
कुछ दूर तक तो साथ हमारे भी चल के देख
मंज़िल भी हैं पड़ाव भी हैं रास्ता हैं हम
*(8)*
अपने बारे में समझा गईं रोटियाँ
आख़िरी सच हैं बतला गईं रोटियाँ
भूख ने मार डाले बहुत फिक्रो फन
जाने कितने हुनर खा गयीं रोटियाँ
ज़र्द चेहरे पे कौंधी चमक कह उठी
आ गईं रोटियाँ आ गईं रोटियाँ
किससे कब कैसी क़ीमत वसूली कहो
मैंने पूछा तो शर्मा गयीं रोटियाँ
पेट की आग ठंडी न बेशक हुई
पर सियासत तो गर्मा गयीं रोटियाँ
आख़िरश भूख ईमान पर छा गयी
हर हिदायत को ठुकरा गयीं रोटियाँ
जब भरे पेट वालों के हिस्से पड़ीं
अपनी हालत पे झुंझला गईं रोटियाँ
*(9)*
दोनों की हो रही है गुजर जिन्दगी के साथ
हम तीरगी के साथ हैं वो रोशनी के साथ
करती है एक मौत कई ज़िंदगी खराब
मरते हैं लोग कितने ही एक आदमी के साथ
आंखों में अश्क भर के मुझे रोकने की ज़िद
ये क्या मज़ाक है मेरी आवारगी के साथ
मंज़िल कहाँ है वैसे भी मालूम है नहीं
उसपे भी चल दिए हैं किसी अजनबी के साथ
तेरे लिए जो शौक है मेरे लिए गुनाह
तू मालो ज़र के साथ है मै मुफलिसी के साथ
एक दूसरे से आंख बचा कर निकल गए
वो भी किसी के साथ था मै भी किसी के साथ
*(10)*
कोशिशें औरों की बेशक दिल तो बहलाती रहीं
रौनकें जिससे थीं उसके साथ ही जाती रहीं
साथ मिलकर काम करने का मज़ा कुछ यूँ रहा
तालियाँ साझा रहीं और गालियाँ ज़ाती रहीं
चैन सारा पी गयी मेरा ज़रूरत की नदी
और हिस्से का सुकूं दो रोटियाँ खाती रहीं
ज़िल्लतें, रुसवाईयां, बदनामियां और तोहमतें
जिनसे बचते थे वही सब सामने आती रहीं
झोंपड़ी हर आपदा के सामने जूझी, लडी़
कोठियां तो बस ज़बानी फिक्र फरमाती रहीं
ज़ोर कोई हल नहीं है जल्द बाज़ी है फिज़ूल
गिरहें नादां उंगलियों को सब्र सिखलाती रहीं
रोशनी क़ायम रहेगी बस दियों की शक्ल में
आंधियां सूरज से अपनी शर्त मनवाती रहीं
बावरा मन बुद्धि से कहता रहा अपनी व्यथा
कल्पनाएं भावना को शब्द पहनाती रहीं
इन गजलों पर चर्चा करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "राहुल शर्मा अपनी पहली ग़ज़ल से ही पाठक से जो रिश्ता बनाते हैं वह उन्हें एक प्रगतिशील शायर के रूप में सामने लाता है, उनकी ग़ज़लें पढकर लगता है कि उनके भीतर शमशेर बहादुर सिंह और दुष्यंत कुमार का ग़ज़लकार तो मौजूद है ही नागार्जुन जी का तेवर भी है "।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "राहुल शर्मा की कहन में सफलता-असफलता के दर्शन के साथ ईमानदारी की तराजू पर किया गया आत्मनिरीक्षण भी मौजूद है"।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने कहा कि "राहुल जी की गजलें इंसानी तहज़ीब का आईना सामने लेकर आयी हैं"।
वरिष्ठ शायर डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि "राहुल शर्मा के शेर ज़िन्दगी की हकीकत को स्वयं में समेटे हुए होते हैं। उन्होंने जो देखा और महसूस किया वहीं अपने अशआर में ढाला है"।
नवगीत कवि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने उनकी ग़ज़लों के बारे में कहा कि "राहुल जी की ग़ज़लें परंपरागत ग़ज़लों और आधुनिक ग़ज़लों की संधिबिंदु की ग़ज़लें हैं. इनमें एक अलग तरह की मिठास भी है और अपने समय का कसैलापन भी"।
युवा कवि राजीव 'प्रखर' ने कहा कि "भाई राहुल शर्मा जी की ग़ज़लें आम ज़िन्दगी को गहराई से छूती हुई श्रोताओं व पाठकों से सीधे बात करती हैं"।
कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि "राहुल जी की गजलें परंपरा को निभाते हुए प्रगतिवाद की ओर कदम बढ़ाती दिखती हैं"।
युवा शायर अंकित गुप्ता अंक ने कहा कि "राहुल जी की गजलें आम जिंदगी की पशोपेश को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से पाठकों के सामने रखती हैं"।
डॉ. अजीमउल हसन ने कहा कि "राहुल जी आम जनमानस के दर्द और पीड़ा को अनुभव करते हैं और उसे गजलों के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं"।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि "राहुल साहब के भीतर एक खुद्दार शायर मौजूद है जो अपनी खुद्दारी से सौदा नहीं करता और जिंदगी की बारीकियों को अपने अनोखे अंदाज में बयां करता है"।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि "राहुल जी की ग़ज़लों में कल्पनाओं का दखल कम हकीकत का कब्जा ज्यादा है"।
युवा गीतकार मयंक शर्मा ने कहा कि "आमतौर पर ग़ज़ल का कोई एक या दो शेर ही दिल को छूता है लेकिन यहां प्रस्तुत राहुल जी का एक-एक शेर शानदार है"।
ग्रुप एडमिन और संचालक ज़िया ज़मीर ने कहा कि "राहुल शर्मा ने दोनों ज़ुबानों को एक साथ एक जैसा इस्तेमाल करके अपनी शायरी में एक गाढ़ा रंग पैदा कर लिया है"।
::::::: प्रस्तुति ::::::::
✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
मो० 7017612289