मंगलवार, 9 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की गजल-----जाने हम गांव की तारीख़ किधर भूल गए! याद सब कुछ है मगर अपना ही घर भूल गए!!


जाने हम गांव की तारीख़ किधर भूल गए!
याद सब कुछ है मगर अपना ही घर भूल गए!!

इस क़दर लोग अँधेरों के तरफ़दार हुए ,
ऐसा लगता है उजालों का सफ़र भूल गये !

मुश्किलों को न गिना वोटों की गिनती कर ली,
नज़्र वोटिंग के हुए कितनों के सर भूल गये !

टूट  जाते  हैं  ज़रा  बात  में   रिश्ते    ऐसे  ,
जैसे अब लोग मुहब्बत का हुनर भूल गये !

मैने   हर   तौर  मुहब्बत  में उजाले  देखे ,
और तुम मेरे उजालों का नगर भूल गये !

एक हो जाएं तो दुनिया को बदल सकते हैं ,
हम तो ख़ुद अपनी ही ताक़त का असर भूल गये!

हों जो फलदार, घनी छांव लिए खुशबू भी,
लोग राहों पे लगाना वो शजर भूल गये !

रूप की धूप ढली सांझ की बेला आई ,
कितना रंगीं था वफाओं का सफ़र भूल गये ,

तुमने जो राह ज़माने को दिखाई 'ओंकार' ,
याद रखनी थी तुम्हें , ख़ुद ही मगर भूल गये!

 ✍️  ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुध्दि विहार,मझोला,
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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