जाने हम गांव की तारीख़ किधर भूल गए!
याद सब कुछ है मगर अपना ही घर भूल गए!!
इस क़दर लोग अँधेरों के तरफ़दार हुए ,
ऐसा लगता है उजालों का सफ़र भूल गये !
मुश्किलों को न गिना वोटों की गिनती कर ली,
नज़्र वोटिंग के हुए कितनों के सर भूल गये !
टूट जाते हैं ज़रा बात में रिश्ते ऐसे ,
जैसे अब लोग मुहब्बत का हुनर भूल गये !
मैने हर तौर मुहब्बत में उजाले देखे ,
और तुम मेरे उजालों का नगर भूल गये !
एक हो जाएं तो दुनिया को बदल सकते हैं ,
हम तो ख़ुद अपनी ही ताक़त का असर भूल गये!
हों जो फलदार, घनी छांव लिए खुशबू भी,
लोग राहों पे लगाना वो शजर भूल गये !
रूप की धूप ढली सांझ की बेला आई ,
कितना रंगीं था वफाओं का सफ़र भूल गये ,
तुमने जो राह ज़माने को दिखाई 'ओंकार' ,
याद रखनी थी तुम्हें , ख़ुद ही मगर भूल गये!
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुध्दि विहार,मझोला,
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
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