मंगलवार, 9 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष विद्या वारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र की जयंती पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" की ओर से आयोजित कार्यक्रम में डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रस्तुत सामग्री पर साहित्यिक चर्चा



वाट्स एप पर संचालित समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 7 व 8 जून 2020 को विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र की जयंती पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने उनके व्यक्तित्व एवं  कृतित्व पर विस्तृत सामग्री पटल पर प्रस्तुुुत
की । इसपर समूह के सदस्यों ने चर्चा की। चर्चा दो दिन चली।

         डॉ मनोज रस्तोगी ने बताया कि विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र द्वारा की गई रामायण की भाषा टीका पूरे देश में प्रसिद्ध है। उनको सुप्रसिद्ध नाटककार, कवि, व्याख्याता, अनुवादक, टीकाकार, धर्मोपदेशक, इतिहासकार के रूप में भी जाना जाता है। इनके पूर्वज पटना के निवासी थे जो बाद में मुरादाबाद में आकर बस गए थे। पिताजी का नाम पंडित सुखानंद मिश्र था।
      उनकी शिक्षा दीक्षा  के बारे में डॉ मनोज रस्तोगी ने जानकारी दी कि इन्होंने घर पर ही पंडित भवानी दत्त शास्त्री जी से संस्कृत पढ़नी प्रारंभ कर दी। कुछ वर्षों में ही वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान हो गए। संस्कृत भाषा के साथ-साथ उन्होंने अंग्रेजी, फ़ारसी, गुजराती और बांग्ला भाषा में भी अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली।
    साहित्य के प्रति उनका प्रेम अनुकरणीय था। जहां कहीं नया ग्रंथ प्रकाशित होता था उसको वह अवश्य मंगा कर पढ़ते थे। चाहे वह संस्कृत में हो, चाहे हिंदी में हो, चाहे उर्दू में हो, चाहे बांग्ला में हो और चाहे अंग्रेज़ी में या गुजराती भाषा में ही क्यों न हो। सन् 1882 में यहां बल्लभ मुहल्ले में स्थापित संस्कृत पाठशाला में वह भाषा और व्याकरण के अध्यापक थे। इस पाठशाला के बंद हो जाने के बाद सन् 1888 में उन्होंने किसरौल मुहल्ले में स्थित कामेश्वर मंदिर में कामेश्वर पाठशाला स्थापित की और अंत तक उसके प्रधानाध्यापक बने रहे। इस पाठशाला में यह विद्यार्थियों को काव्य, व्याकरण और न्याय पढ़ाया करते थे। इस पाठशाला के विद्यार्थी काशी की परीक्षाएं भी दिया करते थे। पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र ने यहां सनातन धर्म सभा की भी स्थापना की थी। वह धर्मोपदेश के लिए पूरे देश में जाते थे। सन् 1901 में उन्हें टिहरी नरेश ने बुलाकर सम्मानित किया था। भारत धर्म महामंडल ने उन्हें विद्यावारिधि और महोपदेशक उपाधियों से सम्मानित किया था। विभिन्न रियासतों के राजाओं द्वारा उन्हें स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया गया था। पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र सनातन धर्म के प्रबल समर्थक थे। उन्हें विशेष ख्याति उस समय मिली जब उन्होंने महर्षि दयानंद सरस्वती रचित ग्रंथ "सत्यार्थ प्रकाश" का खंडन करते हुए "दयानंद तिमिर भास्कर" की रचना की। लगभग 425 पृष्ठ का यह ग्रंथ सन् 1890 में लिखा गया था। विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र ने न केवल अनेक संस्कृत ग्रंथों की भाषा टीका करके उन्हें सरल और बोधगम्य बनाया अपितु अनेक मौलिक ग्रंथों की रचना कर हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान दिया। तुलसीकृत रामायण के अतिरिक्त वाल्मीकी रामायण, शिव पुराण, विष्णु पुराण, शुक्ल यजुर्वेद, श्रीमद्भागवत, निर्णय सिंधु, लघु कौमुदी, भाषा कौमुदी, मनुस्मृति, बिहारी सतसई समेत शताधिक ग्रंथों की भाषा टीकाएं लिखकर हिंदी का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने सीता वनवास नाटक भी लिखा । इसके अतिरिक्त उन्होंने महाकवि कालिदास के प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' और भट्ट नारायण के संस्कृत नाटक 'वेणी संहार' का अनुवाद किया।सन 1916 में उनका देहावसान हो गया।
     डॉ रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत इस सामग्री पर चर्चा करते हुए प्रख्यात नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "बहुत बचपन की याद है, पंडित जी द्वारा लिखी रामायण की टीका का प्रकाशन वेंकटेश्वर प्रेस बंबई से हुआ था और उसके पचास से अधिक संस्करण प्रकाशित हुए। हमारे घर में उसका नित्य पाठ होता था"।
    वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम जी ने कहा कि "मुरादाबाद प्राचीन काल में साहित्य का केन्द्र था आज भी है। पंडित जी द्वारा प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों को अपने हाथ से लिखना, उन्हें बम्बई भेजना छपाना और प्रसारित करना यह कार्य आज तक कोई दूसरा साहित्यकार न कर सका और न कभी कर सकेगा"।
     विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि "सभी से इतनी जानकरियां पाकर जो लाभ हुआ वह अनमोल संपदा है और आने वाली पीढ़ियों के काम की है"।
      वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मीना नकवी ने कहा कि डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत सामग्री अद्भुत है
    वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा "हम मुरादाबाद की महान साहित्यिक विरासत पर गर्व कर सकते हैं। यह विरासत वर्तमान साहित्यकारों के पथ प्रदर्शन का कार्य करेगी"।
    समीक्षक डॉ मौहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि पटल पर डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत ज्वाला प्रसाद मिश्र जी से संबंधित साहित्य को पढ़कर यह एहसास हुआ के मुरादाबाद के इतने गौरवमय इतिहास को हमारी आज की पीढ़ी तक पहुंचना बहुत जरूरी है"।
   युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि "प्रताप नारायण मिश्र जी का लेख  पंडित जी के साहित्य की गुणवत्ता की सनद है"।
    युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि "यह ऐसी अनमोल जानकारी है जो वर्तमान के साथ-साथ आगामी पीढ़ी का भी बहुत मार्गदर्शन करेगी"।
     कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि "पंडित ज्वालाप्रसाद मिश्र जी का कृतित्व उस काल के साहित्यिक जगत में उनके और मुरादाबाद के महत्व को दर्शाने में सक्षम है"। मनोज कुमार मनु ने उनकी कृति कामरत्न की चर्चा की ।
      युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि "पंडित ज्वाला प्रसाद जी द्वारा रचित सीता वनवास नाटक के संवाद अत्यंत रोचक व दृश्यों में जान डालने वाले हैं"।      ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि "पंडित जी के साहित्य पर हमारे बड़े आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने आलोचना की है जो निश्चित रूप से बड़ा साहित्य होने की दलील है"। उन्होंने पंडित ज्वाला प्रसाद जी पर महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करने के लिये डॉ मनोज रस्तोगी और चर्चा में भाग लेने के लिये सभी का आभार व्यक्त किया ।

 ✍️ -ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

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