बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विभांशु दुबे विदीप्त की लघुकथा -------अपराधी कौन





लाला सूरजमल की 
शहर के चौक पर बहुत बड़ी मिठाई की दुकान थीl काफी प्रसिद्धि थी क्षेत्र मेंl शुद्ध देसी घी के मिष्ठान बनाने का एकमात्र स्थान होने का घमंड कह लो या दुकान के समृद्ध व्यवसाय की संतुष्टि, सूरजमल के मुख पर सदैव दमकती रहती थी। व्यक्ति का अहंकार उसको सामाजिक मूल्यों में कंजूस बना देता है, शायद इसी कारण सूरजमल का व्यवहार संकुचित और दंभ से परिपूर्ण हो गया था ।स्वयं को अत्यधिक धनवान बनाने की लालसा और किसी दूसरे को अपने सम्मुख तुच्छ समझना, सूरजमल के व्यावहार में प्रतिदिन ढलता ही जा रहा था। रोज की ही भांति आज भी वो अपने ऊंचे से स्थान पर आसीन हो दुकान में बैठे थे। बहीखाते में हिसाब देखते, बीच बीच में गर्दन उचका कर दुकान में नजर भी दौड़ती रहती । इसी बीच एक आदमी ने दुकान से दो कचौड़ी उठा भागने का प्रयास किया , लेकिन पकड़ा गया । लाला के आदमियों ने खूब पिटाई की, मार मार मुँह से खून निकाल दिया ।काफी हो-हल्ला मच गया था बाजार में। कोतवाली में दरोगा को बुलावा भेजा तो थोड़ी देर में वो दो सिपाहियों के साथ आया । आते ही दरोगा ने 'उसे' देखा और लाला से पूछा - "यही है क्या"? लाला ने हाँ में सर हिला दिया । दरोगा ने सरेआम दो बेंत जड़ दिए l हाड़ मांस के उस ढांचे पे दो बेंत लगते ही वो नीचे गिर पड़ा।दरोगा ने उससे पूछा - " क्यों बे, चोरी करता है"  ये कहते ही दुबारा बेंत मारने के लिए हाथ उठा ही था कि अचानक "उसकी" भूख, लाचारी, बेबसी सब उसके आत्मसम्मान के सामने छोटी सी पड़ गई हो जैसे, वो उठ खड़ा हुआ और बोल पड़ा "बाबू साहब, बिटिया दो दिन की भूखी है, तीन रोज से कोई काम नहीं देता, आज हिम्मत जवाब दे गयी'l दारोगा का हाथ रुक गया, मानो पत्थर हो गया l लाला ने चौंककर उसका चेहरा ध्यान से देखने की कोशिश की -" अरे ये तो वही है जो दो रोज पहले काम मांगने आया था" । लाला न जाने क्यूँ अब थोड़ा शर्मिंदा महसूस कर रहा था ।लाला और दारोगा दोनों एक दूसरे की आँखों में देखकर मानो जैसे पूछ रहे थे "अपराधी कौन?" 

 ✍️विभांशु दुबे 'विदीप्त"
गोविंद नगर, मुरादाबाद

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