सोमवार, 8 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब हुसैन अमरोही की रचना ----- प्रवासी मजदूरों की व्यथा


चाहत वो मन में ले कर, ऐसे मचल पड़े।
करते भी क्या बेचारे, पैदल ही चल पड़े।।
मंज़िल थी कोसों दूर,ये सोचा नहीं मगर।
लादे वज़न वो सारा,घर को निकल पड़े।।

सोचा था घर  पे जाकर, रहेंगे  सुकून से।
घाव थे  उनके गहरे, लथपथ  थे ख़ून से।।
हिम्मत थी उनमें ऐसी,तारीफ क्या करूं।
हारी थी सारी  मुश्किलें, उनके जुनून से।।

कइयों के ऐसे ख्वाब, दिल में  ही रह गए।
तड़पे थे भूखे प्यासे, वो फिर भी सह गए।।
पटरी पे कोई सोया, कोई यूं ही चल बसा।
वो तो चले गए,पर अनेक सवाल कह गए।।

पहुंचे थे कोसों दूर वो, हंसी ख़्वाब सजाने।
मेहनत की रोजी से, घर अपना वो चलाने।।
सोचा नहीं था एक दिन, ऐसा भी आएगा।
खड़ी है मौत राहों में, इस सफर के बहाने।।

हालात पे उनके, किसी ने ना तरस खाया।
मुझे तो हालात पे उनके, बस  रोना आया।।
झेलकर ढ़ेरों दुख,घर पहुंचे भी तो मरग़ूब।
ताने अब प्रवासी  मजदूर, कोरोना लाया।।

✍️मरगूब हुसैन अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा
मोबाइल--9412587622

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