मंगलवार, 11 अगस्त 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 28 जुलाई 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों दीपक गोस्वामी चिराग , वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, प्रीति चौधरी, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ रीता सिंह, निवेदिता सक्सेना, राजीव प्रखर, आयुषी अग्रवाल, डॉ श्वेता पूठिया, मनोरमा शर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, रामकिशोर वर्मा, सीमा रानी और मरगूब अमरोही की रचनाएं ------

अक्कड़, बक्कड़, लाल बुझक्कड़* ।
तीन दोस्त थे, तीनों फक्कड़।
नदी किनारे उनका ग्राम।
 दिल्ली में अटका कुछ काम।

तीनों भैया चले मेल में।
तीनों ही धर गए रेल में ।
*अक्कड़* बोला, *बक्कड़* जाओ।
जाकर तीन टिकट ले आओ।
*बक्कड़* बोला कहते *'जाओ'*।
पहले रुपये तो पकड़ाओ ।

*भैंस के आगे बज गई बीन*।
रुपये निकले *साढ़े तीन*।
साढे़ तीन भी हो गये फिट।
उसमें आया *हाफ टिकिट*।

तीनों फिर से चढ़े रेल में ।
मस्त हो गए *ताश-खेल* में।
 इतने में फिर चल दी रेल।
भीड़ की हो गई *रेलम-पेल*।

तीस मिनट चल रुक गई गाड़ी।
जंगल बीच बड़ी थीं *झाड़ी*।
अक्कड़ बक्कड़ हो गए बोर।
इतने में ही मच  गया शोर।

*टी.टी.* आया, टी.टी. आया ।
*लाल बुझक्कड़* था घबराया।
खत्म हो गया सारा खेल।
अब तो सीधी होगी *जेल*।

*बक्कड़* बोला मत घबराओ।
सीट के नीचे तुम घुस जाओ।
 इतने में फिर *टी.टी* आया।
 सबने टिकट *चैक* करवाया।

बक्कड़ भी था पूरा *फिट*।
 रखा हाथ पर *हाफ टिकिट*।
टी.टी. को जब *टिकिट थमाया।
टी.टी. ने उस को धमकाया।

टी.टी बोला यह आधा है।
बक्कड़ बोला क्या ज्यादा है?
क्यों बोलो जी इसे अधूरा?
पर यह तो दिखता है पूरा।

यह तो बच्चे का लगता है ।
बच्चू! तू हमको ठगता है ।
आधा मतलब होता हाफ।
हमको भैया! कर दो माफ।

पूरे को तुम आधा कहते।
जाने कौन देश में रहते।
आधा मतलब एक बटा दो ।
जल्दी पूरा टिकिट दिखा दो।

एक बटा दो' क्या बतलाओ।
पूरी बात हमें समझाओ।
ऊपर एक नीचे दो रहते।
बटा बीच के डेस(-) को कहते।

बक्कड़ बोला इतनी बात।
इस पर ही करते उत्पात।
ऊपर मैं और बीच बटा है।
नीचे भी दो लोग डटा है।

तन कर फिर बोला यों बक्कड़।
निकलो अक्कड़,लाल बुझक्कड़।
पूरा टिकट जब एक बटा दो।
हम तीनों भी एक बटा दो ।

टी.टी. के सब गिरे विकिट।
हिट हो गया पर हाफ टिकट।
...
दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज
बहजोई 24410
उ. प्र.
मो.9548812618
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एक   दिवस  चूहे   राजा  ने
बनवाई              बिरियानी
घी  में भूनी  प्याज़ साथ  में
नमक       मिर्च    मनमानी
उबले चावल डाल  मिलाया
पकने       लायक      पानी
करके  ढक्कन बंद  देरतक
पकने      दी       बिरियानी
खुशबू  से  अंदाज़ लगाकर
बोली              चुहियारानी
पक जाने पर  तश्तरियों  में
परसी       तब    बिरियानी
इसे  देख बिल्ली  मौसी  के
मुख      में     आया   पानी
चूहों  ने  आपस   में  सोचा
सही        नहीं       नादानी
इस  बिरियानी के चक्करमें
पड़े     न    जान     गवानी
उल्टे पैर  छुपे  जा  बिल  में
छोड़ी       दावत       खानी
मौका  देख स्वयं  बिल्ली  ने
चट  कर    दी     बिरियानी।
       
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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देखो देखो बर्षा आई
       सब बच्चों के मन को भाई
कल तक गर्मी सता रही थी
          खूब पसीना बहा रही थी
चलने लगी पवन पुरवइया
         सावन आया आओ भैया
तीजों का संदेशा लाई
          देखो देखो बरसा आई
बड़े ज़ोर से गरज रहा है
    बादल रिमझिम बरस रहा है
भीग रहे हैं खेत बाग बन
          भीग रहे सारे घर आंगन
मौसम ने ली है अंगड़ाई
            देखो देखो बरसा आई
काली काली घटा घिरी हैं
       सूर्य किरण भी डरी डरी हैं
दिन में अंधियारी छाई है
              गर्मी से राहत पाई है
कोयल ने भी कूक लगाई
            देखो देखो वर्षा आई
घूम रही बच्चों की टोली
      भीग भीग कर करें ठिठोली
छाता लेकर दौड़ लगाते
       कागज की सब नाव चलाते
जमकर खूब पकौड़ी खाई
             देखो देखो बर्षा आई
सब बच्चो के मन को भाई

अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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जीवन में रुकना
कुछ ऐसे भी हो जाता है।

जिसका पता स्वयं
हमें भी नहीं चल पाता है।

हम उठते हैं हर रोज़
पर डगर एक पर चलते हैं।

नयी राह पर चलने से
हम हमेशा ही बचते हैं।

 आराम हमें जो भाते हैं
 वही नकारा हमें बनाते हैं।

 बचकर हर काम से जो
चालाक ख़ुद को समझते हैं।

 धोखे उनके, एक दिन
उनको ही खा जाते हैं।

नही चखते मेहनत को जो
आलस्य से तन भरते हैं।

बस बैठकर महफ़िल में
निंदा सबकी करते हैं।

ज़िंदगी की दौड़ में
वही पीछे रह जाते है

जो दोष अपनी हार का
क़िस्मत पर लगाते है

सितारे इस जग में
ऐसे ही नही चमकते है

मेहनत की बगिया में ही
सफलता के पुष्प उगते हैं।

बंजर ज़मीन पर जब
पसीने के मेघ बरसते हैं।

उस धरा पर ही फिर
अंकुरित बीज पनपते हैं।

त्याग ,समर्पण की अग्नि में
जो जन  जीवन में तपते हैं।

सोना बन वही एक दिन
इस दुनिया में चमकते हैं।


प्रीति चौधरी, शिक्षिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज,
हसनपुर, जनपद अमरोहा
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रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का दिन था चारों ओर रंग बिरंगी सुंदर राखियों और मिठाइयों की भरमार थी। सारे लड़के अपनी-अपनी कलाई पर बंधी रंग बिरंगी राखियां सबको दिखाते घूम रहे थे।
मुन्नू भट्ठी पर चढ़ी कढ़ाई में  चीनी और मावा एक बड़े से लकड़ी के घोटे से घोट रहा था।
"अबे जल्दी-जल्द हाथ चला कामचोर.. देखता नहीं बर्फी खत्म होने वाली है। साला त्यौहार के दिन ही ना जाने क्यों इसकी नानी मर जाती है", दुकान का मालिक राजू सेठ गुस्से से चिल्लाया।
मुन्नू जो किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था इस आवाज से झटके से हिला और उसके हाथ मशीन की तेजी से चलने लगे। मुन्नू की आँख से निकली आँसू की एक बूँद भट्ठी की आग में टपक गयी जिसकी "छुन्न!!" की आवज मुन्नू ने साफ-साफ सुनी।
मुन्नू कोई तेरह-चौदह साल का बालक था जिसके परिवार में उसकी माँ को छोड़कर कोई नहीं था।वह घर चलाने के लिए राजू हलवाई की दुकान पर नौकरी करता था।
अभी सेठ कुछ और बोलता तभी सेठ की दस साल की बेटी सजी-धजी दुकान में आयी, उसके हाथ में एक राखी थी।
"पापा..! पापा मैं किसको राखी बाँधूं? मेरा तो कोई भाई भी नहीं है.. लाओ पापा हमेशा की तरह आपको ही राखी बांध देती हूँ", सेठ की बेटी मोनी ने कहा।
"अभी खेलो कुछ देर, देखती नहीं हो कितने ग्राहक हैं। अभी थोड़ी फुर्सत होने दो", राजू ने चिढ़ते हुए लापरवाही से कहा।
उदास मोनी इधर-उधर देखने लगी, तभी उसकी नज़र मुन्नू पर पड़ी और वह उसकी तरफ बढ़ गयी। "अरे मुन्नू..! तुम इतने उदास क्यों लग रहे हो? और तुम्हारी कलाई भी सुनी है। क्या तुम्हारी बहन से तुम्हारा झगड़ा हुआ है?" मोनी ने धीरे पूछा।
"मेरी कोई बहन नहीं है", मुन्नू ने दुख भरी धीमी आवाज में कहा। "क्या?? अरे मेरा भी कोई भाई नहीं है देखो मेरी राखी.. इसे अभी तक किसी ने नहीं बंधवाया। तुम मेरे भाई बनोगे मुन्नू?" मोनी ने मुस्कुरा कर पूछा।
जवाब में मुन्नू ने अपनी कलाई आगे कर दी और मोनी ने झटपट राखी मुन्नू के हाथ में बांध दी।
मोनी दौड़कर फिर काउंटर पर पहुँची और बोली- "देखो पापा आज से मुन्नू मेरा भाई है। मैंने उसे राखी बांध दी है। अब आप मुझे मेंरेे भाई का मुँह मीठा करवाने के लिए मिठाइयां दो।"
राजू ने सर उठाकर चौंककर मोनी को देखा और अगले ही पर जाने क्या सोचकर मुस्कुराते हुए कुछ मिठाई एक डिब्बे में रखकर दे दीं।
"लो भईया मिठाई खाओ", मोनी ने कहा और अपने हाथ से मिठाई का एक टुकड़ा मुन्नू के मुँह में डाल दिया।
इस बार फिर मुन्नू की आँख से आँसू टपका लेकिन हवा उस आँसू को उड़ा कर ले गयी।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
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दादी कितना प्यार लुटाती
देख मुझे फूली न समाती
रोज बलैया लेकर मेरी
बड़ी खुशी से गोद उठाती ।

थपकी देती और झुलाती
लोरी गाकर मुझे सुनाती
आहट भी मैं सुन न पाऊँ
ऐसी मीठी नींद सुलाती ।

खूब खिलाती खूब पिलाती
खुली हवा में सैर कराती
काला टीका लगा भाल पर
बुरी नजर से वही बचाती ।

डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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चलो चांद पर झूला डाले
ऊंचे ऊंचे पेंग बढ़ाकर नभ छू डाले ।
चलो चांद पर झूला डालें ।
आशाओं का उम्मीदों का
 झोला लेकर
कुछ तारे झोले में भर लें
 कुछ मुट्ठी में भर लें
नीचे आकर सबको बांटे ,
सबके घर चमकादें
तारों की चमकीली दुनियां
धरती पर चमकालें
चलो चांद पर झूला डालो।
चलो सभी हो जाओ इकट्ठे
सब मिलकर जाएंगे
 बैठ चांद के झूले पर हम
सब सावन गाएंगे
मनभावन मौसम का
हम भी थोड़ा मज़ा उठालें
चलो चांद पर झूला डाला
ऊंचे ऊंचे पेंग बढ़ाकर नभ छू डाले।

 निवेदिता सक्सेना
 मुरादाबाद
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गाते-गाते गजक बेचते,
चाचा अहमद जान।

अपनेपन से भरी हुई है,
उनकी प्यारी बोली।
चहक उठी है उन्हें देखकर,
नन्हीं-मुन्नी टोली।
साथ उन्हीं के मिलकर सबने,
छेड़ी मीठी तान।
गाते-गाते गजक बेचते,
चाचा अहमद जान।

बच्चे-बूढ़े-युवा सभी से,
मिलकर हैं मस्ताते।
पड़े ज़रूरत डाँट-डपट कर,
भी सबको समझाते।
सच पूछो तो खुद में हैं वो,
प्यारा हिन्दुस्तान।
गाते-गाते गजक बेचते,
चाचा अहमद जान।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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चली लोमड़ी बन-ठन बाज़ार।
लाऊँ झोला भरकर शाक।।

आलू कैसे दिया है भाई।
दाम सुन थोड़ी हिचकाई।।

बोली मैं टिण्डा ले लूँगी।
पर दाम आधा ही दूँगी।।

बहन मैं लौकी, टिण्डा दूँगा।
दाम भी चलो मुनासिब लूँगा।।

वो बोली बैंगन के लगाना।
साथ में प्याज मुफ्त थमाना।।

झट वो लेकर भागा शाक।
लोमड़ी रगड़ती रह गई नाक।।


आयुषी अग्रवाल (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास
कुन्दरकी (मुरादाबाद)
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चन्दा को हम मामा कहते
सूरज जी को चाचा।
बारिश को हम रानी कहते
और बादल को राजा।
कहलाती है पवन सखी
और तूफान है दादा।
परकति के कण कण
से है हमसबका प्यारा नाता।
सदा दिया है इसने हमको
अपना प्यार दुलार।
अब मिलकर हम करे
इसका साज श्रृगांर।।


डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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चलो सुनाते हैं हम तुमको ,बचपन की कुछ बातें
सूरज दादा चंदा मामा और तारों की बातें ।
रंग-बिरंगे सपने अपने और गुड़ियों की बातें
पल में माने पल में रूठे तारे गिनती रातें ।।
खुशियों की गठरी हम बांधे चलते थे इतराते
छलक-छलक जाती थीं खुशियाँ बीते दिन थे जाते ।
जिद मेले जाने की करते मचल -मचल हम जाते
पापा के समझाने पर तो रीझ बहुत हम जाते ।।
छोटी -छोटी जिद होती थीं और सच्चाई की बातें
माँ के मर्यादा के गहने और पढ़ाई की बातें ।
त्योहारों पर बनते जोड़े और मजे आ जाते
बेशुमार कपड़ो में भी हम अब अभाव गिनवाते ।।
रातों को जब हम पढ़ते माँ संग जागा करती
उनके हाथों की ऊन सलाई मानो नींद से लड़ती ।
बचपन बीता तरूणाई के बदले खेल निराले
सपने ऊँचे और हौसलों को मन में हम पाले ।।
जोशीले कदमों से तब गाये हमने अफसाने
संघर्षों से खाली हो गए भरे हुए पैमाने ।।
चलो सुनाते हैं हम तुमको .........।।

गुरूजनों की इज्जत करना उनका मान बढ़ाना
अच्छा बनके तुम इस जग में ऊँचा नाम कमाना ।।
देश की खातिर जीना मरना देश की शान बढ़ाना
आँखों में पाले जो सपने सच उनको कर जाना ।।
चलो सुनाते हैं हम तुमको .....

मनोरमा शर्मा
अमरोहा
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 बाल कथा -----चुनमुन का हेलीकॉप्टर

लॉक डाउन में बच्चों ने खूब मनमानी की ।न स्कूल ,न होमवर्क ,बस उछल कूद और शैतानी । मम्मी के मोबाइल पर ऑनलाइन क्लास लेते समय बस अमेजॉन पर जाकर एक चाइना मेड किड हेलीकॉप्टर आर्डर कर दिया । दो दिन बाद गेट पर हेलीकॉप्टर आ गया ।दो हजार रूपये का यह हेलीकॉप्टर असली की तरह उड़ता था । चुनमुन की इन शैतानियों में नाना नानी को जो रस मिलता है,उसकी  सानी नही ।साहब  जी ,उसे खूब उड़ाते । खाना पीना सब छूट गया ।बस हेलीकॉप्टर चार्जिंग पर लगता और खूब पूरे घर के चक्कर लगाता ।बच्चे क्या ?अब तो बूढ़े भी मस्त थे बच्चों में।
तीन दिन बाद शाम को हेलीकॉप्टर फिर उड़ा ,बहुत ऊँचा, बहुत दूर ,और उड़ा उड़ता ही चला गया फिर तो रिमोट से भी नही रुका।उस पूरी रात ननिहाल के सब जन बस एक ही बात कहते कि चुनमुन का हेलीकॉप्टर देखा कहीं ?  पर कुछ भी पता नही चला।रात में किसी ने खाना भी नही खाया ,आज खाने का लॉक डाउन ।
किसी तरह सुबह हुई ,सब काम में लगे पर किसी काम मे मन न लगा तो नानी बोली ,"चलो चुनमुन बाहर घुमा लें तुमको ,.पर चुनमुन की एक ही रात रट ,हेलीकॉप्टर लाओ ........कहीं से भी । बेबस नानी सड़क पर चली कुछ दूर तो भीड़ जुटी थी ,जिसको देखो ,यही कहे ,जाने का बला थी जो घोड़ी के ऊपर गिरी रात ।घोड़ी बाला रामरतन तो बेहोश हो गया था ,सुबह उठा चिल्ला रहा था ,अरे.......... बचाओ ....जराय दियो ,काऊ ने अरे.......आग गिरी रे ....। नानी बोली ,"का बात हो गई भाया? बड़ी भीड़ जुटी है ? अरे भाभी ,तुम्हें न पता ?जाने का चीज रात में अस्पताल मे गिरी ,डर के मारे कोई पास में भी न गयो बस रामरतन की बात सुनके घिगी सी बंध गई मेरी भी ,कम्मो काकी बोली ।"
लाल बत्ती वामे अबहुँ जल रही है ।नानी को सब समझते देर न लगी ,बोली मेरे संग चलो ,कहाँ है? काकी और कुछ बच्चों का झुंड नानी के पीछे । अरे .......यहाँ गिरा जे इतनी दूर ,जाको ही तो ढूंढ रहे हैं रात से ।पोते का खिलौना है कोई बला नाइ है ।आखिर हेलीकॉप्टर मिल गया पर जो रात में घटा, उस घोड़ी वाले  के साथ उसे सुनकर हँसी रोके नहीं रुकती ।

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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वर्षा आयी वर्षा आयी
मेरे मन को है ललचायी ।
तन पर बहुत घमोरी होती
खुजली भी ऊपर से होती ।
वर्षा में जब मैं भीगूंगा
चैन घमोरी से ही लूंगा ।
छत की नाली बंद करूंगा
छत को पानी से भर लुंगा ।
कागज की फिर नाव चलाऊं
हंँसूं साथ में तैरूं गाऊं ।
भाई-बहिन नहीं है कोई
मैं करता जो मन में होई।
बिजली जब बादल में चमके
मम्मी मेरे ऊपर भड़के ।
मम्मी फिर नीचे ले जाती
वर्षा रानी याद सताती ।
 
राम किशोर वर्मा
रामपुर
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लेके सबको संग आज हम तो चल पड़े
      मन में है उमंग आज हम तो चल पड़े

साथी सारे साथ हों तो बस कमाल हो
     हाथों में जब हाथ हो तो बस धमाल हो
"एक राग" को पकड़ के "साज" चल पड़े
       "सारे सुर" करके "एक आवाज" चल पड़े

मंजिलें भी एक हैं और रास्ते भी एक
         हौंसले बुलंद हैं और इरादे हैं नेक
"होनहार कल के" कर आगाज़ चल पड़े
            लेके कामयाबी का ख्वाब चल पड़े

हमको कोई राह रोक सकती है भला
       हमको कोई बाधा टोक सकती है भला
"रणबाँकुरे हैं हम तो" नाद कर चले
       सारे वीरानों को हम आबाद कर चले

" एक दिन" हम सबको "एक" करके मानेंगे
       "एक दिन" हम सबको "नेक" करके मानेंगे
प्यार की मशाल हाथ लेके चल पड़े
        मस्त अपनी चाल आज हम तो चल पड़े

लेके सबको संग आज हम तो चल पड़े
        मन में है उमंग आज हम तो चल पड़े ।।।।

 सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता,--------- डिपार्टमेंटल स्टोर


मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ----- तुम सिंदूर संजो कर रखना लौटूंगा तो भर दूंगा


मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की ग़ज़ल ------ अब गुलशन गुलदान सरीखा लगता है


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की रचना------- नन्ही मुन्नी एक चिरैया


मुरादाबाद के साहित्यकार उमाकांत गुप्ता का गीत ------- तुमसे ही जीवन को पाया


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही का गीत ------- देश मेरा सोने की चिड़िया


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना -----कर दो इतना उपकार हमारी मटकी को भर दो


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना-----


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मनोरमा शर्मा की रचना --- कहूं न कहूं


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना ------ जय कन्हैया लाल की


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना------


मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला का गीत----- राम लला घर आए हैं .....


सोमवार, 10 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल ( वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचनाएं,-----


मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की रचना ---


मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर की ग़ज़ल -----होंठों पर रक्खा था तबस्सुम ,आंखों में नमनाकी थी


रविवार, 9 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष गौहर उस्मानी की पुण्यतिथि पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" की ओर से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर दो दिवसीय आयोजन ----

वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत मुरादाबाद के प्रख्यात उर्दू साहित्यकार स्मृतिशेष गौहर उस्मानी की पुण्यतिथि छह अगस्त पर उन की शायरी  और शख्सियत पर  चर्चा की गई। यह ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा दो दिन चली।

सबसे पहले ग्रुप के सदस्य डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने गौहर उस्मानी साहब का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया, जिसमें गौहर साहब के प्रारंभिक जीवन, उनकी शायरी, उनकी शख्सियत, उनके किताबों के बारे में चर्चा की, उनको जो सम्मान मिले उनके बारे में बताया और उनके कुछ मशहूर शेर पटल पर प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि  मोहम्मद अहमद उस्मान 'गौहर' उस्मानी का जन्म 29 अप्रैल 1924 को मुरादाबाद में हुआ था। उनके उस्ताद (साहित्यिक गुरु)  रशीद अहमद खान 'हिलाल' और सिराजुल हक़ 'क़मर' मुरादाबादी रहे। उनकी प्रकाशित कृतियों में ऐतिराफ़ (1984), इदराक (1993) दोनों ग़ज़ल संग्रह, तजल्लियाते-क़मर (1967)और मैराज-उल-क़ुद्दूस (1988) हैं। सन 2012 में तस्लीम अहमद ख़ान ने रुहेलखंड *विश्वविद्यालय* , बरेली से *"गौहर उस्मानी : शख़्सियत और अदबी ख़िदमात"* के शीर्षक पर पी.एचडी. की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपना शोध-कार्य रामपुर रज़ा डिग्री कॉलेज की प्रोफेसर सईदा रिज़वी के सुपर विज़न में पूरा किया। उनका इंतेका़ल 6 अगस्त 2004 को हुआ था।
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौहर उस्मानी साहब से मेरा परिचय मुरादाबाद आने के बाद हुआ। यद्यपि कलेक्ट्रेट के मुशायरे और कवि सम्मेलन में मैं पहले भी एक दो बार आ चुका था। लेकिन आत्मीयता से जुड़ाव भरे रिश्ते की नींव मुरादाबाद आने के बाद ही पड़ी। गौहर साहब की शायरी परम्परावादी और आधुनिकता की संधि बिंदु का बेहतरीन नमूना है ।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि आदरणीय गौहर उस्मानी साहब की ग़ज़लों के बहुत से शेर भाई मंसूर उस्मानी जी से सुनने में आये हैं, भाई ज़िया ज़मीर जी के पटल पर आज कुछ ग़ज़लें भी पढ़ी हैं। शायर या कवि वही है जो आने वाले कल की नब्ज़ पहचान ले। जीवन और मृत्यु की हक़ीक़त समझ लें। उस्ताद शायर की कलम ही सामाजिक बदलाव के असर की ओर इशारा करते हुए शायरी कर सकती है।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि  डॉ मक्खन मुरादाबादी  ने कहा कि मुरादाबाद की अदबी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले शांत स्वभाव के गौहर उस्मानी साहब अपनी शायरी और इंसानी दायित्व निर्वहन की दुनिया के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वही शायर बड़ा होता है जिसमें इंसानियत होती है और उसके कुछ शेर ज़ुबां पर होकर चर्चा में रहते हैं। वो इस सम्पदा के स्वामी थे।
मशहूर और मकबूल शायर  मंसूर उस्मानी ने कहा कि मैं उस अज़ीम शख्सियत पर क्या लिख सकता हूँ, जिन पर देश और दुनिया में बहुत कुछ लिखा गया है। फिर भी इतना जरूर लिखूँगा कि आज मैं जो कुछ हूँ अपने वालिद मरहूम की ही बदौलत हूँ। दुनिया जानती है कि शायरी में वो ही मेरे उस्ताद थे। उन्होंने जो मुझे सिखाया जो मुझे संस्कार दिये वो मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सरमाया हैं। मेरे वालिद मोहतरम गौहर उस्मानी साहब ने एक नया रास्ता अपनाया, जो उनका अपना रास्ता था, जिसमें वो इतने कामयाब रहे कि साहित्यिक जगत में उनकी अलग पहचान कायम हुई।
मशहूर शायरा  डॉ मीना नकवी  ने कहा कि ये कहते हुये मुझे कोई संकोच नहीं है कि गौहर साहब का अपना जुदागाना उसलूब है। गौहर साहब की शायरी परम्परा से जुड़ी आधुनिक शायरी है। उनका हर शेर उनके समय के साथ साथ आज की कसौटी पर भी खरा सोना है। उनकी शायरी पर किसी का रंग नही है। उनकी राह अपनी है। अशआर मे सकारात्मकता है, हौसला है।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज  ने कहा कि मोहतरम गौहर उस्मानी साहब का शुमार मुरादाबाद के उस्ताद शायरों में किया जाता है। यक़ीनन वो जितने अच्छे शायर थे, उतने ही अच्छे इंसान भी थे। उनके लहजे में मिठास के साथ-साथ अपनत्व और प्यार के ख़ूबसूरत रंग स्पष्ट झलकते थे। अपने छोटों के साथ भी वह बहुत सम्मान के साथ पेश आते थे। गौहर साहब ने रिवायत का दामन भी नहीं छोड़ा और जदीदियत को भी हंसकर गले लगाया।
मशहूर शायर  डॉ मुजाहिद फ़राज ने कहा कि गौहर साहब की शायरी जिस फ़िक्री बुलन्दी पर परवाज़ कर रही थी इसका अंदाज़ा खुद उन्हें भी था। ज़िन्दगी के लिए उनका रवय्या बहुत सकारात्मक था। मुश्किल से मुश्किल हालात में भी उन्होंने सब्र का दामन हाथ से नहीं छोड़ा और न ही मायूसी को क़रीब आने दिया।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के प्रख्यात उर्दू साहित्यकार स्मृति शेष गौहर उस्मानी जी की शायरी में जिंदगी और उसके मसायल, हालात के बदलते रुख, जालिम और मजलूम के दरमियान होने वाले मामलात, बुराई को भलाई में बदलने की कोशिशें तथा देश के प्रति पूरी पूरी वफादारी दिखाई देती है। उन्होंने इश्क और हुस्न तथा शराब और शबाब की शायरी से अलग हटकर ज़रूर लिखा परंतु ग़ज़ल की रिवायत हमेशा बरकरार रही। उसमें वही नज़ाकत और मिठास रही जो उर्दू शायरी की एक पहचान है । उन्होंने गौहर साहब से अपने परिचय का उल्लेख करते हुए तीस साल पहले उनसे लिया गया इंटरव्यू भी जो उस समय दैनिक स्वतन्त्र भारत के मुरादाबाद संस्करण में छपा था, उसे पटल पर प्रस्तुत किया।
मशहूर नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि ग़ज़ल हो और मुहब्बत की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। जनाब गौहर साहब की ग़ज़लों में भी मुहब्बत है। लेकिन यह मुहब्बत सिर्फ प्रेमिका के ही लिए न होकर देश के लिए और इंसानियत के लिए है। उनके कई शे'र इंसानियत की सुरक्षा के प्रति उनकी चिंता को भी प्रतिबिंबित करते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि 'गौहर' का एक अर्थ मोती भी होता है। मुरादाबाद के साहित्यिक पटल का यह सौभाग्य है कि श्रद्धेय गौहर जी के रूप में शायरी का एक ऐसा नायाब मोती उसके खजाने का हिस्सा बना, जिसकी चमक से साहित्य जगत रौशन था।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि गौहर साहब की ग़ज़लों में रिवायती रंग के होते हुए भी अपने वक़्त के समाजी-सियासी हालात से गहरा जुड़ाव पाया जाता है। आप के दौर के दूसरे अक्सर शोअरा जब कि उस दौर के हालात की अक्कासी करने के लिए ग़ज़ल की रिवायती लफ़्ज़ियात से समझौता कर चुके थे, आप ने ये मंज़ूर न किया। यानी न रिवायात से समझौता किया, न मौजूदा हालात ही को नज़र-अन्दाज़ किया। और ये आप की बड़ी ख़ूबी रही।
समीक्षक डॉ रबाब अंजुम ने कहा कि खास बात यह है कि गौहर साहब ने आधी सदी पहले ही आज के हालात की आहट पा ली थी। जदीदियत और रिवायती शायरी का हसीन संगम उस्ताद जनाब गौहर उस्मानी का कलाम एक मुनफरिद एहमियत का हामिल है।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मोहतरम गौहर उस्मानी जी के साहित्यिक योगदान और उपलब्धियों का नायाब गुलदस्ता अपनी सुगंध से हमारे दिल और दिमाग़ को महका रहा है। वे निस्संदेह एक ऊँची शख्सियत थे,अपने छोटे से कद की सामर्थ्य के अनुसार अभी तक तो मैं उन्हें पूरी तरह निहार पाने की ही जद्दोजहद में लगी हूँ। उन पर कुछ लिख पाना तो दूर की बात है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि कलेक्ट्रेट में हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर होने वाले अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और मुशायरे में स्वर्गीय गौहर साहब को सुना करते थे। तब  शायरी कुछ कम ही समझ आती थी लेकिन ग्रुप में दी गईं ग़ज़लों को पढ़कर उनके बड़े शायर होने का एहसास हुआ। लगभग सभी ग़ज़लें बेहतरीन हैं।
समीक्षक डॉ अजीमुल हसन ने कहा कि गौहर साहब अपनी शायरी में सिर्फ इश्क़ ओ मुहब्बत की बातें ही नहीं करते बल्कि उनकी शायरी  उनके अहद से आगे की शायरी है शायद आपने मुस्तक़बिल की ग़ज़ल के कदमों की आहट को महसूस कर लिया था। आपकी शायरी रिवायती शायरी और जदीदियत का एक ऐसा कॉम्बिनेशन है जो बहुत कम शोअरा की शायरी में देखने को मिलता है।
शायर अहमद मियां उस्मानी ने कहा कि मैं मुरादाबाद लिटरेरी क्लब का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने मेरे वालिदे मोहतरम हज़रत गौहर उस्मानी साहब के यौमे-वफ़ात पर उनकी याद में यह कार्यक्रम किया। मेरे वालिद मोहतरम गौहर उस्मानी साहब की शख्सियत और शायरी और उनकी अदबी ख़िदमात पर रोशनी डाली और उनको ख़िराजे अकीदत पेश किया।
ग्रुप एडमिन और संयोजक शायर जिया ज़मीर ने कहा कि यह शायरी ज़िंदगी के आला अक़दार और आला मेअयार की तर्जुमान है। यह शायरी जहां वक़्त की ना-हमवारी, रिश्तो की टूट-फूट और ज़िंदगी के हर अच्छे-बुरे तजुर्बे का बयान है, वहीं यह शायरी राह दिखाने वाली शायरी भी है। वफ़ा की राहों पर बड़े इन्हिमाक से चलने और इस रविश पर फक़्र करने वाली शायरी भी है। यह शायरी जब यह कहती है -

खंडर दयारे-वफा के कुरेद कर देखो
हमारे नाम का पत्थर ज़रूर निकलेगा

इसमें जो 'ज़रूर' है, वो एतमाद ज़ाहिर करता है कि किसी भी दौर में, किसी भी वक़्त में अगर वफ़ादारी की मिसाल दी जाएगी, चाहे वो वफ़ादारी मुल्क से हो, चाहे इंसानियत से हो, चाहे आपसी रिश्तों के लिए हो, हमारा नाम ज़रूर आएगा। इस नाज़ुक दौर में, जब हर शब्द के नए अर्थ बनाए जा रहे हैं, इस शेर की अहमियत और बढ़ जाती है।

-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225 

शनिवार, 8 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचना


प्राथमिकता घर की प्रभु
क्या बताऊँ, क्या गिनाऊँ

तोड़ तारे मैं जो लाया
सीमित अपनी आय से
लगे कहन मेरे सुखनवर
लो फूट गये  भाग रे 

प्राथमिकता घर की प्रभु
क्या बताऊँ, क्या गिनाऊँ

चाँद आँगन जब जब उतरा
मनचाही घनश्याम रे
पूर्णिमा अमावस्या लागी
चढ़ती बढ़ती सांझ से

प्राथमिकता घर की प्रभु..

आरती का थाल सजाके
फूल इच्छाओं के रखे
घी जला जितने थे साधन
भोग छप्पन न आ सके..

प्राथमिकता घर की प्रभु..

चढ़ रही जवानी देहरी
छम छम बिछुए पाँव में
एक अदद पेंशन बची है
आशाओं के गाँव में।।

प्राथमिकता घर की प्रभु..
क्या बताऊँ क्या गिनाऊँ

रही रोती विवशता और
सपनों का संजाल प्रिय
बंद आँखों में फिर तैरा
कौन पराया, कौन हिय।।

प्राथमिकता घर की प्रभु
क्या बताऊँ, क्या गिनाऊँ

सूर्यकान्त

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार की ग़ज़ल ---- ये होते हैं कुछ और दिखते हैं कुछ, झूठे वादों से रोज़ हमे बहलाने वाले।


रोज़ नया चेहरा चेहरे पर लगाने वाले,
खुद हैं गुमराह मुझे राह दिखाने वाले।

ये होते हैं कुछ और दिखते हैं कुछ,
झूठे वादों से रोज़ हमे बहलाने वाले।

रेल की पटरी पर सो जाते हैं थक कर,
वो जो बैडरूम हमारा बनाने वाले।

हम पैदल सड़क पर पुलिस न मारे कहीं,
हज़ारों वाहन हमे न पहुँचाने वाले।

गिरतों को थामे हैं हमे गिरा न कहो,
यहाँ लोग भी हैं उठतों को गिराने वाले।

बेदिली के दौर मे आ गए "आमोद"
न रहे दिल से दिल को लगाने वाले।
         
✍️आमोद कुमार अग्रवाल
सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की रचना -----संस्कृति है गंगा सी धारा


संस्कृति है गंगा सी  धारा
संस्कृति है गंगा सी धारा
बहती रहती अविरल कल-कल
युग युग  से करती जाती है यह
जन मानस को  निर्मल शीतल
कितनी उप-संस्कृति की धारा
इसमें प्रति क्षण  मिलती जातीं
इसके इस विराट रूप  में
निज पहचानें खोती जातीं
जैसे गंगा के रस्ते में
जगह जगह पर  लोग बसे हैं
इसी तरह संस्कृति के धारे
कला अदब  के पुष्प खिले  हैं
हर इक की पहचान अनोखी
एक दूसरे से  बहुत अलग
लेकिन फिर भी एक सूत्र  से
जुड़े हुए हैं नहीं विलग
नहीं बना करती है संस्कृति
चंद मास या कुछ वर्षों में
सतत प्रक्रिया है चलने की
कितने लोग जुड़े हैं इसमें
गढ़ी हुई संस्कृतियाँ देखो
ढह जाती हैं कुछ ही पलों में
इसी लिए गढ़ने के बदले
बेहतर होगा बसे दिलों में .

        https://youtu.be/HihAn9cLPiI

**प्रदीप गुप्ता
 B-1006 Mantri Serene
 Mantri Park, Film City Road ,   Mumbai 400065

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी) ए. टी. ज़ाकिर का गीत ----जीवन के पतझड़ में मन बसन्त आना .....


🎤✍️ ए. टी. ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2,फतेहाबाद रोड
आगरा-282 001
मोबाइल फोन नंबर. 9760613902,
847 695 4471.
Mail-  atzakir@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र का गीत -----घर चंदन कानन होगा


रामराज यदि आ जाए तो
जग चन्दन कानन होगा
अंतर्मन में प्रेम बसे तो
घर-घर वृन्दावन होगा

दैहिक-दैविक ताप मिटेंगे
भौतिक ताप न व्यापेंगे
मनुज-मनुज में प्यार परस्पर
नीति वेद की जापेंगे
असमय मृत्यु कभी ना होगी
दीन-हीनता दूर रहे
शुभ लक्षण घर-घर में होंगे
हर खाई को पाटेंगे

धर्म परायण,पुण्य शीलता
वंदित घर-आँगन होगा

नर-नारी होंगे उदार सब
नीति व्रती परहितकारी
विद्वानों की पूजा होगी
पति-पत्नी धर्माचारी।।
कर्म-वचन-मन से भर देंगे
जीवन को सुख-सौरभ से
फल-फूलों से तरु महकेंगे
गज-पंचानन सँग होंगे

खग-मृग में भी प्रेम बढ़ेगा
जीवन-धन पावन होगा।।

लता-विटप मधुरस छलकाएँ
धेनु,दुग्ध मन चाहा दें
फसलों से धरती लहराए
यज्ञाहुतियाँ-स्वाहा दें
हिम शिखरों से माणिक छिटकें
सरिताएँ निर्मल जल दें
कलयुग में सतयुग आ जाए
ऐसी शीतल छाया दें

तट पर सागर रत्न उछालें
जलद तृप्त सावन होगा

ढूँढ़ रहा मैं रामराज को
संकल्पों की राहों में
नहीं असम्भव कुछ भी मित्रो
नवजीवन की चाहों में
मैं कबीर का पथ अनुगामी
लड़ता नित्य अंधेरों से
सूरज,चंदा - सा बन जाता
हर बिछुड़े की बाँहों में

विश्वासों के दीप जलेंगे
हृदय स्वस्तिवाचन होगा

डॉ राकेश चक्र
 90 बी शिवपुरी
 मुरादाबाद -244-001
 मोबा.9456201857

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के सिरसी ( जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----ज़मीर की आवाज़


राहत मियां इबादत के लिये जाने को हुए तो उनके अंदर से आवाज आई कि -"नही, यह सही नही है। दफ्तर का टाइम हो गया है" ।
तभी दूसरी आवाज़ ने कहा-"अरे!तुम कोई गलत काम थोड़े ही कर रहे हो, इबादत ही के लिये तो जा रहे हो, थोड़ी ही देर की तो बात है इतनी देर में क्या हो जायेगा"।
राहत मियां  पसोपेश(असमंजस ) में पड़ गये तभी पहले वाली आवाज ने फिर कहा-"इबादत बुराइयों से रोकती है। अगर तुम देर से दफ्तर  जाओगे तो यह गलत बात होगी  अल्लाह इससे खुश नही होगा  तुम  बाद में भी  इबादत कर सकते हो"।
और ज़मीर की इस आवाज़ पर राहत मियां के क़दम बिना इबादत किये  दफ्तर की ओर उठ गये।दफ्तर से आकर राहत मियां इबादत के लिये गये और वापस आये तो आज की इबादत में मिले सुकून और इत्मीनान की झलक उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी।

कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी  (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा --------गंदगी


पिछले दिनों एक मंदिर में जाना हुआ। वहां सिल्क का खूबसूरत कुर्ता पैजामा पहने एक महोदय मासूम और भोले भाले से दिखने वाले एक युवक को बुरी तरह से डॉट रहे थे -- क्या गंदे संदे कपड़े पहन
कर आए हो।तुम्हे पता नहीं - मंदिर में किसी भी तरह की गंदगी वर्जित है।
        थोड़ी देर में मैंने देखा।वो महोदय अपनी कामुक निगाहों से,महिला भक्तो को बराबर घूरे जा रहे थे।

डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा -----पहला प्यार

 
प्यार तो हो ही जाता है जैसे उसे भी हो गया था ....तभी तो जया को देखने के लिए वह कालेज के दरवाज़े पर खड़ा रहता ।जया कालेज के दरवाज़े से सहेलियों के साथ हँसती हुई निकल जाती ....और वह उसे देखता रहता। जया थी भी बहुत सुंदर....सफ़ेद बर्फ़ सी रंगत ,गहरी आँखे,लम्बे बाल .......चेहरे की मासूमियत सुंदरता में चार चाँद लगा देती।सूरत और सीरत दोनो में ही जया सबसे अलग थी।जया ने उसे कभी नही देखा पर उसका दिल तो जैसे ......जया के लिए ही धड़कता था।
जया का कालेज जब पूरा हुआ .....उसका रिश्ता एक अमीर घर में तय किया गया .....दुल्हन बनी जया ऐसी लग रही थी जैसे किसी देश की राजकुमारी हो।जो अपने राजकुमार के इंतज़ार में पलकें बिछाये है......
अरे .....बारात वापस लौट गयी ,पर क्यों........जया के पिता जी ने तो पगड़ी भी रख दीं थी  कि जल्द ही दहेज की रक़म पूरी कर देंगे पर...........
इसके बाद जया तो जैसे टूट ही गयी थी .....सुंदर चेहरा मलीन होता जा रहा था..........
इस ज़माने में बुरे लोग है तो अच्छे भी है -दादी कहती जा रही थी ...जया एक बहुत अच्छे लड़के का रिश्ता आया है तेरे लिए ।लड़का इसी शहर का है ,सुना है पढ़ा हुआ भी उसी कालेज का है जिसमें तू पढ़ती थी......
उसे अंततः अपना पहला प्यार मिल ही गया।

                             
प्रीति चौधरी
 गजरौला ,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा -------पुरस्कार


बहुत बड़े एनजीओ की अध्यक्षा  अपनी वृद्धा सासू माँ से बोली... माताजी मैंने आपका सामान पैक कर लिया है.... मैं आपको वृद्ध आश्रम में छोड़ देती हूँ। .....मैं पूरे दिन समाज सेवा में लगी रहती हूँ...और आप यहां मेरे जाने के बाद अकेली रहती है ।... वृद्धा आश्रम मेंआपको आपके जैसी बहुत सारी औरतें मिल जाएंगी। जो आपसे बोलती भी रहेगी ।और आपका समय आराम से कट जाएगा और आपको अकेलापन भी नही लगेगा।....  ऐसा कह कर वह अपनी सासू माँ को गाड़ी में बैठा वृद्धाश्रम में  छोड़ कर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस  पर पुरूस्कार  प्राप्त करने के लिए दिल्ली के लिए रवाना हो गयी।

स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---------व्यवसायी कौन


दरवाजे की घंटी बजते ही योगेश बाबू ने दरवाजा खोला, देखा तीन चार लोगों के साथ श्रीनाथ बाबू खड़े थे।
अरे श्रीनाथ जी, कहिए कैसे आना हुआ।
योगेश बाबू, शहर में सत्संग होना है। बहुत बड़े.धर्मगुरु आ रहे हैं। एक सप्ताह का भागवत कार्यक्रम है। आप भी सामर्थ्यानुसार कुछ योगदान कीजिए, श्रीनाथ जी बोले।
हुम्म, कुछ सोचते हुए योगेश जी बोले ठीक है, पाँच सौ एक की रसीद काट दीजिए।
अरे योगेश बाबू एक सप्ताह का कार्यक्रम है, लाखों का खर्च है आप अपनी क्षमतानुसार कुछ सम्मानजनक योगदान कीजिए, श्रीनाथ जी बोले।
योगेश जी थोड़ी देर सोचते रहे, फिर मानों उन्हें कुछ रास्ता सूझ गया, उन्होंने श्रीनाथ जी को अलग से एक ओर बुलाया और बोले देखिए श्रीनाथ जी, ये धर्मगुरु भी अब.व्यवसायी हो गये हैं। ये भागवत आदि के कार्यक्रम तो इनका धंधा है। आप ऐसा करो एक स्टाल ब्रास के पूजा आइटम्स का मेरा लगवा दो। जो कमाई होगी उसका आधा महाराज जी को मिल जायेगा।
अगर महाराज जी अपने प्रवचन में इन पूजा आइटम्स को खरीद कर एक दूसरे को उपहार देकर पुण्य कमाने का जिक्र कर देंगे तो समझ लो चार पाँच लाख की बिक्री हो जायेगी और चालीस पचास हजार मुनाफा हो ही जायेगा।
सारी बात सुनकर श्रीनाथ जी हतप्रभ रह गये। कुछ सम्हलकर बोले: ठीक है योगेश बाबू, आयोजकों से पूछकर आपको बताऊँगा।
यह कहकर श्रीनाथ बाबू चल दिये।
जाते जाते वह यही सोचते जा रहे थे कि व्यवसायी कौन है, महाराज जी या योगेश बाबू।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG -69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद। उ.प्र.
 मोबाइल नं. 9456641400

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की कहानी ----------दूसरी

 
      बीस साल हो गए थे कविता को इस घर में आए हुए ।  क्या नहीं किया था उसने । सास ससुर की सेवा , पति को भरपूर प्रेम ,  तीनों बच्चों की  दिल से परवरिश और इन छह प्राणियों की गृहस्थी की कुशल गृहणी की तरह देखभाल । पर जब भी कानों में कुछ सुनने को पड़ता तो यही कि जब से यह दूसरी आई घर की चाल ही बदल गई ।
       कविता की शादी जब नरेश से हुई तब कविता तो कुँवारी थी परंतु नरेश अपनी पहली पत्नी खो चुके थे और पहली पत्नी से उनके तीन बच्चे थे जो बहुत छोटे और मासूम थे ।  माँ बाप बूढ़े थे और बच्चे बहुत नादान ।  ना चाहते हुए भी नरेश को आनन-फानन में दूसरे विवाह का सेहरा सजाना पड़ा था । कौन संभालता उसकी बिखरी हुई गृहस्थी को ।
            कविता नरेश के दूर के रिश्तेदार की भांजी थी ।  माँ बाप गरीब थे अतः जब नरेश का रिश्ता कविता के लिए आया तब कविता की भावनाओं का ध्यान रखें बिना उन्होंने झटपट हाँ कह दी क्योंकि नरेश की दहेज ना लेने की बात ने उन्हें कविता के ब्याह की और दहेज की चिंता से मुक्ति दिला दी थी ।
          कविता नरेश की दूसरी पत्नी बन कर आई थी ।  माँ बाबूजी की दूसरी बहू और बच्चों की दूसरी माँ । "दूसरी" शब्द कविता के नाम का पर्यायवाची बन गया  था । सोते जागते कोई ना कोई बात ऐसी बात हो ही जाती थी जिससे कविता को यह अहसास दिला दिया जाता था कि वह "दूसरी" है ।  कविता कौन सा फूलों की सेज पर जीवन गुजार कर आई थी उसे भी किसी ताने का या ठिठोली का असर ही नहीं होता था ।
           समय पंख लगा कर उड़ रहा था । बच्चे बड़े हो रहे थे । खुद माँ बनने की इच्छा का भी कविता ने यह सोच कर गला घोंट दिया कि दूसरी की औलाद का नामकरण ना जाने क्या हो ? और फिर गृहस्थी भी एक और नया बोझ उठाने में असमर्थ थी ।  वैसे उसने बच्चों को और बच्चों ने उसे दिल से अपनाया था और उनके निश्छल प्रेम में कविता बार-बार दिलाए जाने वाले "दूसरी" के अहसास को  नजरअंदाज कर देती थी ।
           आज बड़े बेटे का तिलक था । घर मेहमानों से अटा पड़ा था । लड़की वाले समय पर आ गए थे । ढोलक की थाप पर बन्ने गाए जा रहे थे कि अचानक तिलक की रस्म करते लड़की के भाई को रोकते हुए पंडित जी ने कहा कि पहली रस्म लड़के की माँ की है ।  सभी एकसाथ बोल पड़े  "हाँ भई पहली रस्म तो माँ की" कोई इधर से बोला कोई उधर से । 
           "पहली"   "पहली"   "पहली" कविता के कान गुंजायमान हो रहे थे । बेटे के सिर पर माँ ने आँचल बिछाया तो बलैया लेती वृद्ध दादी की आँखों में खुशी की नमी आ गई पर ज़ुबान का क्या करें ?
मुँह खोला ही था कि  "आज अगर पहल"  आधे वाक्य को बीच रास्ते में ही रोकते हुए बड़े पोते के हाथ उनके मुँह को बंद कर दिया था ।  "माँ ही अब सब कुछ हैं दादी"
दूल्हा मुस्कुरा कर दादी का हाथ दाब रहा था ।  और कविता आज "पहली" और "दूसरी" के बंधन से मुक्त हो गई थी ।

सीमा वर्मा
मुरादाबाद


मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा --------गरीब का स्कूल


"हम भी अपने बच्चों को मान्टेसरी स्कूल में पढ़ाएंगे", सुमन ने अपने पति राधेश्याम से गम्भीर होकर कहा।
"अरे सुमन ये स्कूल नहीं विद्या की दुकानें हैं। वहाँ किताब से लेकर कपड़े तक सब स्कूल में ही बिकते हैं। और पढ़ाई...!! उसके लिए तो बच्चों को टूशन पढ़ना पड़ता है। इस बड़े व्यापार की दुकान से हम कुछ खरीद सकें ये हम गरीबों के बस की बात नहीं है सुमन ये तो अमीरों के चोचले हैं", राधेश्याम ने समझाते हुए कहा।
"फिर क्या हमारे बच्चे अनपढ़ ही रह जाएंगे जी?" सुमन ने उदास होकर सवाल किया।
"अनपढ़ क्यों रह जाएंगे? हमारे लिए सरकार ने खोले हैं ना कितने सारे स्कूल। और फिर शिक्षा प्रतिभा होने से हासिल की जाती है पैसे से खरीदा हुआ हुनर कभी वक़्त पर काम नहीं आता", राधेश्याम ने कहा और दोनों अपनी बेबसी पर जबरदस्ती मुस्कुरा दिए।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -------मुंडेर की धूप

     
    ... "बुढ़िया कब तक जियेगी मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है... इसकी पेंशन और मकान का लालच न होता तो कब की निकाल कर बाहर कर देती" ! मधु की आवाज सुनकर सुहास के कानों में जैसे किसी ने पिघला शीशा उड़ेल दिया हो.......
वह सुबक उठी...!! . ऐसा अक्सर होता रहता था... ऐसा नहीं है कि मनोज को पता न हो
.......सुहास ने पूरा जीवन ही होम कर दिया था इन्हें बड़ा करने और पैरों पर खड़ा करने में...  उसने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसा दिन भी आएगा  । माता-पिता की दुर्घटना में मृत्यु के बाद अपने सपनों को तिलांजलि देकर पांच भाई बहनों की जिम्मेदारी स्वय ही संभाल ली थी ।
तीन भाई और दो बहन ..सबसे छोटा मनोज तो दो ही साल का था उस   समय ...... 
     ....सुहास  दूसरे नंबर की थी किराए का मकान....
          ********************
          शाम 7:00 बजे का समय दिया था उसने----- होटल मानसिंह में रुका था-बद्री
       अब मिलने का कोई औचित्य नजर नहीं आता... फिर भी वह क्या कहना चाहता है
 यह तो देखना ही था ।
         सूहास का रिटायरमेंट हुए 10 साल हो गए थे 70 साल की वृद्धा को आज युवती होने का एहसास हो रहा था । इसलिए बन  संवर के तैयार हो गई ।
     एक समय था दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे .... शादी का प्रस्ताव बद्री ने ही रखा ! सुहास ने साफ कह दिया यह संभव नहीं.. ‌‌ मेरे ऊपर बहुत जिम्मेदारी है!!
फिर बद्री को कनाडा में जॉब मिल गई......
    गाड़ी निकलवाई और 6:00 बजे ही होटल मानसिंह के कमरा नंबर 205 पर दस्तक दी..... सोचा था कोई स्त्री दरवाजा खोलेगी ! परंतु 75 साल के बद्री दत्त जोशी ने ही दरवाजा खोला उम्र कहां से कहां पहुंच गई थी परंतु चेहरे के हाव-भाव मुस्कुराहट वैसे के वैसे ही थे ....!!!
..."कनाडा से कब लौटे?"
"कल 12:00 बजे ही तो लौटा"
  'कैसे हो?..." तुम्हारी पत्नी कहां है?... 'बच्चे कितने हैं?"सुहास ने एक ही सांस में कई प्रश्न पूछ लिये
बाप रे एक साथ इतने प्रश्न????
..."मेरी छोड़ो अपनी सुनाओ" पति कहां है?".... बच्चे कितने हैं?"बंद्री ने पूछा... "         "कैसा परिवार और बच्चे ?" जब शादी ही नहीं की... सुहास के स्वर में गहरी उदासी थी..!!! मैं जैसे  पहले थी वैसे ही अब हूं...
    "अपनी सुनाओ"!
"मैंने भी नहीं की" शादी"!
.... क्यों?
"प्रस्ताव तो रखा था...!!
.... किस से करता ! तुम जो नहीं मिली !!
     "तुमने क्यों नहीं की शादी??"
......."पहले तो बड़ी दीदी की शादी नहीं हुई"....!! फिर....!. दीदी की  हो गई तो... तो....!!
.....सबकी जिम्मेदारियां पूरी करते-करते समय कब उड़ता चला गया... पता ही नहीं चला...!
फिर तुम जो नहीं थे !! कहते-कहते सुहास का स्वर भारी हो गया..!!
  ... अचानक वातावरण बोझिल हो गया दोनों एक दूसरे को गहराई से देखते ही रह गए.... न कोई गिला शिकवा ना कोई संवाद.. न कोई विवाद !
भावों और संवेदनाओं का ज्वार ऐसा उठा .... आंखों से .... आंसुओं का   ...सैलाब ! दोनों डूब कर एक दूजे में समां गये ...!!!!
                       
  अशोक विद्रोही
  82 188 25 541
  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा---------समीक्षा


कवि तिवारी जी ने कवि त्यागी जी से कहा - भाई त्यागी जी इस नव रचनाकार 'बादल ' ने रचनाएं तो अच्छी लिखी हैं ,अपनी नई किताब  'ग्रहण' में।
पर किताब छपवाने से पहले उसने हम दोनों में से किसी से भूमिका नहीं लिखवाई है । मेरे सम्मान को ठेस पहुंचा है।
तिवारी जी ने शर्मा जी से  कहा - आप बताएं क्या चाहते हैं।
शर्मा जी  ने  कहा - तिवारी जी जो आप बड़े समीक्षक हैं ,किताब आने दे फिर लिखने वाला इंसान है ,छापने वाला इंसान है और साहित्य तो महासागर है... कहीं ना कहीं थोड़ी या ज्यादा गड़बड़ी मिल ही जाएगी। इकबाल ,ग़ालिब, कबीर ,कुमार दुष्यंत.........आदि तक ने हल्की-फुल्की  गलती कर दी है  पर ये इतने बड़े नाम हैं कि इन सब बातों को उनकी रचना के भाव की गहराई को देखते हुए हैं नजरअंदाज कर दिया गया और गलतियों को दफ़न कर दिया गया। पर यह तो नव रचनाकार हैं, किस खेत की मूली है.... बस हल्की फुल्की भी गलती रह गई तो धज्जियां उड़ा देंगे ,अपनी समीक्षा में इस महानुभाव की.....
प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा-----दान


बडी उम्मीद के साथ शैफाली ने पति की मृत्यु के बाद परिवार वालो का विरोध सह कर एक बेटे की  अच्छी परवरिश की उँचे स्कूल मे पढाया।आज वही बेटाउसके  सेवानिवृत्त होने के बाद बार बार उससे उसकी सम्पति अपने नाम लिखने को कह रहाथा  ।काफी सोच विचार के बाद आज उसने निश्चय कर लिया कि वह वसीयत करेगी।।बेटा खुश था कि वसीयत हो गयी।उसकी मृत्यु के बाद जब वसीयत पढी गयी तो बेटे को गश आ गया।शैफाली अपने निवास को छोडकर सारी सम्पत्ति वृद्ध महिला आश्रम के नाम कर गयी जहाँ वह अक्सर सेवा करने जाती थी।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ------- रंग


"अजी सुनते हो, हमारे गाँव से शन्नो दीदी आ रही हैं, आप उनसे कभी नहीं मिले हैं, बिल्कुल अकेली हैं। उनकी आँख का तारा उनका एक इकलौता छोटा भाई था, वह भी पिछले महीने चल बसा। सभी छोटों को अपना छोटा भाई ही समझती हैं......", सोनाली देवी खुशी से चहकती हुई अपने पति निरंजन बाबू से बोलीं।
"शन्नो दीदी..... छोटा भाई......", सुनते ही शन्नो दीदी से दो साल बड़े निरंजन बाबू खुशी से मन ही मन बुदबुदाते हुए, पूरी तरह सफ़ेद हो चुके अपने बालों को काला करने में जुट गए थे।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मंगलवार, 4 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 4 अगस्त 2002 को काव्य गोष्ठी का आयोजन


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ जगदीश शरण की पंद्रह कुंडलियां -----


               ( 1)

गुन के तांई सब नवैं,  जो   पै  अवगुन होय।
गाय दुधारू मरखनी, लात सहैं सब  कोय ।।
लात   सहैं सब कोय ,ध्यान न अवगुन जावै।
अवगुन होयं  हजार, गुन  दस  तिन्हैं दबावैं।।
कहै 'सरन'  कविराय , सुनो  हो  भैया बुनके।
गाय   दुधारू लात, सहैं  सब तांई  गुन  के ।।

                 ( 2 )

गाढ़े दिना बिताइये,  न सदा एक - सा कोय।
सूखा तरुवर भी फलै ,एक दिन   ऐसा होय।।
एक दिन  ऐसा होय, प्रभु  का सुमिरन कीजै।
 पर काजनि  के हेत, सीस आगै  धरि  दीजै।।
कह 'सरन' कविराय , विपत   में  रहिये ठाढ़े ।
बहा लै जाय बहुरि , सुख नदिया दिनहुं गाढ़े।।

           ( 3 )

अन्यायी   राजा   मरै,    मंत्री  गुनाहगार।
दगाबाज सेवक मरै, मरै मतलबी  यार ।।
मरै  मतलबी यार,  मरै  वह  पूत निगोड़ा।
मरै बैल गरियार, मरै वह अड़ियल घोड़ा।।
कहै 'सरन' कविराय ,मरै बदजात लुगाई ।
बेवफा खसम मरै,  राजा मरै  अन्यायी ।।

          ( 4 )

चदरी   थोड़े दाम की,  देय  बहुत आराम।
सदा राखिये  साथ मैं, आवै  बिगड़े काम।।
आवै   बिगड़े   काम,  तपै  जो   देही घामै।
तरुवर होय न पास, रहिए चदरी की छां मैं।।
कह 'सरन' कविराय, घिरै जो काली बदरी।
जंह लौं पार बसाय, बचावै तन  को चदरी।।

                         ( 5)

दीजै  सीस  उतारि कर, सकल उधारी चाम।
 जीवै   सोई  जगत  मैं, आवै  दूजे   काम ।।
आवै   दूजे काम, गरब  क्या    देही  करिए ।
तरुवर होय निपात, यहु दण्ड देह का भरिए।।
 कहै 'सरन' कविराय, भलाई सबकी कीजै।
परमारथ के हेत,  सीस   आगै  धरि  दीजै।।

              ( 6 )

गोरे मुख मत जाइये, लखिये  गुन जो होय।
जैसे बगुला कोकिला, रूप लखैं सब कोय।।
रूप लखैं सब कोय, कोकिला मन को मोहै।
बगुला तो बंचक भए, नित स्वारथ को जोहै।।
कहै  'सरन'  कविराय, धूप  के पीछे    बौरे।
तजिये अवगुन होयं,  रूप  के  मुखड़े गोरे।।

              ( 7 )

साईं ! दौलत  के  सगे, दौलत के हैं यार ।
बिनु दौलत  कब बोलते, बेटा ,बेटी, नार।।
बेटा,  बेटी, नार,  भए  स्वारथ  के   संगी।
छोड़ैं एक  दिन साथ, हाथ जब होवै तंगी।।
कहै 'सरन' कविराय, सुनो ! मतलब के ताईं।
बनत -बनत बहु मीत, धन -दौलत हेतु, साईं।।

               ( 8 )

थाना बसिए  निकट नहीं,  फोकट मिलै जमीन।
 जीवन सकल नरक बनै, मिलै नहीं तसकीन।।
 मिलै नहीं तसकीन,  चैन कब  दिन को आवै ।
 रक्षक ही भक्षक बनै, फिर चोर नजर न आवै।।
 कहै 'सरन' कविराय, तजुर्बा  यहु अजमाना ।
मरिए पर बसिए नहीं,  होयै   जहां भी थाना।।

           ( 9 )

पैसा  सों  सब  होति  है, बिनु पैसा सब जाय।
जब लगि पैसा हाथ मैं, तब लगि चिंता नाय।।
तब लगि  चिंता नाय, पैसा   सब   रंग  तोलै।
मुख तो भया  निबोल, पैसा  सब  ढंग बोलै।।
कहै 'सरन'  कविराय, करिश्मा   यामै  ऐसा ।
मन के मते न जाय, जब मति  चलावै पैसा।।

               ( 10 )

गोरी  मूरख  तै भली , चतुरी   कारी  नार।
चतुर संवारै कुटुम को, मूरख देय उजार ।।
 मूरख देय उजार , गुन तै  हु   कारी  भावै।
 निरगुन  गोरी नार, यार कब चित पै आवै।।
कहै 'सरन' कविराय, रूप की दुनियां बौरी।
तजि गुन कारी नार, गहै जो अवगुन  गोरी।।

         ( 11 )

बोली  करकश भी  भली, समया  बोलै कोय।
जैसे  कागा  भोर का, सबद  सुहावन   होय।।
 सबद सुहावन होय, समय पर काम सुहावत ।
बेसमया मधु राग,  कबै  कोकिल का भावत।।
कहै 'सरन' कविराय, समय की भली ठिठोली।
 जैसा    समया   होय, बोलिये   वैसी   बोली।।

                ( 12 )

सीधा   पैंडे  चालिये, भले  मिलै   बहु  फेर ।
चंगा   घर  मैं  पहुंचिये,  ऐसी   भली अबेर।।
 ऐसी  भली  अबेर , गहे    जो  भूले बटिया ।
उतै मिलैं  बटमार, छिनै  जर जोरू लुटिया।।
कहै 'सरन'  कविराय,  पकड़िये   पैंडा छीदा।
जीवन बहु अनमोल, तौलि कै चलिये सीधा।।

           ( 13 )

संगत तिसकी  बैठिये,  अवगुन  देवै काढ़।
जैसे सूप अनाज का, कर दे दूर  कबाड़ ।।
कर दे दूर कबाड़, तन कंचन ज्यों विकसै ।
जग मैं होवै  मान ,बोल ज्ञानी -सा निकसै।।
कहै 'सरन' कविराय,जगत की सिगरी रंगत।
जो चाहत तो गहिये, भले लोगनि की संगत।।

         ( 14 )
साईं, दौलत के  बिना, झूठे  सब  ब्यौहार ।
दौलत होय तु डोलि है, संग मतलबी यार।।
संग  मतलबी  यार, नार  सब  पीछै  डोलैं।
 दौलत  रहै न  पास, बेई मुख से न  बोलैं।।
 कहै 'सरन' कविराय, जन दौलत हु के तांई।
 असनाई सब जात, बिन दौलत हु के, सांई।।

           (  15 )
चेला धुर मूरख मरै, अरु मरिए गुरु लबार ।
प्रपंची   साधू    मरै,  गरजी     साहूकार ।।
गरजी   साहूकार,  मरै  वह  कुलटा  नारी।
मरै  छिछोरा  पूत, पुरुष  मरै व्यभिचारी ।।
कहै 'सरन' कविराय, मरै वह कंत  गहेला।
गुरु को दाग लगाय, मरै धुर मूरख चेला।।


पाद टिप्पणी :   बुनके = बुनकर, जुलाहा। गाढ़े = बुरे, दुख के।  गरियार= सुस्त  ।  निपात = पतझड़।  धूप = चमक। तसकीन = शांति।

   
 डॉ. जगदीश शरण
 डी- 217, प्रेमनगर, लाइनपार, माता मंदिर गली, मुरादाबाद-- 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल :  983730 8657