शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की रचना -----संस्कृति है गंगा सी धारा


संस्कृति है गंगा सी  धारा
संस्कृति है गंगा सी धारा
बहती रहती अविरल कल-कल
युग युग  से करती जाती है यह
जन मानस को  निर्मल शीतल
कितनी उप-संस्कृति की धारा
इसमें प्रति क्षण  मिलती जातीं
इसके इस विराट रूप  में
निज पहचानें खोती जातीं
जैसे गंगा के रस्ते में
जगह जगह पर  लोग बसे हैं
इसी तरह संस्कृति के धारे
कला अदब  के पुष्प खिले  हैं
हर इक की पहचान अनोखी
एक दूसरे से  बहुत अलग
लेकिन फिर भी एक सूत्र  से
जुड़े हुए हैं नहीं विलग
नहीं बना करती है संस्कृति
चंद मास या कुछ वर्षों में
सतत प्रक्रिया है चलने की
कितने लोग जुड़े हैं इसमें
गढ़ी हुई संस्कृतियाँ देखो
ढह जाती हैं कुछ ही पलों में
इसी लिए गढ़ने के बदले
बेहतर होगा बसे दिलों में .

        https://youtu.be/HihAn9cLPiI

**प्रदीप गुप्ता
 B-1006 Mantri Serene
 Mantri Park, Film City Road ,   Mumbai 400065

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