शनिवार, 8 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचना


प्राथमिकता घर की प्रभु
क्या बताऊँ, क्या गिनाऊँ

तोड़ तारे मैं जो लाया
सीमित अपनी आय से
लगे कहन मेरे सुखनवर
लो फूट गये  भाग रे 

प्राथमिकता घर की प्रभु
क्या बताऊँ, क्या गिनाऊँ

चाँद आँगन जब जब उतरा
मनचाही घनश्याम रे
पूर्णिमा अमावस्या लागी
चढ़ती बढ़ती सांझ से

प्राथमिकता घर की प्रभु..

आरती का थाल सजाके
फूल इच्छाओं के रखे
घी जला जितने थे साधन
भोग छप्पन न आ सके..

प्राथमिकता घर की प्रभु..

चढ़ रही जवानी देहरी
छम छम बिछुए पाँव में
एक अदद पेंशन बची है
आशाओं के गाँव में।।

प्राथमिकता घर की प्रभु..
क्या बताऊँ क्या गिनाऊँ

रही रोती विवशता और
सपनों का संजाल प्रिय
बंद आँखों में फिर तैरा
कौन पराया, कौन हिय।।

प्राथमिकता घर की प्रभु
क्या बताऊँ, क्या गिनाऊँ

सूर्यकान्त

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