वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत मुरादाबाद के प्रख्यात उर्दू साहित्यकार स्मृतिशेष गौहर उस्मानी की पुण्यतिथि छह अगस्त पर उन की शायरी और शख्सियत पर चर्चा की गई। यह ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा दो दिन चली।
सबसे पहले ग्रुप के सदस्य डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने गौहर उस्मानी साहब का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया, जिसमें गौहर साहब के प्रारंभिक जीवन, उनकी शायरी, उनकी शख्सियत, उनके किताबों के बारे में चर्चा की, उनको जो सम्मान मिले उनके बारे में बताया और उनके कुछ मशहूर शेर पटल पर प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि मोहम्मद अहमद उस्मान 'गौहर' उस्मानी का जन्म 29 अप्रैल 1924 को मुरादाबाद में हुआ था। उनके उस्ताद (साहित्यिक गुरु) रशीद अहमद खान 'हिलाल' और सिराजुल हक़ 'क़मर' मुरादाबादी रहे। उनकी प्रकाशित कृतियों में ऐतिराफ़ (1984), इदराक (1993) दोनों ग़ज़ल संग्रह, तजल्लियाते-क़मर (1967)और मैराज-उल-क़ुद्दूस (1988) हैं। सन 2012 में तस्लीम अहमद ख़ान ने रुहेलखंड *विश्वविद्यालय* , बरेली से *"गौहर उस्मानी : शख़्सियत और अदबी ख़िदमात"* के शीर्षक पर पी.एचडी. की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपना शोध-कार्य रामपुर रज़ा डिग्री कॉलेज की प्रोफेसर सईदा रिज़वी के सुपर विज़न में पूरा किया। उनका इंतेका़ल 6 अगस्त 2004 को हुआ था।
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौहर उस्मानी साहब से मेरा परिचय मुरादाबाद आने के बाद हुआ। यद्यपि कलेक्ट्रेट के मुशायरे और कवि सम्मेलन में मैं पहले भी एक दो बार आ चुका था। लेकिन आत्मीयता से जुड़ाव भरे रिश्ते की नींव मुरादाबाद आने के बाद ही पड़ी। गौहर साहब की शायरी परम्परावादी और आधुनिकता की संधि बिंदु का बेहतरीन नमूना है ।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि आदरणीय गौहर उस्मानी साहब की ग़ज़लों के बहुत से शेर भाई मंसूर उस्मानी जी से सुनने में आये हैं, भाई ज़िया ज़मीर जी के पटल पर आज कुछ ग़ज़लें भी पढ़ी हैं। शायर या कवि वही है जो आने वाले कल की नब्ज़ पहचान ले। जीवन और मृत्यु की हक़ीक़त समझ लें। उस्ताद शायर की कलम ही सामाजिक बदलाव के असर की ओर इशारा करते हुए शायरी कर सकती है।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मुरादाबाद की अदबी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले शांत स्वभाव के गौहर उस्मानी साहब अपनी शायरी और इंसानी दायित्व निर्वहन की दुनिया के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वही शायर बड़ा होता है जिसमें इंसानियत होती है और उसके कुछ शेर ज़ुबां पर होकर चर्चा में रहते हैं। वो इस सम्पदा के स्वामी थे।
मशहूर और मकबूल शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मैं उस अज़ीम शख्सियत पर क्या लिख सकता हूँ, जिन पर देश और दुनिया में बहुत कुछ लिखा गया है। फिर भी इतना जरूर लिखूँगा कि आज मैं जो कुछ हूँ अपने वालिद मरहूम की ही बदौलत हूँ। दुनिया जानती है कि शायरी में वो ही मेरे उस्ताद थे। उन्होंने जो मुझे सिखाया जो मुझे संस्कार दिये वो मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सरमाया हैं। मेरे वालिद मोहतरम गौहर उस्मानी साहब ने एक नया रास्ता अपनाया, जो उनका अपना रास्ता था, जिसमें वो इतने कामयाब रहे कि साहित्यिक जगत में उनकी अलग पहचान कायम हुई।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि ये कहते हुये मुझे कोई संकोच नहीं है कि गौहर साहब का अपना जुदागाना उसलूब है। गौहर साहब की शायरी परम्परा से जुड़ी आधुनिक शायरी है। उनका हर शेर उनके समय के साथ साथ आज की कसौटी पर भी खरा सोना है। उनकी शायरी पर किसी का रंग नही है। उनकी राह अपनी है। अशआर मे सकारात्मकता है, हौसला है।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि मोहतरम गौहर उस्मानी साहब का शुमार मुरादाबाद के उस्ताद शायरों में किया जाता है। यक़ीनन वो जितने अच्छे शायर थे, उतने ही अच्छे इंसान भी थे। उनके लहजे में मिठास के साथ-साथ अपनत्व और प्यार के ख़ूबसूरत रंग स्पष्ट झलकते थे। अपने छोटों के साथ भी वह बहुत सम्मान के साथ पेश आते थे। गौहर साहब ने रिवायत का दामन भी नहीं छोड़ा और जदीदियत को भी हंसकर गले लगाया।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फ़राज ने कहा कि गौहर साहब की शायरी जिस फ़िक्री बुलन्दी पर परवाज़ कर रही थी इसका अंदाज़ा खुद उन्हें भी था। ज़िन्दगी के लिए उनका रवय्या बहुत सकारात्मक था। मुश्किल से मुश्किल हालात में भी उन्होंने सब्र का दामन हाथ से नहीं छोड़ा और न ही मायूसी को क़रीब आने दिया।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के प्रख्यात उर्दू साहित्यकार स्मृति शेष गौहर उस्मानी जी की शायरी में जिंदगी और उसके मसायल, हालात के बदलते रुख, जालिम और मजलूम के दरमियान होने वाले मामलात, बुराई को भलाई में बदलने की कोशिशें तथा देश के प्रति पूरी पूरी वफादारी दिखाई देती है। उन्होंने इश्क और हुस्न तथा शराब और शबाब की शायरी से अलग हटकर ज़रूर लिखा परंतु ग़ज़ल की रिवायत हमेशा बरकरार रही। उसमें वही नज़ाकत और मिठास रही जो उर्दू शायरी की एक पहचान है । उन्होंने गौहर साहब से अपने परिचय का उल्लेख करते हुए तीस साल पहले उनसे लिया गया इंटरव्यू भी जो उस समय दैनिक स्वतन्त्र भारत के मुरादाबाद संस्करण में छपा था, उसे पटल पर प्रस्तुत किया।
मशहूर नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि ग़ज़ल हो और मुहब्बत की बात न हो, ऐसा हो नहीं सकता। जनाब गौहर साहब की ग़ज़लों में भी मुहब्बत है। लेकिन यह मुहब्बत सिर्फ प्रेमिका के ही लिए न होकर देश के लिए और इंसानियत के लिए है। उनके कई शे'र इंसानियत की सुरक्षा के प्रति उनकी चिंता को भी प्रतिबिंबित करते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि 'गौहर' का एक अर्थ मोती भी होता है। मुरादाबाद के साहित्यिक पटल का यह सौभाग्य है कि श्रद्धेय गौहर जी के रूप में शायरी का एक ऐसा नायाब मोती उसके खजाने का हिस्सा बना, जिसकी चमक से साहित्य जगत रौशन था।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि गौहर साहब की ग़ज़लों में रिवायती रंग के होते हुए भी अपने वक़्त के समाजी-सियासी हालात से गहरा जुड़ाव पाया जाता है। आप के दौर के दूसरे अक्सर शोअरा जब कि उस दौर के हालात की अक्कासी करने के लिए ग़ज़ल की रिवायती लफ़्ज़ियात से समझौता कर चुके थे, आप ने ये मंज़ूर न किया। यानी न रिवायात से समझौता किया, न मौजूदा हालात ही को नज़र-अन्दाज़ किया। और ये आप की बड़ी ख़ूबी रही।
समीक्षक डॉ रबाब अंजुम ने कहा कि खास बात यह है कि गौहर साहब ने आधी सदी पहले ही आज के हालात की आहट पा ली थी। जदीदियत और रिवायती शायरी का हसीन संगम उस्ताद जनाब गौहर उस्मानी का कलाम एक मुनफरिद एहमियत का हामिल है।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मोहतरम गौहर उस्मानी जी के साहित्यिक योगदान और उपलब्धियों का नायाब गुलदस्ता अपनी सुगंध से हमारे दिल और दिमाग़ को महका रहा है। वे निस्संदेह एक ऊँची शख्सियत थे,अपने छोटे से कद की सामर्थ्य के अनुसार अभी तक तो मैं उन्हें पूरी तरह निहार पाने की ही जद्दोजहद में लगी हूँ। उन पर कुछ लिख पाना तो दूर की बात है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि कलेक्ट्रेट में हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर होने वाले अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और मुशायरे में स्वर्गीय गौहर साहब को सुना करते थे। तब शायरी कुछ कम ही समझ आती थी लेकिन ग्रुप में दी गईं ग़ज़लों को पढ़कर उनके बड़े शायर होने का एहसास हुआ। लगभग सभी ग़ज़लें बेहतरीन हैं।
समीक्षक डॉ अजीमुल हसन ने कहा कि गौहर साहब अपनी शायरी में सिर्फ इश्क़ ओ मुहब्बत की बातें ही नहीं करते बल्कि उनकी शायरी उनके अहद से आगे की शायरी है शायद आपने मुस्तक़बिल की ग़ज़ल के कदमों की आहट को महसूस कर लिया था। आपकी शायरी रिवायती शायरी और जदीदियत का एक ऐसा कॉम्बिनेशन है जो बहुत कम शोअरा की शायरी में देखने को मिलता है।
शायर अहमद मियां उस्मानी ने कहा कि मैं मुरादाबाद लिटरेरी क्लब का दिल से शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने मेरे वालिदे मोहतरम हज़रत गौहर उस्मानी साहब के यौमे-वफ़ात पर उनकी याद में यह कार्यक्रम किया। मेरे वालिद मोहतरम गौहर उस्मानी साहब की शख्सियत और शायरी और उनकी अदबी ख़िदमात पर रोशनी डाली और उनको ख़िराजे अकीदत पेश किया।
ग्रुप एडमिन और संयोजक शायर जिया ज़मीर ने कहा कि यह शायरी ज़िंदगी के आला अक़दार और आला मेअयार की तर्जुमान है। यह शायरी जहां वक़्त की ना-हमवारी, रिश्तो की टूट-फूट और ज़िंदगी के हर अच्छे-बुरे तजुर्बे का बयान है, वहीं यह शायरी राह दिखाने वाली शायरी भी है। वफ़ा की राहों पर बड़े इन्हिमाक से चलने और इस रविश पर फक़्र करने वाली शायरी भी है। यह शायरी जब यह कहती है -
खंडर दयारे-वफा के कुरेद कर देखो
हमारे नाम का पत्थर ज़रूर निकलेगा
इसमें जो 'ज़रूर' है, वो एतमाद ज़ाहिर करता है कि किसी भी दौर में, किसी भी वक़्त में अगर वफ़ादारी की मिसाल दी जाएगी, चाहे वो वफ़ादारी मुल्क से हो, चाहे इंसानियत से हो, चाहे आपसी रिश्तों के लिए हो, हमारा नाम ज़रूर आएगा। इस नाज़ुक दौर में, जब हर शब्द के नए अर्थ बनाए जा रहे हैं, इस शेर की अहमियत और बढ़ जाती है।
-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें