रविवार, 16 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 अगस्त 2020 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । इस ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ प्रेमवती उपाध्याय, ओंकार सिंह ओंकार, डॉ मीना कौल, शिशुपाल सिंह मधुकर ,डॉ मीना नकवी , वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ पूनम बंसल, श्री कृष्ण शुक्ल, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही , डॉ रीता सिंह, रवि प्रकाश , कमाल जैदी वफ़ा, प्रीति चौधरी, नृपेन्द्र शर्मा सागर, रचना शास्त्री, सीमा वर्मा, कंचन लता पांडेय , संजय विश्नोई, राजकुमार सेवक, डॉ कृष्ण लाल विश्नोई, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, अम्बरीष गर्ग, योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं ------


क्रूर कंस वसुदेव-देवकी कारा में डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म, खुले बन्दीगृह के ताले।।

छटा अनीति का अंधकार,
सत का सूरज चमका।
घोर अंधेरी अर्द्ध रात्रि,
में गगन इन्दु दमका।

गये पहरुए सोय, गिर गए हाथों से भाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

अम्बर पर काली-काली,
घनघोर घटा छाई।
चपला चमकी नभ बीच,
चली पूरब से पुरबाई।

अद्भुत हुआ प्रकाश बहे नभ से अमृत नाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

गगन गिरा कर श्रवण,
प्रकम्पित कंस हुआ भारी।
सुन प्रचंड ध्वनि, अंतरिक्ष,
की जागे नर नारी।

हुआ मृत्यु आभास, छा गए कंस दृगन जाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

मास भाद्रपद कृष्ण पक्ष की,
अष्टम तिथि आई।
वृहत सूचना युग परिवर्तन,
की संग-संग लाई।

काल पुरुष ने क्रूर कंस के मान मिटा डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

भर वसुदेव अंक कृष्ण को,
गोकुलधाम चले।
देख अगम जल जमुना जी का ,
मन शत बार हिले।

चरण छुअन हित उठी तरंगें, साध हिये पाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

नव युग का निर्माता, नायक,
नन्द भवन पहुँचा।
यसुदा जन्में लाल हुई,
घर घर में शुभ चर्चा।

वेश बदल दर्शन हित आये ,अर्ध्य चन्द्र वाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

कृष्ण जन्म ने जन-गण के मन,
अभय बीज बोया।
जगा राष्ट्र का स्वाभिमान,
जो तब तक था सोया।

हुआ धरा पर स्वर्ग अवतरण, जिसके थे लाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

बजी क्रांति की दिव्य बाँसुरी,
संगठन किया भारी।
अनाचार की अंधियारी में,
बिखरी उजियारी।

बांध राष्ट्र को एक सूत्र में भाग्य बदल डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

राजनीति के प्रखर प्रेणता,
कृष्ण कन्हैया थे।
साथ साथ उनके वलशाली,
दाऊ भैया थे।

इन युग्मो की कला-कीर्ति में कागज रंग डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।

✒️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय
 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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दर्द में डूबी है क्यों रात ,कोई क्या जाने !
किसने बख़्शी है ये सौग़ात, कोई क्या जाने !

आज छप्पर से टपकता है जो पानी घर में ,
कैसे गुज़रेगी ये बरसात , कोई क्या जाने !

जाने कब लौट के फिर आएँ मेरे आंगन में ,
गूँजते प्यार के नग़मात,कोई क्या जाने !

आज किस वास्ते मुरझाई हैं कलियाँ प्यारी ,
कैसी पेड़ों से हुई घात, कोई क्या जाने !

छोटा घर छोड़के महलों में ठहरती है सदा ,
धूप के दिल में है क्या बात, कोई क्या जाने !

किसलिए शोले भड़कते हैं किसी के दिल में ,
क्यों झुलस जाते हैं जज़्बात, कोई क्या जाने !

कल को "ओंकार" किसे घेरे अँधेरा ग़म का  ,
रास आएँ किसे हालात, कोई क्या जाने !
     
 ✍️ ओंकार सिंह "ओंकार"
1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244001
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आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।

ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।

अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।

चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी

सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।

अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की

मन दर्पण पर जमी  हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।

हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं करने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।

रंग  बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।
   
 ✍️ डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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आओ मिलकर सभी निकालें
 हर मुश्किल का हल

मुश्किल क्योंकर है पहले तो
        यही समझना है
 बेमतलब की बातों में अब
         नहीं  बहकना है             
         सूझ - बूझ से ही निकलेगा
           हर परिणाम सुफल
         
सच का प्रहरी ही बन सकता
          निश्छल मन वाला
राग द्वेष से दूर ही रहता
          अपनेपन वाला
          मानवता के रंग में वह तो
            जाता खुद ही ढल

समय छेड़ कर तान बेसुरी
               हमें छकाता है
 छल - छद्मों से भरे स्वप्न अब
               हमें दिखाता है 
              इससे लड़ने को भर लें हम
               नैतिकता का बल
       
✍️  शिशुपाल "मधुकर"
 मुरादाबाद
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15  अगस्त सन् सैतालीस को देश मेरा आज़ाद हुआ।
गहन तिमिर से सूरज निकला ,चहुँओर आह्लाद हुआ।।

अग्रेजो़ ने भारत छोडा़, परसत्ता अवसान हुआ।
सफ़ल अन्त मे वीर सपूतों का अनमिट बलिदान हुआ।।

आजादी को प्राण मिले ,जीवन एक वरदान हुआ।
गाँधी के स्वप्नों   से चहुँ दिश भारत का सम्मान हुआ।।

कोमल कोमल कली पुष्प को साहस से फौलाद किया।
जंजीरों से भारत माँ के तन मन को आज़ाद किया।।

समय ज़रा सा क्या बदला हम हर बलिदान को भूल गये।
आजादी को पाते ही हम मान अपमान को भूल गये।।

दहेज हत्या  बलात्कार से नारी  जीवन त्रस्त हुआ।
आजादी आई   है किन्तु प्रेम का सूरज अस्त हुआ।।

वर्ग जाति और कुनबों ने भारत  को बर्बाद किया।
नफ़रत  के कु प्रभावों ने भावों का अवसाद किया।।

किंकर्तव्यम् जनता है  और नेता भष्टाचारी है।
आतंकवादी  हमले सहना अनचाही लाचारी है।।

अपने ह्रदय मे  ही हम प्रेम के बोज को  बोना भूल गये।
भारतवासी हो कर भी हम भारती  होना भूल गये।।

आओ करे सकंल्प कि  अब इस देश  को  स्वर्ग बनाना है ।
अम्न  के फ़ूलों की खुशबू से हर दिल को महकाना है।।

नहीं ज़रूरी इतना कि हम ज्ञानी ध्यानी बन जायें।
सर्व प्रथम मत भेद भुला कर हिन्दुस्तानी बन जायें।।
       
 ✍️ डा. मीना नक़वी
सबसे मिलकर---
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सबसे मिलकर चलने वाले,
सदियों तक जिंदा रहते  हैं,
अनदेखी  करने   वाले   ही,
जीवन भर  निंदा  सहते  हैं।
   
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सच्चे  मानव  के  अंतस  में,
अंतर्द्वंद    नहीं    पलता   है,
केवल खुशियों  के मंदिर  में,
आशा का  दीपक  जलता है,
कुटिल  भावना   रखने  वाले,
सबको  ही   गंदा   कहते  हैं।
सबसे मिलकर--------------

भेद-भाव   बिन  अंतर्मन  में,
श्रद्धा  भाव  स्वयं   आते   हैं,
केवल  प्यार  लुटाने  भर   से,
भटके  भी   मंज़िल   पाते  हैं,
सबकी  खातिर   लड़ने  वाले,
फांसी   का   फंदा   सहते  हैं।
सबसे मिलकर---------------

जग  के  कष्ट   दूर  करने  को,
विष  पीने   से  नहीं   हिचकते,
नहीं   देख   पाते   बच्चों   को,
भूखे    रोते   और    बिलखते,
बच्चे   तो  सबकी  आंखों   में,
बन   करके    चंदा   रहते   हैं।
सबसे मिलकर----------------

निंदनीय   बातें   सुनकर    भी,
क्रोधित   होना    नहीं   सुहाता,
मानवता  का   पथ   ठुकराकर,
इनको  जीना  तनिक  न भाता,
भूल - चूक   के   लिए   सर्वदा,
खुद    भी   शर्मिंदा    रहते   हैं।
सबसे मिलकर----------------

मानवता     में     बहने     वाले,
होते   हैं   मानव   अति   विरले,
सबके   मन   में    बसने   वाले,
अंतर्मन     के      होते    उजले,
ऐसे   मानव    इस    धरती  पर,
बनकर    गोविन्दा     रहते    हैं।
सबसे मिलकर------------------

 ✍️   वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद/उ, प्र,
 9719275453
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इक सलोनी सी सुहानी रीत है ये जिंदगी
प्यार से इसको संवारो मीत  है ये जिंदगी

भोर की पहली किरन  सी देख है उजली धुली
उड़ रही है नील नभ  में  पंछियों  सी  चुलबुली
हार कर भी जो न रुकती जीत है ये जिंदगी

दर्द से होकर गुजरते हर ख़ुशी के रास्ते
मन शिवाला  सब बना है बंदगी के वास्ते
गुनगुना कर तुम जियो तो गीत है ये जिंदगी

याद के नूपुर बजाती चांदनी कि रात है
मौन अधरों पर रुकी यह अनकही सी बात है
आंसुओं में भी खिली जो प्रीत है ये जिंदगी

✍️   डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
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हिंदू मुस्लिम नहीं हमारी, हिंदी ही पहचान रहे।
हम सबके दिल में अब केवल अपना हिंदुस्तान रहे।।

हम विकास के पथ पर चलकर, आगे बढ़ते जायेंगे।
अपने श्रम से मिल जुल कर हम, इसका नाम बढ़ायेंगे।
विश्व शिखर पर सदा सर्वदा, भारत की पहचान रहे
हम सबके दिल में अब केवल अपना हिंदुस्तान रहे।

बाधाएं कितनी भी आयें, हम बढ़ते ही जायेंगे।
देश की खातिर मिटना भी हो, तो फिर मिट भी जायेंगे।
हम न रहेंगे कितु हमारा, भारत सदा महान रहे।
हम सबके दिल में अब केवल,  अपना हिंदुस्तान रहे।

 ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद (उ.प्र.)
244001.
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किया तिरंगा ओढ़ कर, वीरों ने ऐलान।
क़तरा-क़तरा खून का, माटी पर क़ुर्बान।।

दूर नहीं आतंक का, जड़ से काम तमाम।
मेरी सारी रखियाँ, भारत माँ के नाम।।

मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।।

फँस कर माया-पाश में, मन-केवट लाचार।
भगवन इसको ले चलो, भवसागर से पार।।

कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।

सीपी बोली बूँद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।

 ✍️  राजीव 'प्रखर'
(मुरादाबाद)
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मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे!
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
एक क्या सौ जनम तुझ पे कुर्बान मां!
भेंट अपने सिरों की चढ़ाएंगे!
   गोले बारूद से न किसी तोप से
   दिल में डर ही नहीं है किसी ख़ौफ से
   बांध सर पे कफ़न चल  जिथर देंगे हम
   पग न रण में ये पीछे हटाएंगे
मान माता तेरा हम बढ़ायेंगे!
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
  खूं से लथपथ सजे फिर भी बन्दूक से
  मन ये विचलित नहीं प्यास से भूख से
  चढ़ के दुश्मन के सीने पे ध्वज गाड़ दें
  प्यास उसके लहू से बुझायेंगे   !
मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे!
धूल माथे से तेरी लगायेंगे !!
   छोड़ मां-बाप को गांव घर द्वार को
   हम समर्पित हुए मां !तेरे प्यार को
   मन ये संकल्प ले अब जिएं या मरें
   जीत करके ही वापस आएंगे !
मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे !
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
     गीत बनके फिज़ाओं में गूंजेंगे मां!
     बाद मरने के भी तुझको पूजेंगे मां!!
     राख होगा जो तन मिलके गंगा के संग
     तेरी फसलों को हम लहलहायेंगे!
मान माता की राह बढ़ाएंगे !
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
एक क्या सो जन्म तुझ पर कुर्बान मां!
भेंट अपने सिरों की चढ़ायेंगे!
           
 ✍️अशोक विद्रोही
  8218825541
  412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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मत बरसो अब घन बावरे
भर गये सब नदी ताल रे ।

अति बरसना भी दुखदाई
मनहुँ कोई विपदा आई
आ रही चहुँ ओर बाढ़ है
घिर गये सब शहर गाँव रे
मत बरसो अब घन बाबरे ।।

नाले बह चले राहों में
नाली खेल रहीं घरों में
सरिता का सड़कों पर नर्तन
घुमा रहा सब नगर नाव रे ।
मत बरसो अब घन बावरे ।।

बरखा सुख , दुख में न बदलो
कहीं कृषक का श्रम न हर लो
सींच लिया बहुत खेतों को
चले जाओ उलट पाँव रे ।
मत बरसो अब घन बावरे ।।

 ✍️ डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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मजा नहीं पद - पदवी धन का बोझा ढोकर जीने में
मजा मौज से रोज सबेरे राम - नाम रस पीने में
                            (1)
कीमत असली राम - नाम की पहचानो ऐ जग वालो
रुपया - पैसा या जमीन का गर्व नहीं किंचित पालो
रखा  नहीं  कुछ सोना चाँदी हीरे और नगीने में
मजा नहीं पद पदवी धन का बोझा ढोकर जीने में
मजा मौज से रोज सबेरे राम - नाम रस पीने में
                             ( 2)
मिलता है वह नदी किनारे पर्वत की ऊँचाई में
मिलता है हरियाली मरुथल पेड़ों की परछाई में
मिलता है हर रोज सभी बारह हर एक महीने में
मजा नहीं पद - पदवी धन का बोझा ढोकर जीने में
मजा मौज से रोज सबेरे राम - नाम रस पीने में

✍️रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
 रामपुर (उत्तर प्रदेश)
 मोबाइल 99976 15451
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वतन से मौहब्बत है ईमान मेरा,
वतन पर सभी कुछ है कुर्बान मेरा।

भुलावे में रहना न बिल्कुल पड़ोसी,
अगर चीन तेरा तो जापान मेरा।


मज़हब की दीवारें यहां न उठेंगी,
यहां पर है गीता औ' कुरआन मेरा।

वतन पर कटाये यहां सर सभी ने,
यहां रहने वाला है इंसान मेरा।

रहेंगे जो बंधकर के सब एकता में,
बनेगा तभी देश बलवान मेरा।

वतन पर किसी ने जो नजरें उठाई
उसे मार डालेगा  भगवान मेरा।

वतन पर शहादत 'वफ़ा' मिल गई जो,
सुबह शाम फिर होगा  गुणगान मेरा।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य
अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)9456031926
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खेतों को देख झूम जाते
देश-प्रेम गीतों को गाते
हम भारत स्वदेश के बालक
भारती को माँ कह बुलाते।।1।।

सावन में सब रंग रंग जाते
पेंग बढ़ाकर घन छू आते
महक-महक बारिश-बूँदों से
आँगन में खुशियाँ चहकाते।।२।।

भाई बहन रिश्ते महकाते
राखी का त्योहार मनाते
एक प्रेम डोर में बंधकर
बहना-रक्षा वचन निभाते।।३।।

देश प्रेम की नदी बहाते
शहीदों को नमन कर आते
जो दे आज़ादी गये हमें
उन वीरों को शीश झुकाते।।४।।

गुणगान स्वदेशी के गाते
विदेशी से दूरी बनाते
अपने भारत देश का नाम
विश्व पटल पर है चमकाते।।५।।
                           
 ✍️   प्रीति चौधरी
गजरौला ,अमरोहा
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 हो ऊँचा नाम जगत में,
     झुकने ना पाए तिरंगा।
ना लड़े कोई मज़हब को,
     मिटे जात-पात का दंगा।
निज मातृभूमि से बढ़कर,
    कुछ नहीं पूजनीय दूजा।
निश्चय को बना लो हिमालय,
    व्यवहार हो निर्मल गङ्गा।
जब बात देश की आये,
    तब मोह तजो प्राणों का।
ये जान चली भी जाये,
      लहराता रहे तिरंगा।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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है नहीं कोई भवितव्य हमारा
हम हैं नदी की धार में तिरते दिये।

धर बाती अधिकार की जब
चाहे कोई हमें जला दे बुझा दे।
लहर कोई अंचल की ओट ले सहेजे
या जब चाहे धार हमें डुबा दे।
है नहीं कोई मंतव्य हमारा
हम हैं किसी मँझधार में बहते दिये।

माटी के इस दिवले में
तुम प्राण अपने डाल के।
जला दो कहीं मंदिर में
या धर दो देहरी पे बाल के
है नहीं कोई गंतव्य हमारा
हम हैं किसी के द्वार पे जलते दिये।

साँझ ढलते ही जलाये गये
हम भोर होने तक जलते हैं ।
मुसाफिर आते जाते हैं यहाँ
रास्ते भला कब चलते हैं।
कि प्रतीक्षा ही ध्येय हमारा
हम हैं जले बेकार में बुझते दिये।
है नहीं कोई भवितव्य हमारा
हम हैं नदी की धार में तिरते दिये।

✍️  रचना शास्त्री
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    मानवता सो रही है
    भाईचारा खो रहा है
    कैसे करूंँ यकीं के
    मेरा देश रो रहा है
              हर तरफ है लूट जारी
              डाकुओं की भीड़ भारी
              जब रक्षक बने हों भक्षक
              और आवाम सो रहा है
    कैसे करूँ यकीं के
    मेरा देश रो रहा है
                कोड़ों की मार खाकर
                भगत सिंह ने लहू बहाया     
                लाखों ने शीश वारे
                तब देश था बचाया
                पर अब तो देशद्रोह का
                खुल्ला खेल हो रहा है
    कैसे करूँ यकीं के
    मेरा देश रो रहा है
                यह नानक की जमीं है
                यहाँ दयानंद भी आए
               यहांँ राम और कृष्ण ने
               जीवन के पाठ पढ़ाए
    पर अब तो नया चलन है
    "शैतान" बना हर मन है
    किसको "गुरू" हम समझे
    हर कोई  "भगवान" हो रहा है
                  कैसे करूँ यकीं के
                 मेरा देश रो रहा है
    "मैं" हूंँ बस "मेरा" ही सब कुछ
    "हम" शब्द आज गुम है
     एक साथ मिलकर रहना
    "क्या यह भी कोई नियम है ?"
               अपनी थैली भर लो
               किसी और की क्यों सोचो
               "लूटो" "खसोटो" "नोचो"
              "देश" क्या "ईमान" भी बेचो   
    जहाँ देखो वहशियत का
    नंगा नाच हो रहा है
                  कैसे करूँ यकीं के
                  मेरा देश रो रहा है
    एक हाथ में है "प्याला"
    दूजे में "राम माला"
    एक हाथ कर रहा है
   अरबों खरबों का घोटाला
                 एक हाथ में है खंजर
                 दूजे में बम की ज्वाला
                 एक हाथ कर रहा है
                 "निर्वस्त्र" "अबला बाला"
    कहीं "जवानी" को "नशे" में धकेला
    कहीं "बचपन" ही रौंद डाला
    कहीं खाने में जहर घोला
    कहीं पानी विष कर डाला
                    देखो मेरे वतन का
                    देखो मेरे चमन का
                    कैसा पतन हो रहा है
     कैसे करूँ यकीं के
     मेरा देश रो रहा है
             क्या और कसर बाकी है ? 
             क्या और जहर बाकी है  ?
             क्या नौजवानों की रगों में
            कहीं जोश की लहर बाकी है ?   
    क्या इस देश के चेहरे पर
    कोई और दाग बाकी है  ?
                 अब तो कोई भी आए
                 मेरे देश को बचाए
                 ये जो "सो" रही है "जनता"
                 इसे नींद से जगाए
   भटके हुए दिलों में
   फिर "देश प्रेम" जगाए
   ये जो आन है हमारी
   वो "तिरंगा" फिर मुस्कुराए
                 "भारत" विश्व में फिर से
                 एक नई पहचान बनाए
     देखो इस गुलशन का
     इस "जगत गुरू" से वतन का
     कैसा सर्वनाश हो रहा है
                    कैसे करूँ यकीं के
                    मेरा देश रो रहा है
      मानवता सो रही है
      भाईचारा खो रहा है
      कैसे करूँ यकीं के
      मेरा देश रो रहा है ।।

✍️  सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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प्रिय पार्क !
अब तुम इतने भी प्रिय नहीं रहे
सब तुम तक आने में डरते रहे
तुम लाख जतन भले करते रहो
लोग घरों में अपने दुबके रहे

न दौड़ना, टलना न कोई खेल
गृह कार्य में ही निकल रहा तेल
दूर हो गए पास नहीं आना है
यही वजह है किसी का नहीं मेल

✍️ कंचन लता पाण्डेय “कंचन”
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खुश रहने की परिभाषा बदली जीने का अरमान बदल गया
अक्लमंद हो गया हर धनवान  ज्ञानी का सम्मान बदल गया
स्वार्थ की ऐसी आंधी आयी हर मौकापरस्त अपनी जुबान बदल गया
सबसे बड़ा बनने की अंधी दौड़ में इंसान का अपना ईमान बदल गया
ऐसी बोली लगी पुरखो की विरासत की घर का हर सामान बदल गया
मुखौटौं के इस नये परिदृश्य में हर चेहरे का अपना पहचान बदल गया
बुढ़ापे की लाठी ने नजरें ऐसे फेरी माँ की ममता का एहसान बदल गया
दुश्मन हो गया है इंसान ही इंसान का खुद़ा का हर फरमान बदल गया
गंगा को  पवित्र न छोड़ा भगीरथ को मिला शिव का वरदान बदल गया
ईमारते खड़ी कर दी फसलें  रौदंकर मेरे गांव का हर निशान बदल गया
थिरकते हैं लोग शोरगुल संगीत पर पुराने साज़ो का कद्रदान बदल गया
न सकूँ इबादत में न होती मन्नते मंजूर मेरा तो शायद भगवान बदल गया

✍️-संजय विश्नोई
 दिल्ली
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"एक-एक को ऊपर-नीचे ,
                  ‌रखकर यदि हम जोडें ।
होगा योग दो ही उनका ,
                    चाहे जिधर से जोड़ें ।
लेकिन यदि बराबर रख दें ,
                   तब हो अजब नजारा ।
एक,दो,तीन,चार नहीं तब वो,
                        होंगे पूरे ग्यारहा ।
इसी तरह से ऊंच - नीच का,
                      यदि हम भेद मिटायें ।
समझें सदा बराबर सबको,
                        सबको गले लगायें ।
तब स्थिति सामाजिक अपनी,
                         होगी जग से न्यारी ।
नई -नई प्रतिभा उभरेंगी ,
                         लेकर क्षमता भारी ।
दुष्कर कार्य,सहज फिर होकर,
                          सिद्ध क्षणों में होंगे ।
अपने पन के भाव परस्पर ,
                          सब के मन में होंगे ।
मिटे दीनता और हीनता ,
                          धरती से भारत की ।
एक नया परिवेश सुखद हो,
                          धरती पर भारत की ।
भाग्य और भक्ति के बल पर ,
                         स्वर्ग लालसा अपनी ।
पूरी होगी स्वर्ग बने जब ,
                          धरा देश की अपनी               
               
✍️ राजकुमार ' सेवक '
 ग्राम :- रसूलपुर गूजर
 त० व पोस्ट:- कांठ
 जिला :- मुरादाबाद (उ०प्र०)
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सच्चे मित्र है कहां,स्वार्थ में सब लोट।
शराफत का चोला पहन,करते लूट खसोट।।1।।

शुभ से दूर शुभचिंतक, बुगले भक्त अनाप।
राम बचाये ऐसे सखा,प्रत्यक्ष वे संताप।।2।।

सच्चे मित्र सोधना,मुश्किल है ये काम।
ज्योति ले ढूंढो भला,दिये न मिले दाम।।3।।

अच्छा दोस्त वही जो,विपत्ति आये गाम।
रक्षा में तत्पर रहे,बिगड़े सुधारे काम।।4।।

खांडे की धार है मित्रता,लक्ष्मण की है कार।
सच्चे की है साख मित्रता,प्रभु का चमत्कार।।5।।

दो शरीर एक आत्मा, मित्र है ऊंची शान।
ऐसे मित्र नहीं मिले,खोजो थान सुथान।।6।।

मित्र की पहचान हुवै, संकट रहे जो साथ।
मन संतप्त हो सखा,ऊंचो राखै माथ।।7।।

समान स्थिति से मित्रता, और करो विश्वास।
सच्चे मित्र से न करो भूलकर ज परिहास।।8।

मित्र बने जो सम्पन्नता, विपन्नता रहे दूर।
ऐसे मित्र से विछन्नता,अच्छी सदा हजूर।।9।

मित्र के लिए कठिन नहीं, अपना जीवन दान।
पर ऐसा सखा कहाँ, दे जिसे अभयदान।।10।।

ज्योति जले मित्रता की,हुवै सत्य प्रकाश।
तम राशि कटे सदा, उज्ज्वल हो आकाश।।11।।

 ✍️ डॉ.कृष्णलाल विश्नोई, बीकानेर
मोब.नं.9460002309.
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धर्म युद्ध है विजय सत्य है अस्त्र उठाओ वीरो,
राष्ट्रीय रक्षा हेतु पहनो एकता का बाना।
संकल्प निभा तुम राम बनो लक्ष्मण साथ निभाना,
सावधान हो आसुरी सेना से तुम्हें है टकराना ।

थोड़ा और बढ़ो कृपाण की तेज करो धार ,
मैं बतलाऊं तुमको कैसे करना है प्रहार।
 वीरो और बढ़ो आगे बस इतना करो,
 दुश्मन के सीने पर चढ़ भरो उत्तंग हुंकार।

✍️ रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ
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 इस वस्त्रालय के वस्त्रों में, सिर्फ बिछौने है !
बिछने और बिछे रहने की, आदत है डाली  !
पता नहीं किस-किस ने मारा, किसने दी गाली!
मिट्टी के कुल्हड़  हैं या, पत्तों के दौने हैं ! !

अनाचार से, उत्पीड़न से,पलकें नहीं हिली
स्वाभिमान की चादर तो, ढूंढे से नहीं मिली
कायरता के दाग घने सदियों तक धोने हैं!

✍️ अम्बरीष गर्ग
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 पाप पुण्य के बीच मनुष्य आजीवन सिर धुनता है,
पर  क्षमादान ही जीवन मे मुक्ति का कारण बनता है।
कर्म योग से जीवन का संपूर्ण धरातल रचा गया,
ज्ञान योग की भाग भूमि को तपो त्याग से लिखा गया।।
पाप पुण्य का योग निरंतर हर प्राणी को ठनता है,
क्षमादान ही जीवन में मुक्ति का कारण बनता है।।
समझ बुझ कर परम प्रकृति के संसाधन सब रचे गए ,
कुछ अनुकूल कुछ प्रतिकूल और शूल सम गढ़े गए।।
इन सब में सामंजस्य बिठाना मानव की कार्य कुशलता है,
क्षमादान ही जीवन में मुक्ति का कारण बनता है।।
ईश्वर की कृपा से सारे संसाधन उपयोगी हैं,
मोह माया के जाल में लेकिन रोगी भौगी योगी है।।
लेकिन अनहद नाद प्रभु का कोई बिल्ला ही सुनता है,
पाप पुण्य के बीच मनुष्य आजीवन सिर धुनता है
क्षमादान ही जीवन में मुक्ति का कारण बनता है।।

 ✍️ योगेंद्र पाल सिंह
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हम देश के हर फैसले पर                                    एतराज जताते हैं
और तो और
अपनी ही हार पर
जश्न मनाते हैं
चोला हमने भले ही
 पहन रखा है रंग बिरंगा
 पर मन में हमारे
हमेशा रहता है हरापन
भूल जाते हैं सारे एहसान
खत्म करते रहते हैं अपनापन                            राह में कभी दांया हमें नहीं भाता है
हमेशा बांयी ओर चलना ही सुहाता है
खाकर यहां का अन्न
 गीत औरों का गाना आता है                                 नहीं लिखते हम                                                 
भविष्य की सुनहरी इबारत
इतिहास के काले पन्नों को ही                                हम दोहराते हैं
वैसे हमें देश से बहुत प्यार है                               अपने को ही देशभक्त कहलाते हैं

✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

शनिवार, 15 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की रचना --- वंदे मातरम वंदे मातरम


मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की कविता


मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का गीत -- ये गगन पुकारता धरा पुकारती,आओ मिलके गायें भारती की आरती


🎤✍️ रश्मि प्रभाकर
10/184 फेज़ 2, बुद्धि विहार, आवास विकास, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
फोन नं. 9897548736

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------- प्रवचन


'अल्लाह के नाम पर देदे, अल्लाह तेरा भला करेगा'   प्रवचन सुनकर आ रहे मोहन बाबू के कान में जब यह आवाज़ पड़ी तो उन्होंने चौककर  आवाज़ की ओर देखा और आश्चर्य चकित होकर बुदबुदाए -'अरे!यह तो वही बाबा हैं जो रोज़ उनके मौहल्ले में आते है और भजन गाकर भिक्षा लेते है उनकी पत्नी भी बड़ी श्रद्धा के साथ बाबा को भिक्षा देती है भूखे होने पर भोजन भी कराती है।लेकिन यह तो मुसलमान है।'मोहन बाबू का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा सोचने लगे यह बाबा कितना बहरूपिया है अगर यह मुसलमान बनकर ही भिक्षा मांगता तब भी तो वह उसे भिक्षा देते दरवाज़े पर आये किसी भी मांगने वाले को वो खाली हाथ नही लौटाते मोहनबाबू ने तय कर लिया था कि कल जब वह बाबा उनके घर भिक्षा मांगने आयेगा तब वह उसे इस बात के लिये जरूर लताड़ लगाएंगे ।
दूसरे दिन अपने निश्चित समय पर  बाबा मौहल्ले में भजन गाते हुए आये  और घरों पर जाकर भिक्षा मांगने लगे मोहनबाबू के मन मे भजन सुनकर भी आज वह श्रद्धा के भाव नही आये जो रोज़ भजन सुनकर आते थे उन्हें आज बाबा के बहरूपिया पन को लेकर गुस्सा था उन्होनें तय कर रखा था कि जब उनके दरवाज़े पर बाबा भिक्षा मांगने आएंगे तब वह बाबा की इस हरकत के लिये उन्हें लताड़ेंगे कुछ देर बाद ही भजन गाते हुए बाबा मोहनबाबू के दरवाज़े पर आ गये और 'ला बच्चा,बाबा को भिक्षा देदे भगवान तेरा भला करेगा'. कहते हुए बाबा ने भिक्षा मांगी बाबा की  आवाज़ सुनकर गुस्से से आग बबूला मोहनबाबू बाहर आये और उन्होंने बाबा को बहरूपिया कहते हुए लताड़ना शुरू कर दिया गुस्से से तमतमाये मोहनबाबू बाबा की ओर देखकर बोले -'तुम जैसे लोगो ने ही विश्वास के साथ विश्वासघात किया है।तुम मुसलमान हो और इस मौहल्ले में हिन्दू बनकर भिक्षा मांगते हो? कल प्रवचन सुनकर आते हुए आबिद नगर में मैने स्वयं तुम्हे अल्लाह के नाम पर भीख मांगते हुए देखा है तुम मुसलमान हो, और यहां आकर हिन्दू बनकर भिक्षा मांगते हो ।' मोहनबाबू बिना रुके गुस्से से बाबा की ओर देखते हुए बोले जा रहे थे -'जाओ, ऐसे बहरूपिये को हम भिक्षा नही देंगे।तुम मुसलमान बनकर भी हमसे मांगते तो हम देते लेकिन  अब हम  तुम्हे भीख नही देंगे।' 'ठीक है बच्चा,तुम मुझे भिक्षा मत दो।' बाबा संयम से बोले -'लेकिन मैंने अल्लाह का नाम लेकर कुछ गलत नही किया है ईश्वर,अल्लाह, वाहे गुरु, गॉड सब एक ही परमात्मा के नाम है सब एक ही नाम के पर्यायवाची है। हिन्दू, मुस्लिम,सिख, ईसाई हम सबका मालिक तो एक ही है न? फिर हम उसे चाहे जिस नाम से पुकारें वह सबकी सुनता है उसके बनाये ज़मीन -आसमान,चांद- सूरज,हवा-पानी सबको बराबर फायदा पहुचाते है वह किसी से भेदभाव नही करते'। बाबा कुछ देर रुके और फिर बोले-'बेटा, यह हम मनुष्यो के वश में नही  था की हम कहाँ जन्म लें। यह उस एक परमात्मा ने अपने वश में रखा है कि किसका जन्म किसके घर होना है यदि ऐसा नही होता और यह मनुष्य की इच्छा पर होता तो धर्म मज़हब तो बाद कि चीज़ है सब अमीर घरों में ही जन्म लेना चाहते गरीब के घर कोई जन्म नही लेना चाहता'। बाबा के तर्कपूर्ण जवाब से मोहनबाबू का गुस्सा शांत हो गया था वो गौर से बाबा की बात सुन रहे थे बाबा ने फिर बोलना शुरू किया - 'सुन बच्चा,हम सबके घर भिक्षा मांगने जाते हैं क्योंकि हमें परमात्मा ने ऐसे ही घर मे पैदा किया और हम इसी में खुश हैं ।हम धर्म मजहब के आधार पर किसी से भेद नही करते हम हिन्दू मुसलमान बाद में पहले इंसान हैं यही हमारी सोच है इसीलिये हम किसी को अपना धर्म नही बताते और सबके दरवाज़े पर जाते है हम सबके है और सब हमारे है'। मोहनबाबू आश्चर्य से बाबा की बातें सुन रहे थे उन्हें बाबा की बातों में दम लग रहा था मोहनबाबू की ओर देखकर बाबा कहने लगे - 'बच्चा तू हमें इसलिये भिक्षा नही देना चाहता कि हम मुसलमान है और यहां हिन्दू बनकर भजन सुनाकर भिक्षा मांगते है। तो सुन ,हम हिन्दू भी है मुसलमान भी क्योंकि सबका मालिक एक है  वैसे मैने किसी मुस्लिम परिवार में जन्म नही लिया न ही मेरे माता पिता ने मुझे यह बताया कि हम हिन्दू हैं मेरा जन्म एक बेहद गरीबआदिवासी  परिवार में हुआ था मेरे माँ बाप ने मुझे कभी किसी धर्म के बारे में नही बताया सारे धर्मो के बारे में मैने अपने भृमण के दौरान जाना है हर धर्म अच्छाई के रास्ते पर चलने और बुराई से दूर रहने को कहता है बेटा मेरी यह बात गांठ बांध लेना कि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है और सबका मालिक एक है।'बाबा की बात सुनकर मोहनबाबू सोचने लगे वह कबसे प्रवचन सुनने जाते है लेकिन असली प्रवचन तो आज बाबा से सुना है   वाक़ई सबका मालिक एक है।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ------बेईमानी


वो दीन हीन सा 10साल का बालक रामू,कल से भूखा था।मंदिर का प्रसाद खा कर,उसमे थोड़ी सी जान पड़ी।थोड़ा सा पेट और भरने के लालच में,वो दुबारा लाइन में लग गया लेकिन ये तो बेईमानी होगी अचानक उसके मन में ये विचार आया,और वो लाइन से अलग हो गया।
    प्रसाद का वितरण,दीनानाथ जी की देख रेख में चल रहा था।उनकी सख्त हिदायत थी,किसी को दो बार प्रसाद नहीं देना है।प्रसाद की लाइन में रामकुमार जी भी लगे हुए थे।नंबर आने पर उन्होंने प्रसाद लिया और जाने लगे तो दीनानाथ जी ने उनको रोक लिया और उनको अंदर से एक थैली में बहुत सारे लड्डू लाकर दिए।
  बेटे को जाकर खिलाना।मुझे पता है,उस
को बेसन के लड्डू बहुत पसंद है।

डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा---दहेज़


        अभी एक माह  भी नहीं नहीं हुआ था गीता की शादी को कि बेटी अचानक घर आ गई। मां ने पूछा,'' बेटी तू ठीक तो है ना---?''
       हाँ माँ ! उत्तर देते हुए बेटी का गला रुंध गया----।
      '' परन्तु यह तेरे शरीर पर नीले - लाल निशान कैसे हैं?''
         '' माँ ! कुछ नहीं तू चिंता न कर ।"
        " लेकिन माँ तो माँ होती है उसे चैन। कहाँ, उसने फिर पूछा ।"
         " फिर भी ।"बता तो सही क्या हुआ?
        " बेटी ने आँख में आँसू लिए कहा, यह तो माँ रंगीन टेलीविजन के बिगड़ते कार्यक्रमों की कुछ झलकियां हैं-----।"
       " बस फिर क्या था माँ को समझने में देर नहीं लगी।"
                     
 ✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा....दूसरा विवाह


सुबह-सुबह ही फोन की घंटी बजी.... फोन नेहा की माँ ने उठाया हैलो  ....... मैं नेहा की ससुराल से बोल रही हूँ ....एक घबराहट भरी भरी आवाज सुनाई दी..... भैया का एक्सीडेंट हो गया है। आप जल्दी से आ जाइए ....यह सुनकर नेहा की मम्मी के होश उड़ गए....वह मन ही मन दामाद की सलामती की दुआ माँगने लगी। जल्दी-जल्दी आपने  बेटे को लेकर नेहा की ससुराल  पहुँच गयी। .....वहां पहुंचने पर देखा कि घर पर बहुत भीड़ लगी है... सभी लोग बहुत तेज- तेज रो रहे हैं।....रोना सुनकर उसकी दिल बैठा जा रहा था ...कि कही कोई अनहोनी ना हो गयी हो।पर जो ईश्वर को मंजूर वही होता है।...उसका दामाद अब इस दुनिया में नही रहा ।.. एक्सीडेंट बहुत  भयानक हुआ था।.....जिससे  नेहा के पति सुशील  के सिर में  चोट लग गई थी । और डॉक्टर उसे बचा नहीं पाए थे ।....
 जिससे कि नेहा के पति सुशील की मृत्यु हो गई ।यह सुनकर नेहा की माँ जैसे पत्थर बन गई ...उसके मुँह से कोई बोल नहीं निकल  रहा था ।कि वह अपनी बेटी को कैसे ढाढ़स बधायें।...और अपनी बेटी से लिपट- लिपट कर रोने लगी और रोते-रोते सोचने लगी कि मेरी बेटी के सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है ...कैसे  काटेगी ?...और दो बच्चे भी हैं ।...यह सोच -सोच कर उसका दिमाग खराब हो रहा था... और अब तो नेहा के पापा भी नहीं है जो वह अपने घर में रह ले। इस दर्दनाक घटना को देखकर नेहा और उसकी माँ एक दूसरे से गले मिलकर कई घंटों तक रोती रही।...  कुछ दिनों के बाद  नेहा अपने मायके आ गयी और दिन-रात चिंता में डूबी रहती है... कि किस तरह से उसके बच्चें और उसका जीवन कटेगा।  अपनी बेटी की हालत देखकर नेहा की माँ बहुत दुखी होती ....उसने अपनी बेटी के जीवन में खुशी लाने का फैसला किया ।बहुत  सोचने -विचारने के बाद उसकी माँ ने  एक निश्चित किया ।...कि वह अपनी बेटी का  पुनःविवाह करेंगी। अतः उसने लिए अपने बेटे व अन्य रिश्तेदारों से अपनी बेटी के लिए घर- वर  ढूंढने के लिए कहा...जिसके लिए उसे सभी का विरोध सहन किया और इसके लिए बेटी तैयार नहीं थी। लेकिन माँ के बार -बार मनाने पर बेटी मान गई। लगभग एक साल बाद एक परिवार मिला जो उसके बच्चों सहित उसे अपनाने को तैयार था। बहुत  ही साधारण तरीके से उसका विवाह  कर दिया गया।कुछ ही दिनों में वह तथा बच्चें  नये परिवार  मे घुलमिल  गयें।  नेहा का नया पति बच्चों  व नेहा के साथ बहुत खुश था । आखिरकार उनकी वजह से ही उसका परिवार पूरा हुआ।  नेहा की माँ द्वारा लिया गया निर्णय सफल हुआ । नेहा अपने पुराने दुख भरे  दिनों को भूलकर  अपने नए परिवार में खुशी -खुशी रहने लगी।

✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा --- बच्चा


"अभी आती हूँ अम्मा ! मेरा बच्चा प्यासा है, ज़रा उसे पानी पिला दूँ"...., कहते-कहते बाँझ शन्नो, ममता भरी आँखों से नन्हें पौधे को पानी देने लगी।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी--------गरीब क्या मनुष्य नहीं?


चौराहे के पास वो लड़की अकेले बैठी भीख मांग रही थी। उसके पास रखे कटोरे में जो आता वो कुछ न कुछ रेजगारी डाल देता था। लेकिन हाँ वो कुछ बोलती नहीं चुपचाप बैठी भीख मांगती रहती थी। शायद मानसिक रूप से विकलांग थी, ज्यादा बोल भी नहीं पाती थी जितना बोलती उसमें भी हकलाती, इसीलिए साथ वाले भिखारी उसे बावली कहते थे। रीना भी अक्सर उस चौराहे से गुजरती तो कुछ न कुछ उसके कटोरे में रख देती थी।
लेकिन एक महीने से रीना को वो तथाकथित बावली कहीं दिखाई नहीं दी। रीना की नजरें उसके बैठने के ठिकाने पे ही रहती थी।
तीन महीने हो गए तो भी वो दिखाई नहीं दी, रीना ने सोचा शायद अब उसका ठिकाना बदल गया हो।
कुछ समय बाद अचानक अखबार में एक खबर देख रीना अवाक रह गई। अखबार में छपा था कि भीख मांगने वाली एक मंदबुद्धि लड़की के साथ जानवरों से भी बदतर रूप से बलात्कार किया गया। जिस अस्पताल में उसे भर्ती किया गया वहां के किसी स्टाफ ने रात में सुनसान होने का फायदा उठा पुनः उसका बालात्कार कर उसका ऑक्सीजन पाइप हटा दिया जिस कारण उसकी मृत्यु हो गयी। साथ में छपी तथाकथित बावली की फोटो देख रीना की आँखों से आंसुओं की कुछ बूंदें लुढ़क पढ़ी।
रीना को उन मनुष्य रूपी हैवानों की नृशंसता पर क्रोध भी आ रहा था तथा उम्मीद भी थी कि उसके गुनहगारों को सजा जरूर मिलेगी।
लेकिन पन्द्रह दिन बाद फिर अखबार में खबर छपी कि गवाह न होने के कारण केस बन्द कर दिया गया।
रीना इस उम्मीद में रोज नियमानुसार अखबार खंगालती कि शायद कोई समाजसेवी संगठन या कोई कैंडिल मार्च बावली के दबे केस को फिर से उजागर करेगा लेकिन अब धीरे धीरे रीना की उम्मीद टूटने लगी।
अभी इस वाकये को कुछ समय ही बीता होगा कि एक दिन रीना अखबार में छपी एक खबर देखकर फिर अचंभित हो गई। उसमें लिखा था कि एक हाई प्रोफाइल ड्रग एडिक्ट लड़की के बालात्कारी को सजा दिलाने के लिए कई समाजसेवी संठगन आगे आए तो कई जगह कैंडिल मार्च निकाली गई।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की कहानी-------- गटर

पूरी गली दुर्गंध से परेशान थी ।  पर इस दुर्गंध से छुटकारा पाने का उपाय करने की चिंता शायद ही किसी को सता रही थी । असल में गली का गटर भर गया था । बदबूदार पानी बह - बह कर पूरी गली को सुशोभित कर रहा था । म्यूनिसपालिटी में शिकायत कौन लिखवाए  ,  इस के लिए हर कोई आँखें बंद किए था । बदबू सहन करना आसान था पर जो सफाई कर्मचारी आएँगे उनका सत्कार करने के लिए रोकड़ा कौन खर्च करे ।  और बिना चढ़ावा चढ़ाए सरकारी देवता तो प्रसन्न होने से रहे ।  तो सार ये रहा कि हर कोई नाक पर रुमाल रखकर काम चलाए जा रहा था ।
               अखबार का पहला पन्ना आज बड़ी बूरी खबर लाया था ।  मिलावटी दूध के कारण प्रांत के आठ सौ बच्चे एक साथ स्वर्ग सिधार गए थे ।  और जो बचे थे , अस्पतालों में कतार में थे । चिल्लाते बिलखते माँ बापों की तस्वीरें देख गले में कुछ अटक रहा था । "शुक्र है हमारे सही सलामत हैं" या "शुक्र है हमारे बच्चे ही नहीं हैं"  ,  के भाव अखबार पढ़ने वालों के दिल को संताप के साथ-साथ तसल्ली से भी भर रहे थे । "ऐसी खुदगर्ज़ी"  "ऐसा छल कपट" ,  पर कोई कर क्या सकता है ।  बुरा करने वाले को तो भगवान ही समझे अब । लाचार और पंगु बने हुए सब अफसोस की मिसाल बने हुए थे ।
            टेलीविजन पर बहस छिड़ी हुई थी कि न्यायालय की प्रक्रिया इतनी लचर और बेढंगी है कि न्याय की गुहार लगाने वाला इंतज़ार करते - करते भू-लोक से इहलोक पहुँच जाता है ।  कितने हजार केस हैं  ? कितने न्यायालय हैं  ?  कितने जज  हैं  ? कौन सा वकील कैसे जनता को मूंड-मूंड कर अमीर बन गया है ।  फिर भी जनता न्याय की गुहार लगाने वहीं पहुँच जाती है जहाँ उसे न्याय कब मिलेगा इसका कोई जवाब देश के किसी न्यायालय के पास नहीं है । पर टेलीविजन पर चर्चा कर रहे बुद्धिमान व्यक्तियों के "कंठ स्वर" और "अक्रामक तेवर" ऐसे लग रहे थे मानों आज की चर्चा में ही दो - तीन लाख केस रफा-दफा कर दिए जाएँगे ।  अरे छोड़िए बेवकूफ़ हैं लोग तो  "चिल्लाने दीजिए"  "निकालने दीजिए कैंडिल मार्च"   हम चर्चा पर आमंत्रित हैं तो बस टेलीविजन पर चेहरा दिखाइए  और चलते बनिए ।
              दफा एक सौ चौआलिस लगी पड़ी थी पूरे शहर में ।  मरघट का सा सन्नाटा पसरा पड़ा था । पुलिस की गश्ती गाड़ियों की आवाज़ें ही थीं जो यदा-कदा सुनाई पड़ जाती थीं । स्कूल तक नहीं छोड़े थे नासपीटों ने । मासूमों तक को भून डाला ।  धुआँधार गोलियाँ चलीं चश्मदीदों का कहना था ।  सैंकड़ों दुकानें आग की भेंट चढ़ गईं  । बम विस्फोट में कटी फटी लाशों में कौन सा हिस्सा किसका है  ये पता लगाने के लिए तो धर्म के ठेकेदारों की नई कमेटियाँ बनानी पड़ेंगी  ,  वरना तो "जलाए जाने वाले का हाथ दफन हो जाएगा" और  "दफन होने वाले की टाँग" आग के सुपुर्द हो जाने का खतरा है । 
              नई कमेटियाँ इस लिए क्योंकि पुरानी तो दंगों की रूपरेखा बनाने , उसके लिए चंदा इकट्ठा करने में , असला इकट्ठा करने में  और सबसे बढ़कर दंगे को अंजाम देने में पस्त हो गई थीं और कुछ को  "स्वर्ग और जन्नत" की सैर भी मिली थी । "खुशनसीब थे सभी" ।  "आपको क्या ?"     "घर में बैठिए चुपचाप ।"    "दंगाई किसी के सगे नहीं होते ।" 
               "हद कर साहब आपने  तो ।"   "आपके लिए जान दी है ।"   "आपके धर्म की रक्षा के लिए  ।"     "और आप कह रहे हैं हम आपके नहीं ।"
                पिछले महीने आठ लड़कियों से बलात्कार हुआ ।  पाँच नाबालिग थीं । सबसे छोटी तीन बरस की और सबसे बड़ी सत्तर की थी । दोनों ही मौका ए वारदात पर खत्म  ।  करें क्या  ??
           जाली नोटों (करेंसी) के चलते एक फाइनेंस कंपनी के घोटाले की वजह से  पाँच परिवारों ने सामूहिक खुदकुशी कर ली ।  "मियां बीबी बच्चों समेत" ।  भई पीछे रोने के लिए किस के सहारे छोड़ा जाए  ।
               कई छात्र संगठन इन दिनों बड़ी बेबाकी से स्वतंत्रता का ढोल पीट रहे हैं । "स्वतंत्रता चाहिए"   "धुएँ में डूबने की"  "नंगे होकर घूमने की"    "गालियों को भौंकने की"    "पिशाचों की तरह एक दूसरे को नोचने की"  "स्वतंत्रता चाहिए हमें  , स्वच्छंदता चाहिए हमें मनमानी करने की" ।  "दे दीजिए , मानेंगे नहीं ये ।"
           "तो साहब वापस चलें"   इन सबके पचड़ों के बीच में  "गली के गटर" की बात और बदबू तो आप भूल ही गए ।  नाक से रुमाल तक हट गया ।  "अरे - रे - रे ये क्या  ??"    आपने फिर से नाक ढक ली । 
    पता है-पता है आप ऐसे ही , इन्हीं हालातों में ही काम चला लेंगे और जी भी लेंगे  ।   "गटर चाहे कोई भी , कहीं भी भर कर बह रहा हो , बदबू मार रहा हो ।"

✍️सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी की कहानी----भोली जिज्ञासा


   दादाजी को दूर से आते देख बच्चे (रवि) की खुशी का ठिकाना न रहा।दौड़कर बच्चे ने दादा जी के पास पहुंचकर चरण स्पर्श किएऔर उनका आशीर्वाद लिया।
       अगले ही क्षण बच्चे ने बड़े ही भोले पन से दादा से प्रश्न किया दादाजी अब कब जाओगे।दादाजी को उसके इस तरह पूछने पर यह शंका हुई कि शायद मेरा आना उसको या इसके माता-पिता को अच्छा न लगा हो,तभी तो इसने अपनी या अपने माता-पिता की शंका का अविलंब समाधान करने का प्रयास किया है।
      परंतु धैर्य के साथ मुस्कुराते हुए दादा ने बच्चे के उस प्रश्न का बड़ी सहजता से उत्तर दिया कि बेटा हम अभी अभी तो आए हैं।इतनी जल्दी कैसे जाएंगे।अब तो हम तुम्हारे साथ बहुत दिन तक रहेंगे।
       बच्चे ने जब यह सुना कि दादा जी अभी नहीं जाएंगे तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।वह खुशी-खुशी डांस करते हुए दादा से लिपट कर उनके प्यार में खो गया।उनकी छड़ी को शहनाई बजाने की मुद्रा में लेकर उनके आगे-आगे स्वागत करता हुआ घर की ओर बढ़ने लगा।
        दादा जी के आने की खबर मम्मी-पापा को सुनाने के लिए तेज कदमों से घर के अंदर चला गया। कुछ पलों के पश्चात वह मम्मी-पापा के साथ दादा जी के समीप पहुंच कर उनकी गोदी में चढ़कर बैठ गया।मम्मी-पापा ने भी दादा जी के पैर छूए और उनकी खैरियत से वाक़िफ़ होकर उनके लिए जलपान की व्यवस्था में लग गए।
       तब दादाजी ने अपने झोले की चेन खोलकर साथ में लाए मथुरा की सोहन पपड़ी का डिब्बा निकलकर पोते रवि को दिया।
        इस तरह दादू पोते एक दूजे के साथ रहकर खुशियां लुटाते नज़र आते।दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते।बच्चा रात को दादा के पास ही सोता और रोज़ नई से नई कहानियां सुनता।
      काफी समय हो जाने पर दादा घर लौटकर खेती बाड़ी संबंधी कार्य पूर्ति की सोचने लगे।
परंतु उनका घर से निकल पाना इतना आसान नहीं था।
       एक दिन अहले सुबह उठकर उन्होंने जल्दी - जल्दी कपड़े पहने और चुपके - चुपके बाहर निकल कर जूते पहने तथा बहू-बेटे से दो परांठे टिफिन में लेकर आशीर्वाद देकर चले गए।मगर पोते को छोड़कर जाना उन्हें भी बहुत बुरा लग रहा था परंतु जाना भी जरूरी था।
    सुबह जब बच्चे(रवि)की आंख खुली तो सबसे पहले उसने दादाजी को ही पूछा परंतु घर वालों ने कहा कि दादाजी घूमने गए हैं थोड़ी देर में आ जाएंगे।
       बच्चा भी माता-पिता के चेहरे पर बनी झूठ की लकीरों को पढ़ कर बार-बार दादा जी के पास जाने की ज़िद करने लगा और उदास होकर दादा के आने की प्रतीक्षा करने लगा और बोला,,,मैंने तभी तो दादू से पूछा था कि दादा अब कब जाओगे।
         अर्थात वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि दादाजी मुझे छोड़कर जल्दी तो नहीं चले जाओगे।
   यही तो है बच्चे की भोली जिज्ञासा। 
           
  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
   मुरादाबाद/उ,प्र,
  फोन-9719275453

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------धरती का स्वर्ग


         डल झील में शिकारे की सैर सचमुच एक आलौकिक आनंद का अनुभव कराती है दूर-दूर तक फैली हुई झील ...पानी में तैरते हुए अनेकों शिकारे ...झील में ही तैरती हुई अनेक दुकानें, कुछ फूलों से लगी हुई नावें और दूर-दूर बड़े ही भव्य दिखाई देने वाले पानी की सतह पर तैरते हुए हाउसबोट जैसे वास्तव में धरती पर स्वर्ग उतर आया हो... राहुल का परिवार दो शिकारों में
सैर कर रहा था एक में राहुल उसकी पत्नी  अनीताऔर पौत्र यश, दूसरे में भूमिका पीयूष उसके बेटी , दामाद और... उनके बच्चे ऋषि,अपाला ! यह पल बड़े अनमोल और अविस्मरणीय थे ।
झील के बीच में टापू पर पार्क की भी सैर की  ... नियत समय पर वापस आकर शिकारे फिर से पकड़ लिये ..... जब ड्राई फ्रूट्स की दुकान वाली नाव पास से गुजरी उससे अखरोट बादाम पिस्ता की खरीदारी की गई ।
..... अब निश्चय किया गया कि रात किसी हाउसवोट में गुजारी जाए ....!  हाउसवोट में नहीं ठहरे तो   कश्मीर घूमने का क्या आनंद...? शानदार हाउसबोट किराए पर लिया और अलग-अलग कमरों में चले गए हाउसबोट पर सभी कुछ था 3 बैडरूम ,एक ड्राइंग रूम, किचन, बालकनी , लेट्रिन बाथरूम अटैच, थोड़ी देर में सभी के लिए कॉफी आई फिर खाना खाया फिर सब मिलकर बातें करने लगे......
    ....सोने के लिए जाने ही वाले थे कि अचानक गोली चलने की आवाज आई...!! सभी लोग डर गए .....यह तो ध्यान ही नहीं रहा था!! यहां आए दिन आतंकवादी गतिविधियां होती रहती हैं...! "अब रात के 12:00 बजे भागकर भी कहां जा सकते हैं.."....हाउसबोट जहां पर खड़ा था वहां 80 फीट गहरा पानी था और चारों ओर पानी ही पानी.... पर्यटकों की यह टोली बुरी तरह आतंकित और घबराई हुई थी ....हाउसवोट में जो सर्विस स्टाफ था उन्होंने आश्वस्त किया "डरने की कोई बात नहीं....! यहां पर यह सब होता रहता है!! परंतु पर्यटकों को कोई कुछ नहीं कहता.... क्योंकि उन्हीं से यहां वालों की  रोजी-रोटी चलती है....!!!!"" यह सुनकर भी राहुल और पीयूष का मन नहीं माना.... भूमिका और अनीता दोनों ही बहुत ज्यादा डर गई थी तीनों बच्चे सहम गए थे.....!!इसलिए सोने के लिए कमरों में जाने के बाद भी किसी को नींद नहीं आई ....!! हर आहट पर डरावने ख्याल डरा रहे थे ...... बाहर झील पर चांदनी तो बिखरी ही थी...... बिल्डिंग और हाउस फोटो की लाइटिंग भी जल में प्रतिबिंबित होकर अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं....... निश्चय ही यह यात्रा इन लोगों के लिए रहस्य ,रोमांच और आतंक कि भावों को समेटे हुए थी !! जहां आने वाले हर पल मैं अनहोनी आशंकाओं का भय व्याप्त था ...!! 
        सुबह होते ही इन लोगों ने हाउसबोट छोड़ दिया  आज पहाड़ी पर शंकराचार्य के मंदिर जाना था  बिना समय गंवाए यह लोग एक गाड़ी बुक कर शंकराचार्य मठ शिवजी के मंदिर पहुंचेऔर फिर शुरू हुई 85 सीढ़ियों की दुर्गम चढ़ाई ....अच्छी खासी भीड़ थी वहां पर शिव जी के भक्तों की ...इन्होंने भी दर्शन किए परंतु दिल को चैन नहीं था ....बहुत प्रयास करने के बाद बहुत घूम-घूम कर ढूंढने पर एक सरदार जी का ढाबा मिला जिसमें खाना खाया .... अब और रुकने का मन नहीं था परंतु तत्काल लौट पाना भी संभव नहीं था आज सारे रास्ते बंद थे.... नेहरू टनल पर आतंकवादियों ने मिलिट्री के कुछ ऑफिसर की हत्या कर दी थी ....पूरे शहर में कर्फ्यू जैसी स्थिति हो गई थी !!
कहने को श्रीनगर बहुत सुंदर है ... परंतु आतंकवादियों ने इस स्वर्ग को नर्क में बदल दिया था ....इन लोगों ने तब गुलमर्ग की राह पकड़ी पहले टैक्सी फिर काफी रास्ता घुड़सवारी से तय किया वहां स्नोफॉल होने लगा नजारे बहुत खूबसूरत थे....
परंतु दिल तो श्रीनगर की घटना से दहल रहा था ..... सड़क मार्ग बिल्कुल बंद कर दिया गया था..... अब एक ही रास्ता बचा था कि दिल्ली के लिए फ्लाइट  पकड़ें कड़ी मशक्कत और कोशिशों के बाद अगले दिन की फ्लाइट मिली बीच में एक रात अभी बाकी थी.... ! इन्हे चिंता हो रही थी किस होटल में रात गुजारी जाए क्योंकि श्रीनगर में  एक भी हिंदू होटल नहीं.. ... जहां सुकून मिल सके !!
.....कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने वाला था ही  दहशत के मारे इन लोगों का बुरा हाल था फिर भी रात तो  गुजारनी ही थी एक अच्छा सा होटल देखकर दो कमरे लिए गए और यह लोग एक मुस्लिम होटल में स्टे को विवश हो गए
रात में फिर से गोलियां चलने की आवाज आती रही वैसे भी श्रीनगर में सड़कों पर जगह-जगह मिलिट्री की पोस्टें बनी हुईं थीं जैसे कि युद्ध का मोर्चा लेने के लिए बनाई गईं हों.... शहर में कर्फ्यू जैसी स्थिति थी राहुल और पीयूष एक टैक्सी लेकर परिवार के साथ समय से पहले ही हवाई अड्डे निकल गए ...
रास्ते में एक जगह बहुत सारी मिलिट्री और पुलिस खड़ी थी लोगों की भीड़ भी जमा थी.... राहुल ने नीचे उतरकर जब देखा तो घटना देख कर उसके रोंगटे खड़े हो गए ....... दो पति पत्नी का गोलियों से छलनी शरीर बीच सड़क में पड़ा हुआ था... पटनीटॉप में जिस होटल में यह लोग ठहरे थे उसी में राहुल का परिवार भी रुका था यह बगल के रूम में ही तो ठहरे थे देखते ही राहुल के होश उड़ गए और तुरंत टैक्सी में वापस आ गया ड्राइवर से बोला तेजी से निकालो.......
         ....काफी समय उनको एयरपोर्ट पर फ्लाइट की प्रतीक्षा  करनी पड़ी!!
    अंततः हवाई जहाज ने इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर लैंड किया ...... सभी को लगा जैसे अपने स्वर्ग में लौट आयें हों ..!!
    राहुल ने चैन की सांस लेते हुए कहा  हमारा असली स्वर्ग तो वास्तव में कश्मीर नहीं ......यही है !!!
           
अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की लघुकथा --------जिम्मेदार कौन


      सुनीता के पति सीबीआई में अधिकारी थे । दोनों की शादी को लगभग 14 वर्ष हो चुके थे, दो बच्चे थे । एक बेटा और बेटी अनुपम के माता-पिता भी साथ में रहते थे l अनुपम बहुत खुश रहते थे,अपनी पत्नी,बच्चों और माता पिता के साथ । और पत्नी भी अपने मायके की सारी यादें,चिंता और कष्ट भूल चुकी थी और अपनी ससुराल में रम चुकी थी । उसे अपने सास ससुर और पति तथा बच्चों के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता था ।
     वह सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव थी,लेकिन दोनों पति पत्नी रात में अपने सोशियल मीडिया की एक्टिविटीज को भी एक दूसरे से शेयर करते थे, एक दिन अचानक किसी महिला का फोन आया और सुनीता और उस महिला की टेलीफोन पर नरमा गर्मी होने लगी । अनुपम सोए हुए थे,शोर से उनकी आंख खुली तो उन्होंने विवाद का कारण पूछा,सुनीता ने बताया कि उनके फेसबुक फ्रेंड की पत्नी ने उनकी फ्रेंडशिप को गलत नाम दे दिया है, उसने मुझे  चरित्रहीन व‌‌ बाजारी औरत कहकर संबोधित किया है ।
      अनुपम ने अपनी पति को भी बताया कि मेरा आकाश से कोई संबंध नहीं है,मात्र फेसबुक फ्रेंडशिप है । और बात आई गई हो गई । परन्तु अगले दिन अनुपम के फोन पर भी उस पत्नी की कॉल आई उसने सुनीता के बारे में अनुपम से भी अनाप-शनाप बातें कीं और सुनीताके चरित्र पर सवाल उठाया और फोन अपने पति आकाश को दे दिया । आकाश ने भी सुनीता के साथ-साथ अनुपम को भी खुद को फंसाने का दोषी ठहराया । उसके बाद तो अनुपम का गुस्सा चौथे आसमान पर था,उसने अपना घर सर पर उठा लिया । चीखने चिल्लाने लगा ।
        आज एक महीना हो चुका है,अनुपम ना किसी से बात करता है,ना हंसता है,ना मुस्कुराता है, ना उसे खाने पीने की परवाह है,ना कपड़े बदलने का ख्याल । सुनीता उसके पास जाती है तो वह उसे धोखेबाज, बदचलन औरत कहता है और कमरे से बाहर निकाल देता है । सैकड़ों बार माफी मांगने के बाद भी अनुपम अपनी पत्नी को माफ करने के लिए तैयार नहीं है ।बच्चे सहमे हुए हैं,माता-पिता लाचार हैं । हंसता खेलता घर सोशल मीडिया पर हुई गलतफहमी से बिखरने के कगार पर है । सुनीता बार-बार सोचती है,इसका जिम्मेदार कौन है ? मैं स्वयं ? सोशियल मीडिया ? उसका औरत होना ?या चरित्रहीन औरतों का सोशल मीडिया पर एक्टिव होना ... या फिर पुरुषों का शक्की मिजा़ज....

मुजाहिद चौधरी
हसनपुर,अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा ---- साड़ी में फॉल


       "मम्मी आज तीजों पर नयी साड़ी पहिनूंगी । मगर उसमें फॉल नहीं लगी है ।" - प्रमिला ने अपनी सासू मांँ से अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा - "घर में फॉल भी रखी है पर लॉकडाउन में बुटीक की दुकानें भी बंद रहने के कारण नहीं लगवा पायी ।"
   "बेटी तुमने पहले क्यों नहीं बताया ? अब तक तो मैं फॉल लगाकर तेरी साड़ी तैयार कर देती।" - सासू मांँ ने प्रमिला से बड़े प्रेम से कहा ।
    तभी सासू मांँ के मस्तिष्क में एक पुरानी स्मृति ताजा हो गयी।जब प्रमिला के विवाह को एक वर्ष ही हुआ होगा । घर में कोई विशेष काम नहीं था। पारिवारिक प्रतिदिन के कार्य सास-बहू दोनों मिलकर निबटा लेती थीं ।
    गर्मी के बड़े दिन थे। दोपहर को खाना खाने के बाद आराम करने के साथ सोना नित्य का नियम था । चार बजे सोकर उठना। चाय पीना ।
      तब सास को भी अपनी नयी-नयी बहू से बहुत प्रेम था । वह चाहती थी कि मेरी बहू जहां शिक्षित है, वहीं पारिवारिक दैनिक जीवन में होने वाले कार्यों में निपुण हो जाये ताकि उसे जीवन में कोई कठिनाई न आये।
   प्रमिला की विवाह में मिली अनेक साड़ियों में फॉल लगनी शेष थी ।
   एक दिन प्रमिला ने सासू मांँ से कहा - "मम्मी गर्मी के दिन हैं । सोने के बाद भी समय नहीं कटता।"
    सासू मांँ ने प्रमिला से कहा था - "तुम्हारी कई साड़ियांं फॉल लगाने के लिए रखी हुई हैं । फॉल भी घर में रखी हैं । फॉल लगाना मैं सिखाती हूं । तुम्हारा समय भी कट जायेगा और तुम से फॉल लगाना भी आ जायेगा। समय-असमय काम ही आयेगा।"
   तब प्रमिला ने इस बात पर बड़ा बतंगड़ खड़ा कर दिया था और अपने पति को फोन करके बताया था - " तुम्हारी मम्मी को तो पढ़ी-लिखी बहू की जरूरत नहीं थी । उनको तो फॉल लगाने वाली, कपड़े सिलने वाली बहू लानी चाहिए थी ।"
    और अगले ही दिन बाहर जॉब कर रहे बेटे ने फोन करके अपनी मम्मी से कहा था - "मम्मी फॉल लगाने के लिए साड़ियां बुटीक की दुकान पर दे देना । तुम भी अब आराम करो । अपनी आंखों पर अधिक जोर मत डालो ।"
     तभी प्रमिला ने सासू मां को कमरे से आवाज़ लगाकर बताया - " मम्मी साड़ी और फॉल मैंने निकाल ली है ।"
      इस आवाज से सासू मांँ पुरानी स्मृति से बाहर आ गयी ।और बोली - " बेटी मुझे दे दो । मैं अभी एक-दो घंटे में फॉल टांक कर तेरी साड़ी तैयार कर देती हूं ।"
   
राम किशोर वर्मा
रामपुर

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --- भविष्य


मालती का पति उसे छोड़ कर शहर चला गया।उसकी ससुराल वालोंं ने उससे सब नाते तोड़ दिये।कुछ गांव वालोंं की दया से बनी झोपडी़ मेंं वह दोनोंं बच्चों के साथ रहकर जीवन गुजार रही थी।आसपास के पुरुषों की नजरों से खुद को बचाने के लिए उसने अपनी जुबान पर कड़वाहट का ऐसा मुल्लमा चढ़ा लिया था कि बडे़ बडे़ उसे देखकर रास्ता छोड़ देते थे।सुबह उठकर भट्टे पर काम पर जाना उसकी आवश्यकता थी। सात साल की सोना और 4साल के रघु को झोपडी मे बंद करके जाती।शाम को सागसब्जी के साथ दरवाजा खोलती। बच्चे खाने की आशा मे उसकी हर आज्ञा मानते।
पास के रतन लाल नेकहा " क्यो बच्चों को बन्द करती है? अपनी बेटी का नाम स्कूल मे लिखवा दे और मुन्ना का नाम आँगनवाड़ी मे लिखवा दे वहाँऔर बच्चों के साथ कुछ सीखेगे"।इसी बात पर वह घन्टों चीखी चिल्लाई। रतनलाल हार कर चुप हो गये।मगर धीरे धीरे उसने साग लाना कम किया।एक समय ही खाना शुरू किया एक दिन काम से वापस आते वह बेहोश होकर गिर पडी.पडोस की स्त्रियां ने उठाया।बुड्ढी दादी के कहने पर जब उसकी कुर्ती ढीली की तो उसमे से दो पर्ची गिरी।दादी बोली लगता है"कई दिनो से कुछ खाया नहीं है"।स्कूल जाते मास्टर जी से पर्ची पढवायी तो देखा एक पर्ची   सोना के स्कूल की फीस की थी और दूसरी रघु के आँगनवाड़ी मे भर्ती की।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी ----- भिखारी



गाडी़ जैसे ही गंगा के किनारे रोकी कि अचानक पीछे से गिड़गिड़ाने की आवाज आई--  ऐ अम्मा कुछ तो देदो गंगा मैया तुम्हारी आस औलाद को सुखी रखे ।पलट कर देखा तो एक लम्बा सा नौजवान हाथ मे कटोरा लिए खड़ा था देखने मे उतना दीन नही लग रहा था, लेकिन चेहरा तो  मुरझाया हुआ था । मैने अपनी आदत के मुताबिक पर्स में हाथ डाला ही था कि हमेशा की तरह पतिदेव ने टोक दिया " तुम इनकी आदत नही जानती ये नकली भिखारी है हट्टा कट्टा आदमी है मत दो पैसे " ।  पर गंगा किनारे किसी को मांगने पर न दूं ये मेरी आस्था के खिलाफ था और पतिदेव की बात की अवहेलना भी नही कर सकती थी सो जल्दी से बोल दिया " चलो चाय पीना है और कुछ खाना हो तो खालो पैसे नही मिलेगें " इतना सुनना था कि वो भिखारी युवक एकदम खुश हो गया " हाँ ठीक  है अम्मा कुछ खिला दो" । हमने एक दुकान पर चाय और छोले भटूरे का ओर्डर दिया और दुकान वाले को बोला भैया एक चाय और छोले भटूरे इसको भी देदो ।  चाय वाले ने ठीक है साहब कहकर फटाफट हमारे लिए चाय और भटूरे लगा दिए इतने में ही और ग्राहक आ गए तो वह उनकाे चाय देने लगा मैने कहा भैया पहले इसे देदो ये भूखा है, मैने पास ही कुर्सी पर बैठे भिखारी युवक की तरफ इशारा करके कहा जो बड़ी तसल्ली से बैठा हमारी तरफ देख रहा था। " अरे बहनजी ये आराम से अपने तरीके से खायेगा आप तो पैमैंट कर दो" पतिदेव ने मुझे घूर कर देखा और कहा " वो चाय या भटूरे नही खायेगा पैसे खायेगा " मैने जल्दी से चाय वाले से पैसे पूछे कि पतिदेव और लम्बी बात न बढा दे उससे पहले हम यहाँ से निकल ले, मुझे उनकी बात अच्छी नही लग रही थी मन में सोच रही थी, क्या हो गया अगर भूखे को खाना खिला दिया तो । चाय वाले ने तीन चाय और भटूरे के एक सौ बीस रु मांगे मैने जल्दी से दे दिए और गाड़ी मे बैठ गई परन्तु ध्यान अभी भी भिखारी पर था जिसने अभी भी कुछ खाया नही था । पतिदेव अपने फोन मे व्यस्त थे मगर मै कनखियों से उस भिखारी और चायवाले को ही देख रही थी कि उसने हमसे चालीस रू लेकर अभी तक उसे क्यूँ नही खिलाया। इस बीच मै मैने चायवाले को देखा उसने धीरे जेब मे हाथ डाला और भिखारी को बीस रू पकडा दिऐ जबकि हमसे उसने चालीस रु लिए थे,मै जब तक कुछ समझ पाती वो भिखारी दूसरी गाड़ी की तरफ बढ़ गया " अम्मा कुछ खाने को देदो बहुत भूखा हूँ"।  मै आश्चर्य से कभी भिखारी को तो कभी चायवाले को देख रही थी कि भिखारियों की ये कैसी मिलीभगत है जो ईंसानियत की मजाक उड़ा रही है । मुझे आज पतिदेव की बात ही सही लगी और  कभी भिखारियों की मदद न करने का मन ही मन फैसला कर लिया ।

मंगलेश लता
जिला पंचायत मुरादाबाद
9412840699

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की लघुकथा ----कोरोना का खतरा ?


"देखिये मैडम स्कूल तो आपको आना ही पड़ेगा!!"हैडमास्टर जी ने त़ल्ख लहज़े में फोन पर कहा।
"पर सर जब बच्चे नहीं आयेंगे तो हम पूरा दिन स्कूल में बैठकर क्या करेंगे?आन लाइन तो हम घर से पढ़ा ही रहे हैं न?"संजना ने पूछा।
"ये तो आप सरकार से पूछिये मैडम,हमें जो आदेश मिला है हम तो उसे ही बता रहे हैं और हाँ आप अकेली नहीं हो जो स्कूल आओगी।"उधर से हैडमास्टर जी के शब्दों में विवशता और व्यंग्य दोनो झलक रहे थे।
"पर सर!! ....मैं स्कूल आऊँगी कैसे ? मुझे तो स्कूटी वगैरह भी चलानी नहीं आती और पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आने में कोरोना का खतरा......,!!"संजना की बात पूरी होने से पहले ही हैडमास्टर जी ने फोन काट दिया था।
परेशान होकर संजना ने दोबारा हैडमास्टर जी का नम्बर लगाया तो फोन पर कालर ट्यून बज रही थी,
"आज पूरा देश कोविड 19 से जूझ रहा है,ऐसे में जब बहुत ज़रूरी हो तभी घर से बाहर निकलें....किसी भी तरह की परेशानी होने पर राष्ट्रीय हैल्प लाइन नम्बर  पर फोन करें.... याद रखें हमें कोरोना को फैलने से रोकना है.. भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी."

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा। ------अंग्रेजी टीचर


     वो रिक्शे से कालिज के गेट के सामने उतरी ,साफ़ सुथरी पर बिलकुल सादी सी साड़ी पहने वो तेज़ी से प्रिन्सिपल ऑफ़िस की तरफ़ चल दी।व्यक्तित्व ऐसा कि किसी का ध्यान ही नही गया कि कब वो कालिज गेट से लम्बे कोरिडोर को पार करते हुए प्रिन्सिपल ऑफ़िस पहुँच गयी।कुछ ऐसा विशेष था भी नही  उसमें, जो किसी का ध्यान जाता।
कक्षा दस के विद्यार्थी अपनी नयी अंग्रेज़ी की मैडम का इंतज़ार ही कर रहे थे कि वह  तेज़ी से कक्षा में आयी ,बच्चे तो खड़े भी नही हुए।पता नही कौन है .........’गुड मॉर्निंग स्टूडेंट्स ,आइ एम योर इंग्लिश टीचर’।आवाज़ ऐसी कि जैसे शहद भरा हो ।बच्चे कब उस मधुर आवाज के साथ बहते चले गये उन्हें पता ही नही चला।
प्रिन्सिपल मैडम राउंड पर आयी .......जिस कक्षा से सबसे अधिक शोर की आवाज़ आती थी  ,वह  कक्षा मंत्रमुग्ध सी होकर नयी अंग्रेज़ी टीचर से इतना मन लगाकर पढ़ रही थी ।यह देख प्रिन्सिपल मैडम मन ही मन मुसकायी और याद करने लगी वह दिन ,जब पहली बार  अंग्रेज़ी टीचर से वह साक्षात्कार के दिन मिली थी।
               
✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा - बॉर्डर


बाघा बॉर्डर के मुंडेर पर बैठे दो कौए एक दूसरे से बात कर रहे थे ।पहला  कौआ दूसरे कौए से- " भाई तू ,हमारी तरफ क्यों नहीं आ जाता ?
 क्या ,उस तरफ तुझे कुछ ज्यादा स्वादिष्ट खाना मिल रहा है ?....
दूसरे कौए ने जवाब दिया -  ऐसी कोई बात नहीं .... चलो एक काम करते हैं , महीने के 15 दिन मैं तेरी तरफ और बाकी के 15 दिन तू मेरी तरफ रहेगा। पहले ने कहा ,अगर महीना 31 का रहा तो .....
दूसरे  कौए ने  हस कर कहा -  उस फालतू दिन का बाद में सोचेंगे....
पहला कौआ दूसरे कौए से -  भाई कल तेरी तरफ से ,कई गिद्घ झुंड में हमारी तरफ आए थे .....
तभी बातचीत के दरमियान नीचे तैनात सिपाहियों की बातचीत दोनों कौवों को साफ-साफ सुनाई दी, वो बोल रहे थे -  कोई भी अगर इधर से उधर जाते वक्त दिखे ...तो आदेश है ,देखते ही बिना पूछे भून डालो ।
दोनों कौवों ने डरते हुए एक दूसरे को देख कर  कहा - अच्छा है ,हम पक्षियों के लिए कोई बॉर्डर नहीं ....हमारी तो पूरी धरती भी अपनी और पूरा आकाश भी अपना। जाने इन इंसानों ने धरती कितने भागों में बांट रखी है .....मर कर या मार कर क्या जन्नत में कोई टुकड़ा लेकर जाएंगे।।

प्रवीण राही
मुरादाबाद

बुधवार, 12 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी का ई- गजल संग्रह (उर्दू) --- "जिंदगी यूं भी" । इस संग्रह में उनकी 105 ग़ज़लें हैं ।



क्लिक कीजिए और पढ़िये
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मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार भोलानाथ त्यागी का ई- काव्य संग्रह ---हलाला ।


क्लिक कीजिए और पढ़िये पूरा काव्य संग्रह ---
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https://documentcloud.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:3aa14c6e-5d59-4f29-ad00-441a891e498d

✍️ भोलानाथ त्यागी
 विनायकम
49 इमलिया परिसर 
सिविल लाइंस
बिजनौर 246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 70172 61904  , 94568 73005

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 28 जुलाई 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों दीपक गोस्वामी चिराग , वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, प्रीति चौधरी, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ रीता सिंह, निवेदिता सक्सेना, राजीव प्रखर, आयुषी अग्रवाल, डॉ श्वेता पूठिया, मनोरमा शर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, रामकिशोर वर्मा, सीमा रानी और मरगूब अमरोही की रचनाएं ------

अक्कड़, बक्कड़, लाल बुझक्कड़* ।
तीन दोस्त थे, तीनों फक्कड़।
नदी किनारे उनका ग्राम।
 दिल्ली में अटका कुछ काम।

तीनों भैया चले मेल में।
तीनों ही धर गए रेल में ।
*अक्कड़* बोला, *बक्कड़* जाओ।
जाकर तीन टिकट ले आओ।
*बक्कड़* बोला कहते *'जाओ'*।
पहले रुपये तो पकड़ाओ ।

*भैंस के आगे बज गई बीन*।
रुपये निकले *साढ़े तीन*।
साढे़ तीन भी हो गये फिट।
उसमें आया *हाफ टिकिट*।

तीनों फिर से चढ़े रेल में ।
मस्त हो गए *ताश-खेल* में।
 इतने में फिर चल दी रेल।
भीड़ की हो गई *रेलम-पेल*।

तीस मिनट चल रुक गई गाड़ी।
जंगल बीच बड़ी थीं *झाड़ी*।
अक्कड़ बक्कड़ हो गए बोर।
इतने में ही मच  गया शोर।

*टी.टी.* आया, टी.टी. आया ।
*लाल बुझक्कड़* था घबराया।
खत्म हो गया सारा खेल।
अब तो सीधी होगी *जेल*।

*बक्कड़* बोला मत घबराओ।
सीट के नीचे तुम घुस जाओ।
 इतने में फिर *टी.टी* आया।
 सबने टिकट *चैक* करवाया।

बक्कड़ भी था पूरा *फिट*।
 रखा हाथ पर *हाफ टिकिट*।
टी.टी. को जब *टिकिट थमाया।
टी.टी. ने उस को धमकाया।

टी.टी बोला यह आधा है।
बक्कड़ बोला क्या ज्यादा है?
क्यों बोलो जी इसे अधूरा?
पर यह तो दिखता है पूरा।

यह तो बच्चे का लगता है ।
बच्चू! तू हमको ठगता है ।
आधा मतलब होता हाफ।
हमको भैया! कर दो माफ।

पूरे को तुम आधा कहते।
जाने कौन देश में रहते।
आधा मतलब एक बटा दो ।
जल्दी पूरा टिकिट दिखा दो।

एक बटा दो' क्या बतलाओ।
पूरी बात हमें समझाओ।
ऊपर एक नीचे दो रहते।
बटा बीच के डेस(-) को कहते।

बक्कड़ बोला इतनी बात।
इस पर ही करते उत्पात।
ऊपर मैं और बीच बटा है।
नीचे भी दो लोग डटा है।

तन कर फिर बोला यों बक्कड़।
निकलो अक्कड़,लाल बुझक्कड़।
पूरा टिकट जब एक बटा दो।
हम तीनों भी एक बटा दो ।

टी.टी. के सब गिरे विकिट।
हिट हो गया पर हाफ टिकट।
...
दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज
बहजोई 24410
उ. प्र.
मो.9548812618
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एक   दिवस  चूहे   राजा  ने
बनवाई              बिरियानी
घी  में भूनी  प्याज़ साथ  में
नमक       मिर्च    मनमानी
उबले चावल डाल  मिलाया
पकने       लायक      पानी
करके  ढक्कन बंद  देरतक
पकने      दी       बिरियानी
खुशबू  से  अंदाज़ लगाकर
बोली              चुहियारानी
पक जाने पर  तश्तरियों  में
परसी       तब    बिरियानी
इसे  देख बिल्ली  मौसी  के
मुख      में     आया   पानी
चूहों  ने  आपस   में  सोचा
सही        नहीं       नादानी
इस  बिरियानी के चक्करमें
पड़े     न    जान     गवानी
उल्टे पैर  छुपे  जा  बिल  में
छोड़ी       दावत       खानी
मौका  देख स्वयं  बिल्ली  ने
चट  कर    दी     बिरियानी।
       
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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देखो देखो बर्षा आई
       सब बच्चों के मन को भाई
कल तक गर्मी सता रही थी
          खूब पसीना बहा रही थी
चलने लगी पवन पुरवइया
         सावन आया आओ भैया
तीजों का संदेशा लाई
          देखो देखो बरसा आई
बड़े ज़ोर से गरज रहा है
    बादल रिमझिम बरस रहा है
भीग रहे हैं खेत बाग बन
          भीग रहे सारे घर आंगन
मौसम ने ली है अंगड़ाई
            देखो देखो बरसा आई
काली काली घटा घिरी हैं
       सूर्य किरण भी डरी डरी हैं
दिन में अंधियारी छाई है
              गर्मी से राहत पाई है
कोयल ने भी कूक लगाई
            देखो देखो वर्षा आई
घूम रही बच्चों की टोली
      भीग भीग कर करें ठिठोली
छाता लेकर दौड़ लगाते
       कागज की सब नाव चलाते
जमकर खूब पकौड़ी खाई
             देखो देखो बर्षा आई
सब बच्चो के मन को भाई

अशोक विद्रोही
 82 188 25 541
 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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जीवन में रुकना
कुछ ऐसे भी हो जाता है।

जिसका पता स्वयं
हमें भी नहीं चल पाता है।

हम उठते हैं हर रोज़
पर डगर एक पर चलते हैं।

नयी राह पर चलने से
हम हमेशा ही बचते हैं।

 आराम हमें जो भाते हैं
 वही नकारा हमें बनाते हैं।

 बचकर हर काम से जो
चालाक ख़ुद को समझते हैं।

 धोखे उनके, एक दिन
उनको ही खा जाते हैं।

नही चखते मेहनत को जो
आलस्य से तन भरते हैं।

बस बैठकर महफ़िल में
निंदा सबकी करते हैं।

ज़िंदगी की दौड़ में
वही पीछे रह जाते है

जो दोष अपनी हार का
क़िस्मत पर लगाते है

सितारे इस जग में
ऐसे ही नही चमकते है

मेहनत की बगिया में ही
सफलता के पुष्प उगते हैं।

बंजर ज़मीन पर जब
पसीने के मेघ बरसते हैं।

उस धरा पर ही फिर
अंकुरित बीज पनपते हैं।

त्याग ,समर्पण की अग्नि में
जो जन  जीवन में तपते हैं।

सोना बन वही एक दिन
इस दुनिया में चमकते हैं।


प्रीति चौधरी, शिक्षिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज,
हसनपुर, जनपद अमरोहा
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रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का दिन था चारों ओर रंग बिरंगी सुंदर राखियों और मिठाइयों की भरमार थी। सारे लड़के अपनी-अपनी कलाई पर बंधी रंग बिरंगी राखियां सबको दिखाते घूम रहे थे।
मुन्नू भट्ठी पर चढ़ी कढ़ाई में  चीनी और मावा एक बड़े से लकड़ी के घोटे से घोट रहा था।
"अबे जल्दी-जल्द हाथ चला कामचोर.. देखता नहीं बर्फी खत्म होने वाली है। साला त्यौहार के दिन ही ना जाने क्यों इसकी नानी मर जाती है", दुकान का मालिक राजू सेठ गुस्से से चिल्लाया।
मुन्नू जो किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था इस आवाज से झटके से हिला और उसके हाथ मशीन की तेजी से चलने लगे। मुन्नू की आँख से निकली आँसू की एक बूँद भट्ठी की आग में टपक गयी जिसकी "छुन्न!!" की आवज मुन्नू ने साफ-साफ सुनी।
मुन्नू कोई तेरह-चौदह साल का बालक था जिसके परिवार में उसकी माँ को छोड़कर कोई नहीं था।वह घर चलाने के लिए राजू हलवाई की दुकान पर नौकरी करता था।
अभी सेठ कुछ और बोलता तभी सेठ की दस साल की बेटी सजी-धजी दुकान में आयी, उसके हाथ में एक राखी थी।
"पापा..! पापा मैं किसको राखी बाँधूं? मेरा तो कोई भाई भी नहीं है.. लाओ पापा हमेशा की तरह आपको ही राखी बांध देती हूँ", सेठ की बेटी मोनी ने कहा।
"अभी खेलो कुछ देर, देखती नहीं हो कितने ग्राहक हैं। अभी थोड़ी फुर्सत होने दो", राजू ने चिढ़ते हुए लापरवाही से कहा।
उदास मोनी इधर-उधर देखने लगी, तभी उसकी नज़र मुन्नू पर पड़ी और वह उसकी तरफ बढ़ गयी। "अरे मुन्नू..! तुम इतने उदास क्यों लग रहे हो? और तुम्हारी कलाई भी सुनी है। क्या तुम्हारी बहन से तुम्हारा झगड़ा हुआ है?" मोनी ने धीरे पूछा।
"मेरी कोई बहन नहीं है", मुन्नू ने दुख भरी धीमी आवाज में कहा। "क्या?? अरे मेरा भी कोई भाई नहीं है देखो मेरी राखी.. इसे अभी तक किसी ने नहीं बंधवाया। तुम मेरे भाई बनोगे मुन्नू?" मोनी ने मुस्कुरा कर पूछा।
जवाब में मुन्नू ने अपनी कलाई आगे कर दी और मोनी ने झटपट राखी मुन्नू के हाथ में बांध दी।
मोनी दौड़कर फिर काउंटर पर पहुँची और बोली- "देखो पापा आज से मुन्नू मेरा भाई है। मैंने उसे राखी बांध दी है। अब आप मुझे मेंरेे भाई का मुँह मीठा करवाने के लिए मिठाइयां दो।"
राजू ने सर उठाकर चौंककर मोनी को देखा और अगले ही पर जाने क्या सोचकर मुस्कुराते हुए कुछ मिठाई एक डिब्बे में रखकर दे दीं।
"लो भईया मिठाई खाओ", मोनी ने कहा और अपने हाथ से मिठाई का एक टुकड़ा मुन्नू के मुँह में डाल दिया।
इस बार फिर मुन्नू की आँख से आँसू टपका लेकिन हवा उस आँसू को उड़ा कर ले गयी।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
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दादी कितना प्यार लुटाती
देख मुझे फूली न समाती
रोज बलैया लेकर मेरी
बड़ी खुशी से गोद उठाती ।

थपकी देती और झुलाती
लोरी गाकर मुझे सुनाती
आहट भी मैं सुन न पाऊँ
ऐसी मीठी नींद सुलाती ।

खूब खिलाती खूब पिलाती
खुली हवा में सैर कराती
काला टीका लगा भाल पर
बुरी नजर से वही बचाती ।

डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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चलो चांद पर झूला डाले
ऊंचे ऊंचे पेंग बढ़ाकर नभ छू डाले ।
चलो चांद पर झूला डालें ।
आशाओं का उम्मीदों का
 झोला लेकर
कुछ तारे झोले में भर लें
 कुछ मुट्ठी में भर लें
नीचे आकर सबको बांटे ,
सबके घर चमकादें
तारों की चमकीली दुनियां
धरती पर चमकालें
चलो चांद पर झूला डालो।
चलो सभी हो जाओ इकट्ठे
सब मिलकर जाएंगे
 बैठ चांद के झूले पर हम
सब सावन गाएंगे
मनभावन मौसम का
हम भी थोड़ा मज़ा उठालें
चलो चांद पर झूला डाला
ऊंचे ऊंचे पेंग बढ़ाकर नभ छू डाले।

 निवेदिता सक्सेना
 मुरादाबाद
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गाते-गाते गजक बेचते,
चाचा अहमद जान।

अपनेपन से भरी हुई है,
उनकी प्यारी बोली।
चहक उठी है उन्हें देखकर,
नन्हीं-मुन्नी टोली।
साथ उन्हीं के मिलकर सबने,
छेड़ी मीठी तान।
गाते-गाते गजक बेचते,
चाचा अहमद जान।

बच्चे-बूढ़े-युवा सभी से,
मिलकर हैं मस्ताते।
पड़े ज़रूरत डाँट-डपट कर,
भी सबको समझाते।
सच पूछो तो खुद में हैं वो,
प्यारा हिन्दुस्तान।
गाते-गाते गजक बेचते,
चाचा अहमद जान।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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चली लोमड़ी बन-ठन बाज़ार।
लाऊँ झोला भरकर शाक।।

आलू कैसे दिया है भाई।
दाम सुन थोड़ी हिचकाई।।

बोली मैं टिण्डा ले लूँगी।
पर दाम आधा ही दूँगी।।

बहन मैं लौकी, टिण्डा दूँगा।
दाम भी चलो मुनासिब लूँगा।।

वो बोली बैंगन के लगाना।
साथ में प्याज मुफ्त थमाना।।

झट वो लेकर भागा शाक।
लोमड़ी रगड़ती रह गई नाक।।


आयुषी अग्रवाल (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास
कुन्दरकी (मुरादाबाद)
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चन्दा को हम मामा कहते
सूरज जी को चाचा।
बारिश को हम रानी कहते
और बादल को राजा।
कहलाती है पवन सखी
और तूफान है दादा।
परकति के कण कण
से है हमसबका प्यारा नाता।
सदा दिया है इसने हमको
अपना प्यार दुलार।
अब मिलकर हम करे
इसका साज श्रृगांर।।


डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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चलो सुनाते हैं हम तुमको ,बचपन की कुछ बातें
सूरज दादा चंदा मामा और तारों की बातें ।
रंग-बिरंगे सपने अपने और गुड़ियों की बातें
पल में माने पल में रूठे तारे गिनती रातें ।।
खुशियों की गठरी हम बांधे चलते थे इतराते
छलक-छलक जाती थीं खुशियाँ बीते दिन थे जाते ।
जिद मेले जाने की करते मचल -मचल हम जाते
पापा के समझाने पर तो रीझ बहुत हम जाते ।।
छोटी -छोटी जिद होती थीं और सच्चाई की बातें
माँ के मर्यादा के गहने और पढ़ाई की बातें ।
त्योहारों पर बनते जोड़े और मजे आ जाते
बेशुमार कपड़ो में भी हम अब अभाव गिनवाते ।।
रातों को जब हम पढ़ते माँ संग जागा करती
उनके हाथों की ऊन सलाई मानो नींद से लड़ती ।
बचपन बीता तरूणाई के बदले खेल निराले
सपने ऊँचे और हौसलों को मन में हम पाले ।।
जोशीले कदमों से तब गाये हमने अफसाने
संघर्षों से खाली हो गए भरे हुए पैमाने ।।
चलो सुनाते हैं हम तुमको .........।।

गुरूजनों की इज्जत करना उनका मान बढ़ाना
अच्छा बनके तुम इस जग में ऊँचा नाम कमाना ।।
देश की खातिर जीना मरना देश की शान बढ़ाना
आँखों में पाले जो सपने सच उनको कर जाना ।।
चलो सुनाते हैं हम तुमको .....

मनोरमा शर्मा
अमरोहा
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 बाल कथा -----चुनमुन का हेलीकॉप्टर

लॉक डाउन में बच्चों ने खूब मनमानी की ।न स्कूल ,न होमवर्क ,बस उछल कूद और शैतानी । मम्मी के मोबाइल पर ऑनलाइन क्लास लेते समय बस अमेजॉन पर जाकर एक चाइना मेड किड हेलीकॉप्टर आर्डर कर दिया । दो दिन बाद गेट पर हेलीकॉप्टर आ गया ।दो हजार रूपये का यह हेलीकॉप्टर असली की तरह उड़ता था । चुनमुन की इन शैतानियों में नाना नानी को जो रस मिलता है,उसकी  सानी नही ।साहब  जी ,उसे खूब उड़ाते । खाना पीना सब छूट गया ।बस हेलीकॉप्टर चार्जिंग पर लगता और खूब पूरे घर के चक्कर लगाता ।बच्चे क्या ?अब तो बूढ़े भी मस्त थे बच्चों में।
तीन दिन बाद शाम को हेलीकॉप्टर फिर उड़ा ,बहुत ऊँचा, बहुत दूर ,और उड़ा उड़ता ही चला गया फिर तो रिमोट से भी नही रुका।उस पूरी रात ननिहाल के सब जन बस एक ही बात कहते कि चुनमुन का हेलीकॉप्टर देखा कहीं ?  पर कुछ भी पता नही चला।रात में किसी ने खाना भी नही खाया ,आज खाने का लॉक डाउन ।
किसी तरह सुबह हुई ,सब काम में लगे पर किसी काम मे मन न लगा तो नानी बोली ,"चलो चुनमुन बाहर घुमा लें तुमको ,.पर चुनमुन की एक ही रात रट ,हेलीकॉप्टर लाओ ........कहीं से भी । बेबस नानी सड़क पर चली कुछ दूर तो भीड़ जुटी थी ,जिसको देखो ,यही कहे ,जाने का बला थी जो घोड़ी के ऊपर गिरी रात ।घोड़ी बाला रामरतन तो बेहोश हो गया था ,सुबह उठा चिल्ला रहा था ,अरे.......... बचाओ ....जराय दियो ,काऊ ने अरे.......आग गिरी रे ....। नानी बोली ,"का बात हो गई भाया? बड़ी भीड़ जुटी है ? अरे भाभी ,तुम्हें न पता ?जाने का चीज रात में अस्पताल मे गिरी ,डर के मारे कोई पास में भी न गयो बस रामरतन की बात सुनके घिगी सी बंध गई मेरी भी ,कम्मो काकी बोली ।"
लाल बत्ती वामे अबहुँ जल रही है ।नानी को सब समझते देर न लगी ,बोली मेरे संग चलो ,कहाँ है? काकी और कुछ बच्चों का झुंड नानी के पीछे । अरे .......यहाँ गिरा जे इतनी दूर ,जाको ही तो ढूंढ रहे हैं रात से ।पोते का खिलौना है कोई बला नाइ है ।आखिर हेलीकॉप्टर मिल गया पर जो रात में घटा, उस घोड़ी वाले  के साथ उसे सुनकर हँसी रोके नहीं रुकती ।

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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वर्षा आयी वर्षा आयी
मेरे मन को है ललचायी ।
तन पर बहुत घमोरी होती
खुजली भी ऊपर से होती ।
वर्षा में जब मैं भीगूंगा
चैन घमोरी से ही लूंगा ।
छत की नाली बंद करूंगा
छत को पानी से भर लुंगा ।
कागज की फिर नाव चलाऊं
हंँसूं साथ में तैरूं गाऊं ।
भाई-बहिन नहीं है कोई
मैं करता जो मन में होई।
बिजली जब बादल में चमके
मम्मी मेरे ऊपर भड़के ।
मम्मी फिर नीचे ले जाती
वर्षा रानी याद सताती ।
 
राम किशोर वर्मा
रामपुर
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लेके सबको संग आज हम तो चल पड़े
      मन में है उमंग आज हम तो चल पड़े

साथी सारे साथ हों तो बस कमाल हो
     हाथों में जब हाथ हो तो बस धमाल हो
"एक राग" को पकड़ के "साज" चल पड़े
       "सारे सुर" करके "एक आवाज" चल पड़े

मंजिलें भी एक हैं और रास्ते भी एक
         हौंसले बुलंद हैं और इरादे हैं नेक
"होनहार कल के" कर आगाज़ चल पड़े
            लेके कामयाबी का ख्वाब चल पड़े

हमको कोई राह रोक सकती है भला
       हमको कोई बाधा टोक सकती है भला
"रणबाँकुरे हैं हम तो" नाद कर चले
       सारे वीरानों को हम आबाद कर चले

" एक दिन" हम सबको "एक" करके मानेंगे
       "एक दिन" हम सबको "नेक" करके मानेंगे
प्यार की मशाल हाथ लेके चल पड़े
        मस्त अपनी चाल आज हम तो चल पड़े

लेके सबको संग आज हम तो चल पड़े
        मन में है उमंग आज हम तो चल पड़े ।।।।

 सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता,--------- डिपार्टमेंटल स्टोर


मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ----- तुम सिंदूर संजो कर रखना लौटूंगा तो भर दूंगा


मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की ग़ज़ल ------ अब गुलशन गुलदान सरीखा लगता है


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की रचना------- नन्ही मुन्नी एक चिरैया


मुरादाबाद के साहित्यकार उमाकांत गुप्ता का गीत ------- तुमसे ही जीवन को पाया


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही का गीत ------- देश मेरा सोने की चिड़िया


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना -----कर दो इतना उपकार हमारी मटकी को भर दो


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना-----


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मनोरमा शर्मा की रचना --- कहूं न कहूं


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना ------ जय कन्हैया लाल की


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना------


मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला का गीत----- राम लला घर आए हैं .....


सोमवार, 10 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल ( वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचनाएं,-----


मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की रचना ---


मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर की ग़ज़ल -----होंठों पर रक्खा था तबस्सुम ,आंखों में नमनाकी थी