शनिवार, 15 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा---दहेज़


        अभी एक माह  भी नहीं नहीं हुआ था गीता की शादी को कि बेटी अचानक घर आ गई। मां ने पूछा,'' बेटी तू ठीक तो है ना---?''
       हाँ माँ ! उत्तर देते हुए बेटी का गला रुंध गया----।
      '' परन्तु यह तेरे शरीर पर नीले - लाल निशान कैसे हैं?''
         '' माँ ! कुछ नहीं तू चिंता न कर ।"
        " लेकिन माँ तो माँ होती है उसे चैन। कहाँ, उसने फिर पूछा ।"
         " फिर भी ।"बता तो सही क्या हुआ?
        " बेटी ने आँख में आँसू लिए कहा, यह तो माँ रंगीन टेलीविजन के बिगड़ते कार्यक्रमों की कुछ झलकियां हैं-----।"
       " बस फिर क्या था माँ को समझने में देर नहीं लगी।"
                     
 ✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद

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