गुरुवार, 13 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा - बॉर्डर


बाघा बॉर्डर के मुंडेर पर बैठे दो कौए एक दूसरे से बात कर रहे थे ।पहला  कौआ दूसरे कौए से- " भाई तू ,हमारी तरफ क्यों नहीं आ जाता ?
 क्या ,उस तरफ तुझे कुछ ज्यादा स्वादिष्ट खाना मिल रहा है ?....
दूसरे कौए ने जवाब दिया -  ऐसी कोई बात नहीं .... चलो एक काम करते हैं , महीने के 15 दिन मैं तेरी तरफ और बाकी के 15 दिन तू मेरी तरफ रहेगा। पहले ने कहा ,अगर महीना 31 का रहा तो .....
दूसरे  कौए ने  हस कर कहा -  उस फालतू दिन का बाद में सोचेंगे....
पहला कौआ दूसरे कौए से -  भाई कल तेरी तरफ से ,कई गिद्घ झुंड में हमारी तरफ आए थे .....
तभी बातचीत के दरमियान नीचे तैनात सिपाहियों की बातचीत दोनों कौवों को साफ-साफ सुनाई दी, वो बोल रहे थे -  कोई भी अगर इधर से उधर जाते वक्त दिखे ...तो आदेश है ,देखते ही बिना पूछे भून डालो ।
दोनों कौवों ने डरते हुए एक दूसरे को देख कर  कहा - अच्छा है ,हम पक्षियों के लिए कोई बॉर्डर नहीं ....हमारी तो पूरी धरती भी अपनी और पूरा आकाश भी अपना। जाने इन इंसानों ने धरती कितने भागों में बांट रखी है .....मर कर या मार कर क्या जन्नत में कोई टुकड़ा लेकर जाएंगे।।

प्रवीण राही
मुरादाबाद

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