शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी की कहानी----भोली जिज्ञासा


   दादाजी को दूर से आते देख बच्चे (रवि) की खुशी का ठिकाना न रहा।दौड़कर बच्चे ने दादा जी के पास पहुंचकर चरण स्पर्श किएऔर उनका आशीर्वाद लिया।
       अगले ही क्षण बच्चे ने बड़े ही भोले पन से दादा से प्रश्न किया दादाजी अब कब जाओगे।दादाजी को उसके इस तरह पूछने पर यह शंका हुई कि शायद मेरा आना उसको या इसके माता-पिता को अच्छा न लगा हो,तभी तो इसने अपनी या अपने माता-पिता की शंका का अविलंब समाधान करने का प्रयास किया है।
      परंतु धैर्य के साथ मुस्कुराते हुए दादा ने बच्चे के उस प्रश्न का बड़ी सहजता से उत्तर दिया कि बेटा हम अभी अभी तो आए हैं।इतनी जल्दी कैसे जाएंगे।अब तो हम तुम्हारे साथ बहुत दिन तक रहेंगे।
       बच्चे ने जब यह सुना कि दादा जी अभी नहीं जाएंगे तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।वह खुशी-खुशी डांस करते हुए दादा से लिपट कर उनके प्यार में खो गया।उनकी छड़ी को शहनाई बजाने की मुद्रा में लेकर उनके आगे-आगे स्वागत करता हुआ घर की ओर बढ़ने लगा।
        दादा जी के आने की खबर मम्मी-पापा को सुनाने के लिए तेज कदमों से घर के अंदर चला गया। कुछ पलों के पश्चात वह मम्मी-पापा के साथ दादा जी के समीप पहुंच कर उनकी गोदी में चढ़कर बैठ गया।मम्मी-पापा ने भी दादा जी के पैर छूए और उनकी खैरियत से वाक़िफ़ होकर उनके लिए जलपान की व्यवस्था में लग गए।
       तब दादाजी ने अपने झोले की चेन खोलकर साथ में लाए मथुरा की सोहन पपड़ी का डिब्बा निकलकर पोते रवि को दिया।
        इस तरह दादू पोते एक दूजे के साथ रहकर खुशियां लुटाते नज़र आते।दोनों एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते।बच्चा रात को दादा के पास ही सोता और रोज़ नई से नई कहानियां सुनता।
      काफी समय हो जाने पर दादा घर लौटकर खेती बाड़ी संबंधी कार्य पूर्ति की सोचने लगे।
परंतु उनका घर से निकल पाना इतना आसान नहीं था।
       एक दिन अहले सुबह उठकर उन्होंने जल्दी - जल्दी कपड़े पहने और चुपके - चुपके बाहर निकल कर जूते पहने तथा बहू-बेटे से दो परांठे टिफिन में लेकर आशीर्वाद देकर चले गए।मगर पोते को छोड़कर जाना उन्हें भी बहुत बुरा लग रहा था परंतु जाना भी जरूरी था।
    सुबह जब बच्चे(रवि)की आंख खुली तो सबसे पहले उसने दादाजी को ही पूछा परंतु घर वालों ने कहा कि दादाजी घूमने गए हैं थोड़ी देर में आ जाएंगे।
       बच्चा भी माता-पिता के चेहरे पर बनी झूठ की लकीरों को पढ़ कर बार-बार दादा जी के पास जाने की ज़िद करने लगा और उदास होकर दादा के आने की प्रतीक्षा करने लगा और बोला,,,मैंने तभी तो दादू से पूछा था कि दादा अब कब जाओगे।
         अर्थात वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि दादाजी मुझे छोड़कर जल्दी तो नहीं चले जाओगे।
   यही तो है बच्चे की भोली जिज्ञासा। 
           
  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
   मुरादाबाद/उ,प्र,
  फोन-9719275453

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