शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --- भविष्य


मालती का पति उसे छोड़ कर शहर चला गया।उसकी ससुराल वालोंं ने उससे सब नाते तोड़ दिये।कुछ गांव वालोंं की दया से बनी झोपडी़ मेंं वह दोनोंं बच्चों के साथ रहकर जीवन गुजार रही थी।आसपास के पुरुषों की नजरों से खुद को बचाने के लिए उसने अपनी जुबान पर कड़वाहट का ऐसा मुल्लमा चढ़ा लिया था कि बडे़ बडे़ उसे देखकर रास्ता छोड़ देते थे।सुबह उठकर भट्टे पर काम पर जाना उसकी आवश्यकता थी। सात साल की सोना और 4साल के रघु को झोपडी मे बंद करके जाती।शाम को सागसब्जी के साथ दरवाजा खोलती। बच्चे खाने की आशा मे उसकी हर आज्ञा मानते।
पास के रतन लाल नेकहा " क्यो बच्चों को बन्द करती है? अपनी बेटी का नाम स्कूल मे लिखवा दे और मुन्ना का नाम आँगनवाड़ी मे लिखवा दे वहाँऔर बच्चों के साथ कुछ सीखेगे"।इसी बात पर वह घन्टों चीखी चिल्लाई। रतनलाल हार कर चुप हो गये।मगर धीरे धीरे उसने साग लाना कम किया।एक समय ही खाना शुरू किया एक दिन काम से वापस आते वह बेहोश होकर गिर पडी.पडोस की स्त्रियां ने उठाया।बुड्ढी दादी के कहने पर जब उसकी कुर्ती ढीली की तो उसमे से दो पर्ची गिरी।दादी बोली लगता है"कई दिनो से कुछ खाया नहीं है"।स्कूल जाते मास्टर जी से पर्ची पढवायी तो देखा एक पर्ची   सोना के स्कूल की फीस की थी और दूसरी रघु के आँगनवाड़ी मे भर्ती की।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

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