क्रूर कंस वसुदेव-देवकी कारा में डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म, खुले बन्दीगृह के ताले।।
छटा अनीति का अंधकार,
सत का सूरज चमका।
घोर अंधेरी अर्द्ध रात्रि,
में गगन इन्दु दमका।
गये पहरुए सोय, गिर गए हाथों से भाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
अम्बर पर काली-काली,
घनघोर घटा छाई।
चपला चमकी नभ बीच,
चली पूरब से पुरबाई।
अद्भुत हुआ प्रकाश बहे नभ से अमृत नाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
गगन गिरा कर श्रवण,
प्रकम्पित कंस हुआ भारी।
सुन प्रचंड ध्वनि, अंतरिक्ष,
की जागे नर नारी।
हुआ मृत्यु आभास, छा गए कंस दृगन जाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
मास भाद्रपद कृष्ण पक्ष की,
अष्टम तिथि आई।
वृहत सूचना युग परिवर्तन,
की संग-संग लाई।
काल पुरुष ने क्रूर कंस के मान मिटा डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
भर वसुदेव अंक कृष्ण को,
गोकुलधाम चले।
देख अगम जल जमुना जी का ,
मन शत बार हिले।
चरण छुअन हित उठी तरंगें, साध हिये पाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
नव युग का निर्माता, नायक,
नन्द भवन पहुँचा।
यसुदा जन्में लाल हुई,
घर घर में शुभ चर्चा।
वेश बदल दर्शन हित आये ,अर्ध्य चन्द्र वाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
कृष्ण जन्म ने जन-गण के मन,
अभय बीज बोया।
जगा राष्ट्र का स्वाभिमान,
जो तब तक था सोया।
हुआ धरा पर स्वर्ग अवतरण, जिसके थे लाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
बजी क्रांति की दिव्य बाँसुरी,
संगठन किया भारी।
अनाचार की अंधियारी में,
बिखरी उजियारी।
बांध राष्ट्र को एक सूत्र में भाग्य बदल डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
राजनीति के प्रखर प्रेणता,
कृष्ण कन्हैया थे।
साथ साथ उनके वलशाली,
दाऊ भैया थे।
इन युग्मो की कला-कीर्ति में कागज रंग डाले,
हुआ कृष्ण का जन्म खुले बन्दीगृह के ताले।।
✒️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
------------------------------
दर्द में डूबी है क्यों रात ,कोई क्या जाने !
किसने बख़्शी है ये सौग़ात, कोई क्या जाने !
आज छप्पर से टपकता है जो पानी घर में ,
कैसे गुज़रेगी ये बरसात , कोई क्या जाने !
जाने कब लौट के फिर आएँ मेरे आंगन में ,
गूँजते प्यार के नग़मात,कोई क्या जाने !
आज किस वास्ते मुरझाई हैं कलियाँ प्यारी ,
कैसी पेड़ों से हुई घात, कोई क्या जाने !
छोटा घर छोड़के महलों में ठहरती है सदा ,
धूप के दिल में है क्या बात, कोई क्या जाने !
किसलिए शोले भड़कते हैं किसी के दिल में ,
क्यों झुलस जाते हैं जज़्बात, कोई क्या जाने !
कल को "ओंकार" किसे घेरे अँधेरा ग़म का ,
रास आएँ किसे हालात, कोई क्या जाने !
✍️ ओंकार सिंह "ओंकार"
1-बी- 241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244001
--------------------------------
आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।
ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।
अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।
चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी
सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।
अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की
मन दर्पण पर जमी हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।
हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं करने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।
रंग बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।
✍️ डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
-----------------------------
आओ मिलकर सभी निकालें
हर मुश्किल का हल
मुश्किल क्योंकर है पहले तो
यही समझना है
बेमतलब की बातों में अब
नहीं बहकना है
सूझ - बूझ से ही निकलेगा
हर परिणाम सुफल
सच का प्रहरी ही बन सकता
निश्छल मन वाला
राग द्वेष से दूर ही रहता
अपनेपन वाला
मानवता के रंग में वह तो
जाता खुद ही ढल
समय छेड़ कर तान बेसुरी
हमें छकाता है
छल - छद्मों से भरे स्वप्न अब
हमें दिखाता है
इससे लड़ने को भर लें हम
नैतिकता का बल
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद
----------------------------
15 अगस्त सन् सैतालीस को देश मेरा आज़ाद हुआ।
गहन तिमिर से सूरज निकला ,चहुँओर आह्लाद हुआ।।
अग्रेजो़ ने भारत छोडा़, परसत्ता अवसान हुआ।
सफ़ल अन्त मे वीर सपूतों का अनमिट बलिदान हुआ।।
आजादी को प्राण मिले ,जीवन एक वरदान हुआ।
गाँधी के स्वप्नों से चहुँ दिश भारत का सम्मान हुआ।।
कोमल कोमल कली पुष्प को साहस से फौलाद किया।
जंजीरों से भारत माँ के तन मन को आज़ाद किया।।
समय ज़रा सा क्या बदला हम हर बलिदान को भूल गये।
आजादी को पाते ही हम मान अपमान को भूल गये।।
दहेज हत्या बलात्कार से नारी जीवन त्रस्त हुआ।
आजादी आई है किन्तु प्रेम का सूरज अस्त हुआ।।
वर्ग जाति और कुनबों ने भारत को बर्बाद किया।
नफ़रत के कु प्रभावों ने भावों का अवसाद किया।।
किंकर्तव्यम् जनता है और नेता भष्टाचारी है।
आतंकवादी हमले सहना अनचाही लाचारी है।।
अपने ह्रदय मे ही हम प्रेम के बोज को बोना भूल गये।
भारतवासी हो कर भी हम भारती होना भूल गये।।
आओ करे सकंल्प कि अब इस देश को स्वर्ग बनाना है ।
अम्न के फ़ूलों की खुशबू से हर दिल को महकाना है।।
नहीं ज़रूरी इतना कि हम ज्ञानी ध्यानी बन जायें।
सर्व प्रथम मत भेद भुला कर हिन्दुस्तानी बन जायें।।
✍️ डा. मीना नक़वी
सबसे मिलकर---
-----------------------
सबसे मिलकर चलने वाले,
सदियों तक जिंदा रहते हैं,
अनदेखी करने वाले ही,
जीवन भर निंदा सहते हैं।
-----------------
सच्चे मानव के अंतस में,
अंतर्द्वंद नहीं पलता है,
केवल खुशियों के मंदिर में,
आशा का दीपक जलता है,
कुटिल भावना रखने वाले,
सबको ही गंदा कहते हैं।
सबसे मिलकर--------------
भेद-भाव बिन अंतर्मन में,
श्रद्धा भाव स्वयं आते हैं,
केवल प्यार लुटाने भर से,
भटके भी मंज़िल पाते हैं,
सबकी खातिर लड़ने वाले,
फांसी का फंदा सहते हैं।
सबसे मिलकर---------------
जग के कष्ट दूर करने को,
विष पीने से नहीं हिचकते,
नहीं देख पाते बच्चों को,
भूखे रोते और बिलखते,
बच्चे तो सबकी आंखों में,
बन करके चंदा रहते हैं।
सबसे मिलकर----------------
निंदनीय बातें सुनकर भी,
क्रोधित होना नहीं सुहाता,
मानवता का पथ ठुकराकर,
इनको जीना तनिक न भाता,
भूल - चूक के लिए सर्वदा,
खुद भी शर्मिंदा रहते हैं।
सबसे मिलकर----------------
मानवता में बहने वाले,
होते हैं मानव अति विरले,
सबके मन में बसने वाले,
अंतर्मन के होते उजले,
ऐसे मानव इस धरती पर,
बनकर गोविन्दा रहते हैं।
सबसे मिलकर------------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ, प्र,
9719275453
----------------------
इक सलोनी सी सुहानी रीत है ये जिंदगी
प्यार से इसको संवारो मीत है ये जिंदगी
भोर की पहली किरन सी देख है उजली धुली
उड़ रही है नील नभ में पंछियों सी चुलबुली
हार कर भी जो न रुकती जीत है ये जिंदगी
दर्द से होकर गुजरते हर ख़ुशी के रास्ते
मन शिवाला सब बना है बंदगी के वास्ते
गुनगुना कर तुम जियो तो गीत है ये जिंदगी
याद के नूपुर बजाती चांदनी कि रात है
मौन अधरों पर रुकी यह अनकही सी बात है
आंसुओं में भी खिली जो प्रीत है ये जिंदगी
✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
----------------------------
हिंदू मुस्लिम नहीं हमारी, हिंदी ही पहचान रहे।
हम सबके दिल में अब केवल अपना हिंदुस्तान रहे।।
हम विकास के पथ पर चलकर, आगे बढ़ते जायेंगे।
अपने श्रम से मिल जुल कर हम, इसका नाम बढ़ायेंगे।
विश्व शिखर पर सदा सर्वदा, भारत की पहचान रहे
हम सबके दिल में अब केवल अपना हिंदुस्तान रहे।
बाधाएं कितनी भी आयें, हम बढ़ते ही जायेंगे।
देश की खातिर मिटना भी हो, तो फिर मिट भी जायेंगे।
हम न रहेंगे कितु हमारा, भारत सदा महान रहे।
हम सबके दिल में अब केवल, अपना हिंदुस्तान रहे।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद (उ.प्र.)
244001.
----------------------------------
किया तिरंगा ओढ़ कर, वीरों ने ऐलान।
क़तरा-क़तरा खून का, माटी पर क़ुर्बान।।
दूर नहीं आतंक का, जड़ से काम तमाम।
मेरी सारी रखियाँ, भारत माँ के नाम।।
मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।।
फँस कर माया-पाश में, मन-केवट लाचार।
भगवन इसको ले चलो, भवसागर से पार।।
कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।
तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।
सीपी बोली बूँद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।
✍️ राजीव 'प्रखर'
(मुरादाबाद)
-----------------------------
मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे!
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
एक क्या सौ जनम तुझ पे कुर्बान मां!
भेंट अपने सिरों की चढ़ाएंगे!
गोले बारूद से न किसी तोप से
दिल में डर ही नहीं है किसी ख़ौफ से
बांध सर पे कफ़न चल जिथर देंगे हम
पग न रण में ये पीछे हटाएंगे
मान माता तेरा हम बढ़ायेंगे!
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
खूं से लथपथ सजे फिर भी बन्दूक से
मन ये विचलित नहीं प्यास से भूख से
चढ़ के दुश्मन के सीने पे ध्वज गाड़ दें
प्यास उसके लहू से बुझायेंगे !
मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे!
धूल माथे से तेरी लगायेंगे !!
छोड़ मां-बाप को गांव घर द्वार को
हम समर्पित हुए मां !तेरे प्यार को
मन ये संकल्प ले अब जिएं या मरें
जीत करके ही वापस आएंगे !
मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे !
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
गीत बनके फिज़ाओं में गूंजेंगे मां!
बाद मरने के भी तुझको पूजेंगे मां!!
राख होगा जो तन मिलके गंगा के संग
तेरी फसलों को हम लहलहायेंगे!
मान माता की राह बढ़ाएंगे !
धूल माथे से तेरी लगाएंगे !!
एक क्या सो जन्म तुझ पर कुर्बान मां!
भेंट अपने सिरों की चढ़ायेंगे!
✍️अशोक विद्रोही
8218825541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
-----------------------------
मत बरसो अब घन बावरे
भर गये सब नदी ताल रे ।
अति बरसना भी दुखदाई
मनहुँ कोई विपदा आई
आ रही चहुँ ओर बाढ़ है
घिर गये सब शहर गाँव रे
मत बरसो अब घन बाबरे ।।
नाले बह चले राहों में
नाली खेल रहीं घरों में
सरिता का सड़कों पर नर्तन
घुमा रहा सब नगर नाव रे ।
मत बरसो अब घन बावरे ।।
बरखा सुख , दुख में न बदलो
कहीं कृषक का श्रम न हर लो
सींच लिया बहुत खेतों को
चले जाओ उलट पाँव रे ।
मत बरसो अब घन बावरे ।।
✍️ डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
------------------------------
मजा नहीं पद - पदवी धन का बोझा ढोकर जीने में
मजा मौज से रोज सबेरे राम - नाम रस पीने में
(1)
कीमत असली राम - नाम की पहचानो ऐ जग वालो
रुपया - पैसा या जमीन का गर्व नहीं किंचित पालो
रखा नहीं कुछ सोना चाँदी हीरे और नगीने में
मजा नहीं पद पदवी धन का बोझा ढोकर जीने में
मजा मौज से रोज सबेरे राम - नाम रस पीने में
( 2)
मिलता है वह नदी किनारे पर्वत की ऊँचाई में
मिलता है हरियाली मरुथल पेड़ों की परछाई में
मिलता है हर रोज सभी बारह हर एक महीने में
मजा नहीं पद - पदवी धन का बोझा ढोकर जीने में
मजा मौज से रोज सबेरे राम - नाम रस पीने में
✍️रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
----------------------------
वतन से मौहब्बत है ईमान मेरा,
वतन पर सभी कुछ है कुर्बान मेरा।
भुलावे में रहना न बिल्कुल पड़ोसी,
अगर चीन तेरा तो जापान मेरा।
मज़हब की दीवारें यहां न उठेंगी,
यहां पर है गीता औ' कुरआन मेरा।
वतन पर कटाये यहां सर सभी ने,
यहां रहने वाला है इंसान मेरा।
रहेंगे जो बंधकर के सब एकता में,
बनेगा तभी देश बलवान मेरा।
वतन पर किसी ने जो नजरें उठाई
उसे मार डालेगा भगवान मेरा।
वतन पर शहादत 'वफ़ा' मिल गई जो,
सुबह शाम फिर होगा गुणगान मेरा।
✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य
अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)9456031926
-----------------------
खेतों को देख झूम जाते
देश-प्रेम गीतों को गाते
हम भारत स्वदेश के बालक
भारती को माँ कह बुलाते।।1।।
सावन में सब रंग रंग जाते
पेंग बढ़ाकर घन छू आते
महक-महक बारिश-बूँदों से
आँगन में खुशियाँ चहकाते।।२।।
भाई बहन रिश्ते महकाते
राखी का त्योहार मनाते
एक प्रेम डोर में बंधकर
बहना-रक्षा वचन निभाते।।३।।
देश प्रेम की नदी बहाते
शहीदों को नमन कर आते
जो दे आज़ादी गये हमें
उन वीरों को शीश झुकाते।।४।।
गुणगान स्वदेशी के गाते
विदेशी से दूरी बनाते
अपने भारत देश का नाम
विश्व पटल पर है चमकाते।।५।।
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला ,अमरोहा
-----------------------------
हो ऊँचा नाम जगत में,
झुकने ना पाए तिरंगा।
ना लड़े कोई मज़हब को,
मिटे जात-पात का दंगा।
निज मातृभूमि से बढ़कर,
कुछ नहीं पूजनीय दूजा।
निश्चय को बना लो हिमालय,
व्यवहार हो निर्मल गङ्गा।
जब बात देश की आये,
तब मोह तजो प्राणों का।
ये जान चली भी जाये,
लहराता रहे तिरंगा।
✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
--------------------------------
है नहीं कोई भवितव्य हमारा
हम हैं नदी की धार में तिरते दिये।
धर बाती अधिकार की जब
चाहे कोई हमें जला दे बुझा दे।
लहर कोई अंचल की ओट ले सहेजे
या जब चाहे धार हमें डुबा दे।
है नहीं कोई मंतव्य हमारा
हम हैं किसी मँझधार में बहते दिये।
माटी के इस दिवले में
तुम प्राण अपने डाल के।
जला दो कहीं मंदिर में
या धर दो देहरी पे बाल के
है नहीं कोई गंतव्य हमारा
हम हैं किसी के द्वार पे जलते दिये।
साँझ ढलते ही जलाये गये
हम भोर होने तक जलते हैं ।
मुसाफिर आते जाते हैं यहाँ
रास्ते भला कब चलते हैं।
कि प्रतीक्षा ही ध्येय हमारा
हम हैं जले बेकार में बुझते दिये।
है नहीं कोई भवितव्य हमारा
हम हैं नदी की धार में तिरते दिये।
✍️ रचना शास्त्री
------------------------------
मानवता सो रही है
भाईचारा खो रहा है
कैसे करूंँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
हर तरफ है लूट जारी
डाकुओं की भीड़ भारी
जब रक्षक बने हों भक्षक
और आवाम सो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
कोड़ों की मार खाकर
भगत सिंह ने लहू बहाया
लाखों ने शीश वारे
तब देश था बचाया
पर अब तो देशद्रोह का
खुल्ला खेल हो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
यह नानक की जमीं है
यहाँ दयानंद भी आए
यहांँ राम और कृष्ण ने
जीवन के पाठ पढ़ाए
पर अब तो नया चलन है
"शैतान" बना हर मन है
किसको "गुरू" हम समझे
हर कोई "भगवान" हो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
"मैं" हूंँ बस "मेरा" ही सब कुछ
"हम" शब्द आज गुम है
एक साथ मिलकर रहना
"क्या यह भी कोई नियम है ?"
अपनी थैली भर लो
किसी और की क्यों सोचो
"लूटो" "खसोटो" "नोचो"
"देश" क्या "ईमान" भी बेचो
जहाँ देखो वहशियत का
नंगा नाच हो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
एक हाथ में है "प्याला"
दूजे में "राम माला"
एक हाथ कर रहा है
अरबों खरबों का घोटाला
एक हाथ में है खंजर
दूजे में बम की ज्वाला
एक हाथ कर रहा है
"निर्वस्त्र" "अबला बाला"
कहीं "जवानी" को "नशे" में धकेला
कहीं "बचपन" ही रौंद डाला
कहीं खाने में जहर घोला
कहीं पानी विष कर डाला
देखो मेरे वतन का
देखो मेरे चमन का
कैसा पतन हो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
क्या और कसर बाकी है ?
क्या और जहर बाकी है ?
क्या नौजवानों की रगों में
कहीं जोश की लहर बाकी है ?
क्या इस देश के चेहरे पर
कोई और दाग बाकी है ?
अब तो कोई भी आए
मेरे देश को बचाए
ये जो "सो" रही है "जनता"
इसे नींद से जगाए
भटके हुए दिलों में
फिर "देश प्रेम" जगाए
ये जो आन है हमारी
वो "तिरंगा" फिर मुस्कुराए
"भारत" विश्व में फिर से
एक नई पहचान बनाए
देखो इस गुलशन का
इस "जगत गुरू" से वतन का
कैसा सर्वनाश हो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है
मानवता सो रही है
भाईचारा खो रहा है
कैसे करूँ यकीं के
मेरा देश रो रहा है ।।
✍️ सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
---------------------------
प्रिय पार्क !
अब तुम इतने भी प्रिय नहीं रहे
सब तुम तक आने में डरते रहे
तुम लाख जतन भले करते रहो
लोग घरों में अपने दुबके रहे
न दौड़ना, टलना न कोई खेल
गृह कार्य में ही निकल रहा तेल
दूर हो गए पास नहीं आना है
यही वजह है किसी का नहीं मेल
✍️ कंचन लता पाण्डेय “कंचन”
--------------------------------
अक्लमंद हो गया हर धनवान ज्ञानी का सम्मान बदल गया
स्वार्थ की ऐसी आंधी आयी हर मौकापरस्त अपनी जुबान बदल गया
सबसे बड़ा बनने की अंधी दौड़ में इंसान का अपना ईमान बदल गया
ऐसी बोली लगी पुरखो की विरासत की घर का हर सामान बदल गया
मुखौटौं के इस नये परिदृश्य में हर चेहरे का अपना पहचान बदल गया
बुढ़ापे की लाठी ने नजरें ऐसे फेरी माँ की ममता का एहसान बदल गया
दुश्मन हो गया है इंसान ही इंसान का खुद़ा का हर फरमान बदल गया
गंगा को पवित्र न छोड़ा भगीरथ को मिला शिव का वरदान बदल गया
ईमारते खड़ी कर दी फसलें रौदंकर मेरे गांव का हर निशान बदल गया
थिरकते हैं लोग शोरगुल संगीत पर पुराने साज़ो का कद्रदान बदल गया
न सकूँ इबादत में न होती मन्नते मंजूर मेरा तो शायद भगवान बदल गया
✍️-संजय विश्नोई
दिल्ली
------ -----------------------------------
"एक-एक को ऊपर-नीचे ,
रखकर यदि हम जोडें ।
होगा योग दो ही उनका ,
चाहे जिधर से जोड़ें ।
लेकिन यदि बराबर रख दें ,
तब हो अजब नजारा ।
एक,दो,तीन,चार नहीं तब वो,
होंगे पूरे ग्यारहा ।
इसी तरह से ऊंच - नीच का,
यदि हम भेद मिटायें ।
समझें सदा बराबर सबको,
सबको गले लगायें ।
तब स्थिति सामाजिक अपनी,
होगी जग से न्यारी ।
नई -नई प्रतिभा उभरेंगी ,
लेकर क्षमता भारी ।
दुष्कर कार्य,सहज फिर होकर,
सिद्ध क्षणों में होंगे ।
अपने पन के भाव परस्पर ,
सब के मन में होंगे ।
मिटे दीनता और हीनता ,
धरती से भारत की ।
एक नया परिवेश सुखद हो,
धरती पर भारत की ।
भाग्य और भक्ति के बल पर ,
स्वर्ग लालसा अपनी ।
पूरी होगी स्वर्ग बने जब ,
धरा देश की अपनी
✍️ राजकुमार ' सेवक '
ग्राम :- रसूलपुर गूजर
त० व पोस्ट:- कांठ
जिला :- मुरादाबाद (उ०प्र०)
------------------------------
सच्चे मित्र है कहां,स्वार्थ में सब लोट।
शराफत का चोला पहन,करते लूट खसोट।।1।।
शुभ से दूर शुभचिंतक, बुगले भक्त अनाप।
राम बचाये ऐसे सखा,प्रत्यक्ष वे संताप।।2।।
सच्चे मित्र सोधना,मुश्किल है ये काम।
ज्योति ले ढूंढो भला,दिये न मिले दाम।।3।।
अच्छा दोस्त वही जो,विपत्ति आये गाम।
रक्षा में तत्पर रहे,बिगड़े सुधारे काम।।4।।
खांडे की धार है मित्रता,लक्ष्मण की है कार।
सच्चे की है साख मित्रता,प्रभु का चमत्कार।।5।।
दो शरीर एक आत्मा, मित्र है ऊंची शान।
ऐसे मित्र नहीं मिले,खोजो थान सुथान।।6।।
मित्र की पहचान हुवै, संकट रहे जो साथ।
मन संतप्त हो सखा,ऊंचो राखै माथ।।7।।
समान स्थिति से मित्रता, और करो विश्वास।
सच्चे मित्र से न करो भूलकर ज परिहास।।8।
मित्र बने जो सम्पन्नता, विपन्नता रहे दूर।
ऐसे मित्र से विछन्नता,अच्छी सदा हजूर।।9।
मित्र के लिए कठिन नहीं, अपना जीवन दान।
पर ऐसा सखा कहाँ, दे जिसे अभयदान।।10।।
ज्योति जले मित्रता की,हुवै सत्य प्रकाश।
तम राशि कटे सदा, उज्ज्वल हो आकाश।।11।।
✍️ डॉ.कृष्णलाल विश्नोई, बीकानेर
मोब.नं.9460002309.
-------------------------------
धर्म युद्ध है विजय सत्य है अस्त्र उठाओ वीरो,
राष्ट्रीय रक्षा हेतु पहनो एकता का बाना।
संकल्प निभा तुम राम बनो लक्ष्मण साथ निभाना,
सावधान हो आसुरी सेना से तुम्हें है टकराना ।
थोड़ा और बढ़ो कृपाण की तेज करो धार ,
मैं बतलाऊं तुमको कैसे करना है प्रहार।
वीरो और बढ़ो आगे बस इतना करो,
दुश्मन के सीने पर चढ़ भरो उत्तंग हुंकार।
✍️ रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ
-----------------------------
इस वस्त्रालय के वस्त्रों में, सिर्फ बिछौने है !
बिछने और बिछे रहने की, आदत है डाली !
पता नहीं किस-किस ने मारा, किसने दी गाली!
मिट्टी के कुल्हड़ हैं या, पत्तों के दौने हैं ! !
अनाचार से, उत्पीड़न से,पलकें नहीं हिली
स्वाभिमान की चादर तो, ढूंढे से नहीं मिली
कायरता के दाग घने सदियों तक धोने हैं!
✍️ अम्बरीष गर्ग
-------------------------------
पाप पुण्य के बीच मनुष्य आजीवन सिर धुनता है,
पर क्षमादान ही जीवन मे मुक्ति का कारण बनता है।
कर्म योग से जीवन का संपूर्ण धरातल रचा गया,
ज्ञान योग की भाग भूमि को तपो त्याग से लिखा गया।।
पाप पुण्य का योग निरंतर हर प्राणी को ठनता है,
क्षमादान ही जीवन में मुक्ति का कारण बनता है।।
समझ बुझ कर परम प्रकृति के संसाधन सब रचे गए ,
कुछ अनुकूल कुछ प्रतिकूल और शूल सम गढ़े गए।।
इन सब में सामंजस्य बिठाना मानव की कार्य कुशलता है,
क्षमादान ही जीवन में मुक्ति का कारण बनता है।।
ईश्वर की कृपा से सारे संसाधन उपयोगी हैं,
मोह माया के जाल में लेकिन रोगी भौगी योगी है।।
लेकिन अनहद नाद प्रभु का कोई बिल्ला ही सुनता है,
पाप पुण्य के बीच मनुष्य आजीवन सिर धुनता है
क्षमादान ही जीवन में मुक्ति का कारण बनता है।।
✍️ योगेंद्र पाल सिंह
--------------------------------
हम देश के हर फैसले पर एतराज जताते हैं
और तो और
अपनी ही हार पर
जश्न मनाते हैं
चोला हमने भले ही
पहन रखा है रंग बिरंगा
पर मन में हमारे
हमेशा रहता है हरापन
भूल जाते हैं सारे एहसान
खत्म करते रहते हैं अपनापन राह में कभी दांया हमें नहीं भाता है
हमेशा बांयी ओर चलना ही सुहाता है
खाकर यहां का अन्न
गीत औरों का गाना आता है नहीं लिखते हम
भविष्य की सुनहरी इबारत
इतिहास के काले पन्नों को ही हम दोहराते हैं
वैसे हमें देश से बहुत प्यार है अपने को ही देशभक्त कहलाते हैं
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
शानदार आयोजन के लिए पुनः सभी को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंऑनलाइन कवि सम्मेलन की रिपोर्टिंग बहुत अच्छी है , बधाई
जवाब देंहटाएं