रविवार, 6 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी की 21 ग़ज़लें । ये उनके ग़ज़ल संग्रह "सीपज" से ली गई हैं । इसका प्रकाशन बीस वर्ष पूर्व सन 2000 में हिंदी साहित्य सदन मुरादाबाद द्वारा किया गया था ।























मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश द्वारा रचित "रामपुर शतक" । इसमें उन्होंने रामपुर रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खाँ की भूमिका का काव्य में ऐतिहासिक मूल्यांकन किया है ।


                        (1)
सुनो अनूठी रजा अली खाँ की सुंदर यह गाथा
हुआ  रामपुर  का  इस गाथा से ही ऊँचा माथा
                        (2)
यह शासक थे ,नहीं सांप्रदायिकता जिनमें पाई
यह शासक थे ,नहीं क्षुद्रता जिनमें किंचित आई
                            (3)
सन  सैंतालिस  में  शासक  थे ,यह  दरबार लगाते
उसी समय युग पलट रहा था ,निर्णायक क्षण आते
                             (4)
यह भारत का सुखद भाग्य था रजा अली को पाया
इनके  हाथों  में  सत्ता  थी , यह  वरदान कहाया
                           (5)
अगर न होते रजा अली खाँ ,दूरदृष्टि कब आती
भारत की तब नौका फँस - फँस भँवर बीच में जाती
                           (6)
यह  उदार  थे  सर्वधर्म समभावी इनको पाया
लेश - मात्र भी कट्टरता का अंश न इनमें आया
                       (7)
यदि   होते  धर्मांध , विचारों  में  कट्टरता  पाते
पता नहीं फिर रक्त न जाने कितनों के बह जाते
                       (8)
वह था समय ,हिंद में लगता पाकिस्तानी नारा
मुट्ठी - भर  थे लोग , कह रहे पाकिस्तान हमारा
                           (9)
पाकिस्तान  बना  था ,उन्मादी प्रवृत्ति छाई थी
रजा  अली  ने नहीं मानसिकता ओछी पाई थी
                            (10)
यह शासक थे जिनमें हिंदू-मुस्लिम भेद न पाया
जिनके लिए एक ही मुस्लिम - हिंदू भले रिआया
                          (11)
सबसे ज्यादा कठिन दौर संक्रमण - काल कहलाता
इतिहासों  में  यही  दौर  है जो इतिहास बनाता
                          (12)
जैसे   होते   हैं  नवाब  वैसी  ही  रचना  करते
जैसी   होती   है   पसंद , रंगों  को  वैसे  भरते
                          (13)
इनके निर्णय युगों - युगों तक का आधार बनाते
छाप  निर्णयों  की इनकी  हम दूर - दूर तक पाते
                            (14)
यह  सरदार  पटेल  राष्ट्र - नवरचना के निर्माता
यह  सरदार  पटेल राष्ट्र में एक्य - भाव के ज्ञाता
                          (15)
यह सरदार पटेल रियासत विलय कराने वाले
यह सरदार पटेल  देश  की  नौका के रखवाले
                            (16)
यह सरदार पटेल  राष्ट्र  का एकीकरण सँभाले
यह सरदार पटेल  एक  भारत का सपना पाले
                             (17)
यह थे रजा अली खाँ जिनके सपने अलग न पाए
यह थे रजा अली खाँ क्षण में भारत के सँग आए
                             (18)
यह थे रजा अली खाँ भारत पर विश्वास जताया
यह थे रजा अली खाँ निर्णय देशभक्त कहलाया
                             (19)
यह थे रजा अली खाँ जिनकी रही पाक से दूरी
यह थे रजा अली खाँ  निष्ठा  रही  हिंद से पूरी
                           (20)
आओ  जरा और कुछ देखें इतिहासों में झाँकें
अच्छाई  क्या  और  बुराई  राजाओं  में  आँकें
                               (21)
वह युग था जब लोकतंत्र की कहीं न दिखती छाया
राजाओं की और नवाबों की दिखती बस माया
                            (22)
सुनो  रामपुर  एक  रियासत  यहाँ नवाबी पाई
यहाँ रहा मुस्लिम का शासन मुसलमान कहलाई
                                   (23)
किंतु यहाँ पर हिंदू भी थे मिलजुल कर जो रहते
मुसलमान  छोटा  भाई  हिंदू को अपना कहते
                          (24)
इतिहासों  में  शासकगण  केवल तलवारें पाते
तलवारों की टकराहट का यह इतिहास बनाते
                             (25)
युद्ध  किसी  ने  जीता ,अपनों ने ही कोई मारा
कोई  राग - रंग  में  डूबा  ऐसा ,सब  कुछ  हारा
                         (26)                     
यहाँ  नवाबी  शासक  ऐसे  भी ,जनता थर्राती
यहाँ बगावत क्या ,कोई आवाज न बाहर आती
                            (27)
यहाँ दौर था जब जंगल का शासन सब कहलाता
यहाँ न घर से बाहर कोई निकल शाम को पाता
                            (28)
यहाँ  छात्र  इंटर  करने  तक  चंदौसी  थे जाते
खेद ! नवाबों  से  इतने  भी काम नहीं हो पाते
                            (29)
कहाँ  शहर  चंदौसी छोटा ,सीमित साधन पाए
किंतु  कारनामे  नवाब  धनिकों से बढ़ दिखलाए
                           (30)
अंतिम शासक रजा अली खाँ मगर अलग कहलाते
दाग  नहीं  इनके दामन पर किंचित भी हैं पाते
                         (31)
यह उदार शासक सहिष्णुता सबसे ज्यादा पाई
भेद - नीति हिंदू - मुस्लिम में नहीं कहीं दिखलाई
                          (32)
इनके  कार्य महान ,याद यह सदा किए जाएँगे
इन्हें   धर्मनिरपेक्ष   शासकों   में   आगे  पाएँगे
                           (33)
यह ही थे जो नहीं झुके अनुचित माँगों के आगे
देश - विरोधी हार - हार कर इन के कारण भागे
                           ( 34)
जब था पाकिस्तान बना बँटवारे का क्षण आया
वातावरण   ठेठ  कट्टरवादी  था  गया  बनाया
                          (35)
उठती थी आवाज ,रियासत चलो पाक में लाओ
नहीं  तिरंगा  इस  इस्लामी  गढ़ में तुम फहराओ
                          (36)
किंतु दूरदर्शी नवाब थे ,तनिक न झुकना सीखा
देशभक्त उनका मानस ,उस अवसर पर था दीखा
                         (37)
आग लगी थी शहर जला ,सेना के हुआ हवाले
स्वप्न  धूसरित  हुए ,देशद्रोही  जो  मन में पाले
                         (38)
यह  सरदार पटेल बीच में रजा अली खाँ लाए
कहा पाक में मिलना अपने मन को तनिक न भाए
                         (39)
काबू   पाया   देशभक्त   ने   कट्टरपंथ   हराया
इतिहासों में कदम रजा का यह अनमोल कहाया
                         (40)
मानवतावादी - चिंतन  ने  निर्णय  और कराया
शरणार्थी  जो  हुए ,रामपुर  लाकर उन्हें बसाया
                        (41)
बिना धर्मनिरपेक्ष विचारों के कदापि कब होता
देखा  नहीं धर्म उसका ,जो था विपदा में रोता
                       (42)
बँटवारे  के  जो  शिकार हो गए ,पाक से भागे
पलक - पाँवडे लिए बिछाए ,आए उनके आगे
                         (43)
भवन  रियासत  के  थे ,उनमें ससम्मान ठहराए
शरणार्थी  इस  तरह हजारों संख्या में बस पाए
                         (44)
संरक्षण जब मिला पीड़ितों को तब सब ने जाना
सर्वधर्म  समभावी  चेहरा  सबने  ही  पहचाना
                       (45)
भरा  हुआ  इंसानी  भावों  से  नवाब था पाया
उसके भीतर छिपा महामानव ही बाहर आया
                      (46)
अगर न होते रजा अली ,क्या शरणार्थी बस पाते
कहाँ  इन्हें  घर मिलते ,कैसे बस्ती कहाँ बसाते
                     (47)
जिसका हृदय बड़ा होता है ,बस्ती वही बसाता
अपने  और  पराए से हट ,सबको गले लगाता
                     (48)
यहाँ  बसे  शरणार्थी  थे ,यह गाथा युग गाएगा
साधुवाद  इस  हेतु  रजा  के  खाते  में जाएगा
                     (49)
एक तरफ थे रजा अली मिलकर पटेल से आए
और   दूसरी   तरफ  हैदराबाद  रंग  दिखलाए
                    (50)
यह निजाम का शासन था ,कहलाता हिंद - विरोधी
यह लड़ने पर आमादा था ,भारत पर यह क्रोधी
                    (51)
देशभक्त यह रजा अली सुर में सुर नहीं मिलाए
संग  रामपुर  और  हैदराबाद  न  हर्गिज  आए
                     (52)
शाही  था  फरमान  हैदराबाद  न सँग में नाता
देशभक्ति की भाषा - बोली यह फरमान सुनाता
                       (53)
जुड़ा  रामपुर  राष्ट्रपिता  से  ,राष्ट्रवादिता  छाई
देशभक्ति  संपूर्ण  रियासत  में  दुगनी हो आई
                       (54)
गाँधी - समाधि का मतलब है भारत माँ का जयकारा
गाँधी - समाधि कह रही देश है हिंदुस्तान हमारा
                        (55)
गाँधी - समाधि का अर्थ ,रामपुर सदा हिंद में रहना
गाँधी समाधि का अर्थ ,हिंद को दिल से अपना कहना
                         (56)
गाँधी समाधि का अर्थ ,रियासत जुड़ी हिंद से गहरी
गाँधी समाधि का अर्थ ,रामपुर भारत माँ का प्रहरी
                        (57)
यह था ठोस कदम जिसने भारत को दिया सहारा
कहा रियासत ने इसका मतलब है  हिंद हमारा
                          (58)
रजा  अली  की  देशभक्ति यह दूरदर्शिता पाई
भस्म  रामपुर गाँधी जी की ससम्मान थी आई
                          (59)
रजा अली खाँ मुस्लिम थे ,कुछ एतराज थे आए
भस्म चिता की कैसे सौंपें ,प्रश्न क्षणिक  गहराए
                          (60)
पर  निष्ठा  देखी  नवाब की ,देशभक्ति को जाना
इस  नवाब का कार्य देश - हित में सब ने पहचाना
                         (61)
थी  स्पेशल - ट्रेन  रामपुर से दिल्ली तक आए
राष्ट्रपिता की छवि अपने मानस में रजा बसाए
                         (62)
भस्म चिता की जब गाँधी जी की नवाब ले आए
मूल्यवान सबसे ज्यादा निधि सचमुच ही थे लाए
                           (63)
नगर रामपुर धन्य रियासत ने नव - आभा पाई
गाँधी जी  की  बेशकीमती  भस्म रामपुर आई
                           (64)
भस्म  प्रवाहित की कोसी की धारा में सहलाई
नौका   में  बैठे  नवाब  थे  जनता  भारी  आई
                            (65)
मूल्यवान था धातु - कलश ,वह जो जमीन में गाड़ा
गाँधी जी की भस्म लिए अद्भुत था बड़ा नजारा
                           (66)
लिखा गया इस तरह रामपुर का गाँधी से नाता
नाता था इस तरह जोड़ना रजा अली को आता
                            (67)
राजतंत्र ने यह स्वर्णिम अंतिम इतिहास रचा था
इसके बाद खत्म था सब कुछ ,कुछ भी नहीं बचा था
                            (68)
समय - थपेड़ों ने सदियों का शाही - राज ढहाया
झटके से अब गिरा ,दाँव कोई भी काम न आया
                            (69)
चाह  रहे  थे  यह नवाब शायद सत्ता बच जाए
एक मुखौटा लोकतंत्र का शायद कुछ जँच जाए
                            (70)
गढ़कर एक विधानसभा ,नकली जनतंत्र रचाते
किंतु  जानते  सब पटेल थे ,झाँसे में कब आते
                           (71)
राजतंत्र  मिट  गया  राजशाही को सुनो गँवाया
एक दिवस फिर एक आम-जन जैसा खुद को पाया
                           (72)
यह भारत का नया उदय था ध्वस्त राजशाही थी
यह  पटेल  की  लौह - इरादों वाली अगुवाई थी
                            (73)
राजा  और  नवाब  मिटाए देश एक कर डाला
नहीं  रियासत  रही  ,राजतंत्रों पर डाला ताला
                            (74)
अगर  नहीं  होते  पटेल  तो  जाने क्या हो जाता
खत्म पाँच सौ से ज्यादा ,यह कहो कौन कर पाता
                            (75)
साम दाम से राजाओं को यथा - योग्य समझाया
नहीं समझ में जिनकी आई ,ताकत से मनवाया
                            (76)
यह  पटेल  की  थी  कठोरता ,सुलझे सारे झगड़े
समझ गए सब राजा ,ज्यादा नहीं और फिर अकड़े
                           (77)
किया  रामपुर  में भारत होने का कठिन इरादा
पूरा  हुआ  नियति  से शासक का था सुंदर वादा
                           (78)
यह पटेल की ,रजा अली की मिलकर नीति कहाई
"एक समस्या" कभी रामपुर तनिक न बनने पाई
                            (79)
अगर  धर्मनिरपेक्ष  इरादे  हों तो सब हो जाता
देशभक्त  के  लिए  न  कोई  बाधा है बन पाता
                             (80)
खोई   रजवाड़ों   की   गाथा , पूरी  हुई  कहानी
सिर्फ  सुनाएँगी  अब  इनको  बूढ़ी  दादी  नानी
                          (81)
खत्म  राज - दरबार  राज - दरबारों  की गाथाएँ
खत्म राज - सिंहासन राजाओं की मुख-मुद्राएँ
                          (82)
कहाँ  बचे  राजा - नवाब ,सब इतिहासों में खोते
उनके वैभव चकाचौंध सब धूल - धूसरित होते
                         (83)
जिन द्वारों पर कभी रोज बजती थी  शुभ शहनाई
वहाँ धूल की परतें देखो ,जीर्ण - शीर्ण गति पाई
                         (84)
नहीं रहे राजा - नवाब अब ,नहीं रियासत पाते
लोकतंत्र  में  जन ,समान अब सारे ही कहलाते
                         (85)
कुछ   टूटे ,कुछ   टूट  रहे  हैं ,कुछ  आगे  टूटेंगे
चिन्ह   राजसी   बचे   यहाँ , वे  सारे  ही  छूटेंगे
                          (86)
किस्से  और  कहानी  में राजा - रानी अब पाते
कुछ खट्टी कुछ मीठी उनकी ,गाथा सभी सुनाते
                           (87)
भूली - बिसरी  हुईं  समूची  राजतंत्र  की  बातें
आजादी  का  नया  सूर्य  ,अब  बीतीं  शाही रातें
                          (88)
नया दौर है यह जनता का ,जनप्रतिनिधि आएँगे
नया - रामपुर श्रेष्ठ नए वे जनप्रतिनिधि लाएँगे
                           (89)
कुछ  मूल्यों  की  हमें  हमेशा ही रक्षा करनी है
हमें  धर्मनिरपेक्ष  भावना  जन-जन  में भरनी है
                           (90)
अब यह मुस्लिम नहीं रियासत कब हिंदू कहलाती
भारतीय   इसमें   रहते   हैं   भारतीयता  पाती
                              (91)
नीति बनाएँ ऐसी जिसमें सबका हित आ जाए
दृष्टि  हमारी  हिंदू-मुस्लिम  भेदों  से  उठ पाए
                            (92)
सड़क बनेगी तो उस पर सारे ही जन चल पाते
विद्यालय से हिंदू - मुस्लिम सब शिक्षित बन जाते
                           (93)
रोजगार के साधन यदि हमने कुछ और बढ़ाए
जनता  का  हर  वर्ग  देखिए खुशहाली को पाए
                          (94)
अस्पताल में कब इलाज हिंदू-मुस्लिम कहलाता
इसका लाभ सभी वर्गों को सदा एक - सा जाता
                           (95)
सिद्ध फकीर सुभान शाह थे ,यहाँ भाग्य से पाए
इनके शिष्य गुल मियाँ ,बाबा लक्ष्मण दास कहाए
                           (96)
यह  परिपाटी  जहाँ  खुदा - ईश्वर का बैर न पाया
यह है दिव्य रामपुर ,जनमत ने खुद इसे बनाया
                           (97)
जब   तक   प्रेम   रहेगा ,भाईचारा  हम  पाएँगे
जब तक हम मानवतावादी खुद को कहलाएँगे
                          (98)
जब तक ज्ञात रहेगी हमको पुरखों की यह भाषा
जब तक बनी रहेगी हममें अपनेपन की आशा
                           (99)
जब तक हम गाँधी - सुभान शाह की गाथा गाएँगे
जब तक एक हमें बाबा - गुल मियाँ नजर आएँगे
                             (100)
तब  तक  नाम  रामपुर का सारे जग में फैलेगा
तब  तक  इसका नाम विश्व में आदर से हर लेगा
                           (101)
नए  प्रयोगों  से  नवयुग .का हम निर्माण करेंगे
नई   तूलिका   से   हम  इसमें  नूतन  रंग  भरेंगे

✍️रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

                      

शनिवार, 5 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ---- गुरु की तलाश


हमने एक
सड़क छाप ज्योतिषी को
अपनी जन्म कुण्डली दिखाई
उसने गम्भीरता पूर्वक
येे बात बताई
तुम्हारी कुण्डली में
गुरु का स्थान खाली है
लगता है गुरु तुमसे नाराज़ है
किसी गुरु के शरणागत हो जाओ
यही इसका एकमात्र इलाज है

हमने उसकी बात
दिल से लगा ली
गुरु की तलाश में
चारों ओर दृष्टि डाली
इंटरनेट पर उपलब्ध
सारी जानकारी खंगाली
किस गुरु की पोस्ट पर
कितने लाइक हैं
कितने हैं फॉलोअर
कितने और कैसे कमेंट्स हैं
समाज के किस वर्ग में है पॉपुलर
जो गुरु ज्यादा डिमांड मेेें थे
कुछ जेलों में बंद थे
कुछ रिमांड मेेें थे
कुछ गुरुओं के उपदेश
ऑनलाइन उपलब्ध थे
लेकिन उनके महंगे
और उलझाऊ अनुबंध थे
हमारी मध्यम वर्गीय मानसिकता ने
हम में भर दी हताशा
डिस्काउंट के चक्कर में
गुरुओं की सेल का समाचार
हमने हर जगह तलाशा
हमने सोचा
सस्ता मिल जाए तो
सेकेंड हैंड गुरु से भी
काम चला लेंगे
जैसे तैसे उसका खर्चा उठा लेंगे
लेकिन गारंटी देने को
कोर्इ नहीं था तैयार
सबने लिख कर लगा रखा था
फैशन के दौर में
गारंटी की बात करना है बेकार
हम इसी सोच मेेें थे डूबे
अचानक हमको मिल गए
पूंजीपति मित्र दूबे
बोले
हर तरह के गुरुओं को
अपनी जेब में रखता हूं
तुम चाहो तो एक दो को
तुम्हारी जेब में भर सकता हूं
हमको उनका प्रस्ताव
बिल्कुल नहीं जंचा
हमको लगा
अपनी कमजोर जेब में
भारी भरकम गुरुओं को
सम्भाल नहीं पाऊंगा
और बड़े मित्र का बड़ा अहसान
जिन्दगी भर उतार नहीं पाऊंगा
इसी ऊहापोह में
एकदिन अचानक
स्वप्न मेेें भगवान पधारे
बोले वत्स
बेकार की बातों में
खुद को मत उलझा रे
तू जिन्हें ढूंढ रहा है
वो गुरु नहीं गुरु घंटाल हैं
अपने शिष्यों के पैसों से
मालामाल हैं
तेरा गुरु,तेरे अंदर है
बस उसको मानना है,पहचानना है
उसे पाने का एकमात्र मार्ग
ध्यान है,धारणा है,साधना है
जिस दिन तुम्हारे अंदर का
गुरु जाग जायेगा
तुमको हर व्यक्ति में
गुरु नजर आएगा
प्रकृति का हर कण
तुमको कुछ ना कुछ सिखाएगा
पृथ्वी सहनशीलता सिखायेगी
फूल मुस्काना
फलों से लदे पेड़ सिखायेंगे
विनम्र होकर झुक जाना
सूरज और चन्दा
बिना किसी भेदभाव के
काम करना सिखायेंगे
नदी और समुंदर
शोषण के बजाय
पोषण का पाठ पढ़ाएंगे
समय सिखायेगा
हमेशा गतिमान रहना
क्या अब भी
किसी और गुरु की जरूरत है
हृदय पर हाथ रख
सच सच कहना,सच सच कहना।

✍️  डाॅ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की रचना ---


जिसके हाथों गया उकेरा,
भावी जीवन सारा।
जो करता है प्रतिपल निश्चित,
उज्ज्वल भाग हमारा।

हम अच्छे हैं या कि बुरे हैं,
जिस पर करता निर्भर।
जिसके भागीरथ प्रयास से,
मरु में झरते निर्झर।

जिसका होना असीमता का,
हमको बोध कराता
जो अपने छात्रों के हित में,
दुर्गम भी हो आता।

जिसकी महिमा देवों से भी
ऊँची कही गयी है।
जिसके दम पर पीढ़ी-पीढ़ी,
सभ्यता बढ़ रही है।

हम वह शिक्षक,और शान से,
हाँ,चलों दोहरायें।
नहीं सुशोभित हमको रोना,
हम जब जगत हँसायें।

यदि निज मन में हमें हमारा,
गौरव ध्यान रहेगा।
दूर नहीं होगा वह दिन जब,
फिर गुरुमान बढ़ेगा।

हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत


शिक्षक हमपर प्यार लुटाते
श्रद्धाभाव  हमें   सिखलाते
जो पढ़ने  से आंख  चुराता
उसको अपने पास  बुलाते।

ठीक समय विद्यालयआते
हिंदी, इंग्लिश, मैथ  पढ़ाते
ब्लैक  बोर्ड परआसानी से
पाठ सभी को याद  कराते।

हल्की-फुल्की डांट लगाते
नहीं किसीपर हाथ  उठाते
खेल-खेल में ही बच्चों को
शिक्षा की महिमा बतलाते।

शिक्षा  से  उजियारा  पाते
बिन शिक्षा  बेहद पछताते
बिना गुरु जीवन  नैया हम
लेकर पार  नहीं  जा  पाते।

पांच सितंबर भूल न  पाते
गुरु चरणों मे सीस  नवाते
अंधकार का  नाम  मिटाने
उजियारा घर-घर पहुंचाते।
शिक्षक हमपर-----------
 
       
  ✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
   मो0-   9719275453

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ---


कलयुगी धनुर्धर ने
बाण छोड़ा,परन्तु
निशाना चूक गया
तभी,उसने
एक महात्मा को देखा
तो पूछा,
भगवन इसका रहस्य समझाइये,
निशाना क्यों खाली गया
कृपया बताइये ?
महात्मा ने प्रश्न किया
बच्चा,
तुम्हारा गुरु कौन है ?
लक्ष्य क्या है ?
मैं,
तभी कुछ कह सकूँगा -
तुम्हारे संदेह को
दूर कर सकूँगा ।
धनुर्धर ने उत्तर दिया-
आज के युग में गुरु
की आवश्यकता नहीं,
लक्ष्य क्या होता है
इसका मुझे पता नहीं।
महात्मा मुस्कराए
बोले,
ऐसे ही अभ्यास करते रहो,
मेरे बच्चे !
देश के तुम ही आधार हो ,
अंधे युग के सच्चे कर्णधार हो ।।

✍️ अशोक विश्नोई
   मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर के दो मुक्तक


मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) अमितोष शर्मा की रचना ---कभी कभी रोगों में विष ही प्राण बचाता है ..


मुरादाबाद के साहित्यकार अनवर कैफ़ी की गजल ---अपनी मिट्टी से मुहब्बत के गुनहगार हैं हम ..….


गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------गुलामी


        " लो बसन्ता अंगूठा लगाओ,आज तुम बार- बार के झंझट से भी मुक्त हो गये हो । अब ज़मीन मेरी हो गई है," साहूकार ने यह कह कर स्टैम्प पैड उसके सामने रख दिया।
      " पर मालिक मैं तो रुपया बराबर देता रहा हूँ फिर यह--------अंगूठा लगाते हुए बसन्ता बोला ।
       अर्रे नहीं तू झूठ बोलता है कहीं और दिया होगा।"
       " नहीं ! नहीं !! ऐसा न करो मालिक, ऐसा न करो,"बसन्ता गिड़गिड़ाया ।
        " अरे कोई है---इसे धक्के मारकर बाहर निकाल दो,चले आते हैं न जाने कहाँ - कहाँ से मालिक के गुलाम ।

✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ----न्याय

   
... ... कैदियों की गाड़ी कचहरी में आकर रुकी। पुलिस वालों ने खींच कर हरपाल सिंह को बाहर निकाला और जज के सम्मुख पेश किया ..... जज साहब ने कहा, आप पर आरोप है कि आपने दरोगा जी की रिवाल्वर छीनी और उन पर हमला किया । क्या आपको अपनी सफाई में कुछ कहना है!
      .... .. मंगलू की नई-नई शादी हुई थी बहू को विदा करा के लाने की खबर दरोगा के कान में पड़ी ....... कमला सुंदर तो थी  परन्तु गरीबी में सुंदरता भी अभिशाप बन गई ......। वह भी एक मजदूर थी। काम पर आते जाते दरोगा की बुरी नजर उस पर पहले से ही थी ... बस फिर क्या था एक कांस्टेबल को भेजकर मंगलू को थाने में बुलाया। मंगलू दलित जाति से था ..... दरोगा जानता था यह बेबस लाचार मेरा क्या कर लेगा।  फरमान सुना दिया ... "मैं शाम को तुम्हारे घर आऊंगा समझ लो अच्छी तरह से ....! वर्ना किसी केस में रख दूंगा ... जेल में सड़ते रहोगे ...!"
    बिरादरी में शाम को कानाफूसी होने लगी - दरोगा आने वाला है। हरपाल सिंह को जल्दी से  खबर करनी होगी! .. एक  वह ही है जो इस संकट से हमें बचा सकता है। उसके रग रग में अन्याय से लड़ने के लिए विद्रोह भरा था। हरपाल सिंह को जैसे ही खबर मिली तो उसने बिरादरी के लोगों को बुलाया और कहा "डूब मरो सब चुल्लू भर पानी में !! .... आज इसके साथ हो रहा है कल को तुम्हारे साथ होगा .. !! .. क्यों नहीं करते विरोध!" "..... लेकिन धीरे-धीरे सब के सब खिसक लिये ....  रात को जैसे ही दरोगा बलवान सिंह घर में घुसा ..... हरपाल सिंह उस पर टूट पड़ा .... लाठी से दरोगा का हुलिया ... बिगाड़ दिया .... फिर रिवाल्वर  छीन कर भाग गया ......
 ऑर्डर ! ऑर्डर !! सुनकर हरपाल सिंह की तंद्रा भंग हुई! "कुछ कहना है सफाई में! कोई गवाह है तुम्हारे पास  !!" ......! ! ! दूर दूर तक कोई नहीं ...
      .... और जज साहब ने निर्णय सुना दिया ... आरोपी हरपाल सिंह को जनता के रक्षक और कानून के रखवाले दरोगा बलवान सिंह पर हमला करने का दोषी पाया जाता है और उसे दस साल की कड़ी सजा सुनाई जाती है।

 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद
82 188 25 541




मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की लघुकथा -----कर्तव्य निष्ठा



" कित्ते में "  मोहन बाबू ने इशारे से पूछा । सड़क पर खड़ी औरत ने उँगलियों से बताया -- पाँच  !!!
  मोहन बाबू मोल भाव पर उतर आए । फिर से इशारा किया -- " तीन "
  औरत शायद जल्दी में थी । उसने पास आकर कहा " ठीक है बाबू , पर घ॔टे भर में छोड़ देना ।"         
   " क्यों और कित्ते निपटाएगी रात भर में ।" मोहन बाबू निर्लज और संवेदनहीन होकर बोले । 
      "जितने बन पड़ें "   " ज्यादा से ज्यादा " औरत ने बिना बुरा माने तटस्थ भाव से कहा और दोनों ने पास के होटल की राह पकड़ी ।
      औरत के इतने संयमित और दो टूक उत्तर को मोहन बाबू हजम नहीं कर पा रहे थे । कदाचित उनके मन में ये भाव था कि वो औरत उनके सामने रोएगी या गिड़गिड़ाएगी या दो चार तीखे कटाक्ष ही करेगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ था ।
     घंटे भर बाद मोहन बाबू के मन में जाने क्या आया कि तीन की जगह पाँच पकड़ा दिए । बोले   " चल जा ऐश कर "   
     "नहीं कर सकती " औरत ने साड़ी लपेटते हुए फिर सपाट सा उत्तर दिया ।
      अब तो मोहन बाबू भन्ना गए , चिढ़ कर बोले   " तो रात भर रकम बटोर कर क्या सुबह आचार डालेगी ?" 
     इस बार औरत ने थोड़ी सी हिचकिचाहट से बड़ी दर्दीली मुस्कुराहट के साथ उत्तर दिया    "नहीं साब"  कल मेरे पति की आखिरी    "कीमो"  है ( कैंसर के मरीजों को दी जाने वाली थैरेपी )   "मैं चाहती हूँ इस करवा चौथ तक तो वो मेरे साथ रह ही जाए" ,  "अगले बरस का क्या भरोसा"    "फिर तो आप बाबू लोगों का ही सहारा है ।"
    किंकर्तव्यविमूढ़ से मोहन बाबू उसकी कर्तव्य निष्ठा के आगे नतमस्तक हो गए थे ।

✍️ सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद ।

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा -----साम्प्रदायिकता


"क्या हो रहा है ये सब? सम्प्रदायिकता का इतना बड़ा बम फोड़ने पर भी वोटर हमारी तरफ नहीं झुका ऐसा कैसे चलेगा चंदू?" नेताजी ने अपने चमचों को गुस्से से देखते हुए कहा।
"क्या करें हुज़ूर! अब हर मजहब हर जात में लोग पढ़ लिख गए हैं तो जल्दी बहकाने में नहीं आते", चंदू ने  धीरे से कहा।
"हुँह!! लगता है सरकारी स्कूलों की सिर्फ हालत बिगाड़ने से काम नहीं चलेगा। इन्हें बन्द ही करवाना पड़ेगा", नेता जी सर ठोककर बड़बड़ाते हुए चले गए।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----श्रद्धा का फल


विनीता ने जब एम ए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया ,निरन्तर गुरु जनों के प्रति उसकी श्रद्धा का भाव उसकी छवि को कॉलेज में उज्ज्वल करता रहा ,लेकिन यह तो उसका स्वभाव ही था ।कुछ साथी उसकी इस अतिशय श्रद्धा भावना का मजाक भी उड़ाते । विनम्रता के कारण वह कुछ न कहकर हँस देती । विभाग में उसके मुकाबले और भी अच्छे छात्र छात्राएं थीं , किसी लेख अच्छा तो किसी का प्रस्तुति करण । कॉलेज अंतिम वर्ष में स्वर्णपदक के लिये जाने कितने लोग मेहनत कर रहे थे ।विनीता भी मन से लगी थी पर अचानक अंतिम पेपर में स्वास्थ्य खराब होने से उसका पेपर उतना अच्छा नहीं रहा।
जिन छात्रों ने मेहनत की थी ,वे सभी उत्तेजित थे ,परीक्षा परिणाम के लिये। विनीता का मन अशांत था ।काश!तवीयत ठीक होती तोकुच और...........। तभी लैंडलाइन फोन की घंटी बजी .....ट्रिन ......ट्रिन ट्रिन....। विनीता !  बधाई हो बहन ...टॉपर हो तुम ,संस्कृत फाइनल ईयर में ।
विनीता की सखी गीता ने बताया।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा ---- स्कूल की राधा


     " अम्मी, आज कृष्ण जन्माष्टमी है न!" - रूबी ने टी वी देखते हुए अपनी अम्मी को याद दिलाने के उद्देश्य से पूंँछा ।
    " हांँ, तो !" - पूंँछते हुए रूबी की अध्यापिका अम्मी अपने काम में व्यस्त रहीं ।
    " पिछले साल स्कूल खुला था तो मुझे राधा के रूप में सजाया गया था । सभी कह रहे थे कि कहीं नज़र न लग जाये।" - बतियाते हुए रूबी की याद ताजा हो आयी और सोचने लगी कि  आजकल कोरोना के कारण सब चौपट हो गया है।
        " और पूरे स्कूल में तुम्हारी पहचान राधा के रूप में होने लगी थी ।" - रूबी की अम्मी ने हंँसते हुए उसकी खुशी को दोगुना कर दिया ।
       
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी -----वार्षिक परीक्षा की फीस


कक्षा अध्यापक ने आवाज़ लगाकर कहा अरे मोहन तुमने हाई स्कूल की वार्षिक परीक्षा फीस अभी तक जमा नहीं की, क्या तुम्हें परीक्षा नहीं देनी।सोच लो कल तक का समय ही शेष है।
        मोहन उदास मन से खड़ा होकर  अध्यापक की तरफ  देखकर कुछ कहने से पहले ही आंखों में आंसू भर लाया और रुंधे गले से बोलते-बोलते यकायक फफक कर रो दिया। अध्यापक अपनी कुर्सी से उठे और मोहन के पास जाकर उसे चुप करते हुए उससे वास्तविकता जानने का प्रयास करने लगे।उन्होंने कहा कि तुम अपनी विवशता खुलकर बताओ हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा।
       मोहन ने कहा सर मैं परीक्षा किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहता हूँ परंतु घर के हालात ऐसे नहीं हैं।मैं अपनी विधवा माँ के साथ रहता हूँ।हमारी देख-रेख करने वाला भी कोई नहीं है।मेरी माँ ही छोटे-मोटे काम करके मुझे पढ़ाने की चाहत में लगी रहती है।
       अब काफी समय से उसकी तबीयत भी बहुत खराब चल रही है।घर में जो कुछ पैसे- धेले थे वह भी माँ के इलाज में उठ गए लेकिन हालत सुधरने की जगह और बिगड़ती जा रही है।मुझे हर समय उनकी है चिंता रहती है।ऐसे में मैं यह फैसला नहीं कर पा रहा हूँ कि मैं परीक्षा दूँ या छोड़ दूं
परीक्षा तो फिर भी दे दूँगा परंतु माँ तो दोबारा नहीं मिल सकती।यह कहकर वह मौन होकर वहीं बैठ गया।
      अध्यापक महोदय का दिल भर आया उन्होंने कहा कि मेरी कक्षा के तुम सबसे होनहार विद्यार्थी हो मुझे यह भी भरोसा है कि तुम इस विद्यालय का नाम रौशन करोगे।
       परेशानियां तो आती जाती रहती हैं परंतु परीक्षा छोड़ने का तुम्हारा निर्णय तो तुम्हारी माँ की बीमारी को और बढ़ा देगा।इसलिये हिम्मत से काम लो ईस्वर सब अच्छा करेंगे।
          गुरुजी ने अपनी जेब से कुछ रुपए निकाल कर मोहन के हाथ पर रखते हुए कहा लो बेटे इनसे तुम अपनी माँ का सही इलाज कराओ।उनके खाने पीने का उचित प्रबंध करो।फीस की चिंता मुझपर छोड़ दो।
        मोहन किंकर्तव्यविमूढ़ होकर कभी स्वयं को तो कभी पूज्य गुरुवर को देखता और यह सोचता कि भगवान कहीं और नहीं बसता मेरे सहृदय गुरु के रूप में इस संसार मे विद्यमान रहकर असहाय लोगों की सहायता करके अपने होने को प्रमाणित करता है।
      मोहन ने गुरु जी की आज्ञा को सर्वोपरि रखते हुए माँ का इलाज कराया और पूरे मनोयोग से परीक्षा देकर कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा अपनी माँ और पूज्य गुरुवर के चरण स्पर्श करके उनका परम आशीर्वाद भी प्राप्त किया।
     
             
 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
  मुरादाबाद/उ,प्र,
  9719275453

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा --- विज्ञापन


  बूट प्राइवेट लिमिटेड जूते की नई कंपनी है।अच्छे डिजाइन और क्वालिटी के बावजूद भी उनके जूतों की मांग नहीं बढ़ रही है।इस पर विचार करने के लिए कंपनी के मालिक ने पूरी टीम को मीटिंग के लिए बुलाया .......
अंततः सभी के विचार से यह निष्कर्ष निकला कि,जूते को ब्रांड प्रमोशन की जरूरत है ।कुछ दिनों बाद मालिक ने अपने एक भरोसेमंद कर्मचारी को बुलाकर अच्छे खासे पैसे दिए और साथ ही एक मीडिया वाले को भी पैसे देकर एक डील की.....डील के तहत कल राष्ट्रीय कार्यकर्ता पार्टी के अध्यक्ष अशोक केजरी  रैली निकाल रहे हैं... रैली में भीड़ बहुत होगी और उन कार्यकर्ता पर भीड़ से जूता फेंकना है.... अगले दिन यही हुआ भी, भीड़ से किसी ने कार्यकर्ता पर जूता फेंक कर मारा और वहां खड़ी मीडिया ने उस जूते का कार्यकर्ता के साथ चित्र ले लिया। कई दिनों से टीवी पर यही न्यूज चल रहा है कि राष्ट्रीय कार्यकर्ता पार्टी के कार्यकर्ता पर भीड़ से किसी ने जूता फेंका और जूता बूट कंपनी का है....काफी मजबूत जूता, जिसकी वजह से उनके सिर पर गहरी चोट लगी है।अब इन कुछ दिनों से जूतों की मांग बढ़ गई है और  राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस जूते को पहचान मिल गई है। अब हर नाप की पहले से ज्यादा कीमत बढ़ा दी गई है...... आखिर मीडिया और कर्मचारी को दिया गया पैसा, आम जनता से निकालना है।

 ✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---मास्क


वह मेरे पास आया । रुका और करीब आया। मुख से मास्क को नीचे किया । नाक से नीचे , फिर होठों से नीचे और फिर कुछ कहने लगा । मैं घबराया , जोर से चीखा " पुलिस - पुलिस "
   वह भाग गया । अब मैं सुरक्षित था , अपना मास्क लगाए हुए ।

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की दो लघुकथाएं


 (1) खेल

गेंदबाज ने बहुत अच्छी गेंद फैकी थी।लेकिन बल्लेबाज भी कम नहीं था,उसने जबरदस्त शॉट लगाया और गेंद बाउंड्री लाइन के बाहर जाकर गिरी राजीव ताली बजाने लगे तो उनकी पत्नि ने टोंका "अरे ये तो विरोधी टीम का खिलाड़ी है"
 "तो क्या हुआ,हम खेल देखने आए है,और खेल बहुत अच्छा चल रहा है।" राजीव ने धीरे से कहा और ताली बजाते रहे।

(2) सबूरी

सावन मास की विशेष कथा समाप्त हो चुकी थी प्रसाद की लाइन बहुत लंबी थी।सभी श्रद्धालु शांति से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। अचानक चारो ओर घनघोर काली घटा छाने लगी। हल्की बूंदाबांदी भी शुरू हो गई।तेज़ बारिश की आशंका से श्रद्धालुओं में हड़बड़ाहट होने लगी।पहले प्रसाद लेने के चक्कर में अधिकांश लोग लाइन तोड़ कर आगे आने लगे धक्का मुक्की शुरू हो गई।कुछ लोग गिर गए,और उनके हल्की चोट भी लग गई।
   कार्यक्रम संयोजक शांति बनाए रखने की अपील करते रहे,लेकिन सभी को घर जाने की जल्दी थी।तेज़ बारिश में भीगने के डर से,सब,एक दूसरे को पीछे धकेल कर सबसे पहले प्रसाद पाने में जुटे थे।मंदिर के उपर एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा था,जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा था - सबूरी।

✍️  डॉ पुनीत कुमार
T-2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----- मानवता


"गुडमार्निग$$$$........ टीचर$$$.........." क्लास फर्स्ट के छोटे छोटे बच्चे एक मधुर संगीत की तरह गुडमार्निग गाते हुए बोले।
"गुडमार्निग बच्चों सिट डाउन। मैं जिन जिन बच्चो का नाम ले रही हूँ वो खड़े हो जाए। आशि, अर्नव, रुद्धव, राघव, सारिका, मिष्टी और मेधावी आप सभी की दो महीने की फीस पैडिंग हैं। एक तो इतने टाइम बाद स्कूल खुले हैं उसपर आपलोग ने पूरे दो महीने से फीस नहीं जमा करी। अब जबतक फीस जमा नहीं होगी आप हर पीरियड में कान पकड़कर क्लास के बाहर खड़े रहेंगे।" सभी बच्चे कान पकड़कर क्लास के बाहर खड़े रहे।
आशि रोते रोते घर पहुंची। वहां उसने देखा कि उसका छोटा भाई सफेद चादर में लिपटा जमीन पर लेटा हुआ था और माँ पापा का रो रोकर बुरा हाल था।
पड़ोस की एक आंटी दूसरी आंटी को बता रही थी "पैसे नहीं बचे इसीलिए टायफॉयड का इलाज नहीं करा सके और .......अपने नन्हे से बच्चे को खो दिया।"
अगले दिन आशि को छोड़ सभी बच्चों की फीस जमा हो गई। क्लासटीचर क्लास में आयी और फीस न जमा होने की वजह से फिर से आशि को पूरे टाइम क्लास के बाहर कान पकड़कर खड़े रहने को कहा।
आशि की नन्ही आखों से बहते आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उधर टीचर ने चैप्टर फाइव जिसका टाइटिल था "मानवता", बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

बुधवार, 2 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेंद्र कुमार मिश्र की कहानी। यह कहानी उनके कहानी संग्रह "पुजारिन" से ली गई है ।यह संग्रह प्रकाशित हुआ था सन्1959 में ।








मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------मिठाई

             
 लॉक डाउन के बाद सरकारी कार्यालय में खाली बैठे बाबूओं  में गप शप चल रही थी सब एक दूसरे का हाल चाल पूछ रहे थें बड़े बाबू अपनी डायबटीज के बारे में बताते हुए कहने  लगे कि कैसे उन्होंने घर पर रहकर शुगर को कंट्रोल किया  मीठी चीज़ो से पूरी तरह परहेज़ रखा अब तो उन्होंने कसम खा ली है कि मिठाई को हाथ भी नही लगाएंगे नई नियुक्ति पाकर कार्यालय में  आये शरत बाबू बड़े गौर से बड़े बाबू की बातें सुन रहे थे तभी परेशान  से लग रहे एक व्यक्ति ने कार्यालय में प्रवेश किया वह सीधा बड़े बाबू की टेबल के पास जाकर खड़ा हो गया और याचना पूर्वक उनसे अपनी फाइल पर
आदेश कराने के लिये कहने लगा बड़े बाबू उसकी ओर देखकर कहने लगे -"अरे भाई!हो जायेगा तुम्हारा काम भी हो जायेगा पहले हमारी मिठाई तो लाओ "।
बड़े बाबू की बात सुनकर शरत बाबू उन्हें हैरत से देखने लगे।

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी ---- अधिकारी बहु


       ‘’अधिकारी बहु ढूँढी है तेरे लाड़ले ने, देख लेना एक कप चाय भी बनाकर नही देगी। पैसे की कोई कमी तो है नही जो कमाऊँ बहु ला रहा है। पढ़ा लिखाकर राजेश को अफसर बनाया ताकि एक सुन्दर सुशील सेवा करने वाली बहु ला सके, पर यहाँ तो सब किये धरे पर पानी फेर दिया उसने। कांता मैं तो जा रही हूँ गाँव, तू ही स्वागत कर अपनी बहु रानी का ’’बडबड़ाते हुए दुलारी मौसी अपना कपड़ो का थैला उठाकर चल दी।’’ पर....  मौसी रुक जाती, मैं अकेली क्या क्या कर लूँगी। ’’कांता ने दुलारी मौसी को रोकने की बहुत कोशिश की पर वो नही रुकी।
         राजेश ,रिटायर कर्नल शेखावत सिंह और कांता का इकलौता बेटा था। अपनी माँ के देहांत के बाद दुलारी मौसी को ही शेखावत सिंह अपनी माँ समान मानते थे। दुलारी मौसी ने बहुत लाड़ प्यार से राजेश को पाला था। हालाँकि शेखावत सिंह और कांता दोनो ही खुले विचारों के थे परंतु दुलारी मौसी अपने उसूलों पर अडिग थी इसलिए जब उन्हें पता चला कि राजेश ने अपने साथ की किसी अधिकारी से शादी कर ली है तो वह गुस्सा होकर अपने गाँव चली गयी।  राजेश जिस जिले में  डिप्टी कलेक्टर थे वहीं साक्षी कर अधिकारी थी। दोनो की मुलाक़ात हुई वे एक दूसरे को पसंद करने लगे और उन्होने शादी कर ली।आज राजेश साक्षी को लेकर घर आ रहा था। दुलारी मौसी की कही बातें कांता को परेशान कर रही थी कि कही सच में बहु...........!! जबकि राजेश ने फ़ोन पर सब बातें अपने माँ पिताजी को बता दी थी कि साक्षी के पेरेंट्स दो साल पहले कार दुर्घटना में चल बसे, वह अकेली है। दोनो की पोस्टिंग घर से दूर होने के कारण शेखावत सिंह ने ही कहा था कि शादी करके आ जाओ फिर यही सबकी दावत कर देंगे। कांता इसी सोच में ही डूबी थी कि अचानक कार घर के दरवाज़े पर आकर रुकी। ’बहु आ गयी कांता, शेखावत सिंह ने कांता को आवाज़ लगायी। गाड़ी से उतर कर साक्षी ने दोनो के पैर छुए। जीती रहो, शेखावत सिंह ने आशीर्वाद दिया। सब अंदर आकर ड्रॉइंग रूम में बैठ गए। सभी ने खूब बातें की। बहु तो बहुत सुन्दर है, आदत पता नहीं कैसी होगी..... कांता मन ही मन मे सोच रही थी। फिर वह चाय बनाने के लिए रसोई में गयी तो पीछे पीछे साक्षी भी चली आयी।  ’’चाय मैं बनाती हूँ माँ जी‘’ साक्षी ने विनम्रता से अपनी सासु मां कांता से कहा। ’’तुम ........!!! अरे नहीं... तुम रहने दो, तुम एक  अधिकारी हो, तुम चाय .......... रहने दो। मैं ही बना देती हूँ। ’’कांता के मन में अब भी मौसी जी की कही बातें चल रही थी। ’माँ जी अधिकारी मैं बाहर वालों के लिए हूँ, इस घर की तो मैं बहू हूँ और मैं जब तक यहाँ रहूँगी घर का काम तो मैं ही करूँगी।’ ऐसा कहकर साक्षी ने चाय का भगोंना गैस पर रख दिया। माँ जी एक बात कहनी थी .............., साक्षी धीरे से कहकर चुप हो गयी। कांता ने साक्षी की तरफ़ देखकर कहा ‘’हाँ बताओ।’’ मेरे मम्मी पापा नही हैं, बहुत याद आती है उनकी। क्या यह घर मेरे ससुराल के साथ साथ मेरा मायका नही हो सकता। मैं आपकी बहू नही बेटी बनकर रहना चाहती हूँ माँ।’’ कहते कहते साक्षी का गला रूँध गया। क्यों नही ‘मेरी बच्ची, मैं हूँ तेरी माँ ‘कांता ने उसे अपने गले से लगा लिया। ’’भई माँ बेटी का मिलन ही होता रहेगा या चाय भी मिलेगी ‘’ शेखावत सिंह ने चुटकी ली। यह सुनकर कांता और साक्षी ज़ोर ज़ोर से हसने लगी ।बहु के रूप में बेटी पाकर कांता फूली नहीं समा रही थी। इस सुंदर रिश्ते की ख़ुश्बू से पूरा घर महक गया।                         
                                   
✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की कहानी ---प्रमोशन



मध्यमवर्गीय परिवार मे जन्मी लतिका सामान्य कदकाठी की बालिका का थी।हँसना,पढ़ना, खेलना यही खुशियां थी उसकी।उसकी दुनिया उसकी मां असमय भगवान के पास चली गयीं।घर मे भाभियो ने पराया कर दिया।पिता से शिकायत की तो व्यर्थ।अब कमजोर शरीर और कम आमदनी वाले उसके पिता से अधिक भाई कमाई करते थे तो।वह बोले,"अब बेटे घर चलाते हैं,पहले वाली स्थिति नहीं रही, तुम अपनी पढाई पर ध्यान दो।पढलिख कर कुछ काम कर लेना।मुझ से कुछ उम्मीद न रखना"।वह मायूस हो जीवन जीने लगी।
धीरे धीरे कई वर्ष गुजर गये। एकदिन आलिंगन वद्ध भईया भाभी को देखकर उसे अपनी जिंदगी नीरस लगने लगी।तभी धीरज उसकी जिन्दगी मे आया।और एकदिन उसने माँ ने उसकी शादी के लिए जो गहने बनवाये थे लेकर घर छोड दिया।दोनो मेरठ आ गये।एक कमरे मे रहने लगे।जिस सुखद जीवन की कल्पना लेकर आयी थी तार तार होने लगी।माँ के दिये गहने एक एक कर बिकने लगे।एक अँगूठी बची थीबस।तभी धीरज ने बताया कि उसे नौकरी मिल गई।उसे लगा खुशियां लौट रही है।एक दिन शाम को फैक्टरी से वापस आकर धीरज बोला"सेठानी बाहर गयी है ,तुम सेठ के यहां जाकर खाना बना आना"।वह सेठ के घर पहुंच गयी।काम पूरा होने ही वाला था कि सेठजी बोले,"जाने से पहले मेरे कमरे मे पानी रख जाना"।जब वह कमरे मे गयी तो मेज पर शराब की बोतल खुली थी,जैसे ही पानी का जग रखा सेठ ने उसका हाथ पकड बिस्तर पर गिरा लिया।बहुत प्रयास किया छुडाने का मगर सफल न हो सकी।
थके कदमों से  घर पहुंची।धीरज सो चुका था।किवाड़ खुलीथी वह कटेवृक्ष सी बिस्तर पर गिर पडी।सुबह तबियत खराब का बहाना बनाकर पडी रही।शाम तक हिम्मत जुटायी कि धीरज को सब बता देगी।शाम को धीरज मिठाई के डिब्बे केसाथ आया और चहकता हुआ बोला,"लो मुँह मीठा करो,मेरा प्रमोशन हो गया,अब मै फैक्टरी में मैनेजर हो गया हूँ।"
लतिका  धीरज की  प्रमोशन की खुशी देखकर कुछ न कह सकी।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
12/08/2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी...... दरकते रिश्ते


       आज विनय काफी खुश था क्योंकि आज वह अपनी बेटी को  मेडिकल की कोचिंग दिलाने दिल्ली लेकर जा रहा था। विनय की बेटी को मेडिकल की कोचिंग हेतु सौ परसेंट का स्कॉलरशिप जो मिला था और वह दो वर्षीय  वीकेंड क्लासेस के लिए प्रत्येक शनिवार और इतवार को दिल्ली में कोचिंग करने के लिए जा रही थी । विनय रास्ते में सोच रहा था कि दिल्ली में तो उसकी कितनी सारी रिश्तेदारी है अगर वह सबसे एक या दो बार भी मिलेगा तो 2 वर्ष किस तरह बीत  जाएंगे पता ही नहीं चलेगा। विनय ने अपने रहने की व्यवस्था पहले ही कोचिंग क्लास के निकट एक लॉज में कर ली थी। चूंकि  वह उसका प्रथम दिन था उसने सोचा इस बार चलो चाचा जी से मिल लेते हैं क्योंकि चाचा जी कई बार उन्हें दिल्ली नहीं आने का उलाहना दे चुके थे । विनय अपनी बेटी के साथ अपने  चाचा जी के पंजाबी बाग स्थित मकान पर उनसे मिलने पहुंच गया विनय व उसकी बेटी को देखकर चाचा जी बहुत प्रसन्न हुए और उनसे कुछ देर विश्राम करने को कहा और स्वयं सामान लेने बाजार चले गए । बाजार से लौटकर जब चाचा जी घर आए तो चाची ने उन्हें बाहर दरवाजे पर ही रोक लिया, विनय को कमरे में नींद नहीं आ रही थी और वह खिड़की के पास ही खड़ा था । चाची जी ,चाचा जी से कह रही थी कि अपने भतीजे और पोती की इतनी सेवा सत्कार मत करना कि वह प्रत्येक सप्ताह यहीं पर आ धमके  यह सुन विनय के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह मन में सोचने लगा कि वह तो अपनी रिश्तेदारी पर गर्व कर रहा था की दिल्ली जाकर उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी परंतु रिश्तेदारी का यह चेहरा उसने पहली बार देखा था ।चाचा जी ने मकान में प्रवेश किया तो विनय अपने चाचा जी को बताया की उसने कोचिंग के समीप ही रहने की व्यवस्था कर ली है वह तो बस उनका हालचाल जानने के लिए मिलने चला आया , विनय ने अपनी बेटी को तैयार होने को कहा और कोचिंग के समीप लॉज में प्रस्थान किया । रास्ते में जाते वक्त विनय यह सोच रहा था की आज के दौर में रिश्ते इतने दरक चुके हैं कि वह अपनी सगी रिश्तेदारी का  बोझ एक दिन भी सहन नहीं कर सकते उसके पश्चात विनय हर सप्ताह अपनी बेटी को लेकर दिल्ली आता रहा और उसने किसी रिश्तेदार के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा।

 ✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
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