जिसके हाथों गया उकेरा,
भावी जीवन सारा।
जो करता है प्रतिपल निश्चित,
उज्ज्वल भाग हमारा।
हम अच्छे हैं या कि बुरे हैं,
जिस पर करता निर्भर।
जिसके भागीरथ प्रयास से,
मरु में झरते निर्झर।
जिसका होना असीमता का,
हमको बोध कराता
जो अपने छात्रों के हित में,
दुर्गम भी हो आता।
जिसकी महिमा देवों से भी
ऊँची कही गयी है।
जिसके दम पर पीढ़ी-पीढ़ी,
सभ्यता बढ़ रही है।
हम वह शिक्षक,और शान से,
हाँ,चलों दोहरायें।
नहीं सुशोभित हमको रोना,
हम जब जगत हँसायें।
यदि निज मन में हमें हमारा,
गौरव ध्यान रहेगा।
दूर नहीं होगा वह दिन जब,
फिर गुरुमान बढ़ेगा।
हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
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