" लो बसन्ता अंगूठा लगाओ,आज तुम बार- बार के झंझट से भी मुक्त हो गये हो । अब ज़मीन मेरी हो गई है," साहूकार ने यह कह कर स्टैम्प पैड उसके सामने रख दिया।
" पर मालिक मैं तो रुपया बराबर देता रहा हूँ फिर यह--------अंगूठा लगाते हुए बसन्ता बोला ।
अर्रे नहीं तू झूठ बोलता है कहीं और दिया होगा।"
" नहीं ! नहीं !! ऐसा न करो मालिक, ऐसा न करो,"बसन्ता गिड़गिड़ाया ।
" अरे कोई है---इसे धक्के मारकर बाहर निकाल दो,चले आते हैं न जाने कहाँ - कहाँ से मालिक के गुलाम ।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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