गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------गुलामी


        " लो बसन्ता अंगूठा लगाओ,आज तुम बार- बार के झंझट से भी मुक्त हो गये हो । अब ज़मीन मेरी हो गई है," साहूकार ने यह कह कर स्टैम्प पैड उसके सामने रख दिया।
      " पर मालिक मैं तो रुपया बराबर देता रहा हूँ फिर यह--------अंगूठा लगाते हुए बसन्ता बोला ।
       अर्रे नहीं तू झूठ बोलता है कहीं और दिया होगा।"
       " नहीं ! नहीं !! ऐसा न करो मालिक, ऐसा न करो,"बसन्ता गिड़गिड़ाया ।
        " अरे कोई है---इसे धक्के मारकर बाहर निकाल दो,चले आते हैं न जाने कहाँ - कहाँ से मालिक के गुलाम ।

✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद

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