बुधवार, 2 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की कहानी ---प्रमोशन



मध्यमवर्गीय परिवार मे जन्मी लतिका सामान्य कदकाठी की बालिका का थी।हँसना,पढ़ना, खेलना यही खुशियां थी उसकी।उसकी दुनिया उसकी मां असमय भगवान के पास चली गयीं।घर मे भाभियो ने पराया कर दिया।पिता से शिकायत की तो व्यर्थ।अब कमजोर शरीर और कम आमदनी वाले उसके पिता से अधिक भाई कमाई करते थे तो।वह बोले,"अब बेटे घर चलाते हैं,पहले वाली स्थिति नहीं रही, तुम अपनी पढाई पर ध्यान दो।पढलिख कर कुछ काम कर लेना।मुझ से कुछ उम्मीद न रखना"।वह मायूस हो जीवन जीने लगी।
धीरे धीरे कई वर्ष गुजर गये। एकदिन आलिंगन वद्ध भईया भाभी को देखकर उसे अपनी जिंदगी नीरस लगने लगी।तभी धीरज उसकी जिन्दगी मे आया।और एकदिन उसने माँ ने उसकी शादी के लिए जो गहने बनवाये थे लेकर घर छोड दिया।दोनो मेरठ आ गये।एक कमरे मे रहने लगे।जिस सुखद जीवन की कल्पना लेकर आयी थी तार तार होने लगी।माँ के दिये गहने एक एक कर बिकने लगे।एक अँगूठी बची थीबस।तभी धीरज ने बताया कि उसे नौकरी मिल गई।उसे लगा खुशियां लौट रही है।एक दिन शाम को फैक्टरी से वापस आकर धीरज बोला"सेठानी बाहर गयी है ,तुम सेठ के यहां जाकर खाना बना आना"।वह सेठ के घर पहुंच गयी।काम पूरा होने ही वाला था कि सेठजी बोले,"जाने से पहले मेरे कमरे मे पानी रख जाना"।जब वह कमरे मे गयी तो मेज पर शराब की बोतल खुली थी,जैसे ही पानी का जग रखा सेठ ने उसका हाथ पकड बिस्तर पर गिरा लिया।बहुत प्रयास किया छुडाने का मगर सफल न हो सकी।
थके कदमों से  घर पहुंची।धीरज सो चुका था।किवाड़ खुलीथी वह कटेवृक्ष सी बिस्तर पर गिर पडी।सुबह तबियत खराब का बहाना बनाकर पडी रही।शाम तक हिम्मत जुटायी कि धीरज को सब बता देगी।शाम को धीरज मिठाई के डिब्बे केसाथ आया और चहकता हुआ बोला,"लो मुँह मीठा करो,मेरा प्रमोशन हो गया,अब मै फैक्टरी में मैनेजर हो गया हूँ।"
लतिका  धीरज की  प्रमोशन की खुशी देखकर कुछ न कह सकी।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
12/08/2020

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